गणेशपुर की महिलाएँ     

रेखा चमोली

हाड़ और प्राकृतिक आपदाओं का चोली-दामन का साथ है। भूकम्प और अत्यधिक वर्षा के कारण भू-कटाव इस क्षेत्र के लिए आम बात है। सदियों से नदियों द्वारा पहाड़ों का कटाव होता रहा है एवं इस भौगोलिक विशेषता के चलते ही मैदानों में उपजाऊ भूमि का निर्माण होता है। परन्तु कई बार इस तरह की आकस्मिक घटनाएं किसी क्षेत्र विशेष के लोगों के लिए गहरे दुख एवं सदमे का कारण बन जाती हैं। हाल के वर्षों में उत्तरकाशी को निरन्तर नदी द्वारा भूकटाव की मार झेलनी पड़ी है। जिसके चलते कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा एवं बचे हुए लोगों की जिन्दगियां कई महीनों के लिए ठहर सी गईं। लोगों की चल-अचल संपत्ति, रोजगार के साधन समाप्त हो गये। अभी भी स्थिति के ठीक होने में वर्षों लग जाएंगे। प्राकृतिक आपदाओं के कारणों का अध्ययन करने वाले लोगों का मानना है कि मानव द्वारा प्रकृति के साथ अनियन्त्रित छेड़-छाड़ के चलते इस तरह की आपदाओं से सामना करना पड़ता है। मानव ने अपने विकास के लिए जो रास्ता चुना है, उसमें उसने सड़क, बिजली एवं प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को खासी महत्ता दी है। जीवन की रफ्तार को बढ़ाने के लिए पहाड़ों को काटा गया है। पहाड़ अपनी आकृति एवं आकार को ग्रहण करने में सदियों का समय लेते हैं एवं इसके प्रत्येक कण का अस्तित्व उसके ऊपर एवं नीचे के कणों से होता है। ऐसे में कोई भी छेड़-छाड़ उसके सम्पूर्ण वजूद को संकट में डाल देती है। उत्तरकाशी में अत्यधिक मानव हस्तक्षेप के चलते ही भारी भू-कटाव हुआ है। खैर कारणों की अपनी एक लम्बी फेहरिस्त हो सकती है एवं इस बात पर बहस हो सकती है कि प्राकृतिक आपदाओं के लिए मानवीय हस्तक्षेप कितना कारक रहा है।

प्राकृतिक आपदाएं हमेशा ही भयावह होती हैं पर मनुष्य का स्वार्थ, गैरजिम्मेदाराना व्यवहार और असंवेदनशीलता उसकी भयावहता को बढ़ा देती हैं। दूसरी ओर मुश्किल घड़ियों में किसी के दो मीठे बोल, सान्त्वना भरी बातें, विश्वास भरा हाथ फिर से उठने की, आगे बढने की प्रेरणा देते हैं।मन में विश्वास भरते हैं कि बहुत सारा खराब होने के बाद भी बहुत कुछ अच्छा व मानवीय बचा हुआ है। यह अच्छा व मानवीय ही है जिसके बल पर मानव समुदाय ने बड़ी से बड़ी आपदाओं पर विजय पायी है। घनघोर निराशा में भी हौसला बनाए रखने वाला मानव समुदाय ही दूसरों के लिए मिसाल खड़ी करता है।

ऐसा बहुत कुछ घटा इस वर्ष की प्राकृतिक आपदा के बीच। इस वर्ष उत्तराखण्ड में जो भयानक आपदा आयी उसमें प्रशासन, विभिन्न संगठन, स्वयंसेवी संस्थाएँ और जन समुदाय अपने-अपने स्तर पर राहत कार्यों में लगे रहे पर आपदा इतनी बड़ी थी कि सारे प्रयास छोटे लग रहे थे। ऐसे में उम्मीद की कई छोटी-बड़ी किरणें थी जिन्होंने अपने प्रयासों से जीवन को सहेजने का भरसक प्रयास किया।

ऐसा ही एक प्रयास उत्तरकाशी के गणेशपुर गाँव की महिलाओं ने किया। उत्तरकाशी में 2012 की आपदा के घाव अभी सूखे भी नहीं थे कि समय से पहले आयी भीषण वर्षा व बाढ़ ने उन घावों को भीतर तक जख्मी कर दिया। पूरा पहाड़ दरकने लगा। नदी अपने किनारों को तोड़ती-फोड़ती सब कुछ अपने में समा लेने को आतुर दिखी। उत्तरकाशी से गंगोत्री के बीच जगह-जगह पर भारी मात्रा में भूस्खलन होने से सड़कें मलवे में दब गयीं या नदी में बह गयीं। हजारों यात्री, यात्रा सीजन होने के कारण जगह-जगह फँस गये।
women of ganeshpur

उत्तरकाशी से 7-8 किमी. की दूरी पर बसा गाँव है गणेशपुर। 15-16 जून को हुई भयानक बारिश व बाढ़ के बाद इसका प्रभाव देखने गाँव की दो महिलाएँ पुष्पा चौहान व विजयलक्ष्मी गाँव से 15-16 किमी. की दूरी तक गयीं। मनेरी पहुँचने पर उन्होंने यात्रियों की हालत देखी। हजारों यात्री अपने बाल-बच्चों सहित बहुत बुरी हालत में थे। स्वयं इन दो महिलाओं को भी खाना-पानी नहीं मिल पाया। रहने की जगह तो दूर, यात्रियों के पास खाने-पीने का सामान, आवश्यक दवाइयाँ भी नहीं थीं। दुकानों में बिकती चीजें बहुत महंगी होने के साथ सीमित मात्रा में थीं। यात्रियों के लिए चौपर लगे थे पर उनकी संख्या नाकाफी थी। हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल था। ऐसे में यात्रियों के पास ऊबड़-खाबड़ टूटते-दरकते खतरनाक पहाड़ी रास्तों से पैदल आगे बढ़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। यात्रियों की हालत बुरी थीं। महिलाएँ व बच्चे साथ होने से आवश्यक वस्तुओं व दवाइयों की बेहद जरूरत थी। सबको भोजन, आराम, आवश्यक दवाइयों के साथ प्यार व स्नेह की भी जरूरत थी।

शारीरिक व मानसिक आघात से यात्री डरे हुए थे। उन्हें डर था कि वे सुरक्षित अपने घर पहुँच भी पाएंगे या नहीं। दिनभर लोगों से बातचीत कर, हालात का जायजा ले दोनों महिलाएँ जब पैदल अपने गाँव वापस लौटी, तब तक वे निर्णय ले चुकी थीं कि किसी न किसी तरह इन यात्रियों की मदद करनी है। उन्होंने गाँव जाकर गाँव की अन्य महिलाओं से बात की। जब इन महिलाओं ने इस बारे में अपने घरों में बात की तो कई लोगों ने इसे फालतू के काम बताया। इन दिनों पहाड़ में रोपाई का समय होता है। सभी गाँव वाले अपने खेतों की रोपाई के लिए तैयारी कर रहे थे। ऐसे में घर की महिलाओं की समाज सेवा में व्यस्त होने की बात कई लोगों को पसंद नहीं आयी। पर ये महिलाएँ तो अपने मन में निर्णय ले चुकी थीं। हमारे गाँव से कोई यात्री भूखा-प्यासा नहीं जाएगा। महिलाओं ने गाँवभर से खाने-पीने की सामग्री, लकड़ियाँ व बड़े बर्तन जुटाए। महिलाओं का दृढ़ निश्चय देख पूरे गाँव वालों ने भरपूर मदद की। महिलाओं ने सड़क किनारे चूल्हे लगाए। अब जो भी यात्री गणेशपुर से गुजरता, ये महिलाएँ उनका हालचाल पूछतीं। उनसे बातचीत कर उनका मन हल्का करने की कोशिश करतीं। उन्हें सहज बनाने की कोशिश करतीं, उनको खाना खिलातीं तथा उनका सामान उठाकर उन्हें दूर तक छोड़ने जातीं। महिलाओं के काम को देखकर गाँव के पास बने शिवानन्द आश्रम से एक एम्बुलैंस व दवाइयों की व्यवस्था यात्रियों के लिए की गयी। साथ ही रास्ते में बोझा ढोने व पानी पिलाने के लिए सहायकों की भी व्यवस्था की गयी।

इस मुश्किल समय में भी कई बोझा ढोने वालों, दुकानदारों, खच्चर वालों तथा ड्राइवरों ने यात्रियों से मनमाने रुपये लेना शुरू किया तो पता चलते ही इस समूह ने इन लोगों को जमकर फटकार लगायी तथा यात्रियों से वस्तुओं का उचित मूल्य लेने को कहा।

जब शहर के निकट के अन्य गाँव वालों को यह बात पता चली तो वे जिलाधिकारी से बात करने गये कि वे भी यात्रियों की, जरूरतमंदों की मदद करना चाहते हैं तो जिलाधिकारी ने उन्हें राहत सामग्री गणेशपुर भिजवाने को कहा। यह सिलसिला 15-20 दिनों तक चलता रहा। बाद में इन सभी ने मिलजुलकर अपनी रोपाई निपटायी।

गाँव में राहत सामग्री पहुँचने पर इस गाँव ने राहत लेने से मना कर दिया। यह कहकर कि इसकी ज्यादा जरूरत अन्य गाँव वालों को है। बहुत बाद में थोड़ी बहुत राहत सामग्री पैसे, लालटेन आदि इस गाँव ने लिए। ऐसा नहीं है कि इस गाँव का प्रत्येक परिवार सम्पन्न है पर इनकी संवेदना ने इन्हें आवश्यकता का सही अर्थ समझाया।

यह दृश्य सिर्फ गणेशपुर गाँव का नहीं था। आपदा के दौरान कई अन्य जगहों पर भी सामूहिक चूल्हों पर भोजन बनाया गया व जरूरतमंदों तक पहुँचाया गया तो कहीं पर किसी ने अपनी जान पर खेलकर किसी मुसीबत के मारे को बचाया। अस्थायी रास्तों का निर्माण, पुलों का निर्माण, सामूहिक कार्यों के नतीजे थे जिन्होंने जीवन को फिर से पटरी पर लाने का प्रयास किया।

किसी भी आपदा के समय इस तरह के छोटे-बड़े साहसिक कदम बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उत्तराखण्ड जो कि प्राकृतिक आपदाओं से निरन्तर किसी न किसी तरह जूझता रहता है, में ऐसे सामूहिक सचेत प्रयासों की बहुत आवश्यकता है। हमें जरूरत है ऐसी पहलकदमी की जिससे स्वत: ही समुदाय में जागरूकता उठे। समाज अपने आसपास होने वाली अच्छी-बुरी गतिविधियों के प्रति न सिर्फ संवेदनशील हो बल्कि उससे निपटने के लिए जरूरी कदम भी उठाए। मुसीबत के समय प्रशासन, स्वयंसेवी संस्थाएँ व सामूहिक, व्यक्तिगत प्रयास एकजुट होकर स्थिति का सामना कर पाएँ तो स्थितियों के कारणों पर भी विचार-विमर्श कर इन कारणों को खत्म करने का भी प्रयास किया जाए। ऐसे हर छोटे-बड़े प्रयास को सामने लाने की भी आवश्यकता है ताकि दूसरे लोग इससे प्रेरणा लें।
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