एक शिक्षिका की डायरी-3
रेखा चमोली
दिनांक 5-8-11
आज कविता पर काम करना था। मैंने पिछले दिनों कक्षा में कहानी और कविता के स्वरूप को लेकर बच्चों से बात की थी। बच्चे कविता व कहानी में अन्तर पहचानते हैं पर अभी उनके लिखने में ये ठीक से नहीं आ पाया है। शुरूआती लेखन के लिए मैंने बच्चों का ध्यान लय, तुकान्त शब्द, कम शब्दों का उपयोग व बिंबों की ओर दिलाने का प्रयास किया। मैं जानती हूँ कविता एक संवेदनशील हृदय की अभिव्यक्ति है। एक अच्छी कविता हमारे मन को छू लेती है। हमें ऊर्जा से भर देती है या कुछ कर गुजरने को प्रेरित करती है।
हर व्यक्ति कविता नहीं लिख पाता है पर यहाँ अपनी कक्षा में मैं कविता को इस तरह देखती हूँ कि बच्चे किसी चीज के प्रति अपने भावों को व्यक्त करना सीखें, उन्हें तुकान्त के रूप में कुछ मजेदार शब्द या वाक्य सूझें और वे कम शब्दों में अपनी बात कह लिख पाएँ। अपने लिखे को मन से पढ़ पाएँ। कक्षा 4 व 5 के बच्चे अपनी कक्षा में कुछ विषयों पर कविता लिखने का प्रयास कर चुके हैं। कुछ ने छोटी-छोटी कविताएँ लिखी हैं। ये बहुत सी कविताओं को सुन-पढ चुके हैं।
मैंने कविता लिखने के लिए विषय चुना- पानी । बच्चों से पानी को लेकर बातचीत की। प्रत्येक बच्चे ने इसको लेकर कुछ न कुछ बात कही।
जैसे- पानी नल से आता है।
पानी को हम पीते हैं।
पानी नदी, धारे-पनियारे, बारिश से भी आता है।
पानी कहाँ से आता है? उससे क्या-क्या करते हैं? यदि पानी न हो तो क्या होगा। पानी हमारे किस-किस काम आता है? आदि के आसपास ही बच्चों की ज्यादातर बातें रहीं। कक्षा में बातों का दोहराव होता देख मैंने बच्चों से कहा, मैं श्यामपट्ट पर पानी शब्द लिखूंगी तुम्हारे मन में पानी को लेकर जो भी बातें आती हैं उसे एक शब्द में बताना है। जो शब्द एक बार आ जाएगा उसे दुबारा नहीं बोलना है। बच्चे शब्द बोलते गए, मैं उन्हें लिखती गयी।
कुल 50-60 शब्द हो गए।
उदाहरण-पानी पीना, खाना बनाना, मुंह धोना, नहाना, प्यास, मरना, मीठा, गन्दा, गरम, ठंडा, चाय, स्वच्छ, निर्मल, बादल, इन्द्रधनुष, पहाड, झरने, गौमुख, नदी, भागीरथी, गंगा, गाड़ ,पनियारा, टंकी, बाल्टी , कोहरा, बुखार, भीगना, सिंचाई, बिजली, बांध, जानवर, खेती, रोपाई, बहना, भाप निकलना, जीवन, मछली, साँप, मेंढक, आकाश, भरना, जरूरत, होली, सफाई आदि।
अब मैंने बच्चों से तुकान्त शब्दों पर बात की। हमने पानी, काम, बादल, जल, भीगना, गीला आदि शब्दों पर तुकान्त शब्द बनाए। फिर मैंने श्यामपट्ट पर एक पंक्ति लिखी।
ठंडा -ठंडा निर्मल पानी।
पानी से मुंह धोती नानी।
इन पंक्तियों को बच्चों को आगे बढाने को कहा, बच्चों ने मिलजुल कर कविता को आगे बढाया।
पानी आता बहुत काम।
इसके बिना न आता आराम।
हमको जीवन देता पानी।
बताती हमको प्यारी नानी।
इसके बाद मैंने बच्चों को एक और कविता पानी पर ही लिखने को दी।
(Diary of Rekha Chamoli)
स्कूल में रख-रखाव का काम भी समान्तर चल रहा है। खच्चर वाले भइया ने सुबह ही आँगन में बजरी डाल दी थी। प्रधान जी का बेटा अन्य सामान सीमेंन्ट वगैरह लेकर आया । मैने बच्चों की मदद से कल छुट्टी के बाद एक कमरा खाली किया था। आज उससे पेन्टर को पेंट की शुरूआत करने को कहा। विद्यालय में अन्य लोगों को देख कक्षा 1-2 के बच्चे बाहर आ गए। इधर-उधर दौड़ने लगे। कुछ बच्चे बजरी में खेलना चाहते थे। जब खच्चर वाले भइया दुबारा बजरी लेकर आए तो मैंने उन्हें विद्यालय के पिछले हिस्से में बजरी डालने को कहा पर जगह कम होने के कारण खच्चर ने वहाँ जाने से साफ मना कर दिया और खुद ही अपनी पीठ का भार गिरा दिया। अब एक काम बच्चों को इन पत्थर बजरी से दूर रखना भी था। और ये भी ध्यान रखना था कि खच्चर हमारे फूलों की क्यारी से दोस्ती न कर पाएँ। हालांकि यह सब सामग्री अपने आप में टी़एल़एम है और अध्यापक के पास बातचीत के लिए उपलब्ध है। हमारे आसपास मौजूद वस्तुएँ व घटनाएँ एक प्रकार का टी़एल़एम होता है। मसला है कि अध्यापक का चिंतन और विचार इन वस्तुओं के शैक्षिक उपयोग तक पहुँच पाता है या नहीं। कभी-कभी सोचती हूँ कि मैं इन संसाधनों का कितना कम उपयोग कर पाती हूँ।
अब तक बच्चे अपनी-अपनी कविताएँ लिख चुके थे। बच्चों ने अपनी कविताएँ सुनानी शुरू की। गंगा (कक्षा-5) ने अपनी कविता में मीठा, पर्वत व कहानी शब्द लिखे थे।
हर्ष (कक्षा-5) ने मछली के जीवन व काम का उपयोग बताया था।
प्रकाश (कक्षा-5) ने ठंडा, धरती से पानी का निकलना और पानी का कोई रंग न होना बताया था। पूर्व की बातचीत में पानी के रंग पर कोई बात नहीं आयी थी। अंबिका (5) ने धारे, नदी व जीवन की बात कही थी। कुछ बच्चों ने बहुत सुंन्दर कविता लिखी थी।
जैसे अरविंद (5) ने
इस पानी की सुनो कहानी।
इसे सुनाती मेरी नानी।
पानी में है तनमन।
पानी में है जीवन।
कहती थी जो वह बह जाता।
कही ठोस से द्रव बन जाता।
मुझे अभय की कविता में पहले पढ़ी किसी कविता का प्रभाव दिखा। जबकि इससे पहले पढ़ी कविताओं में कम सधापन था पर उनमें मौलिकता अधिक थी। कुछ बच्चों ने पूरे-पूरे वाक्य लिख दिए थे। कुछ की पहली पंक्ति का दूसरी से सामंजस्य नहीं था। शब्दों की पुनरावृत्ति अधिक थी।
मेरी स्वयं भी कविता के विषय में समझ कम है पर मैं यह चाहती थी कि बच्चे अपनी बात को इस तरह लिखें कि कम शब्दों में ज्यादा बात कह पाएं और अगर उसमे लय भी हो तो मजा ही आ जाए।
बात आगे बढ़ाते हुए मैंने श्यामपट्ट पर एक वाक्य लिखा।
पानी के बिना हमारा जीवन अधूरा है।
अब इसी पंक्ति को थोड़ा अलग तरीके से लिखा।
1- पानी बिन जीवन अधूरा
2- बिन पानी अधूरा जीवन
3- पानी बिन अधूरा जीवन
जब इन पंक्तियों में बच्चों से अंतर जानना चाहा तो उन्होंने बताया पहली पंक्ति कहानी या पाठ की है, जबकि बाद की पंक्तियां कविता की हैं। कारण पूछने पर बच्चों ने बताया कि कविता छोटी होती है। शब्द कम होते हैं उनका ज्यादा अर्थ निकालना पड़ता है।
अब मैंने रविना से अपनी कविता पढ़ने को कहा व उसे श्यामपट्ट पर लिख दिया। रविना ने लिखा था।
(Diary of Rekha Chamoli)
पानी आता है गौमुख से
पानी आता पहाड़ों से
पानी आता है नल से
पानी को हम पेड़ पौधों को देते हैं।
पानी का कोई रंग नहीं होता है।
मैंने बच्चों से पूछा क्या इन पंक्तियों को किसी और तरीके से भी लिख सकते हैं ?
हां जी कहने पर रश्मि ने कहा
पहाडों से निकलता पानी
चेतन ने दूसरी पंक्ति जोड़ी
गौमुख का ठण्डा स्वच्छ पानी
इसी प्रकार पंक्तियां जुड़ती गईं-
नल से आता है स्वच्छ पानी
पेड़ पौधे भी पीते पानी
बिना रंग का होता पानी
फिर हमने इस पर बात की कि पहली लिखी पंक्तियों व बाद की पंक्तियों में क्या अंतर है, कौन कविता के ज्यादा नजदीक है?
बच्चों के जवाब आए- दुबारा लिखी पंक्तियां।
क्यों? क्योंकि कम शब्दों में ज्यादा बात कह रही है। अन्त के शब्द मिलते जुलते हैं। मैंने बच्चों से कहा जरूरी नहीं कि हर पंक्ति में अन्त में तुकान्त शब्द आएँ पर हमें कोशिश करनी चाहिए कि हमारी कविता में एक लय हो, कोई बात निकल कर आ रही हो। मैंने बच्चों से अपनी अभी लिखी हुयी कविता को एक बार और ठीक करके लिखने को कहा।
इस बार बच्चों ने अपनी पंक्तियों को और परिष्कृत करके लिखा।
उदा.- कक्षा 3 के बच्चों ने लिखा- (कुछ पंक्तियां)
ईशा – नदिया बहती कल-कल-कल
पानी करता छल-छल-छल
दीपा- कैसे पानी पीते हम
पानी से जीते हम
नितिन- जब मछली पानी से बाहर
आती
इक पल भी वो जी न पाती।
निकिता(4)- ठंडा ठंडा निर्मल पानी
कहानी सुनाती मेरी नानी
पानी बहुत दूर से आता
बर्फ से पानी जम जाता
पर्वत से आता पानी
धरती से निकलता पानी
(Diary of Rekha Chamoli)
प्रिया – (5) पानी होता बहुत अच्छा
इसके बिना न चलता काम
पानी से हम सबका जीवन
इसके बिना सब परेशान
प्रकाश (5) झरने से सब पानी पीते
झरने से बाढ़ भी आती
झरने बहुत सुन्दर दिखते
इसके नीचे हम नहाते
झरने बहुत तेजी से आते
झरने पत्थरों से टकराते।
इस तरह सभी बच्चों ने अपनी-अपनी कविताएँ ठीक की। ज्यादातर बच्चों ने 12-15 पंक्तियां लिखी।
आज मध्यान्तर थोड़ी देर से किया क्योंकि हमारी बातचीत देर तक चली थी। बच्चे अपने काम में तल्लीन थे। जब बच्चों को कोई सार्थक और मजेदार काम मिलता है तो फिर उन्हें समय का ध्यान नहीं रहता। मध्यान्तर के बाद कक्षा 3,4,5 वालों ने अपना काम पूरा करना चाहा क्योंकि सुबह ही यह बात हो गयी थी कि हमें स्कूल में ही यह काम करना है। बच्चों ने आज खेला नहीं। वे काम करने के लिए पेज मांगने लगे। मैंने खुशी, गंगा, अभय की मदद से फटाफट चार्ट पेपर पर पेंसिल से लाइनें खीचीं ताकि बच्चे सीधा-सीधा लिख पाएं। बच्चे अपना काम करने लगे। जिन बच्चों की मात्रात्मक गलतियाँ ना के बराबर थीं, उन्होंने फटाफट अपना पेज तैयार कर लिया। मैंने उन्हें कक्षा 1व 2 के साथ काम करने को कहा। अपने आप बच्चों की कापियाँ चैक करने व पेज में किस तरह काम करना है, आदि बातें बच्चों को बताने लगी। आज गणित में कम काम हो पाया। कक्षा 3 को श्यामपट पर घटाने के मिलान वाले सवाल दिए। 4 व 5 वालों को क्षेत्रफल के सवाल अपनी किताब से करने को दिए। आज भी बच्चों ने अपने समूह में काम किया व बीच-बीच में मुझे दिखाते रहे। मैंने कल पेंट करने के लिए जगह बनायी व आज का काम देखा। आज बच्चों को घर के लिए यह काम दिया कि वे अपने मनपसंद विषय पर कविता लिखकर आएं।
(Diary of Rekha Chamoli)
क्रमश:
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