राजकुमार कुम्भज की कविताएं

Poem Gungi Chitkar
शिराओं में साहस मिले

मशाल जले, अंधेरा टले
जन-जन में छाए    
चमकता उजियारा भी
नींद न आये अलाव को
काँप-काँप भाग जायें सर्दियाँ
खत्म हो जाये कायरता
डूब रहे लोगों को मिले भले ही तिनका ही
शिराओं में साहस मिले
(Poem Gungi Chitkar)

गूँगी चीत्कार

गूँगी है चीत्कार
अब तो बहरे तक
सुनते नहीं हैं हाहाकार
हिचकियाँ आती है असंख्य सच सच कहते हुए
थक-हार कर खुद से खुद ही पूछता हूँ मैं
कि ऐसे में क्या किया जाए
कि बदले ज़माना
(Poem Gungi Chitkar)

सच कहूँ तो

दूर चला जाऊंगा चाहे कितना भी
आऊंगा, आऊंगा एक दिन अवश्य ही आऊंगा ऐसे ही
इसी एक मरगिल्ले संसार को सुन्दर बनाने की ख़ातिर
जो है उससे बेहतर बनाने की खातिर
खुले आसमान में खिले चाँद की रोटी बनाने की खातिर
सच कहूँ तो बसंत हूँ मैं।
(Poem Gungi Chitkar)

असंभव का संभव

सम्राट ने सोचा कि
चूँकि उसके पास तलवार है चमचम
सोचा मैंने भी कि
चूँकि मेरे पास साहस है सहस्रबाहु
तब क्यों न हो जाना चाहिए संभव
भिड़ जाना एक बार
फिर चाहे क्यों न मिले ईनाम में
सजा-ए-मौत?

उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika