चार्ल्स फोरियर : ‘फेमिनिज्म’ शब्द के प्रणेता : विचार
जया पाण्डे
विचारों के इतिहास में बार-बार यह कहा जा रहा है कि स्त्रियों की स्वतंत्रता, उनकी स्थिति तथा अधिकारों के बारे में कुछ लिखा और पढ़ा नहीं गया। वे इंसान नहीं समझी गयी। आज भी उनकी स्थिति दोयम दर्जे की है। ऐसे में अगर किसी विचारक ने स्त्रियों के अधिकारों पर लिखा है, या समझा है तो वह जानने योग्य है।
ऐसे ही एक विचारक हैं चार्ल्स फोरियर (1772-1837) जिन्होंने फेमिनिज्म (फेमिनिज्म शब्द पहली बार उनकी रचनाओं में आया) शब्द को गढ़ा। एक फ्रांसीसी दार्शनिक जो फ्रांसीसी क्रान्ति की इस बात से परिचित थे कि यह क्रान्ति सम्पत्ति की असमानता को दूर नहीं कर पाई। 1772 में एक मध्यवर्गीय परिवार में बोसाको में जन्मे फोरियर की पृष्ठभूमि एक व्यापारी की थी। वे जहाँ पैदा हुए थे, वह स्थान फ्रांस में पिछड़े विचारों के लिए जाना जाता है। उनके पिता के पास अकूत सम्पत्ति थी, वे एक टेक्सटाइल व्यापारी थे लेकिन फोरियर को संगीत का शौक था, फूलों का शौक था, गणित, भूगोल और चित्रकला में रुचि थी। बचपन के ये शौक उन्हें विचारों की दुनिया में खींच लाए। कुछ दिन उन्होंने सेना में काम किया, क्रान्तिकारी गतिविधियों के लिए वे जेल भी गए। फोरियर को बहुत जाना-पहचाना नहीं गया। पर उनको ‘स्वप्नलोकीय समाजवाद’ से जोड़ा जाता है, जिन्होंने सहयोग पर आधारित समाज की कल्पना की। फोरियर सहयोग को सामाजिक सफलता का मुख्य बिन्दु मानते हैं। जो समाज सहयोग पर आधारित होता है, उसमें उत्पादन अच्छा होता है, मजदूरों को उनकी क्षमता के अनुसार मुआवजा मिलता है।
फोरियर मानते हैं कि आज की सभ्यता की सबसे बड़ी कमजोरी है कि यह विवेक पर आधारित है। यह उद्वेगों की परवाह नहीं करता। मानवीय सम्बन्ध उद्वेगों पर आधारित हैं, अगर इन उद्वेगों को समझा जाय, समुचित स्थान दिया जाय, तो समाज में सौहार्द (harmony) की स्थापना हो सकती है। ऐसे ही समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता सुरक्षित रह सकती है। फोरियर का मत है कि स्त्री को भी जीने की, प्रेम करने का तथा कार्य करने की वैसी ही स्वतंत्रता होनी चाहिए, जैसी कि पुरुषों को होती है। फोरियर के इस वाक्य को माक्र्स और लक्जमवर्ग भी उद्धृत करते हैं, ‘‘किसी भी समाज का विकास उस समाज में महिलाओं को कितनी स्वतंत्रता प्राप्त है, इस बात पर निर्भर करता है। सामाजिक व्यवस्था के पतन का कारण है महिलाओं की स्वतंत्रता में कमी।’’ लगभग ऐसे ही विचार जेमन प्रथम ने अपनी पुस्तक ‘द हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ में भी प्रकट किए हैं कि भारत को तो गुलाम होना ही था, क्योंकि यहाँ महिलाओं की स्थिति बदतर है। फोरियर मानते हैं कि महिलाओं के विशेषाधिकारों का विस्तार ही सारी सामाजिक प्रगति का मूल सिद्धान्त है।
(Charles Fourier and feminism)
महिलाओं की स्वतंत्रता, फोरियर के इस सिद्धान्त पर टिकी है कि स्त्री व पुरुष अलग-अलग लिंग हैं। दोनों में विरोधी गुण हैं इन दोनों ही विपरीत विशेषताओं को विकसित होने के अवसर मिलने चाहिए। अगर इनमें से किसी एक की विशिष्टता को दबाया जाता है तो समाज को उसका नुकसान झेलना पड़ता है। मैसकुलाइन तथा फेमिनाइन ये दो फोरियर की दृष्टि में दो विरोधाभास हैं। इसे नैसर्गिकता के साथ आगे बढ़ाना चाहिए। वे ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जिसमें ‘विरोधों के बीच सौहार्द’ की स्थापना हो। दोनों लिंग, यद्यपि उनमें विपरीतता हैं, उनको अपनी अलग विशिष्टताओं के साथ आगे बढ़ने के अवसर हों, एक लिंग दूसरे पर हावी न हो। समाज में दोनों की विरोधाभासी विशिष्टताओं को सुरक्षित रखा जाना चाहिए। वह विरोध के बीच सहयोग पर विश्वास रखता है। (harmony to opposites) परन्तु फोरियर् लिंग की समानता पर विश्वास नहीं करता, क्योंकि वे अलग हैं।
फोरियर स्त्री को एक व्यक्ति के रूप में, मानव के रूप में स्थापित करना चाहते हैं न कि अर्धांगिनी के रूप में या मानवीय जोड़े के एक भाग के रूप में। वे मानते हैं यूरोपियन विवाह स्त्री को दासता की स्थिति में लाता है। पारम्परिक विवाह स्त्री के अधिकारों को खत्म करता है। फोरियर ‘विवाह’ को ऐसी संस्था मानते हैं जो पैसे को महत्त्व देती है। माक्र्स का भी यही दृष्टिकोण है। वैवाहिक सम्बन्ध आर्थिकी पर आधारित होते हैं। स्त्री को उसी पति से विवाह की शिक्षा दी जाती है, जो अधिक कमाता हो। धन को अधिक तरजीह दी जाती है। यह प्रेम जैसी भावना को खत्म करता है। एक और बात, विवाह संस्था महिलाओं को घर के काम तक सीमित रखती है। वे महिलाओं को घर के काम तक सीमित रखने को ही बुरा मानते हैं। घर के काम करने पर पुरुष उस पर निगरानी रखते हैं, इस निगरानी रखने पर ही पुरुष वर्चस्व की स्थिति में आ जाते हैं। हालांकि प्राकृतिक रूप से फोरियर पुरुष को मजबूत मानते हैं। लेकिन वे लैंगिक सम्बन्धों में पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा अधिक आजादी के विरोधी हैं। फोरियर को लगता है कि सैक्सुअल सम्बन्धों के बारे में समाज दोहरे मानदण्ड अपनाता है। वह पुरुषों को तो इस सम्बन्ध में स्वतंत्रता अपनाने की आजादी देता है, स्त्रियों को नहीं। इसलिए वे एक महिला के लिए चार साथियों की कल्पना करते हैं जो उसकी हर आवश्यकता पूरी कर सकें। वे ‘फ्री सेक्स’ को औरत की आजादी के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। हालांकि आज का नारीवाद इस बात पर विश्वास नहीं करता। वह मानता है कि महिला को अपनी किसी आवश्यकता के लिए पुरुष की जरूरत नहीं है। स्त्रियाँ स्वतंत्र रह सकती हैं, पुरुष के बिना भी रह सकती हैं।
(Charles Fourier and feminism)
फोरियर के विचारों का उसके बाद की नारीवादी विचारकों पर भी प्रभाव पड़ा है। फोरियर स्वीकार करते हैं कि समाज में शुरू से औरतों को दबने की शिक्षा दी जाती है, शुरू से ही जब वे पैदा होती हैं यही शिक्षा उसे दोयम दर्जे का नागरिक बनाती है। आदमी मजबूत है, कर्ता है और मालिक है। औरतों को मालिक की इच्छा के अनुसार चलने की जो शिक्षा समाज उसके पैदा होने के समय से ही देता है, वह उसके व्यक्तित्व का, उसकी स्वतंत्रता का सही-सही उपयोग होने से रोकती है। इसी के परिणामस्वरूप औरतों का स्वभाव प्राकृतिक नहीं रह पाता, कृत्रिम हो जाता है। सिमोन द बोउवा ने बाद में अपनी पुस्तक ‘द सेकेण्ड सेक्स, में यही बात बड़ी खूबसूरती से कही है कि औरतें जन्म नहीं लेती, वे बनाई जाती है’। फोरियर की भूल यहाँ पर है कि वे यह नहीं मानते कि इस प्रकार की दासता से पुरुषों को फायदा होता है। इस बात को बाद में सिमोन द बोउवा ने पहचाना।
संक्षेप में स्त्री विमर्श की दृष्टि से फोरियर के ये विचार महत्वपूर्ण हैं कि स्त्री व पुरुष दोनों को अपनी-अपनी विशिष्टताओं के साथ विकसित होने का अवसर मिलना चाहिए। यह उसकी सूक्ष्म अंतर्रदृष्टि ही थी जिसने पहचाना कि औरतों को पैदा होने के समय से ही समाज ऐसी शिक्षा देता है कि उनका स्वभाव प्राकृतिक नहीं रह पाता। आज ‘नारीवाद’ का एक स्पष्ट स्वरूप है उसके मूल में ही यह तथ्य निहित है। समाज को फोरियर की यह चेतावनी भी है कि जिस समाज में महिलाओं के लिये स्वतंत्र रूप से विकास के अवसर नहीं होते, वह समाज प्रगति नहीं कर सकता।
यद्यपि चाल्र्स फोरियर को बहुत जाना-पहचाना नहीं गया लेकिन 18वीं सदी के इस विचारक की संवेदनशीलता ने समाज में व्याप्त स्त्री-पुरुष असमानता को पहचाना। वे फ्रांसीसी थे और फांस में उनके बाद की लेखिका सिमोन द बोउवा की पुस्तक ‘द सेकेण्ड सेक्स’ जो कि महिलाओं की स्थिति को समझाने वाली पहली पुस्तक है, पर उनकी छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
(Charles Fourier and feminism)
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