महिला एकता परिषद्
अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट-भिकियासैण क्षेत्र में सक्रिय महिलाओं के संगठन महिला एकता परिषद् की शुरूआत वर्ष 1992 में क्षेत्रीय स्तर पर हुए आन्दोलन के समय से हो गयी थी। उस समय सुरईखेत क्षेत्र के 5-6 गाँवों की जनता द्वारा पानी, बिजली, शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की माँग पर आन्दोलन किया गया। इस आन्दोलन में ग्रामीण महिलाओं की दिन-रात भागीदारी रही। महिलाओं के इस आन्दोलन में सक्रिय होने का मुख्य कारण पानी की समस्या थी। इसी महत्वपूर्ण मुद्दे को लेकर वे घर व गाँव से बाहर निकल आन्दोलन में कूदी थीं। पेयजल योजनाओं की स्वीकृति के बाद जब आन्दोलन समाप्त हुआ तो महिलाएँ पुन: घर के कामकाज तक ही सीमित रहने लगीं क्योंकि आन्दोलन की रूपरेखा को तय करने व निर्णय लेने में पुरुष वर्ग ने प्रभावी भूमिका निभायी थी। महिलाओं के इस प्रकार के आन्दोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने से ही यह आन्दोलन सफल रहा था।
वर्ष 1992 से सकारात्मक, रचनात्मक व वैचारिक बदलाव के साथ धीरे-धीरे महिलाओं को एकत्रित कर जागरूक किया जाने लगा। क्षेत्रीय स्तर पर सीड संस्था द्वारा उत्तराखण्ड सेवा निधि अल्मोड़ा के मार्गदर्शन में महिला मंगल दलों के गठन का प्रयास किया जाने लगा। इन मंगल दलों की महिलाओं द्वारा सामाजिक बुराइयों, कुरीतियों, स्थानीय पूँजीवादी व्यवस्था व भेदभाव का विरोध किया जाने लगा। जिसके कारण कुछ पुरुष महिलाओं के आगे बढ़ने का विरोध करने लगे। लेकिन महिलाओं ने हार नहीं मानी। वे निरन्तर राज्य आन्दोलन, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा व्यवस्था, पानी की समस्या, महिला उत्पीड़न सहित अनेक मुद्दों पर अपनी बात सामने रखने लगीं। सम्मेलनों में वे शराब के विरोध व ग्राम स्तर पर होने वाले कार्यों में हो रही मनमानी पर भी प्रश्न खड़े करने लगीं।
1996 में पंचायती चुनावों में भागीदारी करके ग्राम स्तरीय महिला संगठनों ने एक नयी पहल की शुरूआत की। सामान्य सीटों पर भी कई संगठनों ने महिलाओं को प्रत्याशी बनाया। उनके द्वारा कई ग्राम प्रधानों की कार्य प्रणाली पर प्रश्न उठाये गये। इन कारणों से भयभीत होकर कुछ स्वार्थी व रूढ़िवादी लोगों द्वारा ग्राम स्तर पर संगठनों को तोड़ने का प्रयास किया गया। कुछ संगठन टूट भी गये लेकिन कुछ संगठनों की महिलाओं ने आगे बढ़ने की हिम्मत की। ऐसे में इन्हें एक सामूहिक क्षेत्रीय महिला ताकत व सहयोग की जरूरत महसूस हो रही थी। इस कारण समय-समय पर गाँव स्तरीय बैठकों में स्थानीय सामाजिक बुराइयों व रूढ़िवाद के साथ-साथ पूँजीवाद को तोड़ने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर ग्रामीण महिलाओं का एक साझा संगठन बनाये जाने की बात आ रही थी। विचार-विमर्श के उपरान्त गाँवों के संगठनों के अनुभवों के आदान-प्रदान व सामूहिक ताकत के साथ बदलाव लाने के उद्देश्य से दिसम्बर 1996 में 18 स्थानीय महिला मंगल दलों की 557 महिला सदस्यों का साझा संगठन महिला एकता परिषद् का गठन किया गया।
(Women Unity Council)
महिला एकता परिषद् के उद्देश्य
– ग्रामीण स्तर पर जल, जंगल, जमीन से जुड़ी महिलाओं में सामुदायिक विकास की सोच पैदा करना।
– महिलाओं का सामाजिक, राजनीतिक व बौद्धिक विकास करना।
– पंचायत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु उन्हें जागरूक करना व प्रशिक्षण देना।
– क्षेत्रीय स्तर पर समस्याओं को चिन्हित कर उनके समाधान के लिए पहल करना।
– बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कार्य करना।
– गाँव व क्षेत्र के समन्वित विकास की सोच के साथ टिकाऊ विकास की नीति को ध्यान में रखकर उन्हें जागरूक करना।
– गाँव की प्रत्येक महिला के व्यक्तित्व व महत्व को आगे लाकर उसकी अपनी पहचान बनाना।
महिला एकता परिषद् का गठन मुख्य रूप से क्षेत्रीय सामूहिक महिला शक्ति के रूप में प्रकट होने के उद्देश्य से किया गया था परन्तु संघर्षशील महिलाओं का संगठन बनने के कारण यह क्षेत्रीय स्तर पर सभी समस्याओं को सामने लाने लगा है। परिषद् का मानना है कि महिलाओं के सबलीकरण हेतु मात्र र्आिथक सम्पन्नता ही मुद्दा नहीं होना चाहिए। जैम, जैली व बड़ी बनाने जैसी तमाम छोटी-छोटी योजनायें महिलाओं को उलझाने के लिए चलायी जाती हैं। यदि हमारी जल, जंगल व जमीन की व्यवस्था ठीक हो जाय तो हमारा आर्थिक पक्ष मजबूत रहेगा। क्योंकि इन पर कार्य करने का हमारा बचपन से अनुभव है। नीतियों के खिलाफ लड़ने की हिम्मत होनी चाहिए। महिलाओं को सामाजिक व राजनीतिक रूप से अपने विचारों को रखना चाहिए। वे इतनी सक्षम हो जांय कि अपनी दूरर्दिशता से ग्राम, क्षेत्र व देश की विकास नीतियों को अपने समाज के अनुरूप बना सकें। परिषद् का सोचना है कि समन्वित व टिकाऊ विकास तभी होगा जब ग्रामीणों को योजना न मिले बल्कि उनकी सोच से बनी योजनाओं को स्वीकृति मिले। महिला एकता परिषद् सबको शिक्षा एक ही शिक्षा पर आधारित सोच रखती है।
महिला एकता परिषद् में सामूहिक रूप से निर्णय लिये जाते हैं। क्षेत्रीय ग्राम स्तर पर गठित 62 महिला मंगल दलों की 3200 महिला सदस्य वर्तमान में परिषद् से जुड़ी हैं। दो वर्ष में पदाधिकारियों का चुनाव आम सदस्यों द्वारा किया जाता है। परिषद कार्यकारिणी में पदाधिकारी व सदस्य के रूप में क्षेत्रीय महिला को शामिल किया जाता है। कुछ स्थानीय पुरुषों व क्षेत्र से बाहर की महिलाओं को सलाहकार मण्डल में लिया जाता है। प्रत्येक गाँव से एक सदस्य को कार्यकारिणी में शामिल किया जाता है। प्रति सदस्य 5 रुपये सदस्यता शुल्क लिया जाता है। किसी विशेष कार्यक्रम पर सहयोग भी लिया जाता है। महिला एकता परिषद् कार्यकारिणी की वर्ष में दो बैठकें और 10-15 गाँवों के महिला मंगल दलों के सदस्यों के सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त दो वर्ष में एक बार सामूहिक सम्मेलन होता है। जिसमें कार्यकारिणी का चुनाव व दो वर्ष के कार्यक्रमों पर चर्चा होती है। बैठकों व सम्मेलनों का आयोजन प्रत्येक वर्ष अलग-अलग गाँवों में किया जाता है। इसके आयोजन की जिम्मेदारी ग्राम स्तर पर गठित महिला मंगल दलों द्वारा ली जाती है और दो वर्ष में होने वाला मुख्य सम्मेलन महिला एकता परिषद द्वारा आयोजित किया जाता है।
(Women Unity Council)
कार्यक्रम
महिला एकता परिषद् द्वारा पिछले 20 वर्षों में 6000 से अधिक ग्राम स्तरीय बैठकें, 72 कार्यकारिणी बैठकें, 52 क्षेत्रीय व सामूहिक सम्मेलनों के साथ-साथ 3000 महिलाओं का सम्मेलन एक राज्य स्तरीय आयोजित किया गया है। पंचायती राज, लिंग भेद, सूचना का अधिकार, किशोरी शिक्षा, मनरेगा व ग्रामीण सतत विकास पर 62 कार्यशालाओं का भी आयोजन हुआ है। अपने अधिकारों के लिए महिला परिषद् के सदस्यों द्वारा सुरईखेत, बटुलिया, झंडीधार, दौला व कानेखेत के आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गयी।
वर्ष 2003 के पंचायती चुनाव में परिषद् के सदस्यों द्वारा प्रत्येक गाँव में भागीदारी की गयी। महिला आरक्षित सीट के अलावा सामान्य सीटों पर भी महिलायें चुनाव लड़ीं। जिसमें ग्राम सनणों की श्रीमती पुष्पा रावत जो अन्त्योदय परिवार की एकल व निरक्षर महिला थी, सामान्य सीट पर ग्राम प्रधान का चुनाव जीती। इस चुनाव में महिलाओं की एकजुटता व उनकी शक्ति स्पष्ट दिखायी देती है। इसके अलावा इस क्षेत्र में 8 ग्राम प्रधान, 3 क्षेत्र पंचायत सदस्य व 19 वार्ड सदस्य महिला परिषद से जुड़ी महिलाएँ ही बनी। भिक्यासैण ब्लॉक प्रमुख का चुनाव महिला एकता परिषद की उपाध्यक्षा श्रीमती दुर्गा बिष्ट द्वारा परिषद के मार्गदर्शन में लड़ा गया परन्तु कड़ी टक्कर में वे मात्र दो वोटों से हार गयीं।
2008 के त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव में महिला एकता परिषद से जुड़ी महिलाओं ने पुन: बढ़-चढ़कर भागीदारी की। सामान्य सीटों पर भी चुनाव लड़ने की हिम्मत परिषद की कई महिलाओं द्वारा की गयी। सामान्य सीटों पर भी 3 महिलाएँ प्रधान बनीं। इसके अतिरिक्त आरक्षित सीटों पर 11 महिलाएँ प्रधान, 5 क्षेत्र पंचायत सदस्य तथा 62 पंच बनीं। 2014 के पंचायती चुनाव में महिलाएँ अपनी सामाजिक व राजनैतिक जागरूकता के साथ पंचायत में उतरीं। परिषद की महिलाओं की अलग पहचान पूरे क्षेत्र में थी। बिना शराब व पैसा बाँटे ये महिलाएँ चुनाव लड़ीं। 6 ग्राम प्रधान, 2 क्षेत्र पंचायत सदस्य 70 पंच बनीं। शिलंग की ग्राम प्रधान व परिषद संयोजिका हेमा नेगी भिक्यासैण ग्राम प्रधान संगठन की अध्यक्ष भी चुनी गयी।
महिला एकता परिषद द्वारा 2007 के विधान सभा चुनाव में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे परिवार की सदस्य श्रीमती हेमा नेगी संयोजिका महिला एकता परिषद को सामूहिक रूप से भिक्यासैण विधानसभा से चुनाव लड़ाया गया। जिसके लिए प्रत्येक सदस्य ने चंदे के रूप में 10 रुपये से 100 रुपये तक सहयोग राशि दी। इस चुनाव में हर संगठन की महिलाएँ अपने-अपने गाँव से प्रचार-प्रसार हेतु निकल पड़ीं। उत्तराखण्ड महिला परिषद् की सदस्यों द्वारा र्आिथक सहयोग के साथ-साथ प्रचार-प्रसार में भरपूर सहयोग दिया गया। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में हेमा नेगी ने 1100 मत पाकर कुल नौ उम्मीदवारों में चौथा स्थान प्राप्त किया। इस चुनाव में महिलाओं में एक नया आत्मविश्वास व उत्साह देखने को मिला।
2012 के विधान सभा चुनाव में महिला एकता परिषद द्वारा शराब व पैसा बाँटने वालों को वोट न देने हेतु ग्रामीण स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया गया।
महिला एकता परिषद सामाजिक बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। आज की लड़की कल की महिला की सच्चाई को समझते हुए ग्राम स्तर पर कौशल की शिक्षा कार्यशालाओं, गोष्ठियों व सम्मेलनों के माध्यम से दी जा रही है। किशोरियों के आत्मविश्वास को बढ़ाने के उद्देश्य से उनका क्षेत्रीय सामूहिक संगठन किशोरी एकता परिषद् का गठन किया गया है। जिसमें 37 गाँवों की 645 किशोरियाँ सदस्य हैं। इण्टर पास किशोरियों को परिषद द्वारा 6 माह के जीवन कौशल प्रशिक्षण हेतु 2 को गाँधी आश्रम वर्धा व 10 को अरविन्द आश्रम दिल्ली भेजा। जहाँ वे कौशल शिक्षण प्राप्त कर समाज में अहम भूमिका निभा रही हैं। गरीब लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक जागृति अभियान चलाया गया जिसके अन्तर्गत 11 लड़कियों को पढ़ाई की फीस व किताबें उपलब्ध कराकर उन्हें पुन: विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया। इसमें से र्आिथक कमजोरी के कारण 8 ने हाईस्कूल व तीन ने आठवीं के बाद विद्यालय जाना बन्द कर दिया था लेकिन ये लड़कियाँ आगे पढ़ना चाहती थीं।
(Women Unity Council)
शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से परिषद द्वारा मध्याह्न भोजन से पहले अध्यापक की माँग करते हुए भिक्यासैण में रैली निकालकर ब्लॉक मुख्यालय में धरना दिया गया। अध्यापकों की पूर्ति व शिक्षा व्यवस्था को सुधारने हेतु राजकीय इंटर कालेज जालली, बटुलिया व बिन्ता में धरना प्रदर्शन किया गया। धरने के बाद जिला स्तरीय अधिकारियों द्वारा सुधार हेतु पहल की गई।
ग्रामीण महिलाओं की दशा व दिशा जानने तथा उन्हें जागृत करने के उद्देश्य से परिषद् द्वारा नये क्षेत्रों में 2008 में 16 दिवसीय तथा 2009 में 8 दिवसीय पदयात्रा कर 48 गाँवों की महिलाओं से विचार-विमर्श कर उन्हें समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु पहल करने की प्रेरणा दी गयी।
परिषद द्वारा कन्या भ्रूण हत्या रोकने हेतु जागरूकता अभियान चलाया गया। जिसके अन्तर्गत ग्राम स्तर पर गोष्ठियाँ, कार्यशालाएँ, रैली व संगोष्ठियों का आयोजन किया गया। साथ ही शादी के वक्त वर वधू से एक वादा-पत्र भराया जाता है कि वे लड़के की चाहत में कभी कन्या भ्रूण हत्या नहीं करायेंगे तथा लड़के व लड़की को समान रूप से आगे बढ़ने का मौका देंगे। वादा-पत्र सैकड़ों में भरे जा चुके हैं।
क्षेत्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी उल्लेखनीय कार्य किये गये। महिलाओं द्वारा चीड़ के पौधों के स्थान पर बाँज के पौधे स्वत: लगाये गये। जिसमें से कई गाँवों में आज बाँज के जंगल लहरा रहे हैं। साथ ही सरकारी विभागों को भी बाँज व चौड़ी पत्तीदार पौधे लगाने हेतु बाध्य किया गया। महिलाओं पर अत्याचार व उनके उत्पीड़न पर भी समय-समय पर आवाज उठायी गयी। कई विवादों को कोर्ट कचहरी जाने से रोक कर ग्राम स्तर पर ही सुलझाने में पहल की गयी।
(Women Unity Council)
महिला एकता परिषद से जुड़ी महिलाएँ लोकतांत्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत अपनी समस्याओं के समाधान हेतु सक्रिय हुई हैं। सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत कई विभागों से सूचना माँगकर सूचना को सार्वजनिक किया है। क्षेत्रीय स्तर पर पानी, सड़क, बिजली व अस्पताल हेतु आन्दोलनों में सक्रिय भूमिका महिलाओं ने निभाई है। उत्तराखण्ड के ग्रामीण स्तर पर बढ़ते अपराधों पर महिला परिषद से जुड़ी महिलाएँ चिन्तित हैं। गाँवों में महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ रहे हैं। अप्रैल 2008 में अध्यापिका श्रीमती जशोदा देवी की दोपहर 12 बजे कुछ अज्ञात लोगों द्वारा गला काटकर हत्या कर दी गयी। अपराधी के न पकड़े जाने पर क्षेत्रीय स्तर पर महिलाओं का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। महिलाओं में दिन दहाड़े भी दहशत घर कर गयी। जब दो माह तक किसी ने अपराधियों के पकड़े जाने की आवाज नहीं उठायी तो 28 मई 2008 को महिला परिषद से जुड़ी लगभग 200 महिलाओं ने एक बैठक की। 10 जून तक अपराधी न पकड़े जाने पर 18 जून को भिक्यासैण राजमार्ग पर चार घंटे का धरना किया और मुख्यमंत्री महोदय को ज्ञापन दे हत्याकाण्ड की जाँच सीबीआई से कराने की माँग की। घिराव व जाम से भी कुछ न होने पर 4 अगस्त 2008 को जिला मुख्यालय में जिलाधिकारी के कार्यालय पर लगभग 350 ग्रामीण महिलाओं ने धरना देकर व जुलूस निकालकर यह संकेत दिया कि हम चुप बैठने वाले नहीं हैं। जिसके तहत एक माह के अन्तर्गत अपराधी पकड़ने का आश्वासन जिलाधिकारी महोदय द्वारा दिया गया। एक माह बाद जशोदा देबी हत्याकाण्ड के अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया गया।
पिछले वर्षों में ग्रामीण महिलाओं द्वारा कठिन परिश्रम से की गई खेती-बाड़ी को जंगली जानवरों व आवारा छोड़े गये जानवरों द्वारा बहुत नुकसान किया गया। जिस समस्या हेतु बार-बार सरकार को लिखा गया लेकिन सरकार द्वारा किसी प्रकार की सुनवाई नहीं की गयी। इन जानवरों की व्यवस्था करने हेतु आन्दोलन किया गया जिसके तहत सड़कों पर उतर कर चक्काजाम करने पर जानवरों को उचित स्थान पर भेजने का कार्य सरकार द्वारा किया गया। लेकिन साथ ही परिषद से जुड़ी व अन्य महिलाओं पर सरकार द्वारा मुकदमे लगा दिये गये। जिसके खिलाफ भी आन्दोलन चलाया गया। आन्दोलन के माध्यम से सरकार को मुकदमे वापस लेने हेतु बाध्य कर दिया। जानवरों की समस्या का स्थाई समाधान न होने पर पुन: 250 महिलाओं के साथ तहसील का घिराव किया गया। क्षेत्रीय स्तर पर गौ सदन बनाने के आश्वासन के बाद महिलाओं द्वारा तहसील का घिराव समाप्त किया गया। समय पर गौ सदन न बनने पर पुन: द्वाराहाट तहसील का घिराव किया गया। जिसके उपरान्त एस.डी.एम. द्वाराहाट द्वारा आवारा जानवरों को गौ सदन भेजने का अभियान चलाया गया।
बन्दर व सुअरों की बढ़ती संख्या से ग्रामीण स्तर पर चौपट हो रही खेती को बचाने हेतु सरकार को कई बार ज्ञापन भेजा गया। कोई समाधान न होने पर 8 मार्च 2016 को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन द्वाराहाट तहसील पर 350 से अधिक महिलाओं द्वारा एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया गया जिसमें कहा गया कि यदि महिलाओं का सम्मान करना है तो हमारे गाँव व खेती को बचाओ।
(Women Unity Council)
मनरेगा के अन्तर्गत रोजगार मिलना मात्र नारा ही रह गया। कई गाँवों में महिलाओं को वर्ष में एक दिन का भी रोजगार नहीं मिला। जिन्हें मिला उन्हें पैसा नहीं मिला। महिला एकता परिषद की बैठक में यह समस्या जब सामने आयी तो परिषद के बैनर तले 15 गाँवों की सैकड़ों महिलाओं ने मनरेगा योजना के अन्तर्गत प्रारूप 6 के फार्म भरकर सामूहिक रूप से द्वाराहाट ब्लॉक में जमा कराये। 20 दिन तक रोजगार न मिलने पर भत्ता देने की माँग के साथ पुन: ब्लॉक में आवेदन करने पहुँचे। भत्ता आवेदन स्वीकार नहीं किये जाने पर जिलाधिकारी तथा कई राज्य व केन्द्र स्तरीय मंत्रियों को लिखा गया। जिलाधिकारी द्वारा जिले स्तर से एक जाँच टीम भेजी गयी। जिसके उपरान्त रोजगार के साथ-साथ कार्य का उचित पैसा प्राप्त हुआ। अब महिलाएँ स्वत: रोजगार फार्म भरकर जमा करती हैं।
महिला एकता परिषद ने शराब के विरुद्ध वर्ष 2014 में 52 गाँवों में पदयात्रा के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाया गया। ग्रामीण स्तर पर गाँवों में बिक रही अवैध शराब को पकड़ने की पहल महिलाओं द्वारा की गयी। ग्रामीण क्षेत्र में गाँव में आ रही शराब को स्वत: ग्रामीण महिलाओं द्वारा पकड़ा गया। जिसकी सूचना महिलाओं ने राजस्व पुलिस को दी और पुलिस ने मौके पर पहुँचकर शराब को कब्जे में लिया और अपराधी के नाम मुकदमा दर्ज करा दिया।
महिला एकता परिषद द्वारा साहूकारी व्यवस्था के खिलाफ सामूहिक बचत आन्दोलन के माध्यम से शीत युद्ध चला रखा है। इस आन्दोलन के तहत 53 गाँवों में सामूहिक बचत आन्दोलन चलाया जाता है। जिसमें महिलाएँ 20 रुपये से 50 रुपये तक की धनराशि अपने कोश में जमा कर स्वत: कर्ज लेती व देती हैं। इस आन्दोलन के तहत कई गाँवों में 2,00,000 रुपये तक जमा है और पूरा का पूरा पैसा कर्ज पर गया है। महिलाओं का यह अपना आन्दोलन, अपने से, अपने लिए खुद के द्वारा चलाया जा रहा है। महिला एकता परिषद द्वारा उत्तराखण्ड महिला परिषद सहित कई अन्य संगठनों के माध्यम से 7 स्वास्थ्य शिविर लगाये गये हैं जिसमें डाक्टरों द्वारा नि:शुल्क जाँच के साथ-साथ दवाइयाँ भी दी गयी हैं। गम्भीर रूप से बीमार गरीब महिलाओं का आगे ले जाकर मुफ्त में इलाज भी कराया गया है।
जून 2013 में जब गढ़वाल क्षेत्र में भयंकर आपदा आयी थी तब महिला एकता परिषद द्वाराहाट-भिकियासैण की महिलाओं ने तय किया कि हमें भी उस क्षेत्र के लिए कुछ र्आिथक मदद करनी चाहिए। सभी महिला संगठनों ने अपने संगठनों से सामूहिक चन्दा एकत्र किया। कुछ व्यक्तिगत लोगों ने भी चन्दा दिया। इस प्रकार लगभग 52000 रुपये की धनराशि महिला परिषद के पास जमा हो गयी। इस धनराशि को परिषद के दो सदस्यों द्वारा जोशीमठ क्षेत्र में जाकर उर्गम घाटी की विशेष आवश्यकता वाली 12 महिलाओं को वितरित किया गया। महिला एकता परिषद राज्य स्तर पर गठित उत्तराखण्ड महिला परिषद का क्षेत्रीय संगठन है। उत्तराखण्ड महिला परिषद द्वारा राज्य स्तर पर आयोजित गोष्ठियों व कार्यशालाओं में ये महिलाएँ प्रतिभाग करती रहती हैं। परिषद का प्रयास रहता है कि गाँव में प्रत्येक महिला घर व गाँव से निकलकर राज्य स्तर की बैठकों व गोष्ठियों में प्रतिभाग कर अपनी बात को रखे। परिषद से जुड़ी 2000 से अधिक महिलाएँ अभी तक राज्य व राष्ट्र स्तरीय गोष्ठियों में प्रतिभाग कर चुकी हैं।
उत्तराखण्ड के ग्रामीण जीवन की रीढ़ की हड्डी समझी जाने वाली ये महिलाएँ समाज के निर्माण में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। 1992 में एक-दो गाँवों से शुरू हुई इस पहल ने आज 60 से अधिक गाँवों में अपनी दस्तक दे दी है। आज परिषद् से जुड़ी महिलाओं की सोच बदलने लगी है। महिलाओं के वजूद को महत्व देते हुए सतत व टिकाऊ विकास की नीति में वे भूमिका निभा रही हैं। उनमें आत्मविश्वास के साथ नेतृत्व करने की क्षमता विकसित हुयी है।
(Women Unity Council)
उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika