सामाजिक बदलाव की लड़ाई

प्रीति थपलियाल

हमारा भारतीय समाज पूरी तरह  पितृसत्तात्मक मूल्यों में टिका हुआ है। जिसमें महिलाओं की स्थिति दोयम दर्जे की है। धार्मिक संस्थाएँ पितृसत्तात्मक समाज को मजबूत बनाती हैं। इस सामाजिक व्यवस्था के तहत कई प्रकार से महिलाओं पर हिंसा होती है। उस हिंसा को करने वाले लोग उसके अपने ही परिवार के होते हैं। इसके साथ ही धर्म, परम्परायें सभी महिलाओं पर अलग-अलग तरह की हिंसाएँ करते हैं लेकिन पितृसत्तात्मक समाज के कारण यह संभव नहीं हो पाता कि समाज की ओर से ऐसी घटनाओं के खिलाफ बड़ा प्रतिवाद हो।

वर्तमान समाज में आज भी महिलाओं को उपभोग की वस्तु समझा जा रहा है। इसका एक ताजा उदाहरण आशा जदली के साथ जो हुआ, उससे समझा जा सकता है। 

आशा ग्राम शिब्बूनगर, कोटद्वार की निवासी है। उसने एम.ए., बी.एड. एवं कम्प्यूटर कोर्स में डिप्लोमा किया है। तथा  वह तीन वर्ष से स्थानीय विद्यालय मदरलैण्ड एकेडमी में अध्यापन कर रही थी। विद्यालय में ही दो साल से सैनिक स्कूल प्रवेश-परीक्षा की कोचिंग भी देती थी तथा घर में ट्यूशन के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी करती थी।

गत 13 जुलाई, 2013 को उसका विवाह गौनियाल मार्केट, सिताबपुर के युवक अमर गौनियाल के साथ हुआ। विवाह के बाद वह केवल एक माह 6 दिन ही ससुराल में रही और अचानक 20 अगस्त 2013 को उसे जबरन ससुराल से निकाल दिया गया। कारण बताया गया कि वह पागल एवं चरित्रहीन है। एक माह बाद जब 18 सितम्बर को वह अपने पिताजी एवं चचेरे भाई के साथ ससुराल गयी तो पति एवं सास अनीता गौनियाल ने घर में घुसने तक नहीं दिया। वे लोग गाली-गलौज एवं धमकियाँ  देने लगे। आशा के पिता एवं चचेरे भाई के साथ उन्होंने मारपीट करने की कोशिश की। पति अमर गौनियाल ने आशा के पिता का कॉलर पकड़कर धक्का भी दे मारा। सास ने यह भी धमकी दे डाली कि तेरे लिए हर कमरे में लड़के बिठा रखे हैं और बाथरूम में सी.सी. टी.वी. कैमरे फिक्स किये हैं।

आशा पर यह भी आरोप लगाया गया कि वह अपने पिता एवं चचेरे भाई के साथ ससुराल में चोरी करने गयी थी। उन्होंने उसे  ससुराल आने से सख्ती से मना कर दिया। यहाँ तक कि ससुराल से अपने बचे हुये कपड़े आदि लाने हेतु उसे पुलिस के दो सिपाहियों को साथ लेकर जाना पड़ा। इतने अधिक दबावों के चलते उस दिन के बाद पुलिस द्वारा महिला हेल्पलाइन में सात बार काउन्सलिंग करवायी गयी जो हमेशा असफल रही किन्तु एफ.आई.आर. फिर भी दर्ज नहीं की गयी।

विवाह तय होने से पूर्व आशा के परिवार को यह जानकारी थी कि इस लड़के की एक मंगनी टूटी है जिसका कारण बताया गया था कि वह लड़की चरित्रहीन थी एवं उस लड़की ने शादी के बाद अलग रहने की शर्त भी रखी थी।  विवाह के बाद आशा को ज्ञात हुआ कि एक अन्य लड़की से अमर की मंगनी टूट चुकी थी। 15 अप्रैल 2013 को आशा एवं अमर की सगाई हुई। सगाई के दिन दोनों पक्षों द्वारा तय किया गया कि शादी उसी वर्ष अक्टूबर माह में होगी। परन्तु सगाई के एक सप्ताह बाद ही लड़के वालों ने उसी वर्ष जुलाई में शादी करवाने के लिए दबाव डाला। आशा के परिवार के न चाहते हुए भी लड़के वालों ने बहानेबाजी करके जुलाई में शादी करवा दी। आशा के पिता ने शादी के लिए घर के पास ही स्थित गणेश पैलेस नामक बारात घर अग्रिम राशि देकर बुक करवाया था। किन्तु लड़के ने दबाव डालकर देवी रोड स्थित राम रतन होटल बुक करवाया। जबकि दोनों बारात घर आसपास हैं। जब राम रतन होटल बुक हो गया तो लड़के वालों ने बिना बताये अपने न्यूतेर एवं प्रीतिभोज भी राम रतन में ही बुक करवा लिये। शादी के बाद पता चला कि उन्होंने साँठ-गाँठ करके लड़की वालों के खर्चे में ही दोनों पक्षों की शादी करवा डाली।
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शादी से एक सप्ताह पहले लड़के ने आशा की नौकरी भी छुड़वा दी। कहा गया कि फिलहाल जॉब छोड़ दो। शादी के बाद कहा गया कि अगर बाहर जॉब करने की सोची भी तो पहले तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर करने होंगे। शादी के एक सप्ताह बाद ही अमर गौनियाल ने अपने कमरे में कम्प्यूटर लगा दिया जिसमें पहले से ही ब्लू फिल्में एवं अन्य अश्लील वीडियो भर रखे थे। आशा को जबरदस्ती इन फिल्मों को देखने एवं साथ-साथ ऐसा करने के लिए भी दबाव बनाया। इस प्रकार वह उसे अप्राकृतिक यौन कृत्यों के लिए मजबूर करने लगा। जिसका आशा ने विरोध किया। विरोध होने पर वह अपना संयम खो बैठता एवं उसे तथा उसके मायके वालों को खत्म करने की धमकी देता था। गाली-गलौज एवं मारपीट के साथ-साथ शादी के रिश्ते के बहाने एक जानवर की भाँति मानसिक एवं शारीरिक शोषण करता था। सास एवं दो ननदों  द्वारा कहा जाता था कि पति को परमेश्वर मानो और उसे हर प्रकार से खुश रखो। पति कई बार तलाक की धमकी देता था और कहता था कि लड़की का न मायका होता है और न ससुराल। अमर यह भी कहता था कि उसकी इतनी पहुँच है कि उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसलिए कभी भूलकर भी उसके विरुद्ध दहेज एवं उत्पीड़न की कानूनी कार्यवाही करने की सोचना भी मत। आशा पर कई सारे झूठे एवं अश्लील आरोप लगाकर समाज में उसे बेइज्जत किया जाने लगा। उस पर पागलपन एवं चरित्रहीनता के आरोपों द्वारा सच में उसे पागल सिद्ध करने की कोशिश की गयी तथा आत्महत्या के लिए बाध्य किया गया।

हताश व निराश आशा जिसकी माँ का एक साल पहले ही  देहान्त हो गया था, 18 सितम्बर 2013 को अपनी रिपोर्ट लिखवाने कोटद्वार थाने पहुँची। उसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट तो दर्ज नहीं की गयी लेकिन सी.ओ. अरुणा भारती द्वारा सात बार काउन्सलिंग करवाई गयी जिसका कोई हल नहीं निकला। लेकिन फिर भी इस मामले को एफ.आई.आर. के लायक नहीं समझा गया। सी.ओ. ने दो बार आशा के पागल न होने का मेडिकल लाने  के लिये उसे देहरादून डाक्टर के पास भेजा।

आशा ने एस.पी. पौड़ी, डी.जी.पी. उत्तराखण्ड व राज्य महिला आयोग से न्याय की गुहार लगाई परन्तु हर जगह से आशा को निराशा ही मिली । राज्य महिला आयोग में भी आशा का  ससुराल पक्ष नही पहुँचा। इसके पश्चात आशा महिला समाख्या कोटद्वार आई। महिला समाख्या, परिवर्तनकामी छात्र संगठन और जन अधिकार संयुक्त संघर्ष समिति के द्वारा दबाव बनाने पर 16 जनवरी 2014 को सी.ओ. कार्यालय का घेराव करने के पश्चात् चार माह बाद एफ.आई.आर. दर्ज हुई। पुलिस सीधे-सीधे आरोपी के पक्ष में खड़ी दिख रही थी। पुलिस का कहना था कि बाहर तो उस व्यक्ति की अच्छी छवि है। पुन: 5 फरवरी, 2014 को महिला समाख्या कार्यकर्ताओं द्वारा थाने का घेराव व धरना दिया गया जिसमें  मजबूरन जाँच अधिकारी द्वारा 24 घण्टे के अन्दर अमर गौनियाल की गिरफ्तारी करने के लिये लिखकर महिला समाख्या कार्यकर्ताओं को दिया गया। इसके पश्चात् 6 फरवरी, 2014 को दोपहर 12 बजे अमर गौनियाल को गिरफ्तार किया गया। अभी वह पौड़ी जेल में है।
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सवाल यह है कि जब लड़की को जबरन ससुराल से निकाला जाता है तो उस पर ही कलंक क्यों लगता है? उन ससुरालियों पर क्यों नहीं जो दहेज के लालच में एवं अपनी कुंठित एवं बीमार मानसिकता के चलते घर की बहू को एक इस्तेमाल किये गन्दे कपडे़ की तरह बाहर निकाल फेंकते हैं। जब किसी लड़की का बलात्कार होता है तो क्यों कहते हैं कि उस बेचारी लड़की की इज्जत लुट गयी। क्यों उन बलात्कारियों की इज्जत नही लुटती, जिन्होंने यह काण्ड किया। उस पीड़ित लड़की को समाज द्वारा नकार दिया जाता है। उससे कोई शादी नहीं करता क्योंकि अब उसकी इज्जत ही नहीं है और वे बलात्कारी सिर उठाये सरेआम खुले घूमते हैं। निर्दोष लड़की को ही अपना मुँह छिपाना पड़ता है। एक लड़की जब सरेआम अपने साथ हो रही छेड़खानी का विरोध करती है तो उसे उसमें क्यों अपनी बदनामी दिखती है। आज समाज में कन्या भ्रूण हत्या की लगातार बढ़ती घटनाओं का कारण यह नहीं है कि लोग बेटियों से प्यार नहीं करते बल्कि सच तो यह है कि आज बेटियों का होना अपने साथ ऐसी मजबूरियाँ जोड़ लेना है जो कई बार इंसान को झुकने एवं हारने पर बाध्य करती हैं। एक पढ़ी-लिखी एवं आत्मनिर्भर लड़की पर ही हमेशा कलंक लगने का डर लगा रहता है। इतने बड़े काण्ड के बाद अब आशा का ससुराल में रहना सुरक्षित नहीं है। आज उसे पागल कहने वाले कल सच में ही उसे पागल बना सकते हैं। उस पर लगाम कसने के लिए इंजेक्शन, दवाई आदि के प्रभाव द्वारा उसका एम.एम.एस. बनाकर उसे ब्लैक मेल कर सकते हैं।

हमारे देश में 65 मिनट में एक दहेज तथा 22 मिनट में एक बलात्कार हो रहा है। 65 प्रतिशत छात्राओं  व महिलाओं  के साथ बलात्कार उनके परिजनों द्वारा हो रहे हैं। बिना सामाजिक व्यवस्था और पुरुष प्रधान सोच को बदले यह व्यवस्था खत्म नहीं हो सकती।

आशा ने अपने पति की ऐसी मानसिकता का विरोध किया जिसको हमारा पितृसत्तात्मक मूल्यों पर टिका समाज सही ठहराता है कि पति जो चाहे शादी के पश्चात अपनी पत्नी के साथ कर सकता है। लेकिन यह अधिकार उसको किसने दिया? आशा एक पढ़ी-लिखी जागरूक लड़की है। जिसने अपने पति द्वारा अप्राकृतिक यौन सम्बन्धों का कड़ा विरोध किया लेकिन हमारा वर्तमान सामाजिक ढाँचा हमें इन चीजों पर बोलने की मनाही करता है। इसलिए यह आवश्यक है कि महिला आन्दोलन की लडा़ई में वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को बदलने की लड़ाई को भी शामिल करना होगा ताकि महिलाएँ केवल बराबरी और आजादी का नारा ही न लगायें बल्कि वे उसे हासिल भी करें।
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