डरावने सपनों से जंग

केरल के सूर्यानेल्ली में जनवरी 1996 में एक सत्रह साल की लड़की को अगवा करके उसे केरल में कई जगहों पर ले जाया गया और कई व्यक्तियों ने 40 दिन तक उसके साथ बलात्कार करने के बाद उसे अधमरी हालत में उसके घर के पास फेंक दिया। आज वह लड़की 33 वर्ष की है और अभी तक न्याय के लिए संघर्ष कर रही है।

2005 में इस केस पर फैसला देते हुए केरल उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश बसन्त तथा न्यायाधीश के.एस. गफूर की खण्डपीठ ने 35 आरोपियों को बरी कर दिया था तथा एक अभियुक्त की सजा बरकरार रखी थी। इस केस में वर्तमान में राज्य सभा के उपसभापति पी.जे. कुरियन के खिलाफ भी आरोप लगे थे तथा जाँच हुई थी। परन्तु 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने कुरियन की याचिका स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ शिकायत को खारिज कर दिया था।

दामिनी प्रकरण के बाद यह काण्ड पुन: तब प्रकाश में आया जब सूर्यानेल्ली की लड़की ने (उसका यही नाम प्रचलित हो गया है) 29 जनवरी 2013 को सुप्रीम कोर्ट में अपने वकील को पत्र लिखकर कुरियन के खिलाफ आरोपों को खारिज करने वाले आदेश के मामले की फिर से समीक्षा करने की माँग की है। 2 फरवरी 2013 को उसने केरल की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री श्री ओमन चांडी को पत्र लिखकर इस केस की फिर से जाँच कराने की माँग की है। अब सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को बरी किये जाने के आदेश को खारिज करके फिर से केस चलाने के आदेश दिये हैं। पूर्व न्यायाधीश बसन्त ने हाल ही में एक टी.वी. चैनल के साथ बातचीत में यह कहा कि सूर्यानेल्ली की लड़की बाल वेश्या के रूप में इस्तेमाल की गई थी। वह बलात्कार का मामला नहीं था। इस बयान की केरल ही नहीं, पूरे देश में घोर निन्दा की गई। बलात्कार के मामले में पीड़िता के बयान को महत्वपूर्ण मानने तथा कभी भी केस चलाने की व्यवस्था है। वर्मा समिति के बाद तो अब राजनीतिक लोगों की भूमिका की बारबार जाँच होनी लाजिमी है। सूर्यानेल्ली की लड़की ने अभी भी हार नहीं मानी है। यहाँ टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित तथा अरविन्द शेष द्वारा अनूदित इस लड़की के उद्गार इंटरनेट से उद्धृत किये जा रहे हैं।

आपने शायद कभी मेरा नाम नहीं सुना हो! मुझे उस पहचान के साथ नत्थी कर दिया है, जिससे मैं छुटकारा नहीं पा सकती- मैं सूर्यानेल्ली की लड़की हूँ। पिछले सत्रह सालों से मैं इंसाफ पाने की लड़ाई लड़ रही हूँ। कुछ लोग मुझे बाल-वेश्या कहते हैं तो कुछ पीड़ित। लेकिन किसी ने मुझे दामिनी, निर्भया या अमानत जैसा कोई नाम नहीं दिया। मैं कभी भी इस देश के लिए गर्व नहीं बन सकती! या उस महिला का चेहरा भी नहीं, जिसके साथ बहुत बुरा हुआ।

मैं तो स्कूल में पढ़ने वाली सोलह साल की एक मासूम लड़की भी नहीं रह सकी, जिसे पहली बार किसी से प्यार हो गया था। लेकिन उसी के बाद उसने अपनी जिंदगी ही गँवा दी। अब तैंतीस साल की उम्र में मैं रोज डरावने सपनों से जंग लड़ रही हूँ। मेरी दुनिया अब महज उस काली घुमावदार सड़क के दायरे में कैद है जो मेरे घर से चर्च और मेरे दफ्तर तक जाती है।
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लोग अपनी प्रवृत्ति के मुताबिक मुझ पर तब तंज कसते हैं जब मैं उन चालीस दिनों को याद करती हूं, जब मैं सिर्फ एक स्त्री शरीर बन कर रह गई थी और जिसे वे जैसे चाहते थे, रौंद और इस्तेमाल कर सकते थे। मुझे जानवरों की तरह बेचा गया, केरल के तमाम इलाकों में ले जाया गया, हर जगह किसी अंधेरे कमरे में धकेल दिया गया, मेरे साथ रात-दिन बलात्कार किया गया, मुझे लात-घूसों से होश रहने तक पीटा गया।

वे मुझसे कहते हैं कि मैं कैसे सब कुछ याद रख सकती हूँ, और मैं हैरान होती हूँ कि मैं कैसे वह सब कुछ भुला सकती हूँ? हर रात मैं अपनी आँखों के सामने नाचते उन खौफनाक दिनों के साथ किसी तरह थोड़ी देर एक तकलीफदेह नींद काट लेती हूँ। और मैं एक अथाह अंधेरे गहरे शून्य में बार-बार जाग जाती हूँ जहाँ घिनौने पुरुष और दुष्ट महिलाएँ भरी पड़ी हैं। मैं उन तमाम चेहरों को साफ-साफ याद कर सकती हूँ। सबसे पहले राजू आया था। यह वही शख्स था, जिसे मैंने प्यार किया था और जिस पर भरोसा किया था। और उसी ने मेरे प्यार की इस कहानी को मोड़ देकर मुझे केरल के पहले सेक्स रैकेट की आग में झोंक दिया। रोजाना स्कूल जाने के रास्ते में जिस मर्द का चेहरा मेरी आँखें तलाशती रहती थीं, वही उनमें से एक था जिसे मैंने शिनाख्त परेड में पहचाना था और अदालत के गलियारे में मेरा उससे सामना हुआ। उन दिनों… मैं सचमुच उसका कत्ल कर देना चाहती थी। हाँ… अपने उस पहले प्रेमी का़…।

लगभग मरी हुई हालत में उन्होंने मुझे मेरे घर के नजदीक फेंक दिया। लेकिन मेरे दुख का अंत वहीं नहीं हुआ। मेरा परिवार मेरे साथ खड़ा था। मैंने यह सोच कर मुकदमा दायर किया कि ऐसा किसी और लड़की के साथ नहीं हो। मैंने सोचा कि मैं बिल्कुल सही कर रही हूँ। लेकिन इसने मेरे पूरे भरोसे को तोड़ दिया। मेरे मामले की जाँच के लिए जो टीम थी, वह मुझे लेकर राज्य भर में कई जगहों पर गई। उसने मुझे अनगिनत बार उस सब कुछ का ब्योरा पेश करने को कहा जो सबने मेरे साथ किया था। उन्होंने मुझे इस बात का अहसास कराया कि एक औरत होना आसान नहीं है, वह पीड़ित हो या किसी तरह जिंदा बच गई हो।

मेरे दफ्तर में कोई भी मुझसे बात नहीं करना चाहता। मेरे माँ-बाप और कर्नाटक में नौकरी करने वाली मेरी बहन ही बस वे लोग हैं जो मेरी आवाज सुन पाते हैं। हाँ, कुछ वकील, पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भी।
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मेरे परिवार के अलावा कोई भी नहीं जानता कि मैं अपनी गिरती सेहत को लेकर डरी हुई हूँ। लगातार सिर दर्द, जो उन चालीस दिनों की त्रासदी का एक हिस्सा है जब उन्होंने मेरे सिर पर लात से मारा था। मेरे डॉक्टर कहते हैं कि मुझे ज्यादा तनाव में नहीं रहना चाहिए। और मैं सोचती हूँ कि सचमुच ऐसा कर पाना दिलचस्प है।

मैं अपनी नौकरी से नौ महीने के लिए मुअत्तल कर दी गई थी, उस दौरान मेरा ज्यादातर वक्त बिस्तर पर ही कटता था और इसी वजह से वजन भी बढ़ता गया। अब मैं कुछ व्यायाम कर रही हूँ। पूरी तरह ठीक हो पाना एक सपना भर है। लेकिन कुछ प्रार्थनाएँ मुझे जिंदा रखे हुए हैं।

मैं लैटिन चर्च से आती हूँ जो कैथोलिक चर्च में सबसे बड़ा चर्च है। मगर पिछले सत्रह सालों से कहीं भी और किसी भी चर्च में मेरे लिए कोई प्रार्थना नहीं की गई। पवित्र मरियम को कोई गुलाब की माला अर्पित  नहीं की गई और न ही कोई फरिश्ता अपने दयालु शब्दों के साथ मेरे दरवाजे पर आया।

लेकिन मेरा भरोसा टूटा नहीं है। इसने मुझे हफ्ते के सातों दिन चौबीसों घंटे चलने वाले टीवी चैनल देखने की ताकत बख्शी है, जहाँ कानून के रखवाले मुझे बाल-वेश्या बता रहे हैं, और कुछ मशहूर लोग इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि मेरा मुकदमा टिक नहीं पाएगा। यहाँ तक कि जब मैं दफ्तर में वित्तीय धोखाधड़ी के मामले में फंसाई गई हूँ और मेरे माता-पिता बहुत बीमार चल रहे हैं, तब भी मैं खुद को समझाती हूँ कि यह भी ठीक हो जाएगा़… एक दिऩ.!!!
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