ज्योली

गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’

तुम बहुत याद आती हो ज्योली मुझे
जिन्दगी की डगर में हरेक शाम पर
मौसमी सीढ़ियों के हर पायदान पर
तुम बहुत ही सताती हो ज्योली मुझे
तुम बहुत याद आती हो ज्योली मुझे!
वो तू ही है, है तेरी ही आबो-हवा
जिसने मुझ जैसा नालायक पैदा किया
फिर भी है नाज मुझ पर तुम्हें आज भी
बस यही तो जताती हो ज्योली मुझे
तुम बहुत याद आती हो ज्योली मुझे!
वो गधेरों का बढ़ना अभी याद है
वो घरों का उधरना अभी याद है
दो दिलों का बिछुड़ना अभी याद है
अब कहाँ तक ले जाती हो ज्योली मुझे
तुम बहुत याद आती हो ज्योली मुझे
(Poem by Girda)
इस तरह क्यों सताती हो ज्योली मुझे!
मैं न ब्योला बना, तुम न ब्योली बनी
ना तो सर पै उगा सर, न छाती तनी
सिर्फ आँखें झुकीं और झुकती रहीं
मैं न तुमको मिला, तुम न मुझको मिली
भैंस मरती रही, दूध्- दूध किये
कटरा खूंटे बंधा बिना दूध् दिये
हैं मुझे याद अब तक वो आँखें तेरी
हैं मुझे याद अब तो वो आँखें तेरी
जितनी जद है जमीं, आस्माँ में है सर
इस गगन में है उड़ती वो पांखें तेरी
फिर भी तुम याद आती हो ज्योली मुझे
इस तरह क्यों सताती हो ज्योली मुझे!
(Poem by Girda)
– 8 जुलाय 1986

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