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माँ

सुरेन्द्र पुण्डीर हर दिन-  नया सोचती है माँजैसा-माँ सोचती हैवैसा-  हम क्यों नहीं सोचतेबादलों के-  कुहासे  और-भरी दुपहरी...

कविताएँ

जयन्त साहा की दो कविताएँ स्त्रियाँ नदियाँ बहती हैंहवाएँ चलती हैंकलियाँ खिलती हैंयानी सबके सब हैं स्त्रीलिंगऔर भी...

3 अक्टूबर का वह काला दिन

कमल नेगी 2 अक्टूबर की सुबह हम लोग  मल्लीताल रामलीला स्टेज पर पहुँचे। वहाँ गाँधी जयन्ती के कार्यक्रम...

एक शिक्षिका की डायरी : एक

रेखा चमोली सुश्री रेखा चमोली प्राथमिक विद्यालय गणेशपुर, उत्तरकाशी में अध्यापिका हैं। उनकी यह डायरी शीघ्र ही पुस्तकाकार...

ज्योली

गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ तुम बहुत याद आती हो ज्योली मुझेजिन्दगी की डगर में हरेक शाम परमौसमी सीढ़ियों के...