सबसे बड़ा ज्ञान वह है जो जीवन को बचाये
दयाकृष्ण जोशी
श्री दयाकृष्ण जोशी नैनीताल हाईकोर्ट में एडवोकेट हैं। वे मूल रूप में बागेश्वर जिले की गरुड़ तहसील के दरसानी गाँव के निवासी हैं। उन्होंने गाँव की पाठशाला से प्रारम्भिक शिक्षा तथा राजकीय इण्टर कालेज गरुड़ से इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त की। पारिवारिक परिस्थितियों के कारण आगे की पढ़ाई ट्यूशन पढ़ाकर व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में पूरी की। 2001 में एल.एल.बी. करने के बाद उन्होंने 2005 से उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की। वकालत के साथ ही वे शराबबन्दी के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इस विषय में पिछले दिनों शीला रजवार तथा उमा भट्ट ने उनके साथ बातचीत की जिसका सार यहाँ प्रस्तुत है।
जोशी जी, सर्वप्रथम हम यह जानना चाहेंगे कि वकालत का व्यवसाय चुनने के पीछे क्या कारण थे ?
बचपन से मेरी इच्छा थी कि नौकरी न की जाय बल्कि स्वतंत्र रूप से कुछ काम किया जाय। नौकरी का मतलब है नौकर होना और नौकर का अपना विवेक नहीं होता। इसलिए मैंने वकालत को चुना।
किस तरह के मामले आप लेते हैं ?
कानून तो कहता है कि कोई भी व्यक्ति आये तो उसकी मदद करो। कोई खून करके भी आता है तो आपका फर्ज है कि आप उसकी मदद करें। लेकिन मेरा अन्त:करण कहता है कि दूसरे रूप में हम उस प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। मैंने निश्चय किया कि मैं जनहित याचिकाएं और जन सेवा के मामले ही करूं। तो अपने आप को बहुत थिनलाइन में मैंने तैयार किया।
शराबबन्दी के अभियान से आप कैसे जुड़े ? यह प्रेरणा कहां से आई ?
मैंने जितना भी ज्ञान अर्जित किया उससे एक बात मेरी समझ में यह आई कि जीवन से बड़ी कोई चीज नहीं है। सबसे बड़ा ज्ञान वही है जो हमारे जीवन को बचाये। गरुड़ में हमारा घर सड़क के किनारे गांव से थोड़ा नीचे है। बचपन में मैं देखता था शाम को शराबी उस रास्ते से हल्ला-गुल्ला करते हुए जाते थे। और कभी-कभी रास्ते में ही पड़े रह जाते थे। फिर उनकी पत्नी या बच्चे उनको ले जाने के लिए आते थे। वे हमसे भी मदद लेते थे कि इनको घर पहुंचा दो। यह रोज का ढर्रा था। हमारे घर के पास ही नदी पार एक मकान था। शाम को वहां रोज मार-पीट, रोना-चिल्लाना होता था। मैं पूछता तो मां कहती, शराब पीकर आया है, मार-पीट कर रहा है। तभी से यह बात दिमाग में बैठ गई कि यह शराब समाज के लिए घातक है। विशेष रूप से बच्चे और महिलाएं इससे परेशान हैं। मन में तभी से यह संकल्प बन गया कि इसके खिलाफ लड़ना चाहिए।
(Interview with D.K Joshi)
आपकी परिस्थितियां ऐसी थीं कि आप यह संकल्प पूरा कर पाएं ?
मेरी आर्थिक परिस्थितियां ऐसी नहीं थीं। लेकिन जब आप अपने मन से कुछ करना चाहते हैं तो अपना बैकअप आपको खुद तैयार करना पड़ता है। दूसरों के सहारे आप बहुत दूर तक नहीं जा सकते।
कब यह शुरूआत हुई ?
1997 में आजादी के 50 वर्ष पूरे हो रहे थे। एक माहौल था परिचर्चा का कि इन पचास वर्षों में देश कहां तक आगे बढ़ पाया है और अभी किन बातों में हम पिछड़े हैं। 15 अगस्त 1997 को मैंने संकल्प लिया कि क्यों न हम व्यसनमुक्त समाज की स्थापना के लिए कुछ कार्य करें। इक्कीसवीं सदी में जो बच्चा पैदा हो, वह व्यसनमुक्त हो। यानी इक्कीसवीं सदी, व्यसनमुक्त सदी। तब से एक योजना बनी कि महीने के हर दूसरे शनिवार को इस विषय पर हम चर्चा करेंगे और कुछ काम करेंगे। तब मैं अपने गांव में रहता था। एम़ ए़ की पढ़ाई पूरी करके कोचिंग संस्थान चला रहा था गरुड़ में। मैं ट्यूशन पढ़ाता था तो विद्यार्थियों के माता-पिता शनिवार की बैठकों में आने लगे थे। एक प्रोग्राम के तहत यह सिलसिला चल पड़ा।
इस काम में आपको जनसमर्थन भी मिला ?
मुझे कई बातें देखने को मिलीं। प्रताड़ित होने के बावजूद महिलाएं खुद आगे नहीं आतीं। इसके सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक कई पहलू हैं। मैंने सोचा, 21 अक्टूबर को मेरा जन्मदिन होता है तो उस दिन यही समारोह होगा कि उन लोगों को सम्मानित किया जायेगा जो नशे से मुक्त होंगे। यही मेरा जन्मदिन का उपहार होगा कि वे नशा छोड़ दें। इस तरह व्यसनमुक्त प्रेरक सम्मान की शुरूआत हुई। इसमें कई श्रेणियां रखी गईं- एक वे जो बचपन से व्यसनमुक्त हैं। 2. जो कभी व्यसन करते थे लेकिन अब छोड़े हुए 10 साल हो गये हैं। 3. इस अभियान के लिए समर्पित महिलाएं और 4. बच्चे जो जागरूक हैं और जागरूकता अभियान में शामिल हैं।
(Interview with D.K Joshi)
गरुड़ के आस-पास के लोगों को ही सम्मानित करते हैं ?
हां, तहसील गरुड़ के आस-पास के होते हैं। हम अलग-अलग श्रेणियों से लोगों का चयन करते हैं। पिछली बार अध्यापकों में से चुने गये थे। इस बार चालक, परिचालक आदि में से चयन करेंगे। इनके लिए धारणा है कि ये नशा करते हैं।
शराबबन्दी के लिये आन्दोलन का कदम भी आपने उठाया है ?
हाँ। 12 अप्रैल 2012 को गरुड़ में हमने एक जनाक्रोश रैली निकाली। उसमें हजारों महिलाएं आयीं। 2017-18 में जब मद्य निषेध विभाग खत्म हुआ तब रैली निकाली, बागेश्वर को अन्य धार्मिक स्थलों की तर्ज पर ड्राइ एरिया घोषित करने की मांग की। मैं कानूनी दृष्टि से भी इस विषय को देखता हूँ। हमारे संविधान के अनुच्छेद 47 में, नीतिनिर्देशक तत्वों के अन्तर्गत साफ लिखा हुआ है कि यह राज्य का कर्तव्य होगा कि वह लोगों के स्वास्थ्य के स्तर को बढ़ाये। जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पेय द्रव्य हैं, इनके प्रतिबन्ध के लिए भी राज्य प्रयास करेगा।
लेकिन सरकारें तो राजस्व की बात करती हैं।
जब उत्तराखण्ड राज्य बना, उस समय शराब से लगभग 271 करोड़ रुपये का राजस्व था। आज वह उसके दस गुना से भी अधिक हो गया है। यानी हम इस राजस्व पर निर्भर होते जा रहे हैं। बाकायदा आप जिलाधिकारी, आबकारी अधिकारी के लिए लक्ष्य तय कर रहे हैं। अगर उस लक्ष्य से कम शराब की बिक्री हो रही है तो उस अधिकारी को निलम्बित किया जा रहा है। अभी चार अधिकारियों को निलम्बित किया गया। उच्च न्यायालय ने उनके निलम्बन पर रोक लगाई है। उत्तर प्रदेश के जमाने में मद्यनिषेध विभाग था, लेकिन जैसे ही अलग राज्य बना मद्यनिषेध विभाग ही खत्म कर दिया गया। शराब की बिक्री तो जारी रखी गई पर जागरूकता का कार्यक्रम जिस विभाग से होता था, वह बन्द हो गया है।
(Interview with D.K Joshi)
आपको ऐसा लगता है कि नशे के व्यापार में वृद्घि के लिए सरकार ही उत्तरदायी है ?
निश्चित रूप से। एक जनतांत्रिक देश के संविधान में जब ये बातें लिखी गईं हैं तो उस पर क्यों विवेचना नहीं होती। शराब से जो नुकसान हो रहा है, वह सरकारों को दिखता क्यों नहीं। कल्याणकारी राज्य की धारणा पर ही ये सरकारें बनी हैं। उनका पहला काम और उद्देश्य है जनता का कल्याण। तो आप कौन सा कल्याण करने जा रहे हैं कि आप साल दर साल शराब की बिक्री बढ़ाते जा रहे हैं। मैं बीमार हो जाता हूँ तो मुझे अस्पताल में भर्ती कराया जाता है। एक व्यक्ति बचपन से शराब पी रहा है। अब वह बीमार हो चुका है। तो इलाज के लिए कोई नशा मुक्ति केन्द्र, कोई पुनर्वास केन्द्र सरकार की ओर से होना चाहिए। स्थिति इतनी भयावह है कि ऐसे कोई केन्द्र हैं ही नहीं। माननीय उच्च न्यायालय का मैं शुक्रगुजार हूँ कि अभी एक फैसला आया है कि सरकार तीन महीने के भीतर हर जिले में पुनर्वास केन्द्र खोले।
सरकार तो कहती है कि विकास के लिए राजस्व चाहिए।
अगर विकास के लिए राजस्व की बात करें तो गरुड़ तहसील से शराब के नाम पर प्रतिदिन चार लाख रुपया जा रहा है। तो आप बताइये यहाँ क्या विकास कार्य हो रहा है? कूड़े का निस्तारण नहीं हो रहा है, नालियां नहीं बन रहीं हैं, पानी-बिजली की उचित व्यवस्था है नहीं, तो ये विकास कहां हो रहा है। अस्पताल या स्कूलों में भी उचित व्यवस्था नहीं है। यह पैसा वापस यहां तो आ नहीं रहा है। इस राजस्व को ये कहां खर्च कर रहे हैं? विदेश यात्राओं में, अतिथि गृहों में, या कहां उड़ा रहे हैं, हमें नहीं मालूम।
किसी राजनैतिक दल के साथ जुड़कर यह काम कर रहे हैं ?
यह समस्या तो राजनैतिक दलों की ही देन है। मैं कभी किसी राजनैतिक दल से नहीं जुड़ा। क्षेत्रीय दल हमारी पीड़ा को समझते हैं लेकिन अब क्षेत्रीय दल भी राष्ट्रीय दलों की गोद में बैठ गये हैं। अन्ना आन्दोलन तथा बाद में आम आदमी पार्टी का समर्थन हमने किया लेकिन वहां भी वही राजनीति आ गई तो उन्हें भी छोड़ दिया।
(Interview with D.K Joshi)
आपके कार्यक्रमों में राजनीतिक दलों का समर्थन रहता है ?
समर्थन तो नहीं मिला लेकिन जब हम आन्दोलन करते हैं तो सत्ता पक्ष वाले कहते हैं, जब हम सरकार में होते हैं, तभी तुम आन्दोलन क्यों करते हो। विपक्ष वाले कहते हैं कि जब हम सत्ता में आयेंगे तो हम तुम्हारी मांग पूरी कर देंगे। इस तरह पक्ष-विपक्ष कोई हमारे साथ नहीं होता।
हमारा यह अनुभव है कि शराब के खिलाफ आन्दोलन में पुरुष वर्ग सहयोग नहीं करता। यह समझ लिया जाता है कि यह महिलाओं का मुद्दा है। क्या आपको भी ऐसा लगता है ?
मैं एक पुरुष होने के नाते ही बाहर आया। महिलाएं मुखरित होकर मेरा समर्थन नहीं कर सकतीं। क्योंकि वे भी पुरुष समाज से कहीं न कहीं दबी होती हैं। यह भी एक विडम्बना है कि आदमी शराब पीता भी है और शराबी कहलाने में बदनामी भी समझता है।
यह बात परिवार की महिला को आन्दोलन में आने से रोकती है कि मेरा बेटा या मेरा पति शराबी है।
आप नैनीताल में हैं लेकिन अपनी गतिविधियों का केन्द्र अपने गांव या कस्बे को बनाया है।
मैं नैनीताल में ज्यादा रहता हूँ लेकिन काम गरुड़ में करता हूँ। इसका कारण यह है कि मैं यह सन्देश देना चाहता हूँ कि आप अपने गांव के प्रति सोचें। वहां सफलतापूर्वक कर दिखायें जो आप करना चाहते हैं। मेरा ध्यान मेरे गांव पर रहता है क्योंकि गांव के लोग मुझे भली भांति जानते-पहचानते हैं और सहयोग करते हैं। सोशल मीडिया में भी मेरे पास सन्देश आते हैं कि आपके अभियान से प्रेरित होकर हमने शराब छोड़ दी है।
(Interview with D.K Joshi)
वे कौन से कारण हैं जिनसे हमारा उत्तराखण्ड नशे में डूब रहा है ?
पहला कारण है उपलब्धता का। पहली बार किसी गांव में सड़क जाती है, तो पहली चीज जो दुकान में आती है, वह है गुटका, तम्बाखू, बीड़ी, सुरती। इसी तरह शराब भी उपलब्ध करा दी जाती है। 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ। न्यायालय उसी संविधान के आधार पर फैसले कर रहे हैं पर आप उसके नीति निर्देशों को नहीं मानते। कानून से जुड़ा जो पुलिस-प्रशासन है, वह बहुत निष्क्रिय है इस मामले में। गरुड़ में हमने 36 पेटी शराब पकड़ी। वह हरियाणा से गरुड़ कैसे पहुंची। कहीं उसको कोई बैरियर नहीं मिला। प्रशासन सजग होता तो रोक लग जाती।
जहां-जहां शराबबन्दी हुई है, वहां शराब तो पहुंच ही जाती है। जैसे गुजरात का उदाहरण दिया जाता है। बिहार में भी अब कानून ढीले किये जा रहे हैं। हरियाणा में एक समय शराब बन्द हुई फिर खोल दी गई। आप इस पर क्या कहेंगे ?
यह एक बुरा पहलू है पर कम से कम सराकारें अपनी मंशा तो जाहिर करें। दूसरी बात है प्रशासन की असफलता। उन असफलताओं का उदाहरण उसको जारी रखने के लिए पेश नहीं किया जाना चाहिए। जो गैरकानूनी है उसके खिलाफ कार्रवाई की बात की जानी चाहिए। यह तो बहुत बुरा तर्क है कि यदि शराब बन्द कर दी जायेगी तो अवैध शराब बिकेगी।
महिलाएं जब आन्दोलन करती हैं तो उनसे तो यही कहा जाता है। यह सबसे बड़ा तर्क होता है कि तुम वैध शराब बन्द करके सरकार का नुकसान कर रहे हो। अब माफिया घर-घर अवैध शराब पहुंचाएगा।
देखिये, उन्होंने तो कहना चाहिए कि कोई भी अवैध शराब बेच रहा हो तो यह टौल फ्री नम्बर है। आप हमें तुरन्त इस पर सूचना दें। आपके प्रदेश में जब शराब खुली है तो हरियाणा की शराब क्यों बिक रही है। चाय की दुकानों में शराब क्यों बिक रही है ? क्योंकि हमारा प्रशासनिक तंत्र मजबूत नहीं है।
(Interview with D.K Joshi)
महिलाओं से कहा जाता है, पहले अपना घर संभालो, अपने पति, अपने बेटे को संभालो। इस पर महिलाएं चुप हो जाती हैं।
इसमें भी दो पहलू हैं। मैं यह अभियान चलाता हूं तो मेरी सहानुभूति शराबियों के प्रति रहती है। आज तक मैंने न तो किसी शराबी के साथ बदतमीजी की, न उसे नीचा दिखाया। वह मुझे बीमार की तरह लगता है। वहां पर एक ही काम संभव है कि उसे चिकित्सा दी जाय। उसके लिए सरकार बताये कि उसे कौन से अस्पताल में भर्ती कराया जाय। सरकार बताये कि जहां-जहां उसने शराब के ठेके खोले हैं, वहां कोई पुनर्वास केन्द्र खोला है।
शराब से होनेवाली दुर्घटनाओं के विषय में भी सरकार मौन है।
निश्चित रूप से जनहानि हो रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि एक आदमी की कीमत आप कितनी लगाते हो। अगर वह बेरोजगार है तो क्या उसकी कोई कीमत नहीं ? जीवन अमूल्य है, उसको संरक्षित करने के लिए आप कुछ भी कर सकते हैं।
आप अपने इलाके में भी काम कर रहे हैं और यहां नैनीताल में भी लोग आपको जानते हैं। आपके काम के प्रति क्या प्रतिक्रियाएं हैं उनकी? माफिया से या नेताओं से कभी कोई टकराहट हुई ?
प्रतिक्रियाएं अच्छी-बुरी कई प्रकार की आती हैं और वे अपेक्षित हैं। जब हम काम करते हैं तो उसका परिणाम अवश्य होता है कितना यह अलग बात है। माफिया या नेताओं से कोई धमकी या सन्देश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अभी तक मुझे नहीं मिला है।
(Interview with D.K Joshi)
इसके अलावा भी कोई अन्य कार्य शुरू किये हैं ?
गरुड़ में हमने सिविल सोसायटी का गठन किया है। अभी इसके बारह सक्रिय सदस्य हैं। पिछले ढाई साल से एक हाइटेक पुस्तकालय चला रहे हैं। आप वहां से गुजरें तो आपका इन्टरनेट चालू हो जायेगा। विद्यार्थियों के लिए वहां प्रतियोगिता की पुस्तकें आती हैं तथा अखबार आते हैं। हम सभी लोग मिल जुलकर इसका खर्चा चलाते हैं। इस बार हमने तय किया है कि किसी गरीब परिवार के विद्यार्थी को अपनी ओर से नर्सिंग का कोर्स करायेंगे। कूड़े का प्रबंधन भी जरूरी है इसलिए ट्रंचिंग ग्राउण्ड और कूड़ा निस्तारण पर भी हमारी नजर है।
रोजगार और विकास को लेकर आप क्या सोचते हैं
हम यह भी सोच रहे हैं कि सड़क किनारे की जो ग्राम सभाएं हैं, उनमें एक दो या तीन मंजिला भवन बन जाए जिसमें एक रेस्टोरेंट, अतिथि गृह और दुकान हो जिसे महिलाएं चलायें, जिसमें स्थानीय उत्पादों की बिक्री हो, पहाड़ी खान-पान हो। हम यह भी सोच रहे हैं कि जिन सरकारी स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं, तो गांव स्तर पर हम इसकी व्यवस्था करें। गांव के ही सम्पन्न व्यक्ति जो विदेशों में रह रहे हैं, उसकी तनख्वाह की जिम्मेदारी लें और गांव के युवक-युवतियों को रोजगार मिल सके। गरुड़ के प्रायमरी स्कूलों में अगले सत्र से इसे हम शुरू करने जा रहे हैं। बागेश्वर में पांच वर्ष पूर्व ट्रॉमा सेन्टर का भवन बन गया था लेकिन चालू नहीं हुआ था। नागरिक मंच बागेश्वर के साथी मिले तो मैंने कहा मैं न्यायालय के माध्यम से प्रयास करता हूं तो माननीय न्यायालय के आदेश से वहां ब्लड बैंक तथा ट्रॉमा सेन्टर की शुरूआत हो चुकी है।
जोशी जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आप बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। उत्तराखण्ड के हर गांव में इस तरह की प्रेरणा चाहिए।
(Interview with D.K Joshi)
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