पर्वतारोहण : कालानाग अभियान
चन्द्रप्रभा ऐतवाल
एन.सी.सी. गर्ल्स के चुनाव शिविर हेतु मुझे प्रशिक्षक के रूप में चुना गया जिसमें कालानाग अभियान में जाना था। यह एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण था, जिसमें से चुनी हुई लड़कियों को कालानाग यानी ब्लैक चोटी अभियान में सम्मिलित होना था।
इस प्रशिक्षण में भारत की एन.सी.सी. की चुनी हुई लड़कियाँ आई थीं। उनका चुनाव अब पर्वतारोहण के सम्बन्ध में करना था। सभी लड़कियाँ पर्वतारोहण का अग्रिम प्रशिक्षण कर चुकी थीं। सबसे पहले हम उत्तरकाशी के नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में एकत्र हुए। चुनाव नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के द्वारा ही किया जाना था। चार-पाँच दिन तक सबको नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के प्रशिक्षण क्षेत्र तेखला में चट्टान आरोहण हेतु ले जाया गया। वहाँ सभी को चट्टान आरोहण का तथा रास्ते खोलने का अभ्यास कराया गया।
इस प्रशिक्षण में डबरानी तक बस द्वारा ले जाया गया। डबरानी में भागीरथी नदी को पार करने के लिये तार का रास्ता बना था। उसके द्वारा सारा सामान तथा सभी लड़कियों को पार कराया और उस दिन नदी के पार जंगल में सुन्दर से स्थान पर शिविर लगाया। रात को सांस्कृतिक कार्यक्रम किया। एन.सी.सी. की लड़कियाँ सांस्कृतिक कार्यक्रम में काफी आगे लगीं। सभी गाने-बजाने व नाचने में तेज थीं।
अगले दिन सारे सामान को ठीक से बाँधा और फिर शिविर के पास ही जोगिन की ओर से आने वाली नदी में लकड़ी का कच्चा पुल तैयार किया। यह नदी यहाँ दो हिस्सों में बँट गयी थी। अत: दो जगह कच्चा पुल लगाया। तीसरे दिन सभी सदस्य सामान पहुँचाने हेतु सुबह नाश्ता करके अपने साथ दोपहर का भोजन लेकर चल पड़े। यहाँ से रास्ते में काफी दूर तक जंगलों के अन्दर से गुजरना पड़ता था। बड़ा अच्छा लग रहा था। धीरे-धीरे चढ़ाई चढ़ते जा रहे थे। जहाँ दूसरे दिन शिविर लगाना था, वहाँ मैस टेन्ट लगाया और अपने साथ लाये सभी सदस्यों का सामान उस टेन्ट के अन्दर डाला। चाय बनाकर साथ लाया हुआ दोपहर का भोजन खाया, फिर सभी ने अपने-अपने लिये दूसरे दिन के टेन्ट की जगह तैयार की। साथ ही किचन के लिये जगह बनाई और पत्थरों को इकट्ठा करके किचन भी तैयार किया। राशन का टेन्ट अलग से लगाया, जिसमें कुलियों के लाये बोझ को डाला। इस तरह थोड़ी देर आराम करने के बाद वापस आये।
दूसरे दिन पूरी टीम आगे के शिविर के लिये चल पड़ी। रास्ता पहले दिन का देखा होने के कारण सभी अपने-अपने हिसाब से चल रहे थे, परन्तु कुछ लड़कियाँ कमजोर लग रही थीं। आज खाना शिविर में ही तैयार करके खाया। खाना खाने के बाद कुछ अपने मोजे धोने लगे तथा कुछ आराम करने लगे, लेकिन कुछ अपनी डायरी लिखने में व्यस्त हो गये। नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के खाना बनाने वाले बहुत ही तेज हैं, पता नहीं, किस समय चलते हैं और खाना, चाय आदि सब तैयार मिलता है।
इस शिविर से भी सामान पहुँचाने हेतु दूसरे दिन आधार शिविर तक गये। आधार शिविर बहुत ही सुन्दर फैले हुए मैदान में था तथा उसके एक ओर जंगल भी था। पास ही चट्टान आरोहण करने हेतु चट्टान भी उपलब्ध थी। जो घाटी पहले तंग थी, यहाँ आकर काफी खुल गयी थी और बुग्याल का सुन्दर नजारा देखने को मिल रहा था। मुझे यह शिविर बहुत ही अच्छा लगा। ऊँचाई होने के कारण लड़कियाँ काफी थक सी गयी थीं, पर मुझे चारों ओर का दृश्य बहुत ही प्यारा लग रहा था और वापस न आकर वहीं बैठने का मन कर रहा था।
Mountaineering: Kalanag Expedition
इसके दूसरे दिन सभी आधार शिविर आये। रास्ते में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं थी, बस चढ़ाई चढ़ते जाना था। आधार शिविर में कर्नल सन्धू के साथ न्यूजीलैण्ड के गे्रम डिंगल आये हुये थे। वे लोग 19500 फीट की एक अनाम चोटी को फतह करना चाहते थे। अत: दूसरे दिन ही आगे शिविर में बढ़ गये। उस दिन हम लोगों ने पास की चट्टान पर आरोहण किया। आधार शिविर से तीसरे दिन प्रथम शिविर के लिये सामान पहुँचाने का कार्य किया। प्रथम शिविर में बर्फ को काट-काटकर टेन्ट के लिये जगह बनाई और एक टेन्ट लगाकर सारे पहुँचे हुए सामान को उसमें डाला। काफी देर तक दायें-बायें घूमते रहे और अब हम लोग बर्फ के मैदान में थे। वहाँ से जोली, गंगोत्री आदि चोटियाँ दिखाई देती थीं। पास ही 19,500 फीट की अनाम चोटी भी दिखाई दे रही थी। फिर वापस आधार शिविर आये।
अब सभी लड़कियाँ तैयारी करके प्रथम शिविर जाने वाली थीं, किन्तु कुछ लड़कियां खास फिट नहीं थीं। उनको एक दिन आधार शिविर में ही रुकने की सलाह डॉक्टर ने दी थी। अत: वे लोग रुक गये। हम अन्य लड़कियों के साथ प्रथम शिविर गये। अब लड़कियों को छोटे-छोटे टेन्ट में रखा गया था। बड़ी सी चट्टान के किनारे त्रिपाल डालकर किचन बनाया गया। काफी लड़कियों का सिर दर्द होना शुरू हो गया था।
एक दिन वहीं आराम करने के बाद फिर द्वितीय शिविर के लिये सामान पहुँचाने की तैयारी की। प्रथम शिविर से अब छोटे-छोटे टेन्ट भी लड़कियों को उठाने थे। केवल यह देखने के लिये कि ये कितने फिट हैं, पर मुश्किल ही लग रहा था कि कोई अपने-आप कहे कि मैं टेन्ट ले जाऊंगी। खैर किसी तरह द्वितीय शिविर तक सामान पहुँचाने गये। वहाँ जगह बनाकर कुछ देर तक आराम किया, फिर वापस प्रथम शिविर आये। दूसरे दिन द्वितीय शिविर आये। उस दिन नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के उप प्रधानाचार्य कर्नल पे्रमचन्द और श्री रतन सिंह जोली चोटी फतह करने गये थे, पर यह समाचार आया कि वे वापस नहीं आये हैं। सभी काफी परेशान हो गये और उनके सहयोगी उन्हें ढूँढने निकल पड़े। इस कारण उस दिन हम लोग द्वितीय शिविर में रहे। शाम को उनके सही सलामत वापस आने का समाचार मिला। अत: दूसरे दिन हम लोग भी 19,500 फीट की अनाम चोटी को फतह करने हेतु निकल पड़े।
चोटी काफी अच्छी थी और चढ़ाई चढ़ने में मजा भी आ रहा था। बर्फ ताजी होने के कारण पैर काफी घुस भी रहे थे। इसलिये बदल-बदलकर रास्ते खोल रहे थे। किसी तरह से चोटी को फतह किया। चोटी पर काफी देर तक बैठे रहे। काफी लड़कियों ने चोटी पर गाना गाया। वहाँ से भटवाड़ी तहसील के कुछ गाँव साफ दिखाई देते थे और दीनगाड़ का इलाका भी साफ दिखाई देता था। घण्टों बैठे रहने के बाद वापस शिविर आये। शिविर में पहुँचकर कुछ लड़कियाँ ठीक लग रही थीं और कुछ की हालत काफी पस्त थी।
दूसरे दिन भी हमारा मकसद एक अनाम चोटी को फतह करना था। इसमें कर्नल सन्धू भी साथ थे। सभी साथ-साथ चल रहे थे कि कर्नल कहने लगे चन्द्रा, तुम रास्ता खोलो। मुझे उनका कहना मानना ही था। अत: लड़कियों की तरफ से निश्चिन्त होकर मैंने अपना पूरा ध्यान रास्ता खोलने में लगा दिया। क्योंकि कर्नल भी मुझे देखना चाहते थे और मुझे अपनी योग्यता को उनके सामने दिखाना था। इस कारण मैं आगे बढ़ती चली गयी और मेरे दल के साथ कौन लड़की चल रही है और कौन नहीं, इसका ध्यान नहीं दिया। मैंने पूरा रास्ता अपने आप ही चोटी तक खोला। जबकि कहीं-कहीं पर ताजी बर्फ के कारण बार-बार अन्दर धंसती भी जा रही थी, परन्तु पीछे होने का नाम नहीं लिया। जब चोटी के करीब पहुँच गयी तब चारों ओर देखा और चोटी पर पहुँचकर ही दम लिया। कर्नल कहने लगे कि पहाड़ पर तो तुम्हारे कदम छोटे नहीं हैं। मैं खाली हँस दी और बोली कुछ नहीं। उनको मेरे पर विश्वास-सा हो गया था।
Mountaineering: Kalanag Expedition
चोटी पर पहुँचकर कुछ लड़कियाँ, जोर से रोने लगीं। पूछा तो कहने लगी कि आपने तो हमें मदद ही नहीं की और अपने आप आगे ही आगे चलती चली गयीं। डॉक्टर भी हमें दवाई देने में पक्षपात कर रहा था। किसी लड़की को तो लाल गोलियाँ देता था आदि-आदि। बच्चों की इस बचकानी बातों को सुनकर मुझे हँसी आ रही थी, पर मैं उस समय हँस नहीं पायी क्योंकि पता नहीं इसका भी वे क्या अर्थ लगायें। मैने उन्हें समझाने की कोशिश की और कहा उस समय मेरा कर्तव्य रास्ता खोलने का था, पर वे इस बात को क्या समझें ? बहुत देर तक रोती रहीं, बड़ी मुश्किल से उन्हें चुप करा पाई। इसी उलझन में मैं चोटी का सही नजारा भी नहीं देख पायी। इस चोटी में कोई गाने को ही तैयार नहीं थी, बस सब रोती रहीं।
खैर, किसी तरह से समझा-बुझाकर वापस शिविर की ओर लाई। इसमें जो चोटी तक पहुँच नहीं पायीं, अब उनका अलग ही मूड था। वे न ठीक से बात करती थीं और न खाती थीं। लड़कियों की मनोवैज्ञानिक दशा को समझना बड़ा ही कठिन कार्य है। ये लोग अगर प्रशिक्षक ठीक से बात कर देता है तो उसका कुछ और ही अर्थ लगाने लगते हैं। यहाँ तक कि मैं सभी के साथ समान व्यवहार करती थी, फिर भी उनको लगता था कि किसी को अच्छा मानती हूँ और किसी को नहीं।
अब धीरे-धीरे शिविर को बन्द करते हुए आधार शिविर पहुँचे। वहाँ एक काफी लम्बी चट्टान थी। कर्नल सन्धू कहने लगे कि ये चट्टान क्लाइम्ब करने हेतु कोशिश की पर हो नहीं पायी। क्या तुम इसका आरोहण करोगी ? मैने कहा देखती हूँ, अत: धीरे-धीरे कोशिश की। साथ ही मन में यह विचार आया था कि किसी प्रकार चढ़ना ही पड़ेगा। भगवान की कृपा रही कि मैं उस चट्टान पर चढ़ गयी। सभी ने मुझे शाबाशी दी जो कि बहुत अच्छा लगा। धीरे-धीरे नीचे उतरने लगे। आधार शिविर से सीधे गंगा पार करके डबरानी की तरफ शिविर किया। तार के रास्ते को पार करते समय एक लड़की की उंगली तार में फंस गयी और उसकी उंगली कट गयी, बस फिर क्या था। उसने रो-रोकर चिल्लाना शुरू कर दिया, जबकि उसी की गलती से यह हुआ था। दवाई, पट्टी आदि लगाकर बड़ी मुश्किल से उसको चुप करा पाये।
आज रास्ते में मुझे जंगली पालक दिखा जो हम बचपन में अपने गाँव में तोड़कर लाते थे और सब्जी बनाकर खाते थे। उसे देखकर बचपन के दिन याद आ गये। मैं बहुत सारा नर्म-नर्म पालक तोड़कर लायी और शाम को उसे पकाकर सब्जी बनाई। सभी प्रशिक्षकों को सब्जी पसन्द आयी। मैं अपने बचपन तथा गाँव को याद करते हुए अति आनन्द महसूस कर रही थी। डबरानी से बस द्वारा गंगनानी आये। गंगनानी गर्म कुण्ड में सभी ने अपनी महीने भर की गन्दगी को निकाला। आज बहुत हल्का महसूस हो रहा था। इतने में खाना तैयार हो गया था। खाना खाकर फिर बस द्वारा सीधे उत्तरकाशी नेहरू पर्वतारोहण संस्थान पहुँचे। बस में सभी लड़कियों ने गाना गाकर खूब हल्ला मचाया। अब सभी पहाड़ की थकान भूल चुके थे, अत: सभी मस्त होकर गा रहे थे।
तीन दिन तक नेहरू पर्वतारोहण संस्थान में सामान वापस करना तथा ग्रेज्युएशन आदि में समय निकल गया। अन्त में बहुत ही शानदार सांस्कृतिक कार्यक्रम किया। उसके बाद सभी अपने-अपने घर की तरफ रवाना हो गये। बहुत-सी लड़कियों के अभिभावक उन्हें लेने आये हुए थे। अब उन लोगों को वापस जाने का मन नहीं कर रहा था। सुबह जाते समय सभी एक दूसरे के गले मिलकर रोने लगीं। सभी की आँखों में आँसू भरे थे। बस से हाथ हिलाती रहीं और बस चल पड़ी।
क्रमश:
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