उत्तरा का कहना है
कुछ-कुछ समय के अन्तराल में आवाजें उठती रहती हैं कि देवभूमि उत्तराखण्ड में लड़कियों का व्यापार हो रहा है, यह गर्हित है, निन्दनीय है, यह बन्द होना चाहिए आदि आदि। कुछ ही समय में ये बातें वहीं की वहीं दफन भी हो जाती हैं।
हाल फिलहाल फिर ये बातें सुर्खियों में आईं। देश के कई हिस्सों से देश के ही कुछ हिस्सों में लड़कियों का देह व्यापार में ले जाया जाना, यह कोई नई बात नहीं है। हमारा इतिहास, फिल्में, कहानियां इन किस्सों से भरी पड़ी हैं कि कब कौन बालिका या युवती किस तरह उठाई गई और दिल्ली, कलकत्ता या मुम्बई के बाजार में बेच दी गई। वेश्यावृत्ति में लड़कियों को धकेलने के बड़े-बड़े धन्धे अब तो देश के हर छोटे-बड़े शहर में हैं। उन्हें सेक्स रैकेट का नाम दें या मानव तस्करी का, कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। उत्तराखण्ड में यह समस्या एक भिन्न रूप में भी है। हो सकता है, देश के अन्य भागों में भी हो। यहां से विवाह के नाम पर लड़कियां ले जाई जाती हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि प्रदेशों से लोग बिचौलियों के माध्यम से गरीब लड़कियों के माता-पिता को बहला-फुसलाकर मन्दिर में विवाह की रस्म कराकर ले जाते हैं और बाद में इन लड़कियों को वेश्यावृत्ति में धकेल दिया जाता है।
एक घटना के जरिये इसे समझने की कोशिश की जाय। नैनीताल जिले के बेतालघाट क्षेत्र की एक 20 वर्षीया युवती का विवाह उसके माता-पिता ने हरियाणा के जींद निवासी व्यक्ति से कर दिया। लड़की ससुराल गई तो देखा कि सम्पन्न परिवार है, सब कुछ ठीक ठाक है। पर कुछ ही दिन बाद कई लोग उसे देखने के लिए उनके घर आने लगे। धीरे-धीरे युवती को ज्ञात हुआ कि उसे बेचने की तैयारी हो रही है। उससे कहा जाने लगा कि तुझे हम खरीदकर लाये हैं। उसके साथ मार-पीट की जाने लगी। उसके मां-बाप को भी मारने की धमकी दी जाने लगी। किसी तरह परीक्षा देने के बहाने वह लड़की अपने मायके आने में सफल हुई पर अपने ससुरालियों से यह वायदा भी उसने किया कि मायके जाकर वह 10-15 लड़कियों का इन्तजाम उनके लिए करेगी जो विवाह के बहाने हरियाणा ले जाई जा सकें। मायके आने पर युवती ने बेतालघाट थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई परन्तु 20-25 दिन गुजर जाने के बाद भी जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो वह जिला मुख्यालय में आकर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से मिली। युवती इतनी घबराई हुई थी कि गांव से रामनगर जाकर परीक्षा देने का साहस नहीं जुटा सकी कि कहीं उसके ससुरालवाले उसे पकड़कर न ले जायें। केस दर्ज होने के बाद भी पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई। हरियाणा से जब उसका पति उसे लेने आ पहुंचा, तब भी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। युवती अपनी ही जिद से मायके में रह गई।
इस युंवती के शरीर पर कोई चोट नहीं है। इसके साथ बलात्कार भी नहीं हुआ है। ससुरालवालों के द्वारा इसे बेचा भी नहीं जा सका है, यद्यपि तैयारी चल रही थी। तो आखिर पुलिस इस केस में करेगी क्या ? कार्रवाई होने के लिए जरूरी था कि उसे मारा गया होता, बेचा गया होता या उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया होता। अगर वह सही सलामत है तो सब कुछ ठीक है। फिर हाय तौबा करने की क्या जरूरत है ? उसी गांव की एक अन्य युवती का विवाह इसी युवती के देवर से किया जानेवाला है। अभी भी इस तरह का कोई सोच नहीं है कि उस विवाह को रोक दिया जाये।
ये विवाह बिचौलियों के माध्यम से सम्भव हो रहे हैं। बिचौलियों को 30-40 से 50 हजार तक रुपया मिल जाता है। वे नहीं चाहेंगे कि इस तरह के विवाह रुक जायें। माता-पिता भी विवाह के आयोजन के खर्च से बच जाते हैं। उनके लिए लड़की एक बोझ है। बोझ कहीं भी उतार दिया जाये, सिर तो हल्का होगा ही।
editorial
समाज लड़की को क्या समझता है ? युग-युगों से वह उपेक्षणीय रही है। उसके अपमान का, तिरस्कार का, प्रताड़नाओं का समूचा इतिहास हमारे सामने है। एक और लड़की बेच दी गई या वेश्यावृत्ति में धकेल दी गई तो कौन सा पहाड़ टूट गया ? यही सोच हमारे समाज का है। जब शादी कर दी गई तो अपने ससुराल जाये। यहां क्यों लौट रही है ? वे चाहे मारें, चाहे काटें, चाहे बेचें, चाहे रखें- अब तो वह उन्हीं की सम्पत्ति है। यूं भी, बहुत छोटी उम्र में लड़कियों की शादी और ससुराल के कष्टों से उनका भागकर मायके आ जाना, ऐसे किस्से भी हमारे समाज के अवचेतन में रचे-बसे हैं। पुलिसवाले भी सोचते हैं भागकर आई है, चली जायेगी कुछ दिन बाद। माता-पिता भी सोचते हैं, जाना तो ससुराल ही है लड़की ने, मायके में तो जिन्दगी कट नहीं सकती। यही मानसिकता उन लोगों की भी है जो कानून के रक्षक हैं, व्यवस्थाओं के संचालक हैं, समाज के प्रवक्ता हैं।
विवाह के समय माता-पिता द्वारा कन्या शुल्क लेने की प्रथा भी समाज में पुरातन है, वैसे ही जैसे दहेज देने की प्रथा। दहेज प्रथा के कारण भी लड़की को जिन्दा मारा जा सकता है और कन्या शुल्क की प्रथा के कारण भी। इन प्रथाओं से लड़कियों को कब छुटकारा मिलेगा ?
इस घटना में लड़की बचकर आ गई। मुश्किल यह है कि जब तक उसे बेच नहीं दिया जाता या मार नहीं दिया जाता, वह अपराध नहीं बनेगा और उस पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। हरियाणा या राजस्थान या किसी अन्य शहर में कोई लड़की मार भी दी जाती है तो गरीब माता-पिता क्या कर सकते हैं ? एक लड़की कह रही है कि पिता की गरीबी के कारण मैंने विवाह के लिए हामी भरी, ससुराल में रोज उसे अलग-अलग आदमियों से मिलाया गया, उनके साथ जाने को कहा गया, शारीरिक सम्बन्ध बनाने को कहा गया, मारा-पीटा गया, माता-पिता को मारने की धमकी दी गई, दहेज लाने को कहा गया, 10-15 लड़कियों की व्यवस्था करने का आश्वासन देने पर वह मायके आ पाई तो इस पर कार्रवाई करके आगे न बढ़ने के पीछे क्या सोच है हमारे पुलिस-प्रशासन का ? लड़की की गवाही पर बिचौलियों को क्यों नहीं पकड़ा गया ? इससे पूर्व कितनी लड़कियों का वे सौदा कर चुके हैं, यह क्यों नहीं मालूम किया गया ? इस युवती ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसके ससुरालवालों ने उससे कहा कि वे अन्य गावों से लड़कियों को ले जाकर बेच चुके हैं। उन गाँवों में, जिनके कि नाम दिये गये हैं, इस बात की तफतीश क्यों नहीं की गई? क्यों सबकी ओर से युवती पर फिर वहीं लौटने के लिए दबाव बनाया जाता है ? लड़की की गवाही पर विश्वास क्यों नहीं किया जाता ? लड़की पर अविश्वास, औरतजात पर अविश्वास, यह भी हमारे समाज की एक फितरत है, जो उसकी तमाम कार्रवाइयों में झलकती है।
देवभूमि उत्तराखण्ड का गुणगान करती रहने वाली यहां की सरकारों से या नेताओं से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे इस तरह के विवाहों के पक्षधर हैं या ऐसे विवाहों को रोकना चाहते हैं ? यह सवाल समाज से भी पूछा जाना चाहिए।
सरकारें अपना दायित्व नये-नये विभाग या सैल बनाकर पूरा कर लेती हैं। पुलिस विभाग के तहत भी वुमैन ट्रैफिकिंग सैल बना दिया गया है जो देखेगा कि देह-व्यापार के लिए महिलाओं को खरीदा-बेचा या उनको इधर-उधर लाया-ले जाया तो नहीं जा रहा है। विवाह के नाम पर लड़कियों की खरीद-फरोख्त को अभी वुमैन ट्रैफिकिंग के अन्तर्गत नहीं माना जा रहा है। शासन-प्रशासन को चाहिए कि इस दिशा में पहल करें कि कैसे इन मामलों को वुमैन ट्रैफिकिंग के अन्तर्गत लाकर कार्रवाई की जाय। केवल भव्य सेमीनार आयोजित करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेना तो उचित नहीं। अगर कोई ठोस काम नहीं होगा तो इन नये-नये विभागों या सैलों से क्या लाभ है ?
महिला-तस्करी का मामला बनाते हुए यदि ऐसी घटनाओं पर कार्रवाई होती है तो लड़कियों के माता-पिता, बिचौलिये जो कि उसी गांव के या आस-पास के गाँवों के हो सकते हैं, औरतें लोग या रिश्तेदार जो उस विवाह में शामिल हुए थे, को भी अपराधी माना जा सकता है। ऐसा होने पर सभी इन कार्रवाइयों का विरोध करेंगे, जिसके लिए राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश भी होगी। साथ ही इन विवाहों के विरोध में आवाज उठाने वाले महिला संगठनों पर भी देवभूमि को लांछित करने के आरोप में हमले किये जायेंगे। परन्तु यदि कुछ घटनाओं में लोग पकड़े जाते हैं तो बाहर से आनेवालों की हिम्मत भी कम होगी और गांववाले भी इस तरह के कदम उठाने से हिचकेंगे। सामाजिक तौर पर भी गांवों में माहौल बनाने की जरूरत है कि इस तरह के विवाहों पर प्रतिबन्ध लगे।
हो सकता है कुछ लड़कियां सुखी गृहस्थी पा लेती हों, हो सकता है, कुछ लड़कियां अपने मायके वालों की मददगार बन जाती हों और हो सकता है कुछ लड़कियां फिर से बेच दी जाती हों। वे खरीदी हुई लड़कियां हैं, यह अहसास तो उनको दिलाया ही जाता है। अगर एक प्रतिशत लड़कियां भी बेच दी जाती हैं तो ये विवाह बन्द होने चाहिए।
फिलहाल वह युवती अपने मायके में है। बी़ ए़ की परीक्षा नहीं दे पाई है। उसका भविष्य जो विवाह में ही सबसे ज्यादा सुरक्षित समझा गया था- अब क्या होगा, कोई नहीं जानता। जैसी कि हम सब उसके लिए कामना करते हैं, क्या वह एक सशक्त महिला बनकर जी सकेगी ?
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