हिमा दास : नई उड़न परी
-प्रीति थपलियाल
विश्व खेल जगत में हमारे देश की महिला खिलाड़ियों ने महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। इन्हीं खिलाड़ियों में से एक नाम हिमा दास का है। जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना और अपने देश का नाम रोशन किया है।
(Hima Das)
हिमा दास का जन्म 9 जनवरी 2000 को असम राज्य के नगाँव जिले के कांधूलिमारी गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम रणजीत राय तथा माता का नाम जोनाली दास है। उनके माता-पिता चावल की खेती करते हैं। हिमा चार भाई-बहनों में सबसे छोटी है। हिमा ने अपने विद्यालय के दिनों में लड़कों के साथ फुटबाल खेलकर शुरूआत की थी। वे अपना कैरियर फुटबाल में देख रही थीं और भारत के लिए खेलने की उम्मीद कर रही थीं। फिर जवाहर नवोदय विद्यालय के शारीरिक शिक्षक शमशुलहक की सलाह पर उन्होंने दौड़ना शुरू किया। रामकुल हक ने उनकी पहचान नगाँव स्पोर्टस एसोसिएशन के गौरी शंकर राय से कराई। फिर हिमा दास जिला स्तरीय प्रातियोगिता में चयनित हुई और उन्होंने दो स्वर्ण पदक जीते। जिला स्तरीय प्रतियोगिता के दौरान स्पोर्टस एण्ड यूथ वेलफेयर के नियोनदास की नजर उन पर पड़ी और उन्होंने हिमा दास के परिवार वालों को हिमा को गुवाहाटी भेजने के लिए मनाया जो कि उनके गाँव से 140 किमी. दूर था। पहले मना करने के बाद उनके घर वाले भेजने के लिए तैयार हो गए।
बचपन में हिमा का इरादा फुटबालर बनने का था। अपने शुरूआती दिनों में हिमा अपने धान के खेतों में ही दौड़ा करती थी। अपने क्षेत्र में छोटे-छोटे फुटबाल मैच खेलकर वह सौ या दो सौ रुपये जीतती थी। फुटबाल खेलकर हिमा का जज्बा व स्टेमिना अच्छा बनता गया।
हिमा के माता-पिता गुवाहाटी में रहने का खर्चा नहीं उठा सकते थे। इसलिये कोच ने कहा कि वहाँ रहने का खर्चा वे स्वयं उठायेंगे। बस आप लोग उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दीजिये। हिमा के माता-पिता की र्आिथक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी उनके गाँव में अक्सर बाढ़ भी आती है। इसलिये परिवार को कई बार र्आिथक नुकसान भी उठाना पड़ता है। कई बार बाढ़ की वजह से हिमा अपना अभ्यास नहीं कर पाती थी और कई बार पानी से भरे खेतों में ही दौड़ने का अभ्यास करती थी। हिमा ने खेल और पढ़ाई के साथ-साथ खेतों में भी काम किया। गुवाहाटी आने के बाद हिमा का कामयाबी का सफर शुरू हुआ। गोल्ड मेडल जीतने के बाद हिमा दास इंडियन एथलीट्स के साथ एलीट क्लब में शामिल हो चुकी है। सीमा पुनिया, नवजीत कौर ढिल्लो और नीरज चोपड़ा की तरह वह ऐसी शख्सिसत बनकर उभरी जिन्हें उनकी कामयाबी ने लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचा दिया। उनके कोच नियोनदास को पूरा विश्वास था कि उनकी शिष्या कम से कम टॉप थ्री में जरूर आयेगी, लेकिन 400 मीटर की रेस में उन्होंने अपनी ताकत का पूरी दुनिया में लोहा मनवा लिया।
(Hima Das)
हिमा दास यूनिसेफ की यूथ एम्बेसेडर भी बन गयी है। मीडिया को दिये गये एक साक्षात्कार में हिमा दास का कहना था कि हमारा संयुक्त परिवार है। सत्रह लोग साथ खाते-पीते हैं। आजकल तो पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं फिर भी एक बच्चे को पालना मुश्किल होता है। हमारे माता-पिता सत्रह लोगोें का परिवार पालते हैं। इसलिए मैं अपनी जरूरतें खुद ही पूरा करती हूँ।
सचिन तेंदुलकर को हिमा अपने लिए प्रेरणास्वरूप मानती हैं और उनके खेल से काफी प्रभावित हैं। उनका कहना है कि यदि लड़कियाँ इस क्षेत्र में आगे आना चाहती हैं तो उन्हें घर से बाहर निकलना पड़ेगा। तभी लोग भी सहयोग के लिए आगे आयेंगे।
ट्रेनिंग के लिये हिमा के पिताजी ने हिमा के लिये 1200 रु. का जूता खरीदा था ये जूता एडीडास का था। सितम्बर 2018 में इसी कम्पनी ने हिमादास को अपना ब्राण्ड एम्बेसेडर बनाया। हिमा की सफलाओं को एक नजर में देखा जाय तो हिमा ने एक महीने से भी कम समय में अन्तर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में पाँच स्वर्ण पदक जीते हैं उनके रिकार्ड की सूची निम्न है-
1- 2 जुलाई, 2019 को पोलैण्ड में आयोजित पाज्नान एथलेटिक्स ग्रैंड प्रिक्स में उन्होंने 200 मीटर में गोल्ड जीता। 23.65 सेकेण्ड का समय लिया।
2- 7 जुलाई, 2019 को उसने पोलैण्ड में कुटनी एथलेटिक्स में 200 मीटर में स्वर्ण पदक जीता। समय 23.97 सेकिण्ड।
3- 13 जुलाई, 2019 को उन्होंने चेक गणराज्य में कल्दनो एथलेक्सि मीट में 200 वर्ग मीटर स्वर्ण जीता। समय 23.43 सेकेण्ड।
4- 17 जुलाई, 2019 उसने ताबोर एथलेटिक्स मीट चेक रिपब्लिक में 200 मीटर की दौड़ में 23 सेकेण्ड का स्वर्ण पदक जीता।
5- 20 जुलाई, 2019 को उन्होंने नोव मेस्ट्रो चैक गणराज्य में 400 मीटर में स्वर्ण पदक जीता, समय 52.09 सेकेण्ड।
(Hima Das)
हिमा दास के पिछले रिकार्ड में गत वर्ष जुलाई माह में उन्होंने फिनलैण्ड के टाम्पेर में आयोजित विश्व अंडर 20 चैंपियनशिप 2018 में 400 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था उन्होंने 51.46 सेकेण्ड का समय निकालकर स्वर्ण पदक जीता था और अन्तर्राष्ट्रीय ट्रैक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय धावक बनीं।
हिमा ने 2018 में एशियाई खेलों में 4 ७ 400 मीटर मिश्रित रिले में रजत पदक भी जीता जो स्वर्ण पदक विजेताओं पर प्रतिबंध के कारण गोल्ड में अपग्रेड है। हिमा ने मिक्सड 4 ७ 400 मीटर स्पर्धा में 2018 जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था।
हिमा 2018 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था तथा 2018 में ही यूनिसेफ इंडिया के भारत के पहले युवा राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया था। हिमा एक अन्तर्राष्ट्रीय इवेंट में स्वर्ण पदक जीतने वाली भोगेश्वर बरुआ के बाद असम की दूसरी एथलीट है। असम सरकार द्वारा उन्हें असम का स्पोर्टस ब्राण्ड एम्बेसेडर नियुक्त किया गया है।
(Hima Das)
हिमा दास सिर्फ 19 साल की है वह भारत की ‘‘नई उड़न परी’’ के नाम से प्रसिद्ध हो रही है। वह दुनिया को बता रही है कि पी.टी. उषा के बाद कोई अन्य धावक भी भारत में है अगर हिमा का प्रदर्शन इसी तरह दिन ब दिन आगे बढ़ता रहा तो यह भी उम्मीद की जा रही है कि टोक्यो ओलंपिक 2020 में ट्रैक और फील्ड स्पर्धाओं में भारत के लिये पदक जीतेंगी।
एक तरफ सरकार समाज में लड़के और लड़कियों की समानता की बात करती है, दोनों को समान शिक्षा, समान अधिकार दिये जाने चाहिए। नारी सशक्तीकरण की बातें जोर-शोर से की जाती है और वहीं दूसरी तरफ देखा जाय तो महिला खिलड़ियों के साथ भेदभाव वाला व्यवहार किया जाता है। मीडिया के द्वारा भी महिला खिलाड़ियों के साथ नकारात्मक व्यवहार किया जाता है। यह लगातार महसूस किया जा सकता है। भारतीय महिला क्रिकेटरों और भारतीय पुरुष क्रिकेटरों की मैच फीस में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं बल्कि अन्य खेलों में भी महिला खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों की तुलना में कम इनाम की राशि, कम भत्ते और सुविधाएँ दी जाती हैं। समाज में महिलाओं के ऊपर जिम्मेदारियाँ ज्यादा हैं और जब वह खेल के मैदान में उतरती है तो उसके लिए चुनौतियाँ भी बहुत ज्यादा होती है।
बनारस के छोटे से गाँव भद्रासी से 19 वर्ष की अंजू पटेल की बचपन से ही खेलों में रुचि थी। वह एक एथलीट है। उसका कहना है कि गाँव में जहाँ लड़कियों को सिर्फ पढ़ाई के साथ सिलाई-कढ़ाई सीखने की सलाह दी जाती है, वहाँ खेल की इजाजत मिलना बहुत ही मुश्किल होता है। मैं अपने गाँव के ही स्कूल में रोज दौड़ने जाती थी इस पर भी लोग तरह-तरह की बातें करते थे। कोई ट्रेनर नहीं था जो सिखाये। हाँ, लोग यह जरूर कहते थे कि ये लड़की तो हाथ से गयी। गाँवभर में दौड़ भागकर न जाने कौन-सा झंडा गाड़ेगी। इसके बावजूद भी लड़कियाँ आगे आ रही हैं। और इन कठिनाइयों से लड़कर बेहतर कर रही हैं। हिमादास इसका ज्वलन्त उदाहरण है।
(Hima Das)
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