तेजाबी हमला
कमलेश जैन
विश्व के कई और देशों की तरह भारत में भी लड़कियों पर तेजाबी हमला करीब-करीब हर रोज होता है। कुछ घटनाएँ प्रकाश में आती हैं पर ज्यादातर घटनाएँ चुपचाप सह ली जाती हैं। कहना मुश्किल है कि कितनी घटनाओं में पीड़िताएँ इलाज या अस्पताल के अभाव में मर जाती हैं। मरने तक की यह अवधि घटना के बाद कुछ दिन, कुछ महीने या वर्षों की हो सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कितनी प्रतिशत त्वचा जली है और कहाँ पर जली है।
मानव पर सबसे दर्दनाक हादसा तेजाबी हमला ही है। इसमें जब तक जीवन है, पीड़िता को तिल-तिल कर दर्द के साथ जीना होता है। हर दो-चार महीने पर आपरेशन होते हैं। आपरेशन में त्वचा के प्रत्यारोपण के लिए घायल के ही शरीर की स्वस्थ त्वचा काटकर जले स्थान पर लगाई जाती है। जली त्वचा को स्वस्थ त्वचा से ढकने के क्रम में सारी त्वचा जली और कटी त्वचा में बदल जाती है। इन्हें इंफेक्शन लगने का डर भी होता है अत: इनके लिए साफ-सुथरा वातावरण तथा स्वास्थ्यकर भोजन, पानी और हवा की जरूरत होती है। ये लोग धूप में नहीं रह सकते, गर्मी में नहीं रह पाते। इन्हें ए.सी. की जरूरत होती है पर जिस तरह की माली हालत से ये आते हैं, वहाँ कहाँ और कितनी सुविधा प्राप्त हो सकती है, इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है।
सम्माननीय लक्ष्मी
नई दिल्ली की भीड़ भाड़ वाली खान मार्केट में एसिड हमले का शिकार हुई लक्ष्मी को अमेरिका ने प्रतिष्ठित इंटरनेशनल वूमन ऑफ द करेज अवार्ड के लिए चुना है। एसिड हमलों को रोकने के लिए अभियान शुरू करने में लक्ष्मी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अमेरिकी विदेश विभाग में 8 मार्च को आयोजित समारोह में देश की प्रथम महिला मिशेल ओबामा लक्ष्मी को यह सम्मान देंगी। 2005 में लक्ष्मी जब खान मार्केट के बस अड्डे पर खड़ी थीं तब उनके चेहरे पर उनके दोस्त के भाई ने तेजाब फेंका। लेकिन लक्ष्मी छिपकर नहीं रही वह कैमरे के सामने आई, उसने एसिड की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए 27,000 लोगों के हस्ताक्षर लिये और मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले गईं। लक्ष्मी की अगुवाई वाली चाचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों को तुरन्त एसिड की बिक्री पर अंकुश लगाने का निर्देश दिया। लक्ष्मी अब भी एसिड हमले की पीड़ित महिलाओं को मुआवजा दिलाने के साथ उनके पुनर्वास की लड़ाई लड़ रही है।
मेरा मानना है कि इन्हें राज्य द्वारा गोद ले लिया जाना चाहिए। कारण, वह राज्य ही है जिसकी कानून व्यवस्था ने तेजाब को खुलेआम बिकने की छूट दी है। वह राज्य ही है, जहाँ से पीड़िता को जल्दी न्याय मिलता लेकिन अपराधियों को मामूली सजा वर्षों बाद मिलती है। न्यायपालिका भी कम दोषी नहीं है। उसे अपराधी के लिए तो सहानुभूति होती है पर पीड़िता का दर्द, तकलीफ नजर नहीं आती। इसलिए अब तक तेजाबी हमले के अपराधियों को पन्द्रह दिन, छ: महीने, साल-दो साल या पाँच वर्ष तक की सजा मिलती रही। यह भी तब जबकि पीड़िता की दोनों आँखें चली गईं या गर्दन नहीं मुड़ सकती या हाथ-पाँव चलने से लाचार हो गए और चेहरा जो एक इन्सान की पहचान और उसका गर्व है, वही सबसे ज्यादा नष्ट हो जाता है- खो जाता है। सन् 2012 तक इन मामलों में यही स्थिति रही। पर निर्भया की दुर्घटना के बाद जब आपराधिक कानून में बदलाव किये गए तो इस अपराध के प्रति भी थोड़ी सुध ली गई। पहले यह अपराध भारतीय दंड संहिता की धारा 326 के अन्तर्गत ही आता था, जहाँ अधिकतम सजा आजीवन कारावास तक थी पर इतनी सजा दी नहीं जाती थी। अब क्रिमिनल लॉ (अमेण्डमेंट) एक्ट, 2013 जो 3 फरवरी 2013 से लागू है- उसकी धारा 326 के अनुसार- जानबूझकर ऐसिड डालकर गहरी चोट पहुँचाने की सजा उम्र भर कारावास तथा जुर्माना है। तेजाबी हमले से घायल पीड़िता उम्र भर के लिए पूर्ण या आंशिक रूप से अपंग हो जाती है। इसमें अपराधी जानता है कि मेरे तेजाब फेंकने का अर्थ पीड़िता का बुरी तरह से जल जाना, अपंग हो जाना है। इस धारा में इसके अलावा धारा 326 भी जोड़ी गई है। इसके अनुसार अपराधी जानबूझकर तेजाब फेंकता है या फेंकने का प्रयास करता है, उसकी नीयत पीड़िता को पूर्ण या आंशिक रूप से जलाना, अंगों को नष्ट करना, जलाना, गूंगा या बहरा करना, चेहरा विकृत करना, गहरी चोट पहुँचाना है। ऐसे व्यक्ति को कम से कम 5 वर्ष तथा अधिकतम 7 वर्ष की सजा का प्रावधान किया गया है तथा जुर्माना भी देय है।
acid attack
दोनों ही अपराध संज्ञेय तथा गैर जमानती हैं। इनका ट्रायल सेशन कोर्ट में चलेगा।
यहाँ तेजाब का अर्थ कोई भी ज्वलनशील पदार्थ है, जिसका चरित्र ‘एसिडिक’या करोसिव (क्षयकारी) है- जो शरीर को जलाता है, जो कि त्वचा में दाग बना देता है, अंग विकृत करने तथा पूर्ण या आंशिक रूप से व्यक्ति के अंग नष्ट करता है तथा टेढ़ा-मेढ़ा बना देता है।
इस संदर्भ में मेरे द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में कुछ ही दिनों में एक जानहित याचिका दाखिल की जा रही है जिसमें तीन मुख्य माँगें रखी गयी हैं। 1. तेजाब की बिक्री-खरीद पूर्णतया समाप्त की जाय 2. राज्य द्वारा पीड़ित की पूरी चिकित्सा की जाय तथा उसके पुनर्वास, नौकरी तथा घर की मुफ्त व्यवस्था की जाय तथा 3. निचली, उच्च तथा सर्वोच्च तीनों अदालतों में अदालती कार्यवाही एक वर्ष की अवधि में खत्म की जाय तथा अपराधी को ज्यादा से ज्यादा सजा दी जाय।
महिला उत्पीड़न पर अदालतों के हाल के कुछ फैसले
- सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को दुष्कर्म की शिकार दो स्कूली छात्राओं के नाम उजागर करने पर सख्त नाराजगी जताते हुए दोनों छात्राओं को 10-10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया।
- महिला सहकर्मी पर भद्दी टिप्पणी करने के मामले में आरोपी भारतीय रेवेन्यू र्सिवस के एक अधिकारी को दिल्ली उच्च न्यायालय ने न केवल 15 दिन कैद की सजा सुनाई बल्कि दो हजार रुपये जुर्माना भी लगाया।
- केन्द्र सरकार के दिवंगत कर्मचारियों की पत्नियाँ व तलाकशुदा बेटियाँ भी पारिवारिक पेंशन पाने की हकदार हैं। कार्मिक मंत्रालय ने इस सम्बन्ध में एक सर्कुलर जारी किया है।
- सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक अगर किसी ने पहली शादी की बात छिपाकर दूसरी शादी की है तो उसे दूसरी पत्नी को भी गुजारा भत्ता देना होगा।
- बम्बई हाईकोर्ट के एक फैसले के अनुसार यदि पति गुजारा भत्ता नहीं देता तो पति की गिरफ्तारी तक हो सकती है।
- एक अहम फैसले में बांबे हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पति बेरोजगार है तो भी वह अपनी बीबी और बच्चे के भरण-पोषण के लिये गुजारा भत्ता देने को बाध्य है। वह इससे मुकर नहीं सकता।
- दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट ने कहा कि भले ही किसी व्यक्ति ने तलाक के बाद दूसरी शादी कर ली हो मगर उसे अपनी पहली बीबी और बच्चों का खर्च उठाना होगा।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में घरेलू महिलाओं के कामकाज की आर्थिक नजरिये से व्याख्या करते हुए कहा कि बीमा दावे के तहत घर की सामान्य गृहिणियों को भी कमाऊ सदस्यों की श्रेणी में ही माना जाना चाहिए।
- दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम कानून किसी भी परिवार के उन सदस्यों पर लागू नहीं होता जो दम्पति से अलग या दूर रहते हों यानी महिला अपने पति के साथ रह रही हो और ससुराल वाले अलग रहते हों तब वह यह नहीं कह सकती कि उसे ससुराल वाले तंग कर रहे हैं और वह सुरक्षा की माँग करे।
- 2005 में एक नाबालिग द्वारा अपने पिता पर दुष्कर्म के विरुद्ध मामला लिखाने के बाद पीड़िता की पहचान उजागर करने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस व एक न्यूज चैनल पर साढ़े छह लाख का जुर्माना लगाया।
- तेजाब बिक्री नियंत्रित करने के बारे में कोई ठोस नीति न अपनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को कड़ी फटकार लगाई। लड़कियों पर आये दिन तेजाब के हमलों पर कोर्ट की सख्ती से सरकार ने बाद में कुछ कड़े प्रावधान लागू किये, मसलन बिना पहचान पत्र के तेजाब नहीं मिल सकता।
- 27 साल पहले हुये एक दुष्कर्म के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दो पीड़ित बहिनों को पाँच-पाँच लाख रुपये का मुआवजा दिलवाया।
- पंजाब के होशियारपुर में एक अदालत ने महज आठ दिनों के भीतर दुष्कर्म के दोषी को सजा सुनाकर नजीर पेश की। अभियुक्त को न सिर्फ 10 साल की सजा हुई बल्कि उस पर 50 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया गया।
– प्रस्तुति: कमल नेगी
acid attack
उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika
पत्रिका की आर्थिक सहायता के लिये : यहाँ क्लिक करें