नानीसार की लड़ाई जारी है

चन्द्रकला

पहाड़ों से बढ़ता पलायन, बारिश के असमय होने से फसलों की बरबादी, सुअर, बन्दरों द्वारा बची हुई फसल, फलों को नष्ट कर देना और यातायात अथवा अन्य बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण भले ही पहाड़ की खेती का कुछ हिस्सा बंजर हो रहा हो, लेकिन इसकी उपयोगिता घास-लकड़ी व पशुचारे के रूप में तो बनी ही हुई है। उससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि गाँव समाज की जमीन हो या व्यक्तिगत मालिकाने की, उसका पुश्तैनी हक तो छीना नहीं जा सकता और न ही बिना अनुमति के कोई भी फर्जी तरीके से उस भूमि पर कब्जा करने का अधिकारी हो जाता है लेकिन उत्तराखण्ड में यह हो रहा है और इसका एक छोटा-सा उदाहरण है नानिसार यानी छोटी जोत का खेत।

अल्मोड़ा जिले की रानीखेत तहसील के डीडा द्वारसों गाँव का एक तोक नानिसार है। इस इलाके की आबोहवा खूबसूरत है, भौगोलिक ऊँचाई इतनी कि हिमालय के दर्शन हो जायें लेकिन जमीन का स्वरूप समतल है। यह क्षेत्र उपजाऊपन के लिये भी जाना जाता है।

लेकिन पिछले कुछ महीनों से इस क्षेत्र के ग्रामीणों का अमन चैन छीन लिया गया है। नानिसार तोक में डीडा द्वारसों गाँव की पंचायत भूमि और व्यक्तिगत नाप की भूमि भी है। इसकी एक पहाड़ी यानी 353 नाली (7.061 हे.) जमीन को 90 वर्षों के लिये 1196 रु. और 2 लाख रुपया नजराना की सालाना लीज पर जिन्दल ग्रुप की हिमांशु एजुकेशनल सोसाइटी को दे दिया गया है। यह वहीं जिन्दल ग्रुप है जिसने कोयले, लोहे व तमाम खनिजों की खोज में देश के कई हिस्सों की उपयोगी जमीन को अपने मुनाफे की हवस के लिये बरबाद कर वहाँ के मूल निवासियों को विस्थापित होने के लिए मजबूर कर दिया है।

जिन्दल ग्रुप के साथ यह डील जनता को लुभाने के लिये मोदीनुमा हरकतें करते और पहाड़ी-पहाड़ी का राग अलापने वाले उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत की अनुमति पर हुई है। 21 अप्रैल 2015 को तत्कालीन मुख्य सचिव ने भूमि आवंटन की प्रक्रिया पूरी की और मात्र 5 माह में 22 सितम्बर को जिन्दल ग्रुप को भूमि आवंटन दे दिया गया।

तीन महीने पहले जिस खूबसूरत जंगल में बाँज, बुरांश, काफल के पेड़ थे, चीड़ के पेड़ों पर लीसे के गमले लटके थे, महिलायें घास-लकड़ी लाने किसी भी समय बेझिझक जाती थीं, पशु चरते थे, देवी के थान को पूजा जाता था, आज उस पूरे पहाड़ को नंगा कर समतल किया जा रहा है। मशीनों से खुदाई कर तेजी से इमारतें खडी़ की जा रही हैं। पूरे इलाके को कंटीले बिजली के तारों से घेर दिया गया है। विशालकाय गेट पर दिल्ली व हरियाणा से लाये गये गुण्डेनुमा गार्ड (बाउंसर) लगाये हुये हैं। यहाँ पर एक इन्टरनेशनल स्कूल बनाया जा रहा है, जिसकी फीस लाखों में है और इस स्कूल में केवल प्रवासी भारतीयों के बच्चों को प्रवेश की अनुमति है। आसपास के बच्चे तो शायद उस ओर झाँकने का साहस भी न करें।
(Battle of Nanisar continues)

सरकारी अभिलेखों में यह जमीन सार्वजनिक उपयोग व पंचायत भूमि है। अभी तक की जानकारी के अनुसार कागजी कार्यवाही में इस भूमि को जिन्दल ग्रुप को हस्तान्तरित नहीं किया गया है। लेकिन पुलिस प्रशासन व सरकारी संरक्षण में 25 सितम्बर से ही यहाँ पर मशीनों व बाहरी मजदूरों को लाकर जमीन पर कब्जा व निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया है। रातों रात विद्युत विभाग ने यहाँ पर हैवी ट्रांसफार्मर लगवा दिया।

डीडा द्वारसों के ग्रामीणों को 25 सितम्बर को इस भूमि पर होने वाली गतिविधि की सूचना मिली। 18 अक्टूबर को जिला मुख्यालय अल्मोड़ा में जिलाधिकारी को इस अवैध कब्जे को हटाने का ज्ञापन सौंपा गया। यहाँ पर ग्रामीणों को सामाजिक, राजनीतिक सहयोग मिला जिसके बाद से नानिसार बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले तहसील व ब्लाक स्तर पर विरोध प्रदर्शन होना शुरू हुए। लेकिन स्थानीय ग्रामीणों के व प्रदेश में उठ रहे विरोध के स्वरों को दरकिनार करते हुये 22 अक्टूबर 2015 को मुख्यमंत्री स्वयं जिन्दल ग्रुप के स्कूल का शिलान्यास करने नानिसार पहुँचे। ग्रामीणों व अन्य सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ताओं के विरोध को देखते हुये पूरे इलाके को छावनी में तब्दील कर दिया गया। आन्दोलनकारियों को लाठी-डन्डों से खदेडा़ गया। गाड़ियों  में भरकर जंगलों में छोड़ दिया गया। इस समारोह में मुख्यमंत्री हरीश रावत, दिल्ली से भाजपा सांसद मनोज तिवारी व मुख्यमंत्री का बेटा सीधे हेलीकाप्टर से नानिसार पहुँचे। मुख्यमंत्री के इस कृत्य का विरोध प्रदेश के कई हिस्सों में हुआ।

नानिसार बचाओ संघर्ष समिति व तमाम अन्य सामाजिक-राजनीतिक संगठनों के आह्वान पर 1 नवम्बर को नानिसार में विशाल प्रदर्शन हुआ। तीन किलोमीटर चलकर महिलाओं, बच्चों व पुरुषों का जुलूस नानिसार पहुँचा और वहाँ पहुँचकर हरीश रावत द्वारा उद्घाटित शिलापट्ट को ध्वस्त कर दिया गया। 31 लोगों के खिलाफ नामजद और 350 अज्ञात के खिलाफ पटवारी के समक्ष मुकदमा दर्ज करने के बाद तुरन्त विवेचना नियमित पुलिस को सौंप दी गयी। अब इन मुकदमों के तहत पुलिस व एल.आई.यू. आकर ग्रामीणों को धमका रही है।

इस जमीन आवंटन का एक सच यह भी है कि जमीन को आवंटित किये जाने के सन्दर्भ में ग्राम प्रधान ने ग्राम सभा की कोई खुली बैठक आयोजित नहीं की। इसके विपरीत छ: लोगों के फर्जी हस्ताक्षर कर ग्राम प्रधान व कुछ स्थानीय दलालों ने एक अनापत्ति प्रमाण पत्र बनवा लिया। छ: लोगों में से एक वृद्घ उम्मेद सिंह जी का कहना है कि ‘‘मुझे तो हिन्दी भी नहीं लिखनी आती लेकिन प्रधान ने तो अंग्रेजी के हस्ताक्षर कर मुझे अमरीकी बना दिया।” प्रधान के खिलाफ तहसील, जिला स्तर पर तहरीर व ग्रामीणों के लिखित बयानों के बावजूद अब तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। ग्राम प्रधान नानिसार के निर्माणाधीन क्षेत्र के भीतर नौकरी कर रहा है, जिन्दल के गुण्डों व पुलिस के माध्यम से ग्रामीणों को धमकाना और समझौता करने के लिये दबाव डालने का निरन्तर प्रयास कर रहा है। पूरे डीडा द्वारसों गाँव के लोगों ने धोखेबाज ग्रामप्रधान का सामाजिक व पारिवारिक बहिष्कार कर दिया है।

नानिसार की वर्तमान स्थिति देखकर डीडा द्वारसों की महिलाएँ अपने जंगल छिन जाने से दुखी हैं और फर्जी तरीके से जबरदस्ती उनके जंगल पर कब्जा करने वालों के खिलाफ आक्रोशित हैं। क्रमिक अनशन में भागीदारी हो या जुलूस प्रदर्शन में जाना, जहाँ पर भी सम्भव है, वे शामिल हो रही हैं। बावजूद इसके कि गाँव के अधिकांश पुरुषों की मानसिकता महिलाओं को पीछे रखने की है। ये महिलायें तो किसी भी तरीके से सही, अपने जंगल को बचाने के लिये कृतसंकल्प हैं। गाँव की बहू-बेटियाँ तो अभी तक इस जंगल से घास, लकड़ी व पिरूल लाती थीं, जबकि बुजुर्ग महिलाओं ने इस इलाके में खेती की है। महिलाओं को समझ नहीं आ रहा कि जहाँ हमारी देवी का मन्दिर है, बाप-दादाओं की जमीन है उस पर आकर सीधे कोई कैसे कब्जा कर सकता है। सभी का गुस्सा ग्राम प्रधान के खिलाफ है जो उनका अपना था और आज लालच में जिन्दल ग्रुप के हाथों बिक गया। उसने पूरे गाँव वालों को धोखा दिया है। महिलाएँ  इस बात से भी सशंकित हैं कि जिस तरह पूरे क्षेत्र में तार-बाड़ कर दी गयी है उससे जंगल जाने के रास्ते तो बन्द हो ही गये हैं पशु चराना और घास-लकड़ी लाना भी आसान नहीं रहा।
(Battle of Nanisar continues)

जिस तरह से बाहर से आकर गुण्डेनुमा पुरुष क्षेत्र में घूम रहे हैं, उससे महिलाओं की स्वतंत्रता बाधित होगी। अकेले-दुकेले जंगल में घास-लकड़ी के लिये जाना अब सम्भव नहीं होगा। यह न केवल महिलाओं के लिये खतरे का सबब है बल्कि पूरे इलाके पर आने वाले भावी संकट की शुरूआत है। तुलसी देवी और सुमित्रा देवी  का गुस्सा इस रूप में व्यक्त हुआ ‘‘हम प्रधान व जिन्दल को अपनी पुश्तैनी जमीन किसी भी सूरत में हथियाने नहीं देंगे, उसके लिये चाहे हमें जेल हो, लाठी पडे़, या गोली लगे। चार महीने हो गये हमें इस आन्दोलन में। इसके कारण हमने गेहूँ नहीं बोये, लकडी़ नहीं काटी, बच्चों को वीरान छोड़ा हुआ है, हम अन्तिम दम तक इस लडा़ई को लडे़ंगे।

24 नवम्बर को देहरादून में, 27 दिसम्बर को दिल्ली में प्रदर्शन करने के बाद भी ग्रामीणों की इस जमीन के सन्दर्भ में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

नानिसार की लड़ाई सड़कों के साथ कोर्ट में भी जारी है लेकिन जिन्दल की दादागिरी व सरकार का दबाव यहाँ पर भी प्रभावी है। 6 जनवरी को हाईकोर्ट में इस मुद्दे की सुनवाई थी। लेकिन यह सुनवाई 8 मार्च तक के लिये टाल दी गयी है।

23 जनवरी को जिला जज ने नानिसार में जिन्दल के निर्माणाधीन स्कूल पर रोक लगाने सम्बन्धी आदेश पारित किया। अधिवक्ता एवं आन्दोलन के  नेता पी. सी. तिवारी जब कोर्ट के मुहर्रिर के साथ आदेश की कॉपी लेकर निर्माणाधीन परिसर के गेट पर पहुँचे तो जिन्दल के आदमियों ने कोर्ट मुहर्रिर एवं पी. सी. तिवारी को गेट के अन्दर खींचकर मार-पीट करनी शुरू कर दी। जब उनकी सहयोगी रेखा धस्माना बीच-बचाव में आईं तो उनके साथ भी मार-पीट और अभद्रता की गई तथा उनका टैबलेट तोड़ दिया गया। रानीखेत प्रशासन ने जिन्दल के मार-पीट करने वाले आदमियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पी. सी. तिवारी, रेखा धस्माना सहित बारह ग्रामीणों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमे दर्ज कर उन्हें रात के साढ़े बारह बजे अल्मोड़ा जिला जेल में डाल दिया। दो दिन बाद सभी की जमानत हो गई परन्तु जिन्दल के दबाव के आगे झुककर रानीखेत प्रशासन ने पी. सी. तिवारी व रेखा धस्माना को जेल से बाहर न निकलने देने के लिए उन पर अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम के तहत झूठा मुकदमा दर्ज कर दिया। पी. सी. तिवारी व रेखा धस्माना जमानत पर बाहर निकल पाये जबकि जिन्दल के जिन लोगों ने मार पीट की थी, अभी तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

नानिसार बचाओ संघर्ष समिति पिछले चार महीने से अपनी जमीन पर जिन्दल के अवैध कब्जे को छुड़ाने के लिए संघर्षरत है। इसी के तहत 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर नानिसार में झण्डा फहराने का आह्वान किया गया था। उत्तराखण्ड तथा देश के विभिन्न स्थानों से इस आन्दोलन को समर्थन देने हेतु कई संगठन, गणमान्य व्यक्ति एवं विभिन्न गाँवों के महिला-पुरुष नानिसार पहुँचे। ग्राम डीडा द्वारसौं से चार किमी. का रास्ता तयकर लगभग साढ़े तीन सौ आन्दोलनकारियों का जुलूस नानिसार पहुँचा। परिसर के गेट पर पुलिस तैनात की गई थी, प्रशासन की गाड़ियाँ तैनात थीं, पानी की बौछार फेंकने की व्यवस्था की गई थी, परिसर के चारों तरफ बिजली के तारों की  बाड़ लगाई गई थी जिसमें DANGER लिखा हुआ था।

रानीखेत एस.डी.एम, ए.डी.एम. एवं एस.पी. वहाँ अपने-अपने अमले के साथ मौजूद थे। परिसर के अन्दर मजदूरों के अलावा बाहर से लाये गये हथियारों से लैस बाउन्सर व गुण्डे मौजूद थे। ज्यों ही बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी श्री देवेन्द्र सनवाल ने झण्डा फहराया, तभी जिन्दल के गुण्डों ने आकर प्रशासनिक अधिकारी एवं एस.पी. को धमकाया तथा झण्डा उतारकर ले गये। 8 फरवरी को पुन: अल्मोड़ा में विशाल प्रदर्शन किया गया।

रानीखेत प्रशासन एक ओर तो उत्तराखण्ड सरकार के दबाव में जिन्दल के अवैध कब्जे की सुरक्षा कर रहा है और दूसरी ओर उनके गुण्डों के आगे बेबस नजर आ रहा है और आन्दोलनकारियों का दमन कर रहा है।

उत्तराखण्ड की शान्त तथा सुरम्य घाटियों में इस तरह की गुण्डागर्दी से यहाँ की जनता को जान-माल का खतरा तो है ही, सबसे बड़ी बात यह है कि जंगलों में घास-लकड़ी आदि के लिए जाने वाली महिलाओं के अस्तित्व, अस्मिता एवं स्वतंत्रता को इससे खतरा पैदा हो गया है। 

जिस तेजी से निर्माण कार्य किया जा रहा है उससे ग्रामीणों का दिन-रात का चैन हराम है। नानिसार के ग्रामीणों व उत्तराखण्ड के आमजन पर पूँजीपतियों/नौकरशाहों/नेताओं के हित भारी हैं। आगे मुनाफाखोर पूँजीपतियों की दृष्टि उत्तराखण्ड के किस हिस्से को अपनी चपेट में लेने की तैयारी कर रही है यह तो आने वाला वक्त स्पष्ट करेगा, फिलहाल तो नानिसार बचाओ का संघर्ष सामने है।
(Battle of Nanisar continues)
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