गाय रो रही है : संस्कृति
दिवा भट्ट एक गाय रो रही है,रह-रह कर बिसूर रही है,रस्ते-रस्ते डोल रही है,इधर-उधर दौड़ रही है,खेत-खलिहान फाँद...
दिवा भट्ट एक गाय रो रही है,रह-रह कर बिसूर रही है,रस्ते-रस्ते डोल रही है,इधर-उधर दौड़ रही है,खेत-खलिहान फाँद...
अतुल शर्मा पर बहता हुआ पानीछोटे-बड़े स्रोतों का पानीपानी पर सियासतें करते लोगों परतरस खाता हैमुस्कराता हुआ पानी ...
सरोजिनी नौटियाल दामिनी!तुम चली गई, पर,महसूस होती होभोर की सुगंध मेंसूरज की किरन मेंजल की तरंग मेंसुमन के...
प्रदीप पाण्डे कोई 280 किलोमीटर की यात्रा नंदा राजजात को बहुत रोचक बना देती है और उच्च हिमालय...
महेश चन्द्र पुनेठा माँ मैं नहीं समझ पायातुम्हारे देवता कोबचपन से सुनता आया हूँ उसके बारे मेंपर उसका...
गीता गैरोला चौमास मास का महीना, धारों-धार बरसात की झड़ी लगी है। चार दिनों से सूरज का मुँह...
सुरेन्द्र पुण्डीर मारे लोक जीवन में गहनों और आभूषणों का पुराकाल से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्रकृति...
बुरकी बुरकी बिच मळायाकेड़ा ऐ तू जाप जपायाफिक्रांदा तू रोणा पा केक्यों बस मन्नू डराया सखायामाई मेरी मैं...
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