आम शख्स की मौत पर राष्ट्रीय शोक

बृजेश जोशी

दामिनी, निर्भया, अमानत, बिटिया ये अनेक नाम उस युवती के हैं जो 16 दिसम्बर 2012 की बीभत्स घटना के बाद भारतवर्ष के सम्पूर्ण नारी समाज की बेखौफ आजादी एवं संघर्ष का प्रतीक बन चुकी है। जिसकी सलामती की दुआ के लिए पूरा हिन्दुस्तान सड़कों पर उतर आया था।

मीडिया की खबरों के अनुसार आजादी के बाद भारत के इतिहास में पहली बार एक आम शख्स की मौत पर ‘राष्ट्रीय शोक’ जैसा माहौल है। उसकी मृत्यु के बाद पूरे देश में हर वर्ग के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए, जिसमें बुद्धिजीवी, समाजसेवी, फिल्मी कलाकार, छात्र, बुजुर्ग सभी ने भागीदारी की और आन्दोलन ने एक स्वत: स्फूर्त आन्दोलन का रूप लिया। इस घटना के बाद कानून, न्याय व्यवस्था को लेकर नए-नए कदम उठाये जा रहे हैं। महिलाओं के पहनावे, उनकी निजी जिंदगी उनके व्यवहार को लेकर बहस चल रही है। सत्ता पक्ष व विपक्ष अपनी-अपनी सरकार वाले राज्यों में स्त्री-सुरक्षा हेतु कड़े कानून बनाने की राह पर हैं। पूरे देश के आचरण में बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। बर्बर सामूहिक दुष्कर्म के पश्चात् जो जन आक्रोश उभरा, उसकी कल्पना कुछ समय पूर्व तक कोई भी नहीं कर सकता था। जन-ज्वार जिस तरह से सड़कों पर उभरा और लोगों ने मिलकर सरकार के कोरे आश्वासनों के बजाय ठोस व निश्चित प्रतिफल के संकल्प के साथ नव-वर्ष के जश्न को भी दरकिनार कर दिया वह वास्तव में अकल्पनीय व अविश्वसनीय था। अब तक यह सिलसिला लगातार बढ़ा है, जो सकारात्मक परिवर्तन व सुशासन के लिए तथा गणतांत्रिक राष्ट्र की पहचान के लिए शुभ संकेत भी है। भारत में आजादी के 65 वर्षों के बाद भी औरतों को मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित होना पड़ रहा है।
National mourning on the death of a common man

पंजाब, राजस्थान व हरियाणा में बच्च्यिों के जन्म लेने पर शोक मनाया जाता है। औरतों की बदहाली की चिन्ता करने वाला कोई नहीं है। वे आज भी पुरुष प्रधान समाज के खिलपफ जूझ रही हैं। औरत को एक इंसान न मानकर एक अलग प्रकार के साँचे में ढालने के प्रयास हो रहे हैं। जो उसकी स्थिति को नुकसान पहुँचाता है। महिलाओं के साथ हिंसा, अपराध, बलात्कार की घटनाओं में देश में निरन्तर बढ़ोत्तरी हुई है। 2007 से 2011 के दौरान ही बलात्कार की घटनाओं में 97 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। जिसमें पीड़िता साधारण महिला से लेकर कॉरपोरेट जगत की महिला भी है। 28 दिसम्बर को निर्भया की मौत पूरे राष्ट्र को झकझोर कर यह संदेश दे गयी कि अभी भी भारतीय समाज में महिलाओं को बेखौफ आजादी के लिए संघर्ष करना ही होगा, क्योंकि हमारी सरकारों में राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव है। हमारी न्याय व्यवस्था व पुलिस तंत्र भी अपराधों से निजात दिलाने में अक्षम ही है तथा राजनीतिक पार्टियों का खिलौना मात्र रह गया है। संसद में आपराधिक व बलात्कारी सांसदों की संख्या भी कम नहीं है, जिसका सीधा अर्थ है कि राजनीतिक पार्टियों गुंडों को पालने का काम कर रही हैं जो हम सभी के लिए बड़ी चुनौती है। जिस समय दिल्ली में गैंगरेप की घटना हुई उन दिनों संसद का सत्र चल रहा था जिस कारण पुलिस ने थोड़ी-सी मुस्तैदी दिखाकर 48 घंटे में अपराधियों को पकड़ लिया। जबकि घटना स्थल पर अधिकार क्षेत्र के विवाद में उलझी रही। पीड़िता को अस्पताल ले जाने में तत्परता नहीं दिखाई। सरकार के प्रतिनिधियों ने विरोध प्रदर्शन व आक्रोश पर आपत्तिजनक टिप्पणियाँ की। मसलन यह विरोध प्रदर्शन डेंटड व पेटेड महिलाओं का प्रदर्शन है।

भ् युवती को चलती बस में दोषियों के सामने आत्मसमर्पण कर लेना चाहिए था जिससे वे उसे मारते नहीं।

भ् बलात्कार की घटनाएं इंडिया में अधिक होती हैं, भारत में नहीं। इन टिप्पणियों से हमारे नेताओं की संकुचित मानसिकता व उनके नजरिये का एहसास दामिनी के कारण ही संभव हो पाया।

कुल मिलाकर ‘दामिनी’ ने सम्पूर्ण देश को जगाने की जो पहल की है, उसमें हमारी शासन व्यवस्था, न्यायिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किये हैं। दामिनी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि दोषियों को मारकर नहीं वरन् भारत में नीतिगत राज चलाने से होगी, जिसमें जनता छोटे-छोटे से कानूनों का पालन करे। सरकारें अपने राजनीतिक स्वार्थ व निजी स्वार्थ से उठकर राष्ट्रीय हित व सुशासन के लिए कार्य करें। समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान व आदर के भाव स्थापित हैं, यदि इतना भी हो गया तो आने वाले समय में हम लाखों बेटियों को, लाखों दामिनियों को स्वस्थ माहौल देकर असमय विदा होने से बचा सकेंगे और उन्हें उनका सुन्दर जीवन भेंट कर सकेंगे।
National mourning on the death of a common man

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