उत्तराखण्ड आन्दोलन : आधा-अधूरा राज्य
विमला असवाल
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य बनने तक नैनीताल में मिनी सचिवालय खोला गया। अब जिस भवन में उच्च न्यायालय है, तब उसका नाम सचिवालय या सैके्रटेरिएट था। उसी भवन में यह मिनी सचिवालय खोला गया था, जिसका भारी विरोध यहाँ की जनता ने किया। सचिवालय में दो-तीन दिन धरने पर बैठे। यह धरना तीन-चार घंटे ही चलता था। वहीं पर सभा भी होती थी। बाद में उत्तराखण्ड क्रांतिदल ने वहाँ पर लगातार धरना देना शुरू कर दिया। ये लोग वहाँ रात-दिन बैठे रहते थे। इसी बीच यहाँ दूरदर्शन की एक टीम आन्दोलन के बारे में रिकार्डिंग करने आयी। वे लोग सचिवालय में आये। वहाँ नारायण सिंह जंतवाल तथा अन्य लोगों के विचार रिकार्ड किये गये। टीम ने महिलाओं के विचार भी रिकार्ड करने को कहा तो बिशन सिंह मेहता हमारे घर आये और बोले, चलिए आपको दूरदर्शन के लिए आन्दोलन के विषय में बोलना है। मैं कभी भी इस प्रकार से नहीं बोली थी। मेरे बहुत मना करने पर भी वे नहीं माने और मुझे और धना को ले गये। वहाँ पर रुचि कुमार थीं। उन्होंने कहा कि आन्दोलन के बारे में कुछ बताओ कि आन्दोलन क्यों हुआ? आप इसमें क्यों आईं? मुझे जितना मालूम था, मैंने सब बताया। वे बोलीं आप बेकार घबरा रहीं हैं, आप तो अच्छी तरह बता रही हैं। अब आप फिर से बोलो, मैं आपकी बातों को रिकार्ड करती हूँ। मैंने और धना ने दोबारा सारी बातें बताईं। मैंने इसमें यही कहा कि किस प्रकार 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के विरोध में यह आन्दोलन शुरू हुआ और बाद में राज्य आन्दोलन में बदल गया। पता नहीं, मैं उस दिन कैसे बोल पाई थी। मैं अभी भी माइक के सामने नहीं बोल पाती हूँ। बाद में यह रिकार्डिंग परख नाम के कार्यक्रम में दिखाई गई तथा इनसाइड नाम से भी दिखाई गई। दुबई में मेरी परिचित एक महिला ने इस कार्यक्रम को देखा। उसने अपनी माँ को बताया कि मैंने असवाल आंटी को टी.वी. में देखा। परख की टीम ने भीमताल में श्री यशोधर मठपाल जी के यहाँ भी उनका साक्षात्कार लेने जाना था। उस दिन फिर मेहता जी ने हमें उत्तराखण्ड क्रांतिदल के सदस्यों से मिलाया। मैं पहली बार श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी जी से भी मिली।
मुजफ्फरनगर काण्ड की कोई सुनवाई नहीं हो पा रही थी। महिला मंच ने तय किया कि 2 अक्टूबर को दिल्ली में रैली की जाय और राष्ट्रपति को ज्ञापन दिया जाय। यह 1998 की बात है। मैं इस रैली में नहीं जा सकी क्योंकि 30 सितम्बर को मेरी बेटी का विवाह हुआ था। 1 अक्टूबर की शाम को दिल्ली जाना था। 1 ता. को नैनीताल में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक आये हुए थे। महिला मंच के साथियों ने उनका घेराव किया था। उत्तर प्रदेश विधान सभा में उत्तराखण्ड पृथक् राज्य का प्रस्ताव 24 संशोधनों के साथ पारित हुआ था। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में उत्तराखण्ड से जो विधायक थे वे इन संशोधनों पर कुछ बोले नहीं, विरोध भी नहीं किया इसलिये यहाँ की जनता अपने विधायकों से नाराज थी। मंत्री का घेराव करने पर पुलिस ने महिलाओं को गिरफ्तार किया और दिनभर थाने में रखकर शाम को छोड़ा। तब रात को बस से सब लोग दिल्ली को गये। कई पुरुष साथी भी महिलाओं के साथ थे। देहरादून से भी महिलाएँ आई थीं और दिल्ली के उत्तराखण्डी लोग भी इस रैली में शामिल हुए। रैली का समापन राजघाट में हुआ, जहाँ सभा की गई। गढ़वाल सभा में सबके रुकने की व्यवस्था की गई थी। शाम को राष्ट्रपति को ज्ञापन देने कुछ महिलाएँ गईं। रात को ही बस से सब लोग वापस आ गये। उत्तराखण्ड महिला मंच के साथ इस प्रदर्शन में उत्तराखण्ड जनसंघर्ष वाहिनी, उत्तराखण्ड शिक्षक कर्मचारी संगठन, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच दिल्ली, उत्तराखण्ड पत्रकार परिषद् दिल्ली, नागरिक संघर्ष समिति नैनीताल, सर्वदलीय संघर्ष समिति अल्मोड़ा तथा सर्वदलीय संघर्ष समिति हर्बर्टपुर देहरादून शामिल थे।
Uttarakhand Movement: Half-finished State
2 अक्टूबर 1994 के बाद जब भी कोई धरना प्रदर्शन राज्य आन्दोलन के तहत हुआ, सब में मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने की माँग उठती थी। पर कोई खास निर्णय महिला मंच की ओर से नहीं लिया गया।
नैनीताल में इस काण्ड को लेकर एक बैठक की गई कि किस प्रकार दोषियों को सजा दिलाने के लिए कार्यवाही की जाए। हालांकि कोर्ट में मुकदमे तो चल ही रहे थे पर ठोस निर्णय कहीं से भी नहीं आ रहा था और जनता के आगे स्थितियाँ साफ नहीं थीं। इस बैठक में नैनीताल के बहुत-से बुद्धिजीवी लोग शामिल हुए। बैठक में निर्णय लिया गया कि एक पर्चा छापकर आम जनता तक वास्तविकता ले जानी चाहिए। यह भी निर्णय हुआ कि वकीलों को बुलाकर एक बैठक करवानी चाहिए। राजनैतिक दलों के लोगों को भी इस बैठक में बुलाया जाना चाहिए। पर्चे में मुकदमे की पूरी जानकारी दी जानी चाहिए। बहुत-से लोगों ने राय दी कि एक गोष्ठी इस विषय को लेकर करनी चाहिए और तब तय हुआ कि अप्रैल के अंत तक एक गोष्ठी की जाय। इस बैठक के लिए नैनीताल के साथियों ने बहुत तैयारी की। देहरादून, मुरादाबाद जाकर भी वकीलों से सम्पर्क किया तथा मुकदमों की जानकारी ली। मुकदमे अलग-अलग जगहों में चल रहे थे। सभी जगह के न्यायालयों से जानकारी लेने की कोशिश की गई। गोष्ठी में श्री सूरत सिंह नेगी, अध्यक्ष, उत्तराखण्ड अधिवक्ता संघ, मुरादाबाद से एडवोकेट जखवाल जी, इलाहाबाद से पी.यू.सी.एल. के श्री चितरंजन सिंह, एडवोकेट श्री सुधांशु धूलिया, श्री एल.पी. नैथानी, एडवोकेट श्री एम.एम. घिल्डियाल, दिल्ली से उत्तराखण्ड जनमोर्चा के श्री नरेन्द्र सिंह बिष्ट, श्री राजेन्द्र धस्माना, एडवाकेट श्री संजय पारीख, सुश्री कुसुम नौटियाल आदि बहुत-से लोग आये थे। नैनीताल के भी आन्दोलनकारी व बुद्धिजीवी इस गोष्ठी में सम्मिलित हुए। सबने मुजफ्फरनगर काण्ड के मुकदमों के विषय में अपनी-अपनी जानकारी रखी। कुछ निर्णय भी लिये गये। मुकदमे लड़ने के लिए एक कोष की भी शुरूआत की गई। एक कमेटी भी बनाई गई। सी.बी.आई. तथा उत्तर प्रदेश सरकार दोनों के नकारात्मक रवैये की आलोचना की गई। इस बैठक में कहा गया कि मुजफ्फरनगर काण्ड की घटना राज्य से भी ऊपर है। परन्तु इस केस में काफी कमजोरियाँ हैं और आन्दोलनकारियों ने इस पर ध्यान नहीं दिया है। वकीलों और आन्दोलनकारियों का आपस में सम्पर्क भी नहीं हो पाया। सभी केसों की एक सूची बनाई जानी चाहिए और उनको एक साथ एक जगह पर चलना चाहिए।
गोष्ठी में जिन बातों को तय किया गया, आगे उन पर ठोस कार्य नहीं हो सका। समन्वय समिति सक्रियता से कार्य नहीं कर सकी। इस संदर्भ में केवल यही हो सका कि महिला मंच नैनीताल के साथी एवं जन मोर्चा के नरेन्द्र सिंह बिष्ट विभिन्न मुकदमों की तारीखों पर मुरादाबाद गये। मुरादाबाद की तारीखों की जानकारियाँ मुखर उत्तरा में प्रकाशित की गईं। कोष के लिए एक खाता बैंक में खोला गया और लोगों से धनराशि भेजने के लिए भी अपील की गई पर कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया। दिल्ली जाकर भी महिलाओं ने सी.बी.आई. के अधिकारियों से बातचीत की। हरिद्वार में सी.बी.आई. के लोगों ने महिला मंच के प्रतिनिधि मंडल से बात की। उत्तराखण्ड महिला मंच के एक प्रतिनिधि मंडल ने दिल्ली में सोनिया गाँधी से भी मुलाकात की पर आज तक इस काण्ड के नाम पर एक भी अपराधी को सजा नहीं हुई।
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जुलाई 2000 में उत्तराखण्ड राज्य का प्रस्ताव पास होते ही घोषणा हो गई थी। पर उत्तराखण्ड की राजधानी घोषित नहीं हुई। इसलिए आन्दोलनकारियों की इच्छा थी कि 9 नवम्बर को राज्य गठन से पहले राजधानी भी घोषित हो जाए। इसके लिए संयुक्त संघर्ष मोर्चा का गठन किया गया और 24 सितम्बर 2000 को गैरसैण में एक विशाल रैली निकाली गई। क्योंकि जबसे राज्य आन्दोलन शुरू हुआ था तभी से राजधानी के लिए सबकी एक ही राय थी कि गैरसैण में राजधानी बनाई जाय। इसके लिए जनता से सम्पर्क किया गया। देहरादून के साथियों ने गाँवों में भ्रमण भी किया तथा विभिन्न संगठनों से अनुरोध किया कि 24 सितम्बर को गैरसैंण पहुँचना है। उत्तराखण्ड क्रांतिदल को भी इस रैली में शामिल करने का निर्णय था। महिला मंच द्वारा एक पर्चा भी इसके लिए निकाला गया तथा जनता में बाँटा गया। 24 सितम्बर को एक विशाल रैली गैरसैण में निकाली गई। हजारों लोगों ने इसमें भाग लिया और गैरसैण को उत्तराखण्ड की राजधानी बनाने की जनघोषणा की गई। विभिन्न राजनैतिक दलों के लोगों ने भी इसमें भाग लिया। 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखण्ड राज्य का उत्तरांचल नाम से गठन किया गया। जिस दिन यह घोषणा हुई, हमें कोई विशेष खुशी नहीं हुई क्योंकि राज्य की घोषणा बहुत जल्दबाजी में की गई।न तो उत्तर प्रदेश के साथ परिसम्पत्तियों का बँटवारा किया गया न राजधानी घोषित की गई और राज्य का नाम भी बदल दिया गया। ऐसा लगा कि हमें अधूरा और विवादग्रस्त राज्य ही मिला। साथ में बने दोनों राज्यों-छत्तीसगढ़ तथा झारखंड की राजधानियाँ उसी दिन घोषित कर दी गईं। जबकि आज 2013 तक भी उत्तराखण्ड की राजधानी तय नहीं हो पाई है। हम अस्थायी राजधानी में ही अटके हैं। वनों, सिंचाई की नहरों तथा राज्य की अन्य सम्पत्तियों आदि पर उत्तर प्रदेश का अधिकार है। जिससे राजस्व का बड़ा हिस्सा यू.पी. में जा रहा है। राजधानी पहाड़ पर न होने से पलायन जारी है। बड़े-बडे़ बिजली प्रोजेक्टों के कारण गाँव के गाँव विस्थापित हो रहे हैं। पहाड़ों का विकास नहीं हो पा रहा है। इससे बहुत दु:ख होता है कि अपना राज्य होकर भी गाँवों की दशा वैसी की वैसी है। अगर राजधानी गैरसैण बन जाए तो शायद पहाड़ का विकास सम्भव हो।
समाप्त
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