हमारी दुनिया
निडर अदिति
राजाजी टाइगर रिजर्व की डाक्टर अदिति शर्मा आदमखोर जानवरों से नहीं डरती बल्कि आदमखोर जानवर उनसे डरते हैं। 40 वर्षीय अदिति शर्मा राजाजी टाइगर रिजर्व में डाक्टर हैं व आदमखोर को बेहोश करके लोगों को व वन्य जीवों को सुरक्षा देती हैं। अदिति ने अभी तक दस गुलदारों व एक हाथी को बेहोश किया है। वे 15 मीटर की दूरी से आदमखोर गुलदार को ट्रैंक्युलाइज करती हैं। जब लोग आदमखोर से डरकर घर में छुप जाते हैं तब अदिति का काम शुरू होता है। 13 साल की उम्र से ही वे वन्य जगत की प्रेमी रही हैं। पशुओं से भी उन्हें प्रेम रहा है। परन्तु जंगली जानवरों से लोगों की रक्षा करने की जिम्मेदारी भी वे बखूबी समझती हैं। अदिति ने पंतनगर से पशु चिकित्सा में स्नातकोत्तर किया व वर्ष 2003 में पशुपालन विभाग में पशु चिकित्सक के रूप में काम शुरू किया। वर्ष 2015 में उन्होंने वन्य जीव संस्थान से पीजी डिप्लोमा किया व 2015 में राजाजी पार्क में प्रतिनियुक्ति में आ गयीं। तब से जैबैस्टिक (बेहोश करने वाली मशीन) से उनका रिश्ता सा हो गया।
नामुमकिन कुछ नहीं
केरल की सेलिना माईकल ने इस कथन को चरितार्थ किया है कि यदि महिला ठान ले तो उसके लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं है। 52 वर्षीय सलिना केरल के ककनाड नगरपालिका के शवदाह गृह में लोगों का अन्तिम संस्कार करती हैं। सेलिना ईसाई हैं परन्तु वह अन्तिम संस्कार के सभी नियमों को निभाती हैं। यह कार्य उनका शौक नहीं है। जब वह 2 साल की थीं, तब उनकी माँ का देहान्त हो गया। 12 साल की उम्र में पिता ने आँखें खो दी जिससे पढ़ाई छूटकर घर की जिम्मेदारी उन पर आ गयी। 22 साल की उम्र में एक दैनिक मजदूर से उनकी शादी हुई परन्तु वह भी शराब पीकर उन्हें पीटता था और कभी-कभी महीनों घर नहीं आता था। पिछले 19 सालों से वह घर नहीं आया। अपनी दो बच्चियों के पालन-पोषण के लिए उन्होंने अकेले ही संघर्ष किया। उन्होंने दैनिक मजदूर के तौर पर शमशान में कार्य शुरू किया। वे सहायक के रूप में चार साल तक कार्य करते हुए अन्तिम संस्कार की कार्यविधि सीखती रहीं। चार साल के बाद उन्होंने श्मशान कर्मी के रिटायर होने पर अन्तिम संस्कार का टेण्डर स्वयं के लिए माँगा। उन्हें एक शव के 1500 रुपये मिलते थे जिसमें 450 नगरपालिका को देने पड़ते। शेष में उन्हें लकड़ी व अन्य सामान का वहन स्वयं करना पड़ता। कभी-कभी जब चार शव शमशान में आते तब उन्हें कुछ रुपयों का फायदा होता। कई बार उन्हें रात तीन बजे भी जाना पड़ता। परन्तु उन्हें कभी डर नहीं लगा। वे कहती हैं कि यदि मन में ठान लिया जाय तो महिलाएँ कोई भी कार्य कर सकती हैं।
(Hamari Duniya Uttara Mahila Patrika)
मंडावर हुई शराब मुक्त
सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी राजस्थान की जनता शराब के खिलाफ एकजुट हो रही है। प्रदेश की महिलाओं ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है। पहले काछबली, रोजदा और अब प्रदेश की तीसरी, राजसमंद जिले की दूसरी ग्राम पंचायत मंडावर शराबमुक्त बनी है। इसके लिए 24 साल तक संघर्ष करना पड़ा। 1994 से शराब के खिलाफ लगातार आवाजें उठाई जा रही थीं। वर्ष 2015 से अभियान को गति मिली। मंडावर को शराबमुक्त करने का संकल्प लिया गया। सरपंच प्यारी देवी रावत की अगुवाई में पिछले करीब 6 माह से लोगों को शराबबन्दी को लेकर जागरूक किया गया। घर-घर जाकर लोगों को गीत, नाटक से प्रेरित किया। नतीजा प्रशासन ने पंचायत में शराबबन्दी के लिए 20 जनवरी को मतदान करवाने की घोषणा कर दी। तय तिथि पर पंचायत में मतदान हुआ। मतदान में ग्रामीण महिलाओं एवं पुरुषों ने खासा उत्साह दिखाया। गाँव की सैकड़ों महिलाएँ एवं पुरुष हाथ में अपनी आईडी कार्ड लेकर बूथ पर पहुँचे, जहाँ पर बारी-बारी से मतदान किया। यही नहीं, गाँव के विकलांग भी शराबबन्दी के मतदान में पीछे नहीं थे। ग्रामीणों ने शराब बन्द करने को लेकर हाँ अथवा ना में मतदान किया। कुल 1789 वोट पड़े। इनमें से 1623 वोट यानी 91 प्रतिशत शराबबन्दी कराने के पक्ष में रहे, जबकि मात्र 111 वोट विपक्ष में पड़े। इस तरह महिलाओं के संघर्ष की जीत हुई। इन सभी सामूहिक प्रयासों का ही नतीजा है कि शराबबन्दी की माँग अब पूरे प्रदेश में उठ रही है।
आजादी का सिलसिला
सऊदी अरब में महिलाओं को हज करने, पर्यटन या अन्य कार्यों के लिए बिना किसी साथी पुरुष के जाने पर पाबंदी पर कुछ नरमी आ गयी है। अब 25 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएँ सऊदी अरब बिना किसी पुरुष साथी या रिश्तेदार के जा सकेंगी। इसके लिए महिलाओं को अधिकतम 30 दिनों का पर्यटन वीजा मिलेगा जो इस बात की पुष्टि कर सकेगा कि वे अकेले अपनी इच्छानुसार सऊदी अरब में घूम सकेंगी। कमीशन के लाइसेंस विभाग के डायरेक्टर जनरल उमर अल-मुबारक ने यह जानकारी देते हुए कहा कि अभी भी 25 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को यह आजादी नहीं मिलेगी। सऊदी अरब में महिलाओं को ड्राइविंग की आजादी मतदान की आजादी के बाद मिली है। आशा है कि महिलाओं को उनके हक की सभी आजादियाँ जल्द ही मिलेंगी।
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पहली महिला लड़ाकू विमान पायलट: अवनि
22 वर्षीय अवनि चतुर्वेदी भारत की पहली महिला लड़ाकू विमान पायलट बनी है। अवनि ने हाल ही में मिग 21 ‘बाइसन’ लड़ाकू विमान को अकेले उड़ाकर इतिहास रचा है। अकेले लड़ाकू विमान उड़ाने वाली वह भारत की पहली महिला हैं। अवनि मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में एक कस्बानुमा गाँव देवलोंद से है। अवनि की स्कूली शिक्षा कस्बे के आदर्श उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय से हुई है। जो यह सिद्ध करता है कि हिन्दी माध्यम में सरकारी विद्यालय से और गाँव-कस्बों से भी विशेष प्रतिभाएँ विकसित होती हैं। फाइटर प्लेन चलाने वाली अवनि रंगोली सजाने, मेहेंदी लगाने से लेकर गीता-रामायण के पाठ और योग ध्यान में भी निपुण है। सत्तर साल के लंबे अरसे तक यही धारणा बनी रही कि लड़ाकू विमान उड़ाना महिलाओं के वश की बात नहीं है। पर अवनि का कहना है कि, ‘जब मैंने मिग-21 बाइसन’ लड़ाकू विमान को अकेले उड़ाया तो मुझे कहीं भी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि इसे उड़ाने में किसी तरह की मसल-पावर (बाहुबल) की जरूरत पड़ती है। हाँ यह एक तकनीकी काम है। इसे उड़ाने के लिए तकनीकी दक्षता, एकाग्रता और आत्मबल जरूरी है। बधाई अवनि।
महिला जैविक कृषक
आमतौर पर महिलाओं को कृषक नहीं माना जाता है। चाहे कृषि का सारा काम महिलाएँ ही सम्भालती हों, परन्तु उत्तराखण्ड की नैनीताल जिले के कोटाबाग, मनकंठपुर गाँव की सावित्री गरजोला ने यह साबित कर दिया कि कोई उनको कृषक का दर्जा दे न दे, वह बेहतर जानती हैं कि पारम्परिक या आधुनिक तकनीक से कृषि कैसे की जाती है। सावित्री गरजोला ने बंगलुरु में 19 से 21 जनवरी तक आयोजित आर्गेनिक इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में उत्तरी भारत से सर्वोत्तम जैविक किसान का द्वितीय सम्मान प्राप्त किया है। वे जैविक खेती के बल पर र्आिथक रूप से मजबूत बनीं हैं व दूसरों को भी पे्ररित कर रही हैं। वर्तमान में वे सामान्य से पाँच गुना अधिक दाम पर स्विट्जरलैण्ड को धान निर्यात कर रही हैं। कोटाबाग विकासखण्ड के करीब सात गाँव वर्तमान में जैविक खेती अपना रहे हैं। वे समय-समय पर प्रशिक्षण भी हासिल करती रहीं और अन्य ग्रामीणों को भी पे्रेरित करती रहीं। कुछ समय बाद जब अधिक लोग जैविक खेती से जुड़ गये उन्होंने हरियाणा की कोहिनूर कम्पनी से अनुबंध किया जो उनके उत्पादन को स्विट्जरलैण्ड भेजने लगी।
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समलैंगिकता पर पुनर्विचार
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अनुसार समलैंगिक यौन सम्बन्ध स्थापित करना अपराध की श्रेणी में आता है। इस पर कई जाने-माने व्यक्तियों ने याचिका दायर कर कहा है कि वे उस विशिष्टता की मान्यता चाहते हैं, जो मानवीय इच्छा का हिस्सा है। जिस पर 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस कानून को बदलकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। परन्तु केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी और सुप्रीमकोर्ट ने पुन: 2013 में हाईकोर्ट के आदेश को पलटकर समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी में बरकरार रखा था। अब सुप्रीमकोर्ट इस विषय पर फिर से विचार करने को तैयार हो गया है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक कुमार मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि इस मामले में संवैधानिक मुद्दे जुड़े हैं। इसलिए इस पर फिर से विचार करने की जरूरत है व इस पर बहस जरूरी है। किसी भी व्यक्ति या समूह को कानून के डर के माहौल में नहीं जीना चाहिए। उसे अपनी पसंद या नापसंद को कहने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सामाजिक नैतिकता वक्त के साथ बदलती है इसलिए समय के साथ कानून बदलने की भी जरूरत है।
अपशब्द पर फटकार
महिलाओं के प्रति बोले जाने वाले अपशब्दों का यदि महिलाएँ स्वयं विरोध नहीं करेंगी तो यह परम्पराएँ मानी जाने लगेंगी। कोर्ट जैसी जगहों पर भी महिलाओं के प्रति अपशब्दों का प्रयोग हो रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट में रोहिणी आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के वकील अनमोल कुलकर्णी ने एक मामले में तर्क देते हुए कहा कि नारी नर्क का द्वार है। इस बात पर कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने वकील को फटकारते हुए कहा कि चुप रहिए, जुबान सम्भालकर बोलिए। यह आपकी आध्यात्मिक क्लास नहीं है। जहाँ प्रवचन दे रहे हैं, आप कौन से युग में रह रहे हैं। वकील के समर्थकों को भी उन्होंने कोर्ट से बाहर कर दिया। उनका यह कदम वाकई सराहनीय है।
(Hamari Duniya Uttara Mahila Patrika)
प्रस्तुति: पुष्पा गैड़ा