कहानी : एकांकी  

रुचि नैलवाल

मुझे जावेद अख्तर की कही बात के शब्द तो ठीक से याद नहीं पर उसके मायने याद हैं कि जिन्दगी कई छोटे-छोटे लम्हों का ढेर है। मैंने केवल कुछ लम्हे उठा लिये और जिन्दगी की एक झलक पिरो ली, फिर नाम रख दिया एकांकी। यह सिर्फ एक अंक है हमारी रोजमर्रा की भागदौड़ का। जिसमें घर है, ऑफिस है, रिश्ते हैं, प्रतिस्पर्धा है, जलन है, पैसा है, असुरक्षा है। और इन सबके बीच में हैं हम, इन सबसे रोज मिलते हुए।

सौम्या का मूड कुछ उखड़ा-सा था, आज वह कुछ बिखरी-बिखरी-सी लग रही थी। क्या हुआ…. मैंने पूछा। अरे यार आज मॉर्निंग में गाड़ी चलाते हुए मेरी आँखें बंद हो गई और एक रिक्शे वाले को चोट लग गई। मैंने उसे पैसे तो दे दिये पर एक गिल्ट-सा अभी भी लग रहा है। ज्यादा लग गई थी क्या, मैंने पूछा। पता नहीं…… पर वह ऊपर से नीचे गिर गया था। खून तो नहीं निकला था पर कहीं फ्रैक्चर न हो गया हो। एक बार तो सोचा उसे हॉस्पिटल ले जाऊँ, फिर लगा कहीं ये बदमाशी पर न उतर जाए।  चलो, जो हुआ सो हुआ, कहीं ज्यादा लग जाती तो दिक्कत हो जाती, मैंने कहा, पर तुम्हारी आँखें बंद कैसे हो गई?

नींद तो कभी पूरी होती ही नहीं ना, यहाँ से घर जाओ, सास की बातें सुनो, किचन में काम करो, सबेरे की तैयारी करो, टाइम पर ऑफिस न पहुँचो तो यहाँ सुनो….. ये हाल तब है जब मेरा बच्चा नहीं है। कल वह भी मैनेज करना होगा। अगर सोचो कि नौकरी नहीं करनी है तो पति घर के खर्चे गिनवाने लग जाएगा और सच तो यह है कि अब खुद भी घर में बैठना अच्छा नहीं लगता।

ये मधूलिका का मूड क्यों ऑफ है आज? सौम्या ने शीतल से पूछा…. उसे अभी-अभी पीरियड्स हो गए हैं। तो…. सौम्या ने कहा, अरे, उसे उम्मीद थी कि इस बार वह कंसीव कर जायेगी, शीतल ने जवाब दिया। सब चुप, मधूलिका की शादी को छ: साल हो गए थे। एक बार….. भी करवा चुकी है। पर असफल रहा।

लोगों के बच्चे होंगे भी कैसे, इतना थककर तो सब घर पहुँचते हैं, फिर खाना बनायेंगे, घरवालों की सुनेंगे, अगले दिन की तैयारी करेंगे और सो जायेंगे। बच्चे पैदा करेंगे कब? आज सौम्या बुरी तरह से झल्लायी हुई थी। रात को जब मैं बैड पर पहुँचती हूँ तो विनय को घूर के बोलती हूँ कि मैं सो रही हूँ, मुझे तंग नहीं करना। छोड़ो ना यह तो चलता ही रहेगा। मैंने नाश्ता नहीं किया है, कुछ खाकर आती हूँ, तुम्हें चलना है, सौम्या ने पूछा? इससे पहले कि मैं कुछ जवाब देती रितेश ने मुझे टोका…..। मैडम नाश्ता करने बाद में जाइयेगा। पहले यह बताइये कि लास्ट वीक जो प्रोजेक्ट तुम्हें मिल गया था, उसका पेमेंट कहाँ है?

आ जायेगा, काम हो रहा है, मैंने कहा। क्या हो रहा है, कब तक होता रहेगा, तुम लोग तो मुझसे कह देते हो कि हो रहा है पर मैं ऐसा अपने बॉस ने नहीं कह सकता। कभी तंवर सर के साथ रिव्यू मीटिंग एटेंड करो, तब पता चले। ऐसा लगता है, जैसे अपनी मर्जी से इज्जत लुटाने आया हूँ। मैंने तीखी नजर से रितेश को देखा….. ऐसा क्या देख रही हो, मैं तुम्हारे ऐसे देखने से डरता नहीं हूँ, उसने फ्लर्ट करते हुए मेरी तरफ देखा। मैंने कोई जवाब नहीं दिया।

एक बात बताओ, जो तंवर सर के साथ तुम्हारी एक मीटिंग थी उसका क्या हुआ? पोस्टपोंड हो गई थी, मैंने जवाब दिया। बी.आर. डेवलपर में तंवर सर के साथ मिल आओ। क्या पता, तुम्हारा अगला इंक्रीमेंट अच्छा हो जाए। वह चला गया। यह हमेशा मेरा मूड खराब करता है। मैं चिढ़ी हुई थी।

यूँ नो हिम ना, सौम्या ने कहा, ही इज नौट बैड बट जस्ट अटैंसन सीकर। खासतौर पर लड़कियों से। तुम चिढ़ जाती हो, इसलिए वह तुम्हारे साथ पंगे लेता है। जस्ट इग्नोर, गिव हिम सम अटेंशन। आफ्टर ऑल ही इज अवर रिपोर्टिंग मैनेजर। उससे तो बनाकर ही रखना होगा और यह इतना मुश्किल भी नहीं है। अच्छा सुनो, तंवर इज नौट अ गुड पर्सन, बी केयरफुल। सौम्या ने मुझे समझा दिया।

मैंने तंवर के बारे में सुना था, वह लूज करेक्टर इंसान था। जरूरत से ज्यादा पैसा आ जाय तो अय्याशी आ ही जाती है। सुना है, रश्मि ज्वाइन कर रही है अगले महीने से, मैंने शीतल से पूछा। हाँ, फस्र्ट से, शीतल ने कहा, बहुत जल्दी नहीं है। अभी उसका बच्चा चार महीने का है मैंने कहा, वह चाहती है। वह चाहती है कोई क्या करे, शीतल ने जवाब दिया। अरे, करे भी तो क्या…. सौम्या फिर बोलना शुरू हुई। ज्वाइन नहीं करेगी, दो-तीन साल बच्चा पालेगी, फिर लाइफ स्टाइल बदल जायेगा। प्रमोशन और इंक्रीमेंट दोनों वैसे ही मिलेंगे, उसके बाद दूसरा बच्चा…. ऐवरेज देखो तो एक पैंतीस साल का आदमी र्आिथक रूप से पैंतीस साल की औरत से ज्यादा सक्षम होता है, उसके पास गाड़ी होती है। औरत बस से आती-जाती है, क्योंकि जूनियर पोस्ट में होती है तो मैनुअल काम ज्यादा करती है, थकती ज्यादा है। घर और बच्चों की जिम्मेदारियाँ ज्यादा उठाती है।

आज सौम्या को क्या हो गया है। सास से झगड़ा हुआ है या पति से, शीतल ने कहा? सौम्या अपने नाम के विपरीत जा रही है, मैंने उसे छेड़ा।
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आज घर काफी लेट पहुँची थी। मयंक और कृति दोनों इंतजार कर रहे थे। कृति चाहती थी कि उसे खाना मैं ही खिलाऊँ। मैं थक चुकी थी। मेरे पास एक मेड थी तो मुझे घर का काम करने की जरूरत नहीं होती थी पर मेरा बच्चा था। मुझे उसके साथ टाइम बिताना था। उसे भी मेरी जरूरत थी। सोचती हूँ, नौकरी करने वाली हर औरत को अपनी जिन्दगी में कभी न कभी अपने बच्चे को छोड़कर जाने का गिल्ट होता ही होगा।

कृति को नींद आ रही थी, मैं उसे अपने सीने से दुबका के सुलाने लगी। मुझे रोज टी.वी. पर आ रही खबरों की याद आ गई। मैंने उसे और तेजी से भींच लिया। मेरे दिल का टुकड़ा मुझसे चिपका था पर मेरी आँखों के कोने भीग गये थे और फिर एक दिन मुझे तंवर के साथ ऑफीशियल मिटिंग पर जाना था। उसकी आलीशान गाड़ी में बैठते ही मेरा दिल भारी होने लगा था। गाड़ी चल चुकी थी, हम दोनों पिछली सीट के दो कोनों में बैठे थे।

हमारे बीच कुछ बातें शुरू हुईं। सो हाउ यू स्पेंड योर वीकेंड? कितना शॉपिंग करती हो? कितना पैसा माँगती हो अपने हजबैण्ड से? व्हाट इज द इंपोर्ट्स ऑफ मनी इन योर लाइफ? वह मुझसे वे सब बातें पूछ रहा था जिनका कोई सेन्स नहीं था, जो था, वह सिर्फ इतना था कि वह पता लगा सके कि मैं पैसों की चकाचौंध से बिक सकती हूँ कि नहीं। पर जब उसे उसकी चाहत के अनुरूप उत्तर नहीं मिले तो उसने मुझे प्रोवोक करने की कोशिश की। ही वांटेड सम स्मार्ट प्युपिल इन हिज ऑफिस बट अनर्फाच्यूनेटली उसके ऑफिस में ऐसे लोग नहीं हैं जैसे उसे बाहर मिलते हैं। मैं प्रोवोक नहीं हुई। बस, बातों का रुख मोड़ने की कोशिश करने लगी। उस दिन मुझे लगा कि जब एक औरत घर से निकलती है तो नब्बे प्रतिशत आदमी जीभ लटकाये खड़े होते हैं।

मीटिंग अच्छी हुई पर बेकार क्योंकि उसका प्रोजेक्ट टाइम माँगता था और मेहनत भी। और सच यह भी था कि मेरे पास मेहनत करने का मोटिव था पर तंवर के पास नहीं। वह उस काम पर था जहाँ वह कुछ भी करता तो सिर्फ अय्याशी के लिए। न उसके लिए यह प्रोजेक्ट इंट्रस्टिंग बन पाया न मैं।

उस दिन मुझे कुछ असुरक्षा का भाव-सा महसूस हुआ। मेरे लिए आज की डेट में यह नौकरी बहुत जरूरी थी। मेरी और मयंक की सारी प्लानिंग हम दोनों की सैलरी के हिसाब से डिसाइड थी। दो-दो होमलोन, पर्सनल लोन, कृति की अच्छी स्र्कूंलग…. सच पूछो तो मुझे थोड़ा डर जरूर लगा था। अगर मुझे बचना था या आगे बढ़ना था तो मेरे पास सिर्फ एक ही रास्ता था….. हार्ड वर्क। अगले आठ महीने मैं और सौम्या पागलों की तरह अपने प्रोजेक्ट्स में काम करते रहे। साथ में उसकी अपनी घरेलू परेशानियाँ थीं और कभी-कभी मयंक को भी मेरा इस तरह काम करना पसंद नहीं आ रहा था। कई बार मैं सोचती जब सफलता की तरफ कदम रखने की कोशिश में आदमी ज्यादा इनवॉल्व हो जाता है तो कहानी कुछ और होती है और औरत के मामले में कहानी कुछ और हो जाती है।

इस कहानी में अच्छा यह हुआ कि हमको अपनी कोशिश में कामयाबी मिली। मैंने और सोम्या ने सैलीब्रेट किया। तंवर का ऑफिस में आयी स्नेहा मलिक के साथ अफेयर शुरू हो गया। सुना है जो इंक्रीमेंट हमको मिला है, वही उसको भी मिला है। शायद स्नेहा मलिक को तंवर के पुराने किस्सों का पता नहीं कि बेवजह इंक्रीमेंट मिलने के बाद नौकरी ज्यादा दिन नहीं टिक पाती।

रितेश मेरे पास आया, अपनी उसी शैतान हँसी के साथ कहने लगा तो मैडम, दो मोटे आसामी फँसा लिये तुम लोगों ने। फँसाये नहीं हैं काम किया है, मैंने कहा। अरे जाओ, मैंने नहीं देखा क्या तुम्हारा काम। विवेक गुप्ता से ज्यादा अच्छा काम तो नहीं करते ना तुम। सौम्या ने टोका…. तुम भी रितेश, कभी तो सीरियस रहा करो।

अगर सीरियस रहा तो जैसे मेरे ऊपर वाले मेरे साथ करते हैं, मैं भी तुम लोगों के साथ करता। उसने सीरियसली कहा, पर तुम लोग नहीं समझोगे और तुम तो बिल्कुल भी नहीं, उसने मेरी तरफ देखते हुए कहा।

ठीक ही कह रही थी सौम्या, मैंने सोचा, यह ऐसा बुरा भी नहीं। हाँ, बस बोलता ज्यादा है, असल में बहुत ज्यादा। हाँ, फँसा दिये। सोच रहे हैं, आगे भी फसायेंगे। तुम सपोर्ट करोगे, मैंने पूछा? बिल्कुल नहीं, तुम दोनों काम करोगे और मैं मजे। हार्ड वर्क के साथ-साथ अब थोड़ा स्मार्ट वर्क भी करना होगा, उसने कहा। वह हम दोनों के कंधे हिलाता हुआ चला गया। थोड़ी देर बाद मेल आया कि रितेश ने अपनी टीम की सक्सेस पर पार्टी रखी है। सभी लोग फ्राइडे इवनिंग में दिये गये वेन्यू में पहुँच जायें। मैंने और सौम्या ने एक-दूसरे की तरफ मुस्कुराते हुए देखा। रितेश हमें इशारे से समझा गया था कि विवेक गुप्ता हमारे अगले प्रोजेक्ट्स हथियाने की कोशिश कर रहा है। हमें स्मार्टनेस के साथ उससे निपटना है बिना लड़े। रितेश ने हमें कुछ नहीं बताया था पर हमें सब कुछ समझ में आ रहा था। हम धीरे-धीरे ऑफिस पॉलिटिक्स में घुस रहे थे।
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