सरकारी यौन हिंसा की गवाही

Gawahi Article Chandrkala
-चन्द्रकला

छत्तीसगढ़ महिला मंच द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘गवाही’ में दक्षिण छत्तीसगढ़ में सुरक्षाकर्मियों द्वारा आदिवासी महिलाओं पर की गई यौन हिंसा का तथ्यात्मक अन्वेषण किया गया है। यह जानकारी आमजन तक पहुँचाने के लिए महिलाओं के संगठन डब्ल्यू़एस़एस (यौन हिंसा व राजकीय दमन के खिलाफ महिलाओं का संगठन) को धन्यवाद! बारह अध्यायों व (न्यायिक जांच के दौरान दर्ज किये गये महिलाओं के बयान) चौदह परिशिष्टों के सााथ लिखी गई महज 100 रुपये की सहयोग राशि वाली यह पुस्तक अपने शीर्षक के अनुरूप उन आदिवासी महिलाओं की गवाही है जो भीतर तक इतने गहरे उतरती जाती है कि आप स्वयं कोे उनकी जगह रखकर देंखे तो रूह काँप जाये।
(Gawahi Article Chandrkala)

वास्तव में मुख्य और गौण धारा में शामिल होना कोई मायने नहीं रखता इन महिलाओं के लिए। दक्षिण छत्तीसगढ़ के गाँवों में रहने वाली ये आदिवासी महिलाएं कहीं भी नहीं हैं, केवल जीव हैं, जिनके होने का महज इतना ही अर्थ है कि वे शरीर हैं और इस शरीर का इस्तेमाल किसी भी सीमा तक किया जा सकता है। फिर चाहे वह बलात्कार हो या इस आशय से की गई शारीरिक व मानसिक हिंसा जिससे पुलिस व सुरक्षाबलों के पुरुष देश की सुरक्षा के नाम पर अपनी हवस को शान्त कर सकें और औरतों को औरत होने के नाते नीचा दिखा सकें। यह सोचे बिना कि जिस शरीर को वे नोच-खसोट रहे हैं ऐसे ही कई शरीर उनके अपने घरों में भी मौजूद हैं।

मैं भला ऐसा क्यों कहने लगी! क्या गरीबी, कुपोषण व दमन के साये में रहने वाले, जीवन के तमाम अभावों से जूझते शिक्षा, स्वास्थ्य, समुचित भोजन व तमाम बुनियादी सुविधाओं के अभावों को झेलते जंगलों-कन्दराओं व प्राकृतिक सम्पदाओं को सदियों से सहेजे हुए इन आदिवासियों को इंसान माना भी जाना चाहिए? वे तो अवरोध हैं उद्योगपतियों और सरकारों की खदान नीतियों के लिए! इसलिए तो उन्हें उजाड़ा जा रहा है, नक्सली बताकर कठोर यातनाएं दी जा रही हैं। फर्जी मुठभेड़ों में हजारों लोगों को मारा जा रहा हैं जो बचे रह जाते हैं, उन्हें फर्जी मुकदमों के जाल में फंसाकर इन अवरोधों को नेस्तनाबूत कर दिया जा रहा है।

दक्षिण छत्तीसगढ़ के तमाम जिलों में किये गये सैन्यीकरण और सैन्य कार्यवाहियों से वहां के लोगों का जीवन किस कदर बरबाद किया जा रहा है, ‘गवाही’ पुस्तक पढ़कर इसकी एक झलक मिलती है। इस पुस्तक को पढ़ते हुए यह महसूस हो रहा था कि यहां के निवासियों का जीवन किसी भी तरह कश्मीरी अवाम व उत्तर पूर्व के लोगों के साथ होने वाले दमन व उत्पीड़न से भिन्न नहीं हैं। भले इस क्षेत्र को भारत का अभिन्न हिस्सा मानने को लेकर कोई विवाद नहीं है लेकिन फिर भी यहां के आदिवासियों पर यु़द्घ थोपकर उनसे स्वभाविक जीवन छीना जा रहा है।
(Gawahi Article Chandrkala)

किसी समाज को वश में करने के लिए युद्घ सरदार अपने सैनिकों के साथ मिलकर जहां एक ओर सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं वहीं दूसरी ओर उनका मनोबल तोड़ने के लिए औरतों के साथ बलात्कार व यौन हिंसा की जाती है। वही नीतियां भारत जैसे देश के हुक्मरान जो कि महिलाओं के सम्मान का नाटक करते हैं, वहां बड़े पैमाने पर सुरक्षाबलों द्वारा अंजाम दे रहे हैं लेकिन उसके विरुद्घ उठने वाली आवाजों का दमन भी उसी रूप में जारी है।

मैं यह पुस्तक पढ़ते हुए सोच रही थी कि वर्तमान सरकार ने एक नारा दिया है ‘बेटी बचाओे, बेटी पढ़ाओ’ क्या इस नारे के पीछे एक मर्दवाद मानसिकता नहीं झलकती जो कि बेटियों को बचाने के नाम पर पूरी राजनीति कर रहे हैं? मेरे इस प्रश्न का उत्तर भी मुझे खुद ब खुद मिलने लगा कि वे ‘किनसे’, ‘किनकी‘ बेटियों को बचाने की बात कर रहे हैं। यह सच भी हम सबके सामने है कि पिछले कुछ सालों में बेटियां ज्यादा असुरक्षित होने लगी हैं। लेकिन मैं यहां पर छत्तीसगढ़ की उन बहू-बेटियों की बात कर रही हूँ जिनको बचाने या पढ़ाने की बात करने वाला कोई नहीं है क्योंकि वे महज़ शरीर हैं जिनका इस्तेमाल किसी भी तरीके से किया जा सकता है। पुस्तक के कुछ अंशों से आप समझ सकते हैं कि यह सही है अथवा नहीं।
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