दूर्वादृष्टि संपन्न कवयित्री वीणापाणि जोशी
-बीना बेंजवाल
‘‘बुन्द पड़े बादळ से
गन्ध उठे माटा की,
स्वांदी सी, सौंधी सी,
चेता! गन्ध हर्चणी छ!
कविता जनु आज लगीं गुणमुणौण।’’ (Poet Veenapani Joshi)
‘माटै पिड़ा’ शीर्षक कविता की ये पंक्तियाँ बताती हैं कि कैसे माटी से जुड़ी वीणापाणि जोशी जी की इस संवेदना ने उन्हें कविता के इस पथ का पथी बनाया। यही कारण है कि प्रकृति उनकी इस काव्य यात्रा में सदैव उनकी सखी बनी रही। उनसे पहले गढ़वाली में महिला लेखन के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो विद्यावती डोभाल एवं उनकी पुत्री वसुंधरा डोभाल के बाद उन्हीं का नाम उभरकर सामने आता है। हिन्दी, गढ़वाली एवं कुमाउँनी तीनों भाषाओं को अपने रचनाकर्म से समृद्ध करने वाली साहित्यकार वीणापाणि जोशी जी का जन्म 10 फरवरी,1937 को देहरादून के चुक्खूवाला मोहल्ले में हुआ था। इनके पिता श्री चक्रधर बहुगुणा गढ़वाली भाषा के प्रख्यात लेखक थे। इनकी माता जी का नाम श्रीमती विशेश्वरी देवी था। घर के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक वातावरण का वीणापाणि जोशी जी के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा। वे कहती हैं, ‘‘मेरा घर पुस्तकों का मंदिर था जहाँ मैंने बचपन से ही वैदिक ग्रंथ, धार्मिक ग्रंथ, पुराण, उपनिषद्, राजनैतिक, सामाजिक पुस्तकों से लेकर सम सामयिक पत्र-पत्रिकाओं के रोज दर्शन किए।’’उन्होंने महादेवी कन्या पाठशाला देहरादून से इण्टरमीडिएट करने के पश्चात् आगरा विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासिल की। बी.एड. गढ़वाल विश्वविद्यालय से किया। गद्य एवं पद्य दोनों में समान रूप से लेखन कार्य करने वाली श्रीमती जोशी का सामाजिक कार्यों में भी योगदान उल्लेखनीय है। इस उम्र में भी उन्हें सृजनरत रखने वाली उनके भीतर की अजस्र ऊर्जा दूसरों को भी प्रेरणा देती थी। कवि सम्मेलन हो, सम्मान समारोह या किसी पुस्तक का लोकार्पण, शालीन छवि लिए उनकी गरिमामयी उपस्थिति बरबस अपनी ओर आकर्षित कर देती थी। प्रकृति के जो तत्व उनकी समृद्घ लेखनी के प्रमुख विषय रहे, 6 मार्च, 2020 को यह कवयित्री उन्हीं पंचतत्वों में विलीन हो गईं।
वीणापाणि जोशी जी का स्नेहिल सान्निध्य पाने का गौरव मुझे अट्ठाईस साल पहले सर्वप्रथम गोपेश्वर में मिला था जब वे हमारे निमंत्रण पर ‘प्रयास’ संस्था द्वारा आयोजित चंद्रकुंवर बत्र्वाल स्मृति समारोह में सहभागिता करने पहुँची थीं। उसके बाद तो कई मंचों पर उनका स्नेहाशीष मिलता रहा। उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री अविनाश जोशी जी और हमने 2014 की नन्दा राजजात यात्रा साथ संपन्न की। 17 अगस्त को देहरादून में इन्दर रोड स्थित उनके घर से प्रस्थान करते समय उन्होंने अपने पिताजी द्वारा प्रणीत गीतिकाव्य ‘नौबत’ की प्रति आशीर्वाद स्वरूप दी जिसमें नन्दा पर लिखा प्रसिद्घ गीत संकलित है। पुस्तक रूप में मिला उनका आशीष आज भी उनकी स्मृति को ताजा रखे है। उनसे मेरी अंतिम भेंट 30 अक्टूबर 2019 को उन्हीं के घर पर हुई थी। उस समय वे अस्वस्थ थीं। काफी देर तक बातें हुईं। दिन का भोजन उन्हीं के साथ किया। उस दिन उनकी बड़ी बेटी नीना जी भी वहीं थीं। वीणापाणि जोशी जी की चित्रकला से भी उसी दिन परिचित हुई। इससे पूर्व दूरदर्शन देहरादून द्वारा ‘हमारि माटी पाणी’ कार्यक्रम में ‘द्वी छ्वाळि महिला लिख्वार’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में उन्होंने अपनी रचना यात्रा के शुरूआती दिनों के संबंध में विस्तृत जानकारी दी थी। तब विदित हुआ कि कैसे पारिवारिक जीवन के सभी दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन करते हुए उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता को जारी रखा।
वीणापाणि जोशी जी का पहला गढ़वाली कविता संग्रह ‘पिठैं पैरालो बुरांस’ सन 2003 में प्रकाशित हुआ जिसे उन्होंने अपने पिताजी श्री चक्रधर बहुगुणा जी के जन्म शताब्दी वर्ष पर उन्हें सादर समर्पित किया है। संग्रह में छह उपशीर्षकों में संजोयी गई उनकी कविताओं के विषय में डॉ. गोविन्द चातक लिखते हैं, ‘‘उनकी कविता में एक ओर मातृभूमि की अतीत परंपरा बोलती है, ऋषि-मुनियों जैसी आर्ष मंगलवाणी है तो दूसरी तरफ युग की दी हुई टीसती पीड़ा और बदलती संस्कृति का अहसास भी। ये उनकी विशाल फलक की कविताएँ हैं।’’ पहाड़ की प्रकृति वीणापाणि जोशी जी की कविताओं में समग्र रूप से विद्यमान है। पर्यावरण-संचेतना उनकी कविताओं का प्राण तत्व है। वहाँ पेड़-पौधे हैं, उनकी फूल-पत्तियाँ हैं, वनपाखियों का स्वर है और है सरसता लिए हुए जंगली फलों का विविधता पूर्ण बाहुल्य। हरियाली एवं वन्य जीवों को लीलती ‘बणांग’ उन्हें चिन्ताकुल कर देती है। पहाड़ की नारी की श्रमसाधना का उदात्त चित्रण उनकी कविताओं का प्रमुख विषय है। पलायन की त्रासदी उन्हें व्यथित करती है। उनकी करारी व्यंग्यात्मकता की जद में विकास के साथ-साथ धरातलीय सच्चाई से बेखबर नीति नियन्ता भी आते हैं। वैश्विक समस्याएँ भी उनकी लेखनी से अछूती नहीं रहीं।
वीणापाणि जोशी जी का पहला हिन्दी कविता संग्रह ‘दूर्वा से अक्षय वट तक’ जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है, में प्रकृति की नन्हीं उपादान दूब से लेकर विशाल वट वृक्ष तक पर लिखी कविताएँ संकलित हैं। चार उपशीर्षकों में विभाजित इन कविताओं में वे पर्यावरण के महत्त्व को रेखांकित कर उसके संरक्षण के प्रति समाज को सजग करती नजर आती हैं। वे इस संग्रह के विषय में लिखती हैं, ‘दूर्वा से अक्षय वट तक’ में मैंने समरस समाज की कल्पना की है, जिसमें अधिकाधिक दूर्वाच्छादित क्षेत्र, विविध वनस्पति, मानव मित्र प्राणि जगत, पशु-पक्षी, नन्हें जीव व कीट-पतंगों सहित पर्यावरण के सुखद प्रभाव को समेटने का प्रयास किया है।’’ वीणापाणि जोशी जी की ये दूर्वादृष्टि संपन्नता ही है जो उनसे अक्षय वट तक पर कविता लिखवाकर इस उर्वरा धरती की हरियाली, इसकी रमणीयता को बचाए रखने के लिए जन-मन को प्रेरित करती है।
दूसरे हिन्दी काव्य संग्रह ‘श्याम भंवर कुछ बोल गया’ में वे कहती हैं-
श्याम भंवर कुछ बोल गया!
वर्षों बीते आज न जाने
कैसे आया इस उपवन में?
नील कुसुम का छूट, पराग वह
केसर सुरभित तोल गया!
गीतात्मक प्रवृत्तियाँ लिए कवयित्री के इस काव्य संग्रह में उनके प्रकृति प्रेम के कई बिंब हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं। प्रेम यहाँ बच्चों से लेकर देश तथा समस्त जीव-जगत के प्रति प्रकट होता हुआ अपना शाश्वत विराट रूप पा जाता है। उनकी इच्छाएँ, उम्मीदें, उमंगें समय की परिवर्तनशीलता को स्वीकार करती हुई मंगलमय नूतन गीत रचना चाहती हैं। नारी जीवन की अनुभूतियों की कुशल चितेरी कवयित्री समस्त जीवनानुभवों को भी दक्षता के साथ कविता में पिरोती हैं।
वीणापाणि जोशी जी की एक पुस्तक उत्तराखण्ड की महिलाओं पर केन्द्रित है जिसका नाम है ‘उत्तराखण्ड की महिलाएँ: संघर्ष और सफलता की कहानियाँ’। इसके अलावा ‘गीली माटी सोंधी सी’ नामक एक बाल कविता संग्रह भी उनका प्रकाशित हुआ है। हिमवंत के कवि चन्द्रकुँवर बर्तवाल पर उनके कई शोध निबंध प्रकाशित हुए। उत्तराखण्ड की महिलाओं पर भी वीणापाणि जी ने कई शोध निबंध लिखे। सहस्राब्दी 2001 नव वर्ष कार्ड द्वारा उत्तराखण्ड की विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत प्रवर्तक महिलाओं को सूचीबद्घ करने का प्रथम प्रयास आपने किया। आपकी रचनाएँ नवभारत टाइम्स, अलकनंदा, उत्तरायणी, पर्वतवाणी, उत्तरांचल पत्रिका, वसुधारा, बुग्याल, नूतन सवेरा, डांडी कांठी, हरित वसुंधरा, युगवाणी, दैनिक जागरण, हिमालय दर्पण, अवकाश, दून दर्पण, समय साक्ष्य, उत्तरा, धाद, चिट्ठी-पत्री, शैलवाणी, बुरांस, रन्त रैबार, खबरसार, दुदबोली, घुघुती आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। आकाशवाणी नजीवाबाद एवं पोर्ट ब्लेयर अण्डमान से आपकी वार्ता एवं कविताओं का प्रसारण होता रहा। आप कई साहित्यिक, सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी रहीं। ‘धाद महिला मंच’ की अध्यक्ष का दायित्व भी आपने कुशलतापूर्वक संभाला। संस्कृत, ब्रज, अवधी, पंजाबी एवं अंग्रेजी भाषा का भी आपको अच्छा ज्ञान था। आपके उल्लेखनीय साहित्यिक अवदान को देखते हुए उत्तराखण्ड सरकार द्वारा 2006 में आपको ‘उत्तराखण्ड संस्कृति-साहित्य एवं कला परिषद्’ का सदस्य मनोनीत किया गया।
वीणापाणि जोशी जी को मिले सम्मानों की श्रृंखला में चेतना संस्था द्वारा ‘उत्तराखण्ड गौरव सम्मान’, संस्कार भारती द्वारा ‘कला श्री’, अखिल भारतीय हिन्दी सेवा संस्थान इलाहाबाद द्वारा प्रदत्त ‘साहित्य शिरोमणि’, डॉ गोविन्द चातक सम्मान, जयश्री सम्मान, हिन्दी साहित्य समिति देहरादून सम्मान, अखिल गढ़वाल सभा सम्मान, वसंत श्री सम्मान तथा नागरिक सुरक्षा सम्मान आदि प्रमुख हैं।