कौमार्य से कीमती मेरा जीवन है
सोहेला अब्दुलाली
तीस साल पहले मेरा गैंगरेप हुआ था। उस वक्त मैं 17 साल की थी। मेरा नाम और मेरी तसवीर इस आलेख के साथ 1983 में मानुषी पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। मैं बंबई में पैदा हुई और आजकल यूएसए में पढ़ाई कर रही हूँ। मैं बलात्कार पर शोधपत्र लिख रही हूँ और दो हफ्ते पहले शोध करने घर आयी हूँ। हालांकि जब मेरे साथ यह हुआ था, तब भी मैं रेप के अभियुक्तों और पीड़ितों को लेकर लोगों में फैली गलत धारणाओं के बारे में समझती थी। मुझे उस ग्रंथि का भी पता था जो पीड़ित के मन के साथ जुड़ जाती हैं। लोग बार-बार यह संकेत देते हैं कि अमूल्य कौमार्य को खोने से कहीं बेहतर मौत है। मैंने इसे मानने से इनकार कर दिया। मेरा जीवन मेरे लिए सबसे कीमती है।
मैंने महसूस किया है कि कई महिलाएँ इस ग्रंथि के कारण चुप्पी साध लेती हैं, मगर अपने मौन के कारण उन्हें अपार वेदना का सामना करना पड़ता है। पुरुष पीड़ितों को कई वजहों से दोषी ठहराते हैं और हैरत की बात तो यह है कि कई दफा महिलाएँ भी पीड़ितों को ही दोषी ठहराती हैं, संभवत: अन्तर्मन में समाये पितृसत्तात्मक मूल्यों के कारण, संभवत: खुद को ऐसी भीषण संभावनाओं से बचाये रखने के लिए।
यह घटना जुलाई की एक गर्म शाम की है। उस साल महिला संगठन रेप के खिलाफ कानून में संशोधन की मांग कर रहे थे। मैं अपने दोस्त राशिद के साथ थी। हम लोग घूमने निकले थे और बंबई की उपनगरी चेंबूर स्थित अपने घर से करीब डेढ़ मील दूर एक पहाड़ी के पीछे पहुँच गये थे और वहाँ बैठे थे। हम पर चार लोगों ने हमला किया। वे लोग दरांती से लैस थे। उन्होंने हमारे साथ मारपीट की, पहाड़ी पर चढ़ने के लिए मजबूर किया और वहाँ हमें दो घंटे तक बिठाये रखा। हमें शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया, और जैसे ही अंधेरा गहराया, हमें अलग कर दिया गया और अट्टहास करते हुए उन्होंने राशिद को बंधक बनाकर मेरे साथ रेप किया। हममें से कोई प्रतिरोध करता तो दूसरे को वे चोट पहुँचाते। यह एक प्रभावी तरीका था।
वे तय नहीं कर पा रहे थे कि वे हमारी हत्या करें या नहीं। हमने अपने दम भर वह सब कुछ किया जिससे हम जिंदा बच जायें। मेरा जिंदा बचना सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। मैंने पहले शारीरिक रूप से प्रतिरोध किया और जब मुझे गिरा दिया गया तो मैं शब्दों से प्रतिरोध करने लगी। गुस्से और चीखने-चिल्लाने का कोई असर नहीं हो रहा था, इसलिए मैंने बड़बड़ाना शुरू कर दिया। मैं उन्हें प्रेम, करुणा और मानवता के लिए प्रेरित करने लगी, क्योंकि जिस तरह मैं इंसान थी, वे भी तो इंसान ही थे। इसके बाद उनका रवैया नर्म पड़ने लगा, खास तौर पर उनका जो उस वक्त मेरे साथ बलात्कार नहीं कर रहे थे। मैंने उनमें से एक से कहा कि अगर मुझे और राशिद को जिंदा छोड़ दिया गया तो मैं अगले दिन उनसे मिलने आऊंगी। हालांकि इन शब्दों के बदले मुझे कहीं अधिक भुगतना पड़ा, मगर दो जिंदगियां दाँव पर थीं। यही एकमात्र तरीका था कि मैं वहाँ से लौट पाती और अगली दफा खुद को रेप से बचा पाती।
my life is more precious than virginity
जिसे बरसों की पीड़ा कहा जा सकता है उसे झेलने के बाद (मुझे लगता है मेरा 10 बार बलात्कार किया गया और कुछ देर बाद मैं यह समझना भूल गयी कि क्या हो रहा है), हमें जाने दिया गया। जाते वक्त उन लोगों ने हमें एक नैतिक उपदेश के साथ विदा किया कि मेरा एक लड़के के साथ इस तरह घूमना अनैतिक था। इस बात ने उन्हें सबसे अधिक नाराज किया था। उन्होंने ऐसा मेरे हित में ही किया था, वे मुझे एक पाठ पढ़ाना चाहते थे। यह बड़ी कट्टर किस्म की नैतिकता थी। उन्होंने हमें पहाड़ के नीचे छोड़ दिया और हम लड़खड़ाते हुए अंधेरी सड़क पर, एक-दूसरे पर टंगते हुए धीरे-धीरे चलते रहे। वे कुछ देर तक हमारा पीछा करते रहे, दरांती हिलाते हुए, और वह संभवत: सबसे बुरा पहलू था कि भागना इतना आसान था, मगर मौत हमारे ऊपर मँडरा रही थी। अंतत: हम घर पहुँचे, टूटे हुए, क्षत-विक्षत, चूर-चूर। यह बच कर आने का एक अतुलनीय अनुभव था, अपने जीवन के लिए मोलभाव करना, हर शब्द तोलकर बोलना क्योंकि हम उन्हें नाराज करने की कीमत जानते थे, दरांती का वार कभी भी हमारे जीवन को समाप्त कर सकता था। हमारी हड्डियों और हमारी आंखों में दहशत दौड़ रही थी और हम एक ऐतिहासिक विलाप के साथ ढेर हो गये।
मैंने बलात्कारियों से वादा किया था कि मैं इस बात को किसी और से नहीं बताउंगी, मगर घर पहुँचते ही सबसे पहले मैंने अपने पिता से कहा कि वे पुलिस को बुलाएँ। वे इस बात को सुनकर चिंतित हो गये। मैं परेशान थी कि किसी और को उस अनुभव से नहीं गुजरना पड़े, जिससे मुझे गुजरना पड़ा था। पुलिस असंवेदनशील थी, घृणित भी और वह किसी तरह मुझे दोषी साबित करने पर तुली थी। जो मेरे साथ हुआ, मैंने सीधे-सीधे कह डाला और इस बात को उन्होंने मुद्दा बना लिया कि अपने साथ हुए इस हादसे को बताने में मैं शरमा नहीं रही थी। जब उन्होंने कहा कि इस बात का प्रचार हो जायेगा तो मैंने कहा, कोई बात नहीं। मैं ईमानदारी से कभी यह सोच नहीं सकी थी कि मुझे या राशिद को दोषी माना जायेगा। उन्होंने कहा कि मुझे मेरी सुरक्षा के लिये किशोर रिमांड होम भेजा जायेगा। मुझे बलात्कारियों और दलालों के बीच रहना होगा ताकि मुझ पर हमला करने वालों को न्याय के सामने लाया जा सके़
बहुत जल्द मैंने समझ लिया कि इस कानून व्यवस्था के तहत महिलाओं के लिए न्याय मुमकिन नहीं है। जब उन्होंने पूछा कि हम पहाड़ी के पीछे क्या कर रहे थे तो मैं क्रुद्घ हो गयी। जब उन्होंने राशिद से पूछा कि वह क्यों निष्क्रिय हो गया, तो मैं चीख पड़ी। क्या वे यह नहीं समझते थे कि राशिद का प्रतिरोध मेरे लिए और पीड़ा का कारण बन सकता था। वे ऐसे सवाल क्यों पूछते थे कि मैंने कैसे कपड़े पहने थे, राशिद के शरीर पर कोई चोट का निशान क्यों नहीं है (पेट पर लगातार हमले के कारण उसे इंटरनल ब्लीडिंग हो रही थी), मैं दुख और निराशा में डूबने लगी, और मेरे पिता ने उन्हें घर से बाहर भगा दिया यह कहते हुए कि वे उनके बारे में क्या सोचते हैं। यह वह सहायता थी जो मुझे पुलिस से मिली। पुलिस ने बयान दर्ज किया कि हम टहलने गये थे और लौटते वक्त देर हो गयी।
उस बात को तीस साल हो गये हैं, मगर ऐसा एक दिन भी नहीं बीता जब मुझे इस बात ने परेशान नहीं किया कि उस दिन मेरे साथ क्या हुआ। असुरक्षा, भय, गुस्सा, निस्सहायपन- मैं उन सब से लड़ती रही। कई दफा, जब मैं सड़क पर चलती थी और अपने पीछे कोई पदचाप सुनायी पड़ती तो मैं पसीने-पसीने होकर पीछे देखती और एक चीख मेरे होठों पर आकर ठहर जाती़ मैं दोस्ताना स्पर्श से परेशान हो जाया करती, मैं कस कर बंधे स्कार्फ को बर्दास्त नहीं कर पाती, ऐसा लगता कि मेरे गले को हाथों ने दबा रखा है। मैं पुरुषों की आँखों में एक खास भाव से परेशान हो जाती- और ऐसे भाव अक्सर नजर आ जाते।
इसके बावजूद कई दफा मैं सोचती कि मैं अब मजबूत इंसान हूँ। मैं अपने जीवन की सराहना पहले से अधिक करती। हर दिन एक उपहार था। मैंने अपने जीवन के लिए संघर्ष किया था और मैं जीती थी। कोई भी नकारात्मक भाव मुझे यह सोचने से रोकता कि यह सकारात्मक है।
my life is more precious than virginity
मैं पुरुषों से घृणा नहीं करती। ऐसा करना सबसे आसान था, और कई पुरुष ऐसे विभिन्न किस्म के दबाव के शिकार थे। मैं जिससे नफरत करती, वह पितृसत्ता थी और उस झूठ की विभिन्न परतों से जो कहती कि पुरुष महिलाओं से बेहतर होते हैं। पुरुषों के पास अधिकार हैं जो महिलाओं के पास नहीं, पुरुष हमारे अधिकार संपन्न विजेता हैं। मेरी नारीवादी मित्र सोचतीं कि मैं महिलाओं के मसले पर इसलिए चिंतित हूँ क्योंकि मेरा रेप हुआ है। मगर ऐसा नहीं है। रेप उन तमाम प्रतिक्रियाओं में से एक है जिसकी वजह से मैं नारीवादी हूँ। रेप को किसी खाने में क्यों डाला जाये? ऐसा क्यों सोचा जाये कि रेप ही अकेला अवांछित संभोग है? क्या हर रोज गलियों में गुजरते वक्त हमारा रेप नहीं होता? क्या हमारा रेप तब नहीं होता जब हमें यौन वस्तु के तौर पर देखा जाता है, हमारे अधिकारों से इनकार कर दिया जाता है, कई तरीकों से दबाया जाता है? महिलाओं के दमन को किसी एक नजरिये से नहीं देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, वर्ग विश्लेषण आवश्यक है, मगर क्यों बहुत सारे बलात्कार अपने ही वर्ग में किये जाते हैं।
जब तक महिलाएँ विभिन्न तरीकों से दमित की जाती हैं, सभी महिलाएँ लगातार बलात्कार के खतरे में हैं। हमें रेप को पेचीदा बनाने से रोकना पड़ेगा। हमें समझना पड़ेगा कि यह हमारे चारों तरफ मौजूद है और इसके विभिन्न स्वरूप हैं। हमें इसे गुप्त तौर पर दफन करना बंद कर देना होगा और इसे अपराध के एक रूप के तौर पर देखना होगा- इसे हिंसात्मक अपराध मानना होगा और बलात्कारी को अपराधी के तौर पर देखना होगा। मैं उत्साहपूर्वक जीवन जी रही हूँ। बलात्कार का शिकार होना बहुत खौफनाक है, मगर्र ंजदा रहना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। मगर जब एक औरत को इसे महसूस करने से रोका जाता है, तो इसे हमारे तंत्र की गड़बड़ी माना जाना चाहिये। जब कोई बेवकूफ बनकर जिंदगी के एवज में खुद पर हमले को झेल लेती है तो किसी को ऐसा नहीं सोचना चाहिये कि वह स्वेच्छा से मार खाना चाहती थी। बलात्कार के मामले में एक औरत से पूछा जाता है कि उसने ऐसा क्यों होने दिया, उसने प्रतिरोध क्यों नहीं किया, कहीं उसने इसका मजा तो नहीं लिया।
रेप किसी खास समूह की औरतों के साथ नहीं होता और न ही रेपिस्ट एक खास तरह के पुरुष होते हैं। रेपिस्ट एक क्रूर पागल भी हो सकता है और पड़ोस में रहने वाला लड़का भी या एक दोस्ताना अंकल भी। हमें अब रेप को किसी अन्य महिला की समस्या के तौर पर देखना बंद करना होगा। इसे हमें सार्वभौमिक तरीके से देखना होगा और एक बेहतर समझ की तरफ बढ़ना होगा। जब तक रिश्तों का आधार शक्तियाँ होंगी, जब तक महिलाओं को पुरुषों की संपत्ति के तौर पर देखा जाता रहेगा, हम लगातार अपनी इज्जत गँवाने के खतरे में रहेंगे। मैं बचकर निकली हूँ। मैं रेप किये जाने के लिए नहीं कहती और न ही मैंने इसका मजा लिया। यह सबसे बुरे किस्म का टार्चर है। मगर यह महिलाओं की गलती नहीं है।
अंग्रेजी से अनुवाद: पुष्यमित्र
my life is more precious than virginity
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