एलिस मनरो : वह महज एक लड़की है

मधु जोशी

”फिर लैयर्ड ने वास्तविकता बयान करते हुए कहा, ‘वह रो रही है।’

‘कोई बात नहीं,’ मेरे पिता ने कहा। वह सब्र के साथ, परिहास करते हुए बोल रहे थे और अपने शब्दों में उन्होंने मुझे सदा के लिए मुक्त और खारिज कर दिया। ‘वह महज एक लड़की है,’ उन्होंने कहा।

मैंने इसका विरोध नहीं किया, अपने दिल में भी नहीं। शायद यह सच था।” और इन्हीं हताश-निराश शब्दों के साथ ऐलिस मनरो (जन्म 1931) अपनी कहानी ‘बॉयज़ एण्ड गर्ल्स’ (लड़के और लड़कियाँ) समाप्त करती हैं।

10 अक्टूबर 2013 को नोबेल पुरस्कार समिति ने साहित्य का नोबेल पुरस्कार ऐलिस ऐन मनरो को प्रदान करने की घोषणा की। वह तेरहवीं महिला साहित्यकार हैं जिन्हें नोबेल के एक सौ तेरह साल के इतिहास में पुरस्कृत किया गया है। यह पहली बार है कि कनाडा के किसी साहित्यकार को नोबेल पुरस्कार दिया गया है। ‘बॉयज एण्ड गर्ल्स’सर्वप्रथम 1968 में प्रकाशित हुई थी और फिर चौदह अन्य कहानियों के साथ ऐलिस मनरो ने इसे अपने प्रथम संकलन डान्स ऑफ द हैप्पी शेड्स (1968) में शामिल किया था। आरम्भिक दौर में लिखी इस कहानी में बहुत कुछ ऐसा है जो ऐलिस मनरो के समग्र लेखन में दृष्टिगोचर होता है। यद्यपि ऐलिस मनरो को मात्र एक नारीवादी लेखक कहना उनकी प्रतिभा के साथ अन्याय करना होगा, फिर भी इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता है कि उन्होंने नारी मन की अंतरंगतम अनुभूतियों और अनुभवों को बखूबी उकेरा है- आरम्भिक कहानियों में तरुणियों और नवयुवतियों की भावनाओं को और उसके बाद मध्यम वय की महिलाओं, प्रौढ़ाओं और अकेली महिलाओं की स्थिति को। ‘बॉयज एण्ड गर्ल्स’में भी तरुणी नायिका से संजने-संवरने-सलीके से उठने-बैठने की अपेक्षा की जाती है और उसकी माँ अपने घरेलू दायित्वों की पूर्ति करने में इतना उलझ जाती है कि वह दिन भर अपने बेतरतीब बालों को स्कार्फ से ढकी रहती है। व्यंग्योक्तियों के कुशल प्रयोग के संदर्भ में भी यह कहानी ऐलिस मनरो की अन्य कहानियों का भली-भाँति प्रतिनिधित्व करती है।

‘बॉयज एण्ड गर्ल्स’की अनाम नायिका के पिता रजताभ लोमड़ियों का पालन करते हैं। जब वह अपनी बेटी को इस व्यवसाय से जुड़ी कोई छोटी-मोटी जिम्मेदारी सौंपते हैं, जैसे कि लोमड़ियों को पानी देना, तो वह सहर्ष व सगर्व उस जिम्मेदारी को निभाती है। अपनी माँ द्वारा दिये गये रसोई और घर से जुड़े कार्यों से वह ऊब जाती है और उन्हें जैसे-तैसे निपटाकर वह वहाँ से बच निकलने की भरसक कोशिश करती है। बिस्तर में नींद के आगोश में समाने से पहले, वह ख्वाब बुनती है और एक काल्पनिक दुनिया का निर्माण करती है जिसे, उसके अपने शब्दों में, ‘‘स्पष्टत: मेरी दुनिया के रूप में पहचाना जा सकता है, लेकिन जिसमें साहस, जीवट और स्वयं को कुर्बान करने के वह अवसर उपलब्ध थे जो मेरी दुनिया में नहीं मिलते थे।” इन सपनों में वह बमवर्षा से ध्वस्त मकान में फँसे लोगों को बचाती है, पागल भेड़ियों को गोली मारती है और उम्दा घोड़ों की सवारी करती है। एक बार घास काटते समय जब उसके पिता एक आगन्तुक से उसका परिचय अपने नये मजदूर के रूप में कराते हैं तो वह फूली नहीं समाती है।

इस तरुणी के अन्दर एक अव्यक्त अकुलाहट है जो उसे उकसाती है कि वह अपने छोटे भाई को छत की सबसे ऊँची बल्ली पर चढ़ा दे ताकि ‘‘कुछ ऐसा हो सके जिसके विषय में मैं बात कर सकूँ।” इस दौरान उसकी माँ, जो कि देर रात तक जागकर उसके लिए उसकी पसंद की पोशाक सिलती है और उसे अपनी तरुणावस्था के रोचक किस्से भी सुनाती है, उसे अपनी ऐसी ‘‘दुश्मन” लगने लगती है, जो सदा उसके खिलाफ षड्यंत्र करती रहती है। उसे लगने लगता है कि उसकी माँ उसे घरेलू कार्यों में उलझाकर उसके पिता की दुनिया से दूर रखने का भरसक प्रयास कर रही है। जब उसके पिता लोमड़ियों को खिलाने के लिए मैक नामक घोड़े को गोली मारते हैं तो वह अपने भाई के साथ छिपकर इस दृश्य को देखती है और कभी यह जाहिर नहीं करती कि इस दृश्य को देखकर वह कितनी विचलित हो गयी थी।
Alice Munro: She’s Just a Girl

समय बीतने के साथ इस लड़की के सपने बदलने लगते हैं। अब वह लोगों को नहीं बचाती, लोग उसे बचाते हैं। इसके अलावा निद्रा-पूर्व के इन दिवास्वप्नों में वह अपने बाल, वस्त्रों और शक्ल सूरत में उलझने लगती है और इसके फलस्वरूप उसे लगता है कि उसके सपने अब उबाऊ  हो गये हैं। जब उसके पिता, एक बार फिर, लोमड़ियों को खिलाने के लिए फ्लौरा नाम की घोड़ी को मारने के लिए ले जा रहे होते हैं, तो फ्लौरा अपना बन्धन तुड़ाकर अचानक भाग जाती है। लड़की फार्म का फाटक बंद करके घोड़ी को रोकने के लिए दौड़ती है, उसे रोक भी सकती है और फिर, वह पाठकों के साथ अपना राज साझा करती है, ‘‘गेट बन्द करने के बजाय, मैं उसे जितना खोल सकती थी, मैंने उसे उतना खोल दिया। मैंने ऐसा करने का निर्णय नहीं लिया। यह तो मैंने बस कर दिया।…. यह करके मैंने अपने मेहनती पिता का काम बढ़ाया ही था। जब मेरे पिता को इसके बारे में पता चलेगा तो वह फिर मुझ पर विश्वास नहीं करेंगे। उन्हें पता चल जायेगा कि मैं पूरी तरह से उनकी तरफ नहीं थी। मैं फ्लौरा की तरफ थी और इसके कारण मैं किसी के काम की नहीं थी, फ्लौरा के भी नहीं। फिर भी मुझे इस बात का अफसोस नहीं था। जब वह मेरी तरफ दौड़ती हुई आयी और मैंने उसके लिए फाटक खोल दिया, तब वह एकमात्र काम था जो मैं कर सकी थी।” यहाँ यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि नायिका का घोड़ी को जानबूझकर मुक्त कर देना, एक स्तर पर सभी प्रकार के सामाजिक और लैंगिक बन्धनों से मुक्त होने के लिए उसकी छटपटाहट को भी इंगित करता है।

बहरहाल, जब नायिका के पिता फ्लौरा को ढूँढने जाते हैं तो वह उसे साथ न ले जाकर अपने बेटे लैयर्ड को साथ ले जाते हैं। लैयर्ड वापिस आकर गर्व के साथ फ्लौरा के खून से सनी अपनी बाँह प्रदर्शित करता है और घोषणा करता है कि उसने अपने पिता और उनके सहायक हैनरी के साथ मिलकर फ्लौरा को गोली मारकर उसके पचास टुकड़े कर दिये हैं। वह अपनी बड़ी बहन पर आरोप भी लगाता है कि उसने जानबूझकर फ्लौरा को भागने दिया था और नायिका उसके आरोप को स्वीकार करने के उपरान्त रोने लगती है। इस बिन्दु पर उसके पिता अपना निर्णय सुना देते हैं कि ‘‘कोई बात नहीं।…. वह महज एक लड़की है।” और इसी के साथ इस निरुत्साहित तरुणी की कहानी समाप्त हो जाती है।

”बॉयज एण्ड गर्ल्स” को एक ऐसी नारीवादी दृष्टांत-कथा कहा जा सकता है जो उस दौर की याद दिलाती है जब महिला सशक्तीकरण की वकालत करने वालों ने समाज में व्याप्त लैंगिक असमानताओं को महसूस करना शुरू किया था। यह कहानी एक युवा लड़की द्वारा सुनायी गयी है और उसके जीवन के उस दौर को चित्रित करती है जब वह शिद्दत से महसूस करने लगती है कि लड़की होने के कारण समाज उसे स्वत: ही एक पूर्व-निर्धारित खाँचे के अन्दर स्थापित कर देता है और उसे कदम-दर-कदम यह याद दिलाता है कि लड़की होने का अर्थ अन्तत: औरत होना है; वह औरत जिससे समाज अनेक अपेक्षाएँ करता है जिस पर समाज अनेक बंदिशें थोपता है। यह दौर इस लड़की के लिए एक मुश्किल दौर है क्योंकि उसे हर पल यह अहसास होता रहता है, यह अहसास दिलाया जाता है कि वह महज एक लड़की है, और इसका अव्यक्त अभिप्राय यह होता है कि वह पुरुषों और भावी पुरुषों- जिसमें उसके पिता, उनके सहायक हैनरी और उसका भाई लैयर्ड भी शामिल हैं- से कमतर है। आरम्भ में वह इसका विरोध करती है लेकिन वह इस प्रयास में विफल ही होती है। कहानी के अन्त में वह पाठकों को उस बिन्दु पर खड़ी नजर आती है जब ‘‘वह महज एक लड़की है” और सम्भवत: वह इस ‘‘लड़की होने के अहसास को डरते-सहमते स्वीकार करने की राह पर निकल पड़ी है।”

कुछ ऐसी सीधी-सादी किन्तु गूढ़ और अनेक स्तरों पर संपादित होने वाली कहानी है ‘‘बॉयज एण्ड गल्र्स।” गागर में सागर समाने वाली इस कृति को पढ़ने के उपरान्त स्वत: ही समझ में आ जाता है कि क्यों ऐलिस मनरो को ‘‘कनाडा के चेखव”  कहा जाता है और क्यों नोबेल पुरस्कार  समिति ने अपनी विज्ञप्ति में उन्हें ‘‘समकालीन कहानी का महारथी” की उपाधि से विभूषित किया है। इस कहानी में वह सादगी ईमानदारी, गहराई और कसावट नजर आती है जो ऐलिस मनरो के समग्र लेखन में पूर्णत: व्याप्त है। इसके अलावा ‘बॉयज एण्ड गल्र्स’ ऐलिस मनरो की निम्नलिखित घोषणा की सजीव अभिव्यक्ति भी है। ‘‘मैं चाहती हूँ कि कहानियाँ खुली हों। लोग जो जानना चाहते हैं या जो जानने की आशा करते हैं या जिसका पूर्वानुमान करते हैं, मैं उसे चुनौती देना चाहती हूँ…’’
Alice Munro: She’s Just a Girl
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