स्वतंत्र भारत की फिज़ा

Memoir of Uma Anant
उमा अनन्त

गाँधी दर्शन  जितना सरल था, पैठ उतनी गहरी थी। मन-मस्तिष्क को बेधती हुई अन्तर्मन की गहराइयों तक छा जाने की क्षमता रखती थी। मेरी सखी सत्या ने बताया कि उनके पति प्रेमकीर्ति भार्गव मात्र सोलह वर्ष की आयु में वर्धा आश्रम में रहने लगे थे। वे गाँधी जी के अनन्य भक्त रहे हैं। गाँधी जी की मृत्यु की हृदय विदारक सूचना पर उन्होंने अपने बाल उतरवाये। धरती-शयन किया, तेरहवीं तक के सभी अनुष्ठान पूर्ण किये। इस आघात ने उनकी जीवन-शैली को जड़-मूल से प्रभावित कर दिया था। चरखे द्वारा काता हुआ एक-एक धागा गाँधी के विचारों से ओतप्रोत था और उसका प्रभाव न केवल भारत अपितु विश्व के मानस पटल पर भी देखने को मिला। (Memoir of Uma Anant)

देश का अपना संविधान अत्यन्त गौरव की बात है। देश में गणतंत्र दिवस के अवसर पर नाना प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे थे। लाल किले के प्रांगण में ‘कवि सम्मेलन’ का आयोजन किया गया। जिन कवियों ने कवि सम्मेलन में भाग लिया उनमें मुख्य रूप से महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, माखनलाल चतुर्वेदी, सुमित्रानन्दन पंत, मैथिलीशरण गुप्त, नीरज आदि थे। नीरज के कविता मंथन पर पूरा पाण्डाल झूम रहा था। अगले दिन उर्दू मुशायरे का आयोजन किया गया। आजादी की उपलब्धि का सरूर धीरे-धीरे फिजाओं में तैरने लगा था। नई सरगमों पर रियाज किया जा रहा था। विभिन्न देशों के संविधानों को पढ़कर मन्थन किया जा रहा था। कानूनविद् और ज्ञानी लोग संविधान को नया स्वरूप देने को तत्पर थे। नये संविधान के स्वागत के लिये पूरा देश भाव-विभोर हो आतुर था।

चन्द्रशेखर आजाद! तुम्हारे शरीर के रोएं-रोएं से आजाद शब्द ध्वनित होता था, आठवीं कक्षा में मैं पढ़-पढ़कर श्रद्धानत हो जाती थी और बिस्मिल अब तुम्हें कैसे बतायें क्या हमारे दिल में है? मैं तुम्हें बता दूं, तुम्हारे बलिदान रंग लाये हैं। देश आजाद हो गया है और हमारा संविधान भी पूरे जोश-खरोश के साथ बनकर तैयार है।

आज बाबा यह खबर बहुत प्रेम से मां को बता रहे थे। वियतनाम के राष्ट्रपति हो ची-मिन्ह प्रधानमंत्री नेहरू के अतिथि थे। भोज समाप्त होने पर उन्हें एक बेहतरीन नक्काशीदार कालीन भेंट स्वरूप दिया गया। हो ची-मिन्ह ने कालीन की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उसे लपेटकर अपने कंधे पर रख दिया। नेहरू-भवन के कार्यकर्ता जब आगे बढ़कर स्वयं कालीन उठाने को तत्पर हुए तो-ची-मिन्ह ने मुस्कुराते हुए कहा ‘ये तो बहुत हल्का है। मैं स्वयं इसे उठा सकता हूँ। उनकी इस सादगी से उपस्थित सभी लोग हतप्रभ रह गये।’

उस दिन सप्रू हाउस में नृत्यांगना वैजयन्तीमाला का नृत्य होना था। मुख्य अतिथि के रूप में पं. जवाहरलाल नेहरू को आमंत्रित किया गया था। चौथी पंक्ति हमारे पूरे परिवार को आवंटित की गई थी। अभी नृत्य प्रारम्भ हुए पन्द्रह मिनट ही हुए होंगे कि एक भयानक भूचाल से सभागार ऊपर तक हिल उठा। सभागार की बत्तियाँ भी गुल हो गईं। जब भूकम्प का झटका समाप्त हुआ तो सभागार की  बत्तियाँ भी जल उठीं। नृत्यांगना वैजयन्तीमाला ने सम्भलकर फिर नृत्य प्रारम्भ कर दिया। मध्याह्न घोषित कर दिया गया।

तभी बाबा ने पूछा कि उमा, तुम्हारे पर्स में कुछ रुपये हैं, पाँच काफी प्रथम पंक्ति में भेजनी है। मैंने पर्स से रुपये निकालते हुए बाबा से कहा, प्रधानमंत्री नेहरू जी से जरूर कहना कि ‘आज की काफी उमा की तरफ से है।’ कार्यक्रम की समाप्ति पर प्रथम पंक्ति में बैठे पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी स्निग्ध हँसी बिखेरते हुए बाबा से पूछा, उमा किस पंक्ति में बैठी है? मेरे खड़े होते ही ठहाका लगाते उन्होंने कहा, आज की कॉफी के लिए धन्यवाद। मैं खुशी से फूली नहीं समा रही थी।

एक दिन श्री गोविन्द बल्लभ पंत के पी.ए. श्री जानकी प्रसाद पंत ने रामलीला देखने का प्रस्ताव रखा। नई दिल्ली, लोदी रोड में पहाड़ी रामलीला का आयोजन होता था, जो श्री गोविन्द बल्लभ पंत व उनके परिवार को बहुत पसंद था। श्री जानकी प्रसाद पंत की धर्मपत्नी ने ‘ईजा’ (पंत जी की पत्नी) को बताया, ‘उमा बहुत मधुर स्वर में भजन गाती है’। अगले रविवार को मैं बंगला न. 6 में आमंत्रित थी। कुमाउँनी व्यंजनों का रसास्वादन मैंने वहीं किया। भजन सुनकर वे भाव-विभोर हो गईं। भजन के बोल उन्हें बहुत ही प्रिय थे-

‘जिन सेवा साधुओं की किये
तिन योग और ध्यान किये न किये
जिन मात-पिता की सेवा किए
तिन तीरथ-व्रत किये न किये’

आदरणीय गोविन्द बल्लभ पंत के परिवार में मुझे बहुत प्यार मिलता था। उनके पुत्र के.सी. पंत जिन्हें हम ‘राजा भाई’ कहकर पुकारते थे, अत्यन्त अल्पभाषी एवं स्नेहिल भाई के समान थे। पुष्पा और लच्छी के साथ विभिन्न कार्यक्रमों को देखने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। पंत जी की कोठी में एक ‘हवाघर’ भी था, जहाँ कुमाऊँ और गढ़वाल के उच्च शिक्षा प्राप्त युवा एकत्रित होते थे। पंतजी उनकी सहायता के लिये हमेशा तत्पर रहते थे। पंत जी अपने आवास के ड्राइंग रूम में बैठे-बैठे ही अत्यन्त तीव्र एवं पैनी दृष्टि से घर एवं बाहर की गतिविधियों से पूर्णत: परिचित रहते थे। आदरणीय पंत जी का सिर लगातार हिलता रहता था। बाबा ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी गुर्गों ने लाठी से उन पर प्रहार किया था, फिर भी वे उस पर्वत पुत्र का अहित नहीं कर सके। भगत कृष्ण दादा कह रहे थे- ‘ऐसे युग पुरुष बिरले ही होते हैं। चाहे वह अब्राहम लिंकन, र्मािटन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला या लाला लाजपत राय, भगत सिंह ही क्यों न हों’ ऐसे लाखों- मौत से खेलने वाले शहीदों को सलाम। आज मैं बेहद खुश थी। मैं स्वतंत्र भारत की फिज़ा में साँस ले रही थी। (Memoir of Uma Anant)

…क्रमश: