महिलाओं का मन्दिर प्रवेश
प्रीति थपलियाल
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटा लिया है। इस मंदिर में 1500 वर्षों से महिलाओं का प्रवेश र्विजत था और पिछले कई सालों से यह मामला कोर्ट में लटका हुआ था। कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने सबरीमाला मंदिर मामले पर फैसला सुनाते हुये कहा कि महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिये और अब उन्हें मंदिर में जाने से नहीं रोका जायेगा।
केरल का सबरीमाला मंदिर भगवान अय्यप्पा का मंदिर है। माना जाता है कि भगवान अय्यप्पा अविवाहित थे और महिलाओं से दूर रहते थे जिस कारण मंदिर में 1500 सालों से महिलाओं का प्रवेश र्विजत था। 10 से 50 वर्ष की महिलाओं को हर महीने मासिक धर्म होता है और इस दौरान उन्हें अपवित्र माना जाता है, इस कारण वे मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकतीं। मंदिर की प्राचीन मान्यताओं के अनुसार सबरीमाला मंदिर में प्रवेश के नियम बहुत कठिन हैं। इस मंदिर में प्रवेश के लिये 41 दिनों का उपवास रखना बेहद जरूरी होता है लेकिन महिलाओं का मासिक धर्म हर महीने आने के कारण वे 41 दिनों तक उपवास नहीं रख सकतीं जिसके कारण वे अपवित्र मान ली गईं।
धर्म के आधार पर महिलाओं के साथ इस प्रकार की अनेकानेक वर्जनाएँ जुड़ी हुई हैं, जो सदियों से उनके सामान्य जीवन को नियंत्रित करती हैं और उन्हें समाज में दोयम दर्जे का सिद्ध कर देती हैं। उनके भीतर जन्मजात हीन भावना पैदा करने वाली इस तरह की मान्यताएँ केवल सबरीमाला मन्दिर के साथ जुड़ी हों, ऐसा नहीं है। देश के हर कोने में ऐसे मन्दिर मिल जायेंगे, जहाँ औरतों का जाना मना है और उसके पीछे मुख्य कारण उनकी माहवारी है।
(Women’s Entry in Sabrimala Temple)
हरियाणा राज्य के पेहोवा में कार्तिकेय भगवान का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भी महिलाओं का प्रवेश निषेध है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिकेय भगवान ब्रह्मचारी थे इसलिये महिलाओं का प्रवेश यहां वर्जित किया गया है। यहां यह मिथक स्थापित किया गया है कि यदि कोई महिला मंदिर में प्रवेश करेगी तो उसे श्राप मिलने का डर है। ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान के पुष्कर में बने कार्तिकेय मंदिर में भी प्रवेश करने पर महिलाओं को आशीर्वाद के स्थान पर श्राप मिलता है। महाराष्ट्र के सतारा में घटई देवी मंदिर और सोला स्थित शिर्वंलग मंदिर में महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह र्विजत है।
हालांकि सतारा मंदिर में इस तरह के निर्देश का कोई बोर्ड लगा नहीं है लेकिन महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। इसी तरह से सोला के देवस्थान सतारा में शिर्वंलग शनैश्वर के मंदिर में महिलाओं के जाने पर रोक है। असम राज्य के बरपेचटा सत्रा स्थित एक कीर्तन घर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। दरअसल यह एक वैष्णव मंदिर है। असम में इसकी दूर-दूर तक मान्यता है। कहा जाता है कि एक बार पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने इस मंदिर में जाने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन यहां के प्रबन्धन ने उनको अनुमति देने से मना कर दिया था। झारखंड प्रांत में बोकारो स्थित मंगल चंडी मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। यहां महिलाओं को मंदिर प्रागण में ही नहीं, बल्कि इसके 100 फीट की दूरी तक आने पर रोक है। यानी महिलाएं मंदिर के आसपास भी नहीं आ सकतीं। मंदिर प्रबन्धन ने इस नियम के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान रखा है।
छत्तीसगढ़ के धमतरी स्थित भवानी माता मंदिर में भी महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। ऐसी मान्यता है कि यहां पुजारी को माता सपने में आई और उसके बाद मंदिर प्रबन्धन ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। तब से यह प्रथा चली आ रही है।
(Women’s Entry in Sabrimala Temple)
भारत के पूर्वोत्तर में असम राज्य की राजधानी गुवाहाटी के पश्चिम में नीलांजन की पहाड़ियों पर बना हुआ कामाख्या देवी का विख्यात मंदिर है। कामाख्या देवी के इस मंदिर के गर्भ गृह में जो आराध्य मूर्ति स्थापित है, वह किसी बलशाली देव की नहीं बल्कि स्त्री की योनि की है। इस मंदिर में हर साल बारिश के मौसम में चार दिन का मेला लगता है। इस मेले को अंबुबाची मेला कहते हैं। इस दौरान देवी कामाख्या रजस्वला होती है। चार दिनों का यह मेला उनके मासिक धर्म का उत्सव मनाने के लिये किया जाता है। लेकिन चार दिनों तक उत्सव मनाने वाले इस विश्वविख्यात मंदिर का एक सच यह भी है कि यहां माहवारी के दौरान महिलाओं को प्रवेश की इजाजत नहीं है। जहां देवी के रजस्वला होने का मेला लगता है, वहां रजस्वला स्त्री का प्रवेश प्रतिबंधित है।
उत्तराखण्ड में प्रकृति की गोद में बसा एक प्रसिद्ध मंदिर है महासू देवता का। माना जाता है कि जो भी यहां सच्चे दिल से कुछ मांगता है, महासू उसकी मुराद पूरी करते हैं। दिलचस्प है कि यहां हर साल दिल्ली से राष्ट्रपति भवन की ओर से नमक भेंट किया जाता है। मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को संजोए यह मंदिर उत्तरकाशी जिले में त्यूनी-मोरी मोटर मार्ग पर हनोल गांव में टौंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। महासू देवता के मंदिर के गर्भ गृह में महिलाओं का जाना मना है। केवल मंदिर का पुजारी ही वहां प्रवेश कर सकता है ।
दरअसल महासू देवता एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है। स्थानीय भाषा में महासू शब्द महाशिव का अपभ्रंश है। चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बैठा महासू और चालंदा महासू है। इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मंदिर को न्यायालय के रूप में माना जाता है। उत्तराखण्ड के गांव-गांव में ईष्ट देवता के अनेक ऐसे मंदिर हैं, जहाँ महिलाओं का प्रवेश या पूजा-अर्चना करना र्विजत है। प्राय: ये स्थानीय देवता हैं लेकिन लोकमानस में इनका बहुत अधिक प्रभाव हैं। कपिलेश्वर, बासुकीनाग, भूमियां, कालीनाग, सिद्ध, नागनाथ, सैम, धौलीनाग, हरज्यू, भण्डारी गोल्ल आदि देवताओं के मंदिर जहां भी हों महिलाएं उनमें नहीं जातीं। भले ही बाहर से प्रणाम करती हैं या पूजा में शरीक होती हैं। इन देवी-देवताओं की पूजा का आयोजन भी प्रतिवर्ष अनुष्ठानर्पूवक होता है।
(Women’s Entry in Sabrimala Temple)
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में शानिशीगणापुर नाम का एक छोटा सा गांव है। इस गांव में बीते 400 साल में कभी चोरी, दंगे, हत्या या बलात्कार की एक भी घटना नहीं हुई। यहां किसी घर के दरवाजे पर ताला नहीं लगता। दरवाजे-खिड़कियां खुली रहती हैं। सारे लोग खुश हैं क्योंकि इस गांव की रक्षा स्वयं भगवान शनि करते हैं। यहां पर शनि के मंदिर में साढ़े पांच फुट के एक विशाल पत्थर के रूप में शनि को पूजा जाता है। कुछ वर्ष पूर्व गणतंत्र दिवस के दिन करीब 1500 महिलाएं शनि मंदिर की ओर पैदल चल पड़ीं। इस भीड़ में सामाजिक कार्यकर्ता, गृहिणियां और छात्राएं शामिल थीं। उनकी मांग थी कि उन्हें भी मंदिर के अन्दर गर्भगृह के भीतर पूजा-अर्चना करने की इजाजत दी जाय। इस मंदिर में भी महिलाओं का प्रवेश र्विजत है। महिलाओं ने भी हमेशा बिना सोचे-समझे इस अलिखित नियम का पालन किया और कभी भी सवाल नहीं किया। उस समय यह मुद्दा टी.वी. चैनलों और अखबार की बहस का मुख्य विषय बन गया। जानी-मानी वकील वृंदा ग्रोवर का कहना था कि हमारा संविधान महिलाओं को हर मामले में बराबरी का हक देता है फिर मन्दिरों में यह भेदभाव क्यों? देखते ही देखते इस घटना ने आक्रामक रूप ले लिया और मंदिर की सुरक्षा में पुलिस तैनात कर दी गयी। महिलाओं और पुलिस के बीच काफी झगड़े भी हुए। विवाद यहां तक पंहुच गया कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस को भी हस्तक्षेप करना पड़ा।
मध्यप्रदेश के श्योपुर से कुछ ही दूरी पर स्थित जाटखेड़ा गांव में पार्वती माता का ऐसा मंदिर है जिसकी सीढ़ियां चढ़ने तक की अनुमति किशोरियों व युवतियों को नहीं है। मंदिर में केवल पुरुष ही प्रवेश कर सकते हैं। अगर कोई महिला मंदिर के दर्शन करना चाहती है तो उसे मुख्य द्वार से देवी को प्रणाम कर लौटना पड़ता है। जारखेडा गांव में स्थित यह मंदिर करीब 300 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है। इस मंदिर में 20 सीढ़ियां है और महिलाओं को केवल 17 सीढ़ियों तक आने की अनुमति है। 18वीं सीढ़ी शुरू होते ही चेतावनी लिखी है कि इससे आगे महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं है। इस मंदिर के पुजारी का कहना है कि माहवारी के समय महिलाएं 5 दिन तक के लिए अशुद्घ हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में उनके मंदिर में प्रवेश करने को वर्जित करार दिया जाता है।
(Women’s Entry in Sabrimala Temple)
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