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हरियाणा की शर्मगाह

हरियाणा में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को देखते हुए हरियाणा पुलिस की अपराध शाखा ने एक वेबसाइट बनाई है जिसमें हरियाणा में पिछले 13 सालों में बलात्कार, दहेज हत्या, छेड़छाड़ आदि के मामलों में अपराधी सिद्ध किये गये लगभग 6000 लोगों के नाम, पते तथा उनके अपराधों का विवरण होगा। इसे ‘हॉल आफ शेम’ कहा गया है, ताकि समाज ऐसे लोगों को पहचाने। यह भी उम्मीद की जा रही है कि इससे अपराधों में कमी आयेगी। हरियाणा पुलिस की अपराध शाखा में तो ये रिकार्ड रहेंगे ही, फेसबुक, ट्विटर आदि पर भी लिंक के साथ ये नाम जारी किये जायेंगे। सामान्य उपायों में हिंसा में रोकथाम नहीं हो पा रही है, अत: अब ये असामान्य से उपाय पुलिस को सूझ रहे हैं।

त्वरित न्याय

हरिद्वार के चतुर्थ अतिरिक्त जिला न्यायाधीश श्री गुरुबख्श सिंह ने बलात्कार के एक मामले में त्वरित न्याय की मिसाल कायम करते हुए सुनवाई शुरू होने के 11 दिन के भीतर फैसला सुनाया। 1 अगस्त 2012 को हरिद्वार के पथरी थाना क्षेत्र की 13 साल की एक किशोरी के साथ दो व्यक्तियों ने बलात्कार किया था। किशोरी के पिता ने 2 अगस्त को पथरी थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाई। पुलिस ने उसी दिन आरोपियों को पकड़ लिया था। जाँच अधिकारी श्री महेन्द्र सिंह ने 22 जनवरी को चार्जशीट दाखिल की। 22 जनवरी से मुकदमे की विधिवत् सुनवाई प्रारम्भ हुई। परन्तु पीड़िता तथा उसके पिता सहित पाँच लोग गवाही से मुकर गये। परन्तु न्यायाधीश ने माना कि आरोपी के प्रभावशाली व्यक्ति होने के कारण उन्होंने ऐसा किया। न्यायाधीश ने 11 दिन के भीतर सुनवाई पूरी कर फैसला भी सुना दिया जिसमें बालिग अभियुक्त को 50 हजार का हर्जाना, 10 हजार रु. जुर्माना तथा 10 साल की सजा सुनाई गई है। दूसरा अभियुक्त नाबालिग होने की वजह से उस पर किशोर न्यायालय में सुनवाई चल रही है।

काश मैं भी

16 दिसम्बर की घटना और उसके बाद हुए प्रदर्शनों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश अल्तमश कबीर ने कहा कि ये प्रदर्शन पूरी तरह जायज और बेहद जरूरी थे। उन्होंने कहा, काश! मैं भी इन प्रदर्शनों में शामिल हो पाता लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सका। मुख्य न्यायाधीश ने प्रदर्शनकारियों को सलाम करते हुए कहा कि उस दिन जो घटना हुई, वह कोई नई घटना नहीं थी लेकिन उस घटना ने सबका ध्यान खींचा। लोग प्रदर्शन के द्वारा अपना गुस्सा प्रकट कर रहे थे। यह सब खुद-ब-खुद हो रहा था और यह जरूरी था।

नियुक्ति होंगी महिला अपर जिला शासकीय अधिवक्ता

उत्तराखण्ड सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रत्येक जिले में (जिला शासकीय अधिवक्ता के अतिरिक्त) महिला अपर जिला शासकीय अधिवक्ता (ए.डी.जी.सी.) की नियुक्ति की जाएगी ताकि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की अदालतों में ठीक से पैरवी की जा सके तथा महिलाओं को अपनी बात को कहने व अदालत में पेश करने में मदद मिल सके। महिला ए.डी.जी.सी. महिला उत्पीड़न सम्बधी मामलों की पैरवी करेंगी। सभी जिलाधिकारियों से महिला उत्पीड़न के मामलों की रिपोर्ट माँगी गई है। यह भी कहा गया है कि यदि किसी जिले में महिला उत्पीड़न से सम्बन्धी मामलों की संख्या शून्य हुई तो वहाँ महिला ए.डी.जी.सी. (क्राइम) की नियुक्ति नहीं होगी। जबकि महिला उत्पीड़न की संख्या शून्य होने का मतलब है ऐसे मामलों की रिपोर्ट न होना।

हक की आवाज

बच्चे जिस उम्र में खेलकूद में मगन रहते हैं मलाला युसूफजई शिक्षा की लौ जगाने के लिये मशाल बन गई। बीबीसी उर्दू के लिये ब्लॉग लिखने का मौका उसके लिये एक ‘मिशन’ बन गया। वह ऐसे समय पर विश्व मंच पर आई जब तालिबान 2009 में पाकिस्तान की स्वात घाटी में कब्जे की  जंग छेडे़ था। मौलाना फजलुल्ला के खूँरेजी दस्ते टी.वी. देखने, संगीत सुनने, लड़कियों को स्कूल व बाजार भेजने की वकालत करने वालों के सिर कलम कर रहे थे। सैनिकों के कटे सिर लिये बाजार में टोयोटा पर घूमते आतंकी और उनके बीच मलाला। पख्तून शायर और मुजाहिदा (महिला योद्धा) मलालई के नाम पर रखे गये अपने नाम को सार्थक करते हुये वह सचमुच मसीहा बन गई। लेकिन पाकिस्तान को ‘अंधकार युग’ में ले जाने पर आमादा आतंकियों के विरोध की आवाज बनकर जब वह र्चिचत हुई थी तब किसी ने सोचा नहीं था कि वह एक दिन नोबेल पुरस्कार की दौड़ में शामिल हो जायेगी। कहा गया कि एक दिन वह गोलियों का शिकार हो जायेंगी। गोली मारी भी गई लेकिन मलाला ने मौत को पराजित कर दिखा दिया कि बड़ी लड़ाई लड़नी है। लड़कियों को शिक्षा का हक दिलाने का उसका अभियान न सिर्फ उनके देश बल्कि दूसरे मुल्कों को भी प्रेरणा देता रहेगा।

साहस से जीत रही मन

मंजीत कौर पंजाब की एकमात्र महिला है जो प्राइवेट एंबूलैन्स चलाती है। कभी घायल मरीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाना तो कभी गंभीर बीमार को सुरक्षित अस्पताल तक। कभी अस्पताल से किसी शव को श्मशान पहुँचाना तो कभी क्षत-विक्षत शव को पोस्टमार्टम तक, सभी कुछ उसके काम का हिस्सा है। 32 साल की मंजीत 15 साल में विवाह बन्धन में बँधी पर शराब पीने की लत से बर्बादी और पति के बीमार पड़ने के बाद घर में रोटी के लाले पढ़ने लगे तब मंजीत ने शौक-शौक में ड्राइविंग को अपनी रोजी रोटी का साधन बनाने की सोची। मौसेरा भाई जो एंबुलेंस चलाता था जब स्कूल बस चलाने लगा तो मंजीत उसकी एंबूलेंस चलाने लगी। मंजीत का साहस ही था कि उसने कई बार एंबूलेंस में ऐसे-ऐसे शवों को ढोया है जिन्हें ले जाने के लिये कोई भी एंबूलेंस वाला तैयार नहीं होता था। मंजीत एक 19 साल के लड़के को जालंधर से चंडीगढ़ पीजीआई ले गई जिसे डाक्टरों ने जवाब दे दिया था। सर्दियों के मौसम में कोहरे के बावजूद उसने समय पर मरीज को पीजीआई पहुँचाया। वह कहती है वह उसके जीवन का सर्वश्रेष्ठ क्षण था जब तीन महीनों बाद लड़के के रिश्तेदार उसे ढूँढते हुये जालंधर आये और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हारे साहस के कारण आज हमारा इकलौता बेटा जीवित है। यही सब मुझे  सेवा में जुटे रहने व निष्ठा से अपना काम करने को प्रेरित करते हैं।
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सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश

भारतीय प्रशासनिक सेवा की पूर्व अधिकारी प्रोमिला शंकर तथा सामाजिक कार्यकर्ता ओमिका दुबे की अलग-अलग दायर की गई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के.एस. राधाकृष्णन तथा दीपक मिश्रा की खण्डपीठ ने केन्द्र सरकार को निर्देश दिये हैं कि जिन सांसदों तथा विधायकों पर बलात्कार अथवा महिलाओं के प्रति हिंसा के आरोप हैं, उन्हें अयोग्य ठहराया जाय; पुलिस तथा प्रशासन के ऐसे अधिकारियों की पद की सेवाएँ समाप्त की जाय; बलात्कार के मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें बनाई जांय; महिलाओं के प्रति अपराधों की सुनवाई के लिए अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाय; बलात्कार-पीड़ितों के लिये अनिवार्यत: मुआवजा देने की व्यवस्था की जाय। तथा प्रिंट एवं इलैक्ट्रानिक मीडिया को भी महिलाओं को अभद्र रूप में प्रस्तुत करने से रोका जाय। अब सरकार पर है कि देश की सबसे बड़ी अदालत के निर्देशों का अनुपालन करती है या उन्हें यूँ ही दरकिनार कर देती है।

खाप पंचायतों के फरमान गैरकानूनी

हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों ने पिछले दिनों महिलाओं को मोबाइल फोन न रखने का फरमान जारी किया था। गैर सरकारी संगठन शक्तिवाहिनी ने इस पर तथा अन्य मुद्दों पर भी सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। जिस पर न्यायमूर्ति आफताब आलम तथा रंजना प्रकाश देसाई की खण्डपीठ ने कहा कि इस तरह के फरमान जीने के मौलिक अधिकार के खिलाफ हैं। केन्द्र सरकार ने भी अदालत को सूचित किया कि खाप पंचायतें इस प्रकार के फरमान जारी कर रही हैं। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि यह कानून का उल्लंघन है। खाप पंचायतों के नेताओं को भी अदालत में बुलाया गया था पर उन्होंने कहा कि उनके बारे में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल इन्दिरा जर्यंसह ने खाप पंचायतों की कार्य शैली का विरोध करते हुए कहा कि वे समानान्तर अदालतों की तरह काम कर रही हैं, जो उचित नहीं है।

परिवर्तन की सराहनीय पहल

महाराष्ट्र के ठाणे शहर में कार्यरत ‘परिवर्तन’ नामक संस्था ने डोंबीवली शहर की उन्नीस वर्षीया लड़की को अपने संरक्षण में लेने की पेशकश की है। इस लड़की के साथ पिछले दो साल से इसका पिता तथा पिछले दो महीने से इसका भाई भी बलात्कार कर रहा था, जिसकी शिकायत करने की हिम्मत वह नहीं जुटा पा रही थी। इस लड़की की माँ पिता से तलाक लेने के बाद अलग रह रही थी। जब लड़की ने अपने मित्रों के हिम्मत दिलाने के बाद शिकायत दर्ज की तो पुलिस ने 29 दिसम्बर 2012 को उसके पिता और भाई को गिरफ्तार किया। परिवर्तन संस्था की माधवी ने  पुलिस से कहा है कि भविष्य में हम इसकी देखभाल करना चाहते हैं। यदि सब कुछ ठीक रहा तो उसे हमारी जिम्मेदारी में सौंप दिया जाये। ‘परिवर्तन’ लड़की के पुनर्वास के अलावा अपराधियों को कड़ी सजा दिलवाने के लिए भी प्रयास करेगा। ठाणे जिले के टीटवाला कस्बे में परिवर्तन की इकाई है। संगठन लड़कियों को शिक्षा के अलावा रोजगार के लिये प्रशिक्षण भी देता है।
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