लड़कियों को बेचने का सिलसिला 

प्रीति थपलियाल

सारे उत्तराखण्ड में मानव तस्करी से सम्बन्धित मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसी कड़ी में 14 मई 2013 को कोटद्वार में दो सगी बहनों द्वारा एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़की को बेचने का मामला प्रकाश में आया।

क्रांति की उम्र 17 वर्ष है। वर्तमान में वह ग्राम काशीरामपुर मल्ला (कौड़िया) में अपने जीजा-दीदी के पास पिछले 2 माह से रह रही है। क्रांति मूलत: ग्राम रसोक, थाना गुरकई, पो. मारड़, जिला खगडिया (बिहार) की रहने वाली है। उसके पिता का नाम बालेश्वर चौधरी तथा मां का नाम मंजू देवी है। काफी पूछताछ और खोजबीन के बाद क्रांति ने कहा कि पहले भी उसकी दो बार शादी हो चुकी है। उस समय वह 16 वर्ष की थी और लड़का 23 वर्ष का था। लड़के का नाम धनंजय था। वह ग्राम कोदबा, जिला भागलपुर बिहार का रहने वाला था। क्रांति इस शादी के बाद 20 दिन अपने ससुराल में रही। तब उसका गौना नहीं हुआ था। उसके बाद यह शादी टूट गयी। पुन: 6 माह बाद क्रांति की दूसरी शादी सचिन नाम के लड़के से, जिसकी उम्र 28 वर्ष थी, सिकन्दराबाद, बुलन्दशहर में हुई। यह रिश्ता 55,000 रुपये में तय हुआ, जिसमें 20,000 रुपये क्रांति के पिता द्वारा लिये गये तथा 35,000 रुपये दलाल ने लिये। इस विवाह के बाद वह 1 माह अपने ससुराल में रही। इस प्रकार क्रांति पहले अपने ही परिवार वालों के हाथों बिकने को मजबूर हुई। एक माह बाद वह अपने ससुराल से लौट आयी और दोबारा नहीं गयी।

जब क्रांति अपने दीदी-जीजा के साथ रह रही थी, तो पड़ोस में रह रही दो सगी बहनों ने उसे पहले नशीला पदार्थ खिलाया, उसके बाद उसे 25,000 रुपये में बेचने का सौदा कर दिया। जब वह होश में आयी, तब उसे दिल्ली जाने के लिये बुरका व सैन्डिल पहनने को कहा गया। लड़की को जैसे ही बेचने का पता चला तो वह बहाना बनाकर नगीना थाना भाग गयी। वहां उसने अपने परिजनों का नम्बर दिया, तब घर वाले पीड़ित लड़की को घर ले आये। जब अगले दिन कोटद्वार पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखवायी तो शहर कोतवाल (एस.ओ.) ने पीड़ित लड़की को धमकाकर समझौता करवाने के लिए दबाव बनाया और लड़की को थप्पड़ तक जड़ दिया। पूरे छ: घन्टे तक कोतवाल ने पीड़ित लड़की को थाने मे बिठाया और उसके बाद एफ.आई.आर. बदल दी। मानव तस्करी की आई. पी. सी. की धारा 370  के स्थान पर बहलाने-फुसलाने की 366 ए व 506 की हल्की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया। उसके बाद 4 दिन तक गिरफ्तारी तो नहीं की, परन्तु जब आन्दोलन शुरू हुआ तो दबाव में आकर गिरफ्तारी की। फिर पुलिस-प्रशासन ने सैक्स रेकैट चलाने व मानव तस्करी करने वाली लड़कियों को नाबालिग बताकर उन्हें जेल के स्थान पर नारी निकेतन भेजकर सीधे तौर पर आरोपियों के प्रति अपनी पक्षधरता को जाहिर कर दिया। आरोपियों का न तो मेडिकल कराया गया और न ही वोटर आई.डी. व राशन कार्ड से उम्र को प्रमाणित किया। जो लड़कियां इस तरह अनैतिक धन्धों में लिप्त हों वे भला नाबालिग कैसे हो सकती हैं। पुलिसकर्मियों का खुद इन लड़कियों के घर आना-जाना था। यह उस इलाके की जनता स्पष्ट तौर पर कह रही है और पुलिस वालों के नाम भी बता रही है।
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इस प्रकरण में पीड़ित लड़की को थप्पड़ मारने व 6 घण्टे थाने में बिठाने और दो पुलिसकर्मियों के सैक्स रैकेट चलाने वाली लड़कियों के घर आने-जाने पर कार्यवाही के लिये पुलिस अधीक्षक पौड़ी जांच करेगी तथा एफ.आई.आर. बदलने, मानव तस्करी के मामले में जांच एन्टी ह्यूमैन ट्रैफिंकिग की सेल करेगी। पीड़ित लड़की से पुलिस कह रही है कि तू बता, तुझे कहाँ-कहाँ बेचने की बात कही गयी, जो कि गलत है। जबकि यह अपराधियों से पूछा जाना चाहिये था कि तुमने लड़की को कहां-कहां बेचा?

इस तरह की कार्यवाही से तो स्पष्ट हो गया है कि पुलिस गरीब पीड़िता के साथ तो किसी भी तरह की संवेदनशीलता नहीं दिखा रही है बल्कि सैक्स रैकेट चलाने व मानव तस्करी में लिप्त गिरोह का साथ दे रही है, उन्हें संरक्षण दे रही है। पूरे गिरोह में फंसे शहर के बडे-बड़े नामी-गिरामी रईसजादों व सफेदपोश लोगों को बचा रही है।

कोटद्वार व उसके आस-पास के क्षेत्रों में पिछले लम्बे समय से लड़कियां व महिलायें गायब हो रही हैं जिनका कोई पता नहीं लग रहा है। निश्चित है कि इनमें से कई मामले मानव तस्करी से जुड़े हैं। पूरे क्षेत्र में कई बार स्मैक या चरस के साथ लोग पकड़े गये हैं लेकिन पूरे गिरोह का खुलासा नहीं होता। पुलिस खोजबीन करके बड़े कारोबारियों तक नहीं पहुंचती है बल्कि ऊपरी तौर पर कुछ कार्यवाही दिखाकर किसी गरीब को जेल में डाल देती है और खुशी से अपनी पीठ थपथपाती रहती है।

इस पूरे मामले में पुलिस के असंतोषजनक रवैये को देखते हुये सुमंगला महासंघ व जनाधिकार संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा पुलिस के खिलाफ 7 दिन तक सी.ओ. कार्यालय के आगे धरना दिया गया। उसके बाद जज के सामने लड़की के 64 बयान करवाये गये तथा सी.ओ. एवं एस.ओ. द्वारा वार्ता के लिये पहल की गयी तथा एस.पी. द्वारा इस जांच को अपने स्तर से शीघ्र ही करवाने का आश्वासन दिया गया।

मामले की शीघ्र व निष्पक्ष जांच के लिये दिनांक 28.5.2013 को महिला समाख्या कार्याकर्ता, सुमंगला महासंघ एवं परिवर्तनकामी छात्र संगठन के सदस्य एस.पी. पौड़ी से मिले। उनके द्वारा पूरा मामला विस्तारपूर्वक सुना गया और आश्वासन दिया गया कि दोनों पक्षों से पूछताछ चल रही है तथा शीघ्र ही मामले का खुलासा किया जायेगा।

विगत 15 वर्षों से महिलाओं के सन्दर्भ में सबसे अधिक सशक्तता शब्द का इस्तेमाल काफी बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। वास्तव में हम कैसा सशक्तीकरण पाना चाहते हैं, इस पर कभी बहस नहीं की गयी और न ही वर्तमान समय के राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक सन्दर्भ में महिलाओं का वास्तव में कितना सशक्तीकरण हो पाया है, इसको आंका गया। वास्तविकता यह है कि पितृसत्तात्मक सामाजिक मूल्यों में पुरुषों के महिलाओं के प्रति सोचने व समझने के नजरिये में कोई बदलाव नहीं आया है। समाज द्वारा दी गई मां, पत्नी और कामगार की भूमिकाओं के बीच रहते हुये महिलाओं ने अपने आस-पास के माहौल पर असर डालने की कोशिश करने के बाद अपना दायरा भी बढ़ाया है।

फिर भी इस व्यवस्था के तहत चुपचाप सहना, त्याग करना, दबना और आज्ञा मानना ही औरत का कर्तव्य माना गया है, लेकिन इस तमाम ढांचों और व्यवस्थाओं को बदलने के लिये अपने चारों ओर के माहौल और हालत का विश्लेशण करना आवश्यक है तथा उन हालातों में ऐसा बदलाव लाना है जो चारों तरफ दिखाई दे।
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