गौरादेवी : एक वृक्षगाथा
-देवयानी भट्ट
संध्या के गहराये झुटपुटे में
रैंणी का अनियारा गाँव
टपकती पटालों के छत तले
गौरादेवी लौटी थी…..
घुटनों में सिर ढापे
अंधेरे कोने में
दुबका बैठा था,
छोटा सा किसनू
माँ ने – उठाया, चूमा
और कोख से लगाया था
उसकी देह में पेड़ों की गंध बसी थी।
….बच्चे भूखे थे
माँ ने रोटी सेकी
रोटी में बस गयी थी पेड़ों की गंध।
…….पेड़ों की गंध………
थोड़ा बड़ा होने पर
किसनू ने सुनी थी
उस दिन की वृक्ष गाथा
और समझ गया था पेड़ों की खुशबू का राज।
…….तब से आज तक
किसनू खड़ा होता है
हर उस ठेकेदार के सामने
जो कुल्हाड़ी लेकर आता है,
वनों का अधिग्रहण
या
नीलामी के फरमान सुनाता है।
जो पेड़ों को घाव देता है,
लकड़ी चुराता है
या आग लगाता है।
……. गौरा देवी ने
हस्तान्तरित कर दिये हैं
सारे जनमुद्दे
इतिहास होने से पहले-
किसनू और उसकी पीढ़ी को।
और स्वयं आजकल
गौरा देवी व्यस्त हैं
अभी रोपे गये नन्हे दुधमुँहे पौधों को
आंचल में छिपाकर
पालने पोसने में।
कि, कल उनसे
पेड़ों की गंध आयेगी।
संदर्भ- 26 मार्च को रैणी गाँव में गौरा देवी के नेतृत्व में जंगल बचाने के प्रतिरोध की याद में।
उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika