कविताएँ
योजक चिह्न
दिव्या
सुना है मैंने
घास के लिए
जंगल जाती
औरतों को
किस्सों
कहानियों में
लेकिन
देखती आ रही हूँ
अपनी माँ को
कई बरसों से
नौकरी पर जाते हुए
हाथ की दराँती
बदल जाती है
कंधे पर लटके
पर्स में
नींबू नमक की जगह
ले लेती हैं
दो रोटियाँ
लौटते वक्त
घास के गट्ठर
बदल जाते हैं
कॉपियों के बंडलों में
बस नहीं बदल पाती है
चेहरे की शिकन
आँखों की उदासी
किस्सों के दर्द पर
भर सकती हूँ
हजारों रुमानी पेज
लेकिन हकीकत
बयाँ
करने में
कलम की जुबाँ
थाम
लेती है चुप्पी
जानते हुए
कि
दर्द की
कोई जात नहीं होती
बदलता है
तो सिर्फ
देश काल वातावरण
उस पर भी
औरत का
दर्द
होता है
सार्वदेशिक
सीमाओं से परे।
माँ तक आते-आते
लगने लग जाते हैं
विराम
जबकि होना
चाहिए उन्हें मेरी कविता का
योजक चिह्न।
(Poem)
पति, बच्चे और प्रेम
सिद्धेश्वर
लड़की/बोलती है
तब/ उसे चुप करा दिया जाता है
कुछ कहती है/ लड़की /तब
काट दी जाती है/ उसकी जुंबा
इसलिए /लड़की/कुछ नहीं बोलती
वो बोलती हैं उसकी आँखें
लड़की कुछ नहीं कहती
किन्तु/ गूंगी नहीं होती लड़की…!
बोलती है/ वह
पति की जुंबा बनकर
खुश होती है
बच्चे की किलकारियाँ सुनकर
तृप्त होती है/लड़की
पति का प्रेम पाकर…!
लड़की प्यार करने लगी थी
खेमकरण ‘सोमन’
लड़की प्यार करने लगी थी किसी लड़के को
जैसे लड़की का भाई भी प्यार करने लगा था
किसी लड़की को
जैसे लड़की की बुआ कभी प्यार करने लगी थी
किसी कवि को
जैसे लड़की के पिता ने प्यार किया था
लड़की की माँ को
जैसे लड़की की माँ ने प्यार किया था
लड़की के पिता को/ कॉलेज में
जैसे लड़की के दादा ने प्यार किया था
लड़की की दादी को
जैसे लड़की के दादी ने प्यार किया था
लड़की के दादा को
(Poem)
मिले थे दोनों जब रेलागाड़ी में
जैसे लड़की की नाना नानी ने प्यार किया था
उसी तरह/ प्यार करने लगी थी लड़की भी
इन दिनों किसी लड़के को
दोस्तो!
ये प्यार करने वाले लोगों का घर है
प्यार के नाम पर दंगा फैलाने वाले/दंगाइयों का नहीं
जरूर मिलता है यहाँ
प्यार करने वालों को उनका प्यार
प्यार चाहे लड़कियाँ करें
या करें लड़के!
बंदिशों के बावजूद
माया गोला
आज मैं बहुत खुश हूँ
क्योंकि आज सुबह मैंने
खिले सुर्ख फूल देखे हैं
गुलाब के
गहरी हरी पत्तियों के बीच
आज मैं बहुत खुश हूँ
क्योंकि आज सुबह मैंने
चिड़ियों को चहचहाते
तितलियों को उड़ते
और सूरज को मुस्कराते देखा है
खुश होने की एक वजह
यह भी है कि
आज सुबह ही
प्रिय से हुआ है मेरा संवाद
और उससे पहले
अखबार में
मैंने पढ़ी है एक अच्छी खबर
औरतों के बारे में
कि उन्होंने लिख दी है
कामयाबी की नई कहानी
तमाम बंदिशों के बावजूद
मुझे धूप में जलने देना
ममता थापा
इतना कोमल ना बनाना
सह ना सकूं मैं ताप
इतना मृदु ना बनाना
जलती रहूं मैं आप
मुझे धूप में जलने देना
माँ! तूफानों में चलने देना
क्योंकि तेरे आँचल को आगे की छाँव
जीवन बरसाती आग से नहीं बचा सकती
(Poem)
उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika
पत्रिका की आर्थिक सहायता के लिये : यहाँ क्लिक करें