पर्वतारोहण : राफ्टिंग, कैनोइंग, कर्यांकग का मजा

चन्द्रप्रभा ऐतवाल

बह उठकर नाश्ता तैयार किया और सामान बांधने लगे। जौन ने मुझे कुछ बर्तन उठाने के लिये दिये। साथ ही उस रस्सी को फिर से मुझे ही उठाने को दिया। मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर मैं उन लोगों को दिखाना चाहती थी कि मैं इतनी कमजोर नहीं हूँ। ये लोग मेरी परीक्षा लेना चाह रहे हैं, यह सोचकर सभी सामान ठीक से बांध कर सबसे ऊपर रस्सियों को बांध लिया।

जौन बस अपनी चाल से चलता बना फिर मैं भी चलने लगी। इतने में डॉ. पुष्कर बुरी तरह से लुढ़क गया और चन्द्रा-चन्द्रा करके चिल्लाने लगा। गुस्सा होने पर भी उसे मदद करने गयी और उसका सामान ठीक से बांधा। इस तरह हमारा काफी समय खराब हो गया। हम दोनों आधार शिविर में सबसे अन्त में पहुँचे। वहां देखा सारा सामान बंध रहा है और खाना भी लगभग खत्म हो चुका है। खैर किसी तरह गुजारा किया और हम भी घंघरिया आने की तैयारी में लग गये। लीडर के बच्चों की सवारी के लिये और हमारा सामान उठाने के लिये सेना के दो घोड़े, खच्चर आदि मंगवाये गये थे। सामान को घोड़ों पर चढ़ाने के बाद हम लोग भी चल पड़े, किन्तु न्यूजीलैण्ड के कुछ सदस्यों ने सामान बिल्कुल नहीं उठाया। यह अच्छा-सा नहीं लग रहा था, पर अपनी-अपनी समझ है।

शाम को घंघरिया सही समय पर पहुंच गये और रात आराम से कट गयी। दूसरे दिन नाश्ता कर चुके थे कि अचानक हेमकुण्ड जाने का प्रोग्राम बन गया। सोचा, चलो इसे भी देख लेते हैं और चल पड़े। हेमकुण्ड साहब देखने लायक स्थान है। यहां सिक्खों का गुरुद्वारा है जो यहां आने वाले यात्रियों की बड़ी सेवा करते हैं और गर्म-गर्म चाय व हलवे से स्वागत करते हैं। सामने नीली झील है और सभी इसमें स्नान करते हैं। पास में लक्ष्मण जी का छोटा सा मन्दिर है, जिसकी हालत हिन्दुओं की लापरवाही व आलसीपन का प्रतीक है। झील के एक कोने में ग्लेशियर का ढेर जमा हुआ है। रास्ते में ब्रह्मकमल जगह-जगह पर खिले हुए हैं जो हृदय को और भी मनोरम बना देते हैं। यहां पहुंचकर एक साथ ही झील व ग्लेशियर को बहुत पास से देखने का मौका मिलता है।

हमारे साथ न्यूजीलैण्ड के लोग थे। सिर ढक कर जहां-जहां हम प्रणाम करते थे, वहां वे लोग भी प्रणाम करने लगे। इस तरह गुरुद्वारे की पूरी परिक्रमा की और जल्दी ही लौटने का प्रोग्राम बनाया। इतने में जौन कहने लगा चलो वापसी में कम्पीटीशन करते हैं कि कौन पहले शिविर में पहुंचता है। मैं तैयार हो गयी। हम सीढ़ियों पर दौड़ते हुए आये। जहां पर शार्टकट मिलता था उसे पकड़कर दौड़ लगाती थी। इस प्रकार केवल 35 मिनट में ही हेमकुण्ड से घंघरिया पहुंची। वहां हमारा सामान घोड़ों पर लादा जा रहा था।

शिविर में पहुंचकर चाय पी। फिर घोड़ों के साथ अपना सामान उठाकर गोविन्द घाट के लिये चल पड़े। सारे रास्ते में कहीं ककड़ी तो कहीं पकौड़ी खाते हुए हेमकुण्ड वाले यात्रियों के साथ गप लगाते हुए गोविन्द घाट पहुंचे। घोड़ों द्वारा सारा सामान पक्की सड़क तक लाया गया था। अब हमारा सामान सड़क पर फैला हुआ था क्योंकि सेना की गाड़ी का इन्तजार था। गाड़ी आने के बाद सारा सामान गाड़ी पर चढ़ाया गया और फिर जोशीमठ के लिये चल पड़े। जोशीमठ में बिजू मिली। उसकी कॉलर बोन टूटी हुई थी और पट्टी बंधी थी। उसके साथ बातें करते रहे और कैसे-कैसे अभियान में चोटी फतह की, ये सभी बातें बताईं। मुझे उससे बातें करने में बड़ा ही आनन्द आ रहा था। कॉलर बोन टूटी होने के कारण बिजू काफी कमजोर हो चुकी थी। 
Mountaineering: Enjoy rafting, canoeing, karyankag

जोशीमठ में एक दिन और रुके। अब हमारा दूसरा अभियान शुरू करना था और उस अभियान हेतु राशन आदि सामान खरीदना था और छूटे सामान को फिर से बांधने की तैयारी करनी थी। पूरा दिन इन्हीं कामों में लग गया। जोशीमठ से सेना के थ्री टन में सामान डाला और सीधे उत्तरकाशी आये। पूरी टीम नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में रुकी। एक दिन उत्तरकाशी में आराम किया। उस दिन नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के चट्टान आरोहण क्षेत्र में चट्टान आरोहण करने गये। दिन का खाना मेरे घर पर था। मैं जी.जी.आई.सी. के कर्मचारी आवास में रहती थी। मैं उस समय अध्यापिका थी और वहीं कालेज में पढ़ाती थी। मेरे कालेज के सहयोगियों ने मेरी बहुत मदद की। सभी अध्यापिकाओं ने मिलकर भारतीय खाना तैयार किया था। न्यूजीलैण्ड वालों को खाना बहुत पसन्द आया और रास्ते में बार-बार उस खाने को याद करते थे।

खाना खाने के बाद जौ जौ, अली और मैंगी ने साड़ियां पहनी और फोटो खिंचवाये तथा साथ ही साथ स्लाइड भी खींचा। जब उन लोगों ने साड़ी पहनने को कहा तो मैने अपना सन्दूक खोला तो कहने लगे कि क्या ये सब साड़ियां तुम्हारी ही हैं ? हां कहने पर कहने लगे तुम्हारी ये साड़ियां तुम्हें कभी विदेश घूमने नहीं देंगी। उस समय मैने भी सोच लिया था कि अब से साड़ी नहीं खरीदूंगी, परन्तु हमारे यहां यह सम्भव नहीं है।

उत्तरकाशी से सीधा रुद्रप्रयाग गये। वहां दिल्ली से रिवर राफ्टिंग के लिये आये हुए अन्य सदस्य भी मिले। वहां से पूरी टीम केदारनाथ के लिये चल पड़ी। गौरीकुण्ड तक गाड़ी में गये और एक रात गौरीकुण्ड में रुके। अगले दिन गौरीकुण्ड से पैदल केदारनाथ के लिये रवाना हुए। रात केदारनाथ रुके और आरती में सम्मिलित हुए। सुबह पूजा-अर्चना में सम्मिलित होने के बाद गौरीकुण्ड के लिये चल पड़े। लीडर और जौन दोनों केदारनाथ से दूसरे रास्ते से होकर गौरीकुण्ड पहुँचे। रात गौरीकुण्ड में ही रुके। न्यूजीलैण्ड वालों ने योजना बनायी कि वे लोग गौरीकुण्ड के पास से ही अपनी कयाक, कैनो और राफ्ट को शुरू करेंगे। हम लोगों ने पहली बार राफ्ट, कैनो और कयाक को देखा था।

गौरीकुण्ड के नीचे से राफ्टिंग, कैनोइंग आदि शुरू किया। पहली बार होने के कारण लोगों की भीड़ बहुत देखने के लिए इकट्ठा हो जाती थी। यहां तक कि अगस्त्यमुनि के पोस्ट ऑफिस में कुछ लिफाफे व टिकट खरीदने गये थे पर लोग न दुकान में थे और न पोस्ट ऑफिस में। सब नदी के किनारे पहुंचे हुए थे। उस दिन अगस्त्यमुनि के शमशान घाट में शिविर लगाया। शमशान घाट में रहने का पहला मौका था, जहां पर बहुत से कपड़े पड़े हुए थे और जली हुई लकड़ी आदि दिख रही थी। अत: थोड़ा डर भी लग रहा था, किन्तु न्यूजीलैण्ड वालों को कुछ भी फर्क नहीं पड़ता था।

अगले दिन वहां से सीधे रुद्रप्रयाग आये। इस दौरान जितने भी शहर या कस्बे आये, सब जगहों के लोग कैनोइंग व कयाकिंग को देखने नदी के किनारे भाग रहे थे। जहां नदी में अधिक पत्थर लगता था, वहां ये लोग कैनो को उठाकर आगे बढ़ जाते थे। इससे कैनो या कयाक को टूटने से बचाते थे। इस प्रकार रुद्रप्रयाग से योजना बनाई गयी कि राफ्टिंग भी शुरू की जाय किन्तु राफ्ट की स्पीड बहुत कम थी और कैनो वाले तेज भागते थे। रात श्रीनगर के पास में शिविर किया। पेड़ों की छाया में  कैम्पिंग का स्थान काफी अच्छा था। वहाँ से ताजी मीट खरीदने बिजू और मैं श्रीनगर आये। यहां एक सदस्य की तबीयत खराब होने के कारण एक-दो दिन वहीं रुके। हम लोगों को कैनोइंग और कयाकिंग सीखने का भी अच्छा मौका मिला। रुद्रप्रयाग में पहली बार राफ्ट में बैठी थी, जिस कारण सामने तौलिया लेकर बैठी थी। लीडर ने उसे उठाकर फेंक दिया। हमें हाफ पैन्ट पहनने की आदत नहीं थी। इस कारण झिझक लगती थी, फिर पहली बार ही यह सब कर रहे थे।

श्रीनगर से सीधे देवप्रयाग को आना था किन्तु देवप्रयाग से पीछे ही एक जगह तेज स्पीट (बहाव) होने के कारण हमारी राफ्ट पलट गयी। राफ्ट इतनी तेजी से पलटी कि कुछ सोचने का समय ही नहीं मिला। खैर किसी तरह सभी राफ्ट के आस-पास ही थे, किन्तु मेरी हेलमेट राफ्ट की रस्सी में फंस जाने के कारण मैं अपना सिर बाहर नहीं निकाल पा रही थी और बार-बार पैर मार रही थी जो राफ्ट पर ही लग रहा था। इस कारण काफी पानी भी पी चुकी थी। अन्त में सोचा कि अब बचना काफी मुश्किल है तो बहुत जोर से चिल्लाई। मेरी आवाज सुनकर कर्नल सन्धू ने मुझे खींचा और बाहर निकाला। जबकि सभी सदस्य मुझे आस-पास में ही ढूंढ रहे थे। मेरे साथ के सदस्य कहने लगे कि रोने वाली शक्ल पर भी हँसी थी। शक्ल पर पूरा 12 बजा हुआ था, फिर भी हँस रही थी।

इस प्रकार सभी किनारे आये और पानी निकालने की कोशिश करने लगे। कर्नल सन्धू का चश्मा खो गया था और कैमरा टूट गया था। पर मेरे हाथ का पैडल हाथ में ही था। अब सभी ने पास ही शिविर लगाने का निश्चय किया। निकट ही एक साफ-सुथरा मन्दिर था। मुझे खूब कॉफी पिलाई ताकि पानी निकल जाय। रात मन्दिर के पास ही सोई क्योंकि मन्दिर की पुजारिन, जो बहुत ही सुन्दर व नर्म स्वभाव की थी कहीं बाहर गई थी, वहां मैं रात भर आराम से सोई रही।

अगले दिन मन में थोड़ा डर था। शिविर के सामने ही एक बहुत तेज रेपीड थी। राफ्ट वालों ने उसे क्रास कर लिया पर स्टू की कैनो पलट गयी, किन्तु उसने उस रेपीड को फिर से क्रास किया। देवप्रयाग पहुंचकर हम लोगों का स्वागत हुआ और पुजारी जी ने हमें मंत्रोच्चारण के साथ पिठांई लगाई और मिठाई खिलाई। देवप्रयाग में अलकनन्दा और भागीरथी का संगम हो जाने के बाद गंगा कहलाती है।

अब हमारा दल गंगा नदी पर राफ्टिंग व कैनोइंग करने लगा। रात कोड़ियाला में शिविर किया। रात को शिविर में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किया। खूब गाना, नाचना हुआ। उस शिविर के पास भी अच्छी खासी रेपीड थी। स्टू ने यहां भी दो बार कैनोइंग की। इस प्रकार धीरे-धीरे आगे बढ़ते चले गये। व्यासी और पाली के पास गंगा नदी पर दो जगह काफी भयंकर रेपीड्स थे। डोडियाल कहने लगा कि रात अच्छा स्वप्न नहीं देखा है। अत: मैं आज राफ्ट पर नहीं बैठूंगा। वह मुझे भी मना कर रहा था। परन्तु  मैंने कहा एक दिन तो जाना ही है तो क्यों न आराम से जायें और मैं राफ्ट में ही बैठी रही, पर भगवान की कृपा से सब कुछ ठीक-ठाक रहा। उस दिन हमारा शिविर लक्ष्मण झूला में लगाया गया। लक्ष्मण झूला में भी देखने वालों की भीड़ बहुत अधिक थी। हाफ पैन्ट पहनने में अब हमें किसी प्रकार की झेंप या झिझक नहीं थी और हम उन्हीं कपड़ों में सब्जी आदि सामान खरीद रहे थे।
Mountaineering: Enjoy rafting, canoeing, karyankag

अगले दिन ऋषिकेश होते हुए हरिद्वार की ओर निकलना था। ऋषिकेश मे भी देखने वालों की बहुत अधिक भीड़ लग गयी और कुछ हमारे जान-पहचान वाले भी दिख रहे थे पर वे लोग पहचान नहीं पाये। ऋषिकेश में मुझे कहा गया कि तुम कैनो चलाओ। मैं कहना मानकर कैनो चलाने लगी। काफी दूर से रेपीड्स की आवाज सुनाई दे रही थी। मैं कुछ डर रही थी। इतने में तैराकी मास्टर श्री प्रभु मुझ से कैनो मांगने लगा। मैने उनको कैनो दे दी और मैं राफ्ट में बैठ गयी। थोड़ी देर में उनका कैनो पलट गया और सिर से हेलमेट भी छूट गया और हाथ का पैंडिल भी टूट गया।

इस प्रकार नंगा सिर देखकर आगे के कैनो वाले सब रुक गये और कहने लगे कि चन्द्रा गयी, पर मैं तो राफ्ट में थी। थोड़ी देर तक सभी परेशान हो गये थे, परन्तु भगवान की कृपा से सभी सकुशल थे। इस तरह आराम से हरिद्वार पहुंचे। हरिद्वार में राफ्ट और कैनो को धोकर सुखा दिया। अब हम लोग अपने आप तैरने लगे। गे्रम मुझे उठाकर नदी में थोड़ा दूर फेंकना चाहते थे, कि मैने उसकी ही टांग पकड़ रखी थी जिससे वह फेंक नहीं पाया। इस तरह काफी मस्ती की। हरिद्वार में होटल में रुके।

1 अक्टूबर को कर्नल सन्धू का जन्म दिन था। सुबह उठकर हरकी पैड़ी में गंगा स्नान किया, फिर नाश्ता करके दिल्ली के लिये रवाना हुए। दिल्ली में उसी मैस में रुके। वहां पर प्रैस का चक्कर चला। एक दिन मोहन नगर खाने पर बुलाया गया था। वहां इस प्रकार दावतें पूरी करने के बाद अब सभी अपने-अपने घर की ओर जाने की तैयारी करने लगे। न्यूजीलैण्ड वालों को छोड़ने के लिये पालम हवाई अड्डे तक गये। उनको छोड़ते समय बुरा लग रहा था और वे लोग भी कह रहे थे कि पता नहीं, फिर कब मिलेंगे। इस तरह उनको विदा करके हम सब दु:खी मन से वापस आये, फिर शाम की बस से उत्तरकाशी के लिये रवाना हुई।

मैं बहुत से अभियान कर चुकी थी, किन्तु ग्रेम डिंगल जैसा मदद करने वाला दोस्त आज तक नहीं मिला। उसकी की हुई मदद को मैं कभी भूल नहीं सकती। बार-बार उसकी टेकनीक को याद करती रहती हूं। हम लोगों में अधिकतर मतलबी ही दिखाई देते हैं। ग्रेम जौ जौ को बार-बार कहता था, क्या तुम ठीक हो।

इस अभियान में बहुत सी नयी बातें सीखने को मिलीं। हालांकि उनके साथ मैं पहाड़ पर अधिक समय रह नहीं पायी। केवल 29 अगस्त को ही दल के साथ जुड़ी थी, फिर भी उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। वे लोग सारे रास्ते पहले ही खोल चुके थे। अत: मैने केवल 7 दिन में ही रक्त वन चोटी फतह कर लिया था। उसके बाद अनाम चोटी में भी अलग-अलग रास्ता लिया। यह भी एक अलग तरीका था। हमारे यहां सभी लगभग एक ही रास्ते को अपनाते थे और अलग रास्ता लेने की कोशिश नहीं करते थे।

विदेशी लोगों का व्यक्तिगत हाईजीन उतना अच्छा नहीं था पर शिविर का हाईजीन बहुत ही अच्छा रहता है। शिविर में पहुंचते ही शौचालय बनाने लगते हैं, जो सुविधाजनक हो और हम लोग सबसे पहले किचन को बनाने लगते हैं। ये लोग जहां पानी वाली जगह है, उसे स्वच्छ रखने की कोशिश करते हैं, पर हम लोग जहां पानी होगा, वहीं हाथ, मुंह धोकर पूरे पानी को खराब कर देते हैं। जबकि ये लोग पानी को ले जाकर दूर जगह पर ब्रश करेंगे, इससे पानी साफ रहेगा। इतना ही नहीं, न्यूजीलैण्ड वालों ने केवल दो हाफ पैन्ट में दो-ढाई माह निकाला, जबकि हम लोग चार दिन बाद ही कपड़े बदलने लगते थे। वे कहते थे कि तुम लोगों को कपड़े बदलने का कितना शौक है। तुम्हारे ये कपड़े तुम्हें कभी भी बाहर घूमने नहीं देंगे। इन लोगों की ये बातें वास्तव में सच लगती हैं। वे लोग तीन-चार बार भारत घूमकर चले गये, पर हम अभी तक कहीं बाहर निकल ही नहीं पाये।
क्रमश:
Mountaineering: Enjoy rafting, canoeing, karyankag
उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika
पत्रिका की आर्थिक सहायता के लिये : यहाँ क्लिक करें