मानसिक स्वास्थ्य : कुछ समय अपने लिए
मृदुला पाण्डे
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यदि हम स्वास्थ्य को परिभाषित करें तो मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा सामाजिक सुखी अवस्था को स्वास्थ्य कहा जाता है। कोई भी व्यक्ति स्वस्थ तब कहलाएगा जब उसे कोई रोग न हो और पूर्णतया स्वस्थ रहना जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। आज के युग में जहाँ एक तरफ भौतिक सुखों को हमने अधिक जरूरी समझ लिया है, हम सामान्य स्वास्थ्य नहीं बल्कि औसत स्वास्थ्य की स्थिति में रहते हैं या रोगों से घिरे रहते हैं।
शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना जितना आवश्यक है उससे कहीं ज्यादा मानसिक स्वास्थ्य को बनाये रखना जरूरी है। आज के विकसित समाज में जहाँ महिलाएँ आत्मनिर्भर बन रही हैं, अपने बौद्धिक विकास के लिए सोचती हैं, घर से काम के लिए बाहर निकलती हैं, वहीं उनकी जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती चली जा रही हैं। घर सम्भालना, बच्चों की देखरेख व अपने कार्यों में वह इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि अपने स्वास्थ्य की तरफ देखना भूल जाती हैं। अगर शारीरिक रूप से कोई लक्षण होते हैं या कोई रोग आता है तो दवाएँ इत्यादि लेकर वह सारे काम सम्भालती रहती हैं परन्तु मानसिक स्वास्थ्य की तरफ वह कभी भी ध्यान नहीं देती। महिलाओं के अधिकांश दर्द और पीड़ा की उत्पत्ति उनके पारिवारिक जीवन, सामाजिक परिस्थितियों व आर्थिक हालातों के कारण होती है।
अब प्रश्न यह उठता है कि कोई भी महिला अपने मानसिक स्वास्थ्य की तरफ कैसे अग्रसर हो? उसे इस दिशा में क्या प्रयास करने होंगे?
मानव मस्तिष्क के दो भाग हैं। बांये भाग में तर्क बुद्धि है तथा दांये भाग द्वारा व्यक्ति अपने अन्त:करण की आवाज को सुनता और परखता है। ये दोनों भाग एक-दूसरे पर आश्रित हैं। यदि इन दोनों में सामंजस्य बैठा लिया जाए तो व्यक्ति कई प्रकार के मानसिक विकारों से बच पाने में सफल हो सकता है। इसके लिए महिला को भावनात्मक बुद्धिमता को समझना जरूरी होगा। अक्सर कहा जाता है कि महिलाएं ज्यादा भावुक हो जाती हैं और ऐसा होता भी है। शब्दों से महिला अधिक प्रभावित होती हैं। निजी भावनाओं जैसे क्रोध, उद्वेग, खुशी, तनाव आदि को पहचान कर यदि वह उन्हें सही तरीके से संयमित एवं निर्देशित कर पाए तो वह एक सफल, शांत व मानसिक विकार रहित जीवन जी पाने में सक्षम बनती है और अपने इर्द-गिर्द के समाज को भी सुखद बना सकती है।
महिलाओं को अपने शारीरिक स्वास्थ्य की तरफ तो ध्यान देना ही चाहिए पर इससे ज्यादा जरूरी है कि वह मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए अपनी भावनाओं का बुद्धि के स्तर पर विकास करे और इस विकास के लिए पाँच मुख्य गुणों को विकसित करने का प्रयत्न करे। स्वयं की पहचान, आत्मसंयम, संवेदनशीलता, प्रेरणा शक्ति और सामाजिक व्यवहार कुशलता की तरफ अपना ध्यान केन्द्रित करना अत्यन्त आवश्यक है।
Mental health: some time for yourself
समस्याएं चाहे बाहरी हों या भीतरी, जब जोरों से दबाव डालती हैं तब मन अपना सन्तुलन खो बैठता है। इसके कारण मन व मस्तिष्क की क्रियाओं में बाधा आती है तथा इनका समन्वय धीरे-धीरे या फिर कभी तेजी से घटने लगता है। यह घटना-बढ़ना व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की अवस्था पर निर्भर करता है अधिक दिनों तक असामान्य स्थिति में रहकर मनुष्य चाहे महिला हो या पुरुष मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाता है और उसके विचार, काम, तौर-तरीके, व्यवहार और दृष्टिकोण असंतुलित हो जाते हैं। इसमें अधिक तीव्रता आने पर व्यक्ति असामान्य बातें करने लगता है। मन की इस प्रकार की असामान्य स्थिति किस भी उम्र व लिंग को कहीं भी और कभी भी प्रभावित कर सकती है।
मानसिक अवसादों के जन्म का एक प्रमुख कारण- तनाव। तनाव हमारे जीवन की वास्तविकता है, मानव जाति को यही तनाव अन्य प्राणि- जगत से अलग करता है। तनाव ही हम सभी के विकास की नींव रखता है और धीरे-धीरे विकास की गति ही तनाव का कारण बन जाती है। जो हमारे पास था यदि हम उसी में सन्तुष्ट हो जाते तो हम पाषाण युग में ही जी रहे होते। जब तक तनाव सकारात्मक है तब तक वह हमारी प्रगति में सहायक है परन्तु यही तनाव जीवन के लिए खतरा तब बनता है जब उसका नकारात्मक रूप सामने आता है। और इस नकारात्मक रूप का जन्म मानव सम्बन्धों के बीच प्रतिद्वंदिता पैदा होने पर होता है।
अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि यह सकारात्मक तनाव या नकारात्मक तनाव क्या है? तनाव तो हमेशा नकारात्मक ही होगा, पर ऐसा नहीं है, तनाव सकारात्मक भी होता है। उदाहरण के लिए हमें कोई महत्वपूर्ण कार्य करना है तो हम उसके बारे में सोचते रहते हैं, उसे किस प्रकार बहुत अच्छे से किया जाय। थोड़ी चिन्ता भी कर लेते हैं कि समय पर खत्म कर पाएं। यह भी सोचते हैं कि काम इतना अच्छा करें कि सबको पसंद आए- यह सब विचार सकारात्मक तनाव पैदा करते हैं और हम अपने कार्य को एक अच्छा रूप देने की तरफ अग्रसर हो जाते हैं लेकिन नकारात्मक तनाव एक छतरीनुमा शब्द है जिसके घेरे में कई तरह की भावनाएँ आती हैं, जैसे कि ईर्ष्या, घृणा, शक, गुस्सा, झूठी आशाएं, बदले की भावना इत्यादि-इत्यादि। तो हम कह सकते हैं कि अप्रसन्नता व व्याकुल करने वाली सोच मिलजुलकर नकारात्मक तनाव पैदा करते हैं, जिससे कि शरीर में अम्लस्राव, रक्तचाप व हृदयगति सब बढ़ने लगते हैं और शरीर की रासायनिकता असंतुलित हो जाती है। इसके विपरीत अच्छी सोच एवं विचार शरीर में ऐसी क्रियाएं पैदा कर देते हैं जिससे व्यक्ति अपने को स्वस्थ महसूस करता है।
अपने को अधिक कार्यकुशल सिद्ध करने की चेष्टा, एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश, अत्यधिक कार्य भार, अमित्रतापूर्ण व्यवहार व वातावरण आदि तनाव का कारण बनते हैं।
अत्यधिक कार्य करने पर या घंटों तक कार्य करने पर भी व्यक्ति थकावट नहीं महसूस करता बशर्ते कि कार्य स्थान (स्थल) का वातावरण उसके अनुकूल हो जबकि विपरीत परिस्थितियों में व्यक्ति कम समय तक काम करने पर भी तनावग्रस्त हो जाता है, कई सारे अध्ययनों के आधार पर यह बात सिद्ध हो चुकी है। सभी नतीजों के आधार पर कहा जा सकता है कि काम से जुड़ी थकावट की स्थिति शारीरिक होने की अपेक्षा कहीं ज्यादा मानसिक होती है।
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इसी प्रकार स्वयं के द्वारा उत्पन्न की गई बहुत सारी समस्याएं हैं जो कुछ विश्वासों, आस्थाओं, विचारों, आदतों या व्यवहार के कारण होती हैं। इन्हीं सब कारणों से घृणा, जलन, बदले की भावना, कल्पनाओं में रहना, रुचि व अरुचि जैसी आन्तरिक भावनाएं उपजती हैं और तनाव का कारण बन जाती हैं।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में गहरे तनाव व मानसिक अवसादों से निपटने के लिए कई तरह की दवाएं हैं परन्तु उनके दुष्प्रभाव कई अधिक हैं। इसलिए क्यों नहीं शुरू से इन समस्याओं को जानने व समझने का प्रयत्न किया जाय।
इसके लिए महिला को घर, परिवार व समाज के उत्तरदायित्वों को निभाते-निभाते कुछ समय अपने लिए भी निर्धारित करना चाहिए। ‘ध्यान’यानी मेडिटेशन तनाव से बचने का एक अच्छा उपाय है। प्रतिदिन कुछ समय के लिए मनपसंद संगीत मानसिक शांति पहुंचाता है। प्रतिदिन शारीरिक व्यायाम करने से शारीरिक शक्ति तो मिलती ही है साथ में मानसिक तनाव को झेलने की क्षमता भी बढ़ती है। महत्वपूर्ण कार्यों को करने के लिए अत्यधिक सोच व अत्यधिक विचारों में समय को बर्बाद न करें। ऐसे कामों को अंत के लिए न छोड़ें, वह भी तनाव का कारण बन जाता है। सही निर्णय व समय पर कार्य करने की आदतें तनावग्रस्त नहीं करती। नियमित योगाभ्यास व आसन भी मानसिक विकारों से बचाने में सहायक होते हैं और मानसिक स्वास्थ्य में अभिवृद्धि करते हैं।
तो बस थोड़ा समय अपने लिए भी निकालना शुरू कीजिए, अपने मन को व विचारों को परखने का प्रयत्न ही आपको अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की तरफ अग्रसर करेगा।
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