उत्तरा के बारे में
उत्तरा महिला पत्रिका का पहला अंक अक्टूबर 1990 में नैनीताल से प्रकाशित हुआ। तब से यह निरन्तर प्रकाशित हो रही है। अब तक इसके 123 अंक निकल चुके हैं। प्राय: यह 48 या 52 पृष्ठ की निकलती है। यह त्रैमासिक हिंदी पत्रिका है। इस पत्रिका का सम्पूर्ण विषय स्त्री है इस पत्रिका की शुरूआत महिलाओं के एक समूह के द्वारा की गई। उत्तरा का सम्पादन उमा भट्ट, शीला रजबार, कमला पन्त, बसन्ती पाठक द्वारा किया जाता है तथा मुन्नी तिवारी, विमला असवाल, पुष्पा गैड़ा, जया पांडे, ऋतु जोशी, गीता गैरोला, कमल नेगी, नीरजा टंडन, दिवा भट्ट, अनीता जोशी, जीवन चन्द्र पन्त आदि इसके सहयोगी हैं। शुरूआत में उत्तरा का प्रकाशन ओम प्रिंटिंग प्रेस, मेरठ से होता था। वर्तमान में यह सरस्वती प्रेस, देहरादून से छपती है। पत्रिका के प्रकाशन के पीछे समाज में महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करना है।
उत्तरा के लेखक वर्ग में सब तरह के लोग शामिल हैं। इसमें कविता, कहानी, साक्षात्कार, समसामयिक विषयों पर लेख, रिपोर्ट आदि प्रकाशित किये जाते हैं। हमारी दुनिया एक नियमित स्तम्भ है। ज्वलंत व समसामयिक विषयों पर लेख प्रकाशित किए जाते रहे हैं। विद्यावती डोभाल, राधा भट्ट, विमला बहुगुणा, प्रकाशवती पाल, कबूतरी देवी, सुदेशा देवी, सुशीला भंडारी, शांति, भुवनेश्वरी कठैत आदि के लम्बे साक्षात्कार उत्तरा में छपे हैं। बीच-बीच में उत्तरा के विशेषांक भी प्रकाशित हुए हैं। वर्तमान में इसकी वार्षिक सदस्यता 100 रु. तथा आजीवन सदस्यता 1000 रु. है।
ग्रामीण तथा शहरी मध्यवर्ग में उत्तरा का पाठक वर्ग है। प्राय: हर तरह के लोग उत्तरा के पाठक वर्ग में हैं- छात्र, अध्यापक, गृहिणियाँ, नौकरीपेशा महिलाएं, विभिन्न संस्थाओं से जुड़े लोग, सामाजिक कार्यकर्ता आदि। हिन्दी निदेशालय के माध्यम से पंजाब, असम, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक आदि अहिन्दी भाषी प्रान्तों में भी उत्तरा का प्रचार-प्रसार होता रहा है।
उत्तरा ने महिलाओं के लिए लिखने का एक माहौल बनाया, महिलाओं के काम को सामने लाने की कोशिश की और एक सीमित दायरे में ही सही, महिलाओं के विषय में समाज को सोचने के लिए मजबूर किया।
उत्तरा की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि 1997 में उत्तरा की ओर से प्रकाशित गंगोत्री गर्ब्याल की पुस्तक ‘यादें’ हैं। प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त गंगोत्री गर्ब्याल सीमान्त जिले पिथौरागढ़ की निवासी थीं। बीसवीं शताब्दी के तीसरे दशक से उन्होंने अध्ययन प्रारम्भ किया तथा अपने क्षेत्र के लिए भी काम किया। उनके संस्मरण धारावाहिक रूप से उत्तरा में प्रकाशित किये गये।
उत्तरा की एक और उपलब्धि अक्टूबर 2003 में प्रकाशित पुस्तक ‘विरासतों के साये से निकलकर’ (कविता संकलन) है, जिसमें सन् 1990 से 2003 तक तेरह वर्षों में उत्तरा में प्रकाशित कविताओं में से चुनिन्दा कविताएं संकलित हैं, जो स्त्री के जीवन से जुड़े विविध पहलुओं को दर्शाती हैं। इसके अलावा 2003 से 2015 तक की चुनिन्दा कविताओं का संकलन ‘अंकित होने दो उनके सपनों का इतिहास’ नाम से प्रकाशित हुआ है।
श्री जगदीश चन्द्र की अमेरिका प्रवास की डायरी धारावाहिक रूप से उत्तरा में छप चुकी है, जो अमेरिकी जीवन का तीखा विश्लेषण करती है। डॉ. सौभाग्यवती, श्रीमती इन्दु बहुगुणा के संस्मरण धारावाहिक रूप से उत्तरा में प्रकाशित हो चुके हैं, जो बीसवीं शताब्दी के मध्य की औरत की स्थिति का चित्र खींचते हैं। प्रसिद्ध पर्वतारोही चन्द्रप्रभा ऐतवाल के पर्वतारोहण के संस्मरण भी धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुए हैं। आजकल श्रीमती उमा अनन्त के संस्मरण व श्रीमती राधा भट्ट की जीवन-कथा भी धारावाहिक रूप से उत्तरा में प्रकाशित हो रही हैं।
समय-समय पर उत्तरा ने विशेषांक भी प्रकाशित किये हैं। शराब (1991), गढ़वाल भूकम्प (1992), उत्तराखण्ड आन्दोलन (1994), आजादी के आन्दोलन में महिलाएं (1998), किशोरी अंक (2000) ग्राम पंचायत अंक (2002) तथा लोक और स्त्री (2021) आदि। उत्तरा की तीस साल की इस यात्रा में लेखकों, पाठकों और सहयोगियों की एक बड़ी संख्या है, जिनकी सक्रियता के कारण ही उत्तरा महिला पत्रिका अपनी जगह बनाये हुए है और मजबूती के साथ खड़ी है।
सम्पादकीय कार्यालय –परिक्रमा, तल्ला डांडा, तल्लीताल, नैनीताल, 263002।