प्रश्न जो अभी भी अनुत्तरित हैं

मुनीश

11 दिसम्बर,12 को दिल्ली में पैरामेडिकल छात्रा दामिनी के साथ हुयी गैंगरेप की घटना के बाद देश में उपजे जनाक्रोश से सहमी केन्द्र व राज्य सरकारों के सुर अचानक बदल गये हैं। महिलाओं की सुरक्षा के सवाल पर केन्द्र व राज्य सरकारें गम्भीर दिखाई देने की कोशिश कर रहीं हैं। एकाएक ऐसा लगने लगा है कि सरकारें महिलाओं की सुरक्षा के सवाल पर बेहद संवेदनशील हो गयी हैं। महिला हेल्पलाइन, महिलाओं से सम्बंधित अपराधों के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई, महिलाओं से सम्बंधित अपराधों को लेकर कानून को और भी ज्यादा कड़े करने जैसे फैसले लिये जा चुके हैं। सवाल यह है कि क्या उक्त सरकारी सुधारों से देश की आधी आबादी, उसमें भी गरीब व मध्यम वर्ग की महिलाएं सुरक्षित हो पाएंगी।

दिल्ली की घटना ने 3 वर्ष पूर्व रामनगर में  हुये महिमा हत्याकांड की यादों को ताजा कर दिया। 23 नवंबर,2009 को रामनगर में सनसनी फैल गयी जब एक छोटी बच्ची का क्षत-विक्षत शव भवानीगंज के एक गड्ढे में दबा हुआ पाया गया। किसी शैतान द्वारा बलात्कार के बाद इस नन्हीं सी जान को कूट-कूट कर मार डाला गया था। प्रथम दृष्ट्या तो बच्ची के परिजन भी उसे नहीं पहचान सके थे। बच्ची के कुण्डलों व कपड़ों से उसकी शिनाख्त हो पायी थी। यह बच्ची कोई और नहीं थी,7 वर्षीय महिमा सेठ थी जिसका 17 नवंबर को पैठ पड़ाव के एक विवाह समारोह से रात्रि में अपहरण हो गया था। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के अनुसार महिमा की मौत ब्रेन हेम्रेज तथा सदमे के कारण हुयी है। उसके गुप्तांगों से खून निकलने के बावजूद भी उसके साथ बलात्कार की पुष्टि स्लाइड टेस्ट में नहीं हो पायी थी। अपराधी इतना शातिर रहा होगा कि उसने बलात्कार के दौरान ऐसे उपकरणों का प्रयोग किया हो कि जांच से सीमेन पोजिटिव नहीं आया हो। हत्या से पहले महिमा लगभग 4 दिन तक अपराधी की कैद में रही थी।

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ममता हत्याकांड

एकदम अप्रत्याशित और बर्बर  घटना थी नैनीताल शहर के लिये ममता हत्याकाण्ड। जिला परिषद् कार्यालय में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी श्री दिवान सिंह बिष्ट की नौ वर्षीया पुत्री ममता जो नगरपालिका स्कूल में कक्षा चार में पढ़ती थी, रोज की ही तरह, 20 सितम्बर 1992 को ‘पोटली बाबा की देखकर घर से निकली थी। छात्रनेता को साथ ले गये, तब पुलिस ने रिपोर्ट तो लिख ली लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की। 22 सितम्बर को उत्तरा पत्रिका के सदस्यों और पड़ौस की महिलाओं के साथ जब ममता की माँ तत्कालीन जिलाधिकारी श्री सूर्यप्रताप सिंह से मिली, तब पुलिस पर दबाव बना। ममता तो नहीं मिली 24 सितम्बर को उसकी मृत देह पाषाण देवी मन्दिर के पास मिली। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उसके साथ बलात्कार हुआ था। उसकी आँखे फोड़ दी गई थीं, शरीर पर सि से जलाये जाने के से निशान थे, जिसे पुलिस वाले मछलियों द्वारा खाया जाना बता रहे थे। 27 सितम्बर को नैनीताल के नागरिकों द्वारा ममता को श्रद्घांजलि देते हुए सभा की गई 29 सितम्बर को नैनीताल में अभूतपूर्व बंद रहा और बड़ी संख्या में लोग जुलूस में शामिल हुए।

इस घटना के विरोध में जनान्दोलन निरंतर चलता रहा। महिलाएँ शहर के गणमान्य लोगों छात्रसंगठन और सभी संगठननिरंतर प्रशासन और पुलिस पर दबाव बनाये रहे। 20 अक्टूबर को कमिश्नरी का घेराव किया गया। प्रशासन से टकराहट की नौबत भी आई। महिलाओं ने 2 नवम्बर से क्रमिक अनशन करने की घोषणा की। प्रशासन ने महिला संघर्ष समिति को बातचीत के लिये आमंत्रित किया। बातचीत में जाँच को सी.बी.आई. को सौंपने की बात तय हुई।  बाद में इसमें सी.बी.सी.आई.डी. जाँच हुई। लेकिन अपराधियों का कोई सुराग नहीं मिला। यदि रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस सक्रिय हो गई होती तो शायद ममता की मौत को टाला जा सकता था। इस घटना ने शहर के हर वर्ग-उम्र के लोगों को आहत किया दामिनी की ही तरह लम्बे समय तक श्रद्घांजलि देने और दोशियों को पकड़ने व सजा देने की माँग का सिलसिला चलता रहा। 14 नवम्बर को बाल दिवस पर महिला संघर्ष समिति द्वारा आयोजित एक बालसभा में शहर के सभी विद्यालयों ने भागीदरी की और अपने कथनों व स्वरचित कविताओं के माध्यम से अपनी संवेदना को व्यक्त किया।

आगे जब मन्दिर-मस्जिद विवाद ने तूल पकड़ा और सरकार ही बर्खास्त हो गई तो अन्य मामलों की तरह यह भी अनसुलझा ही रह गया। जिसकी टीस अब भी बाकी है और सवाल अनुत्तरित।

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घटना के बाद रामनगर की जनता हजारों की संख्या में सड़कों पर उतर आयी थी। पुलिस हत्यारों तक पहुँचने में नाकाम साबित हुयी। जनता ने महिमा हत्याकांड के खुलासे के लिये सी़बी़आई जांच की मांग की। रामनगर गुस्से की ज्वाला से धधक रहा था। तत्कालीन जिलाधिकारी ने भी शासन को पत्र लिखकर महिमा हत्याकांड के खुलासे के लिये सी़बी़आई. जांच की संस्तुति की थी परन्तु सी़बी़आई जांच आज तक नहीं हो पायी है। जनता ने संयुक्त संघर्ष समिति गठित कर रामनगर के विधायक दीवान सिंह के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर सी़बी़आई. जांच की मांग की। तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने जनता की एक भी न सुनी। हद तो तब हो गयी जब हत्याकांड के कुछ माह बाद अगस्त 2010 में मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ अपनी सरकार की उपलब्धियों के बखान के लिये एक जनसभा को सम्बोधित करने रामनगर आए। जनसभा कार्यक्रम में अपनी पुत्री के साथ हुये निर्मम हत्याकांड की सी़बी़आई. जांच की मांग का ज्ञापन लेकर महिमा के पिता संजय सेठ मुख्यमंत्री की सभा में पंहुचे। मुख्यमंत्री द्वारा संजय सेठ का ज्ञापन लेकर सी़बी़आई. जांच के आदेश देने की जगह मुख्यमंत्री की पुलिस व सुरक्षा बलों ने संजय सेठ को गिरेबां पकड़कर सभा से बाहर निकाल दिया और उन्हें तब तक रामनगर कोतवाली में हिरासत में रखा जब तक कवि हृदय,साहित्यकार, पत्रकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक’का हेलिकॉप्टर रामनगर से उड़ नहीं गया। देश में एक पिता के लिये इससे बड़ा दुर्र्भाग्य नहीं हो सकता कि जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार का मुखिया पीड़ित की फरियाद सुनने की जगह फरियादी को धक्के मारकर बाहर कर दे।

13 वर्ष पूर्व, अक्टूबर 1999 में 11 वर्षीय वंदना लकड़ी के पैसे लेने के लिये बिस्कुट फैक्ट्री गयी थी। उसके बाद वह वापस नहीं लौटी। वंदना की क्षत विक्षत लाश रेलवे स्टेशन के पास झाड़ियों मे पड़ी मिली थी। पुलिस ने बिस्कुट फैक्ट्री के मालिक पर वंदना की नरबलि देने का मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया और जनक्रोश दबा दिया। तीन माह बाद क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन ने न्यायालय से पोस्टमार्टम रिपोर्ट हासिल की। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में वंदना की मौत का कारण तेजाब से जलना था तथा रिपोर्ट में उसके साथ बलात्कार की पुष्टि भी की गयी थी। शहर की आक्रोशित जनता के आंदोलन के दबाव में प्रशासन ने तत्कालीन थानाध्यक्ष कुशवाह को लाइन हाजिर कर, मजिस्ट्रेटी जांच की घोषणा की। बावजूद इसके वंदना के हत्यारे आज तक पकड़े नहीं जा सके हैं।
Questions that are still unanswered

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मुजफ्फरनगर काण्ड

2 अक्टूबर 94 की रात उत्तराखण्ड के निहत्थे, बेगुनाह व शान्तिपूर्ण आन्दोलनकारी नागरिकों को, जो कानून के दायरे में अपनी माँगों के समर्थन में प्रदर्शन हेतु दिल्ली जा रहे थे, मुजफ्फरनगर से 3 किमी़ दूर रामपुर तिराहे पर जनपद के प्रशासन द्वारा अनधिकृत रूप से रोका गया, मार-पीट की गई, गोलियाँ चलाई गई, महिलाओं के साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया। इस घटना के तुरन्त बाद राष्ट्रीय महिला आयोग, पी़यू़सी़एल़, जनवादी महिला समिति, मानवाधिकार आयोग सहित अनेक स्वैच्छिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों व समाचार मायमों की टीमों ने घटना स्थल तथा गढ़वाल मण्डल का दौरा किया और अपनी प्रारम्भिक जाँच में उपरोक्त तथ्यों को सत्य पाया। जब उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने उत्तराखण्ड संघर्ष समिति तथा अन्य की याचिकाओं पर सी़बी़आई़क को जांच का आदेश दिया तो सी़बी़आई़ ने इस पर समय न होने का बहाना बनाया। अन्तत: उच्च न्यायालय को कहना पड़ा कि इस देश की आम जनता के लिए भी सी़बी़आई़क के पास कुछ समय होना चाहिए। जांच शुरू हुई तो कुल 660 सम्बन्धित मामलों में से केवल 63 मामलों की ही जांच सी़बी़आई़क कर पाई। उसने कुल 28 मौतों की पुष्टि की। 597 मामले ऐसे रह गये जिनकी जांच ही न हो सकी। आखिर वे कौन से मामले थे। जिन 63 मामलों की जांच हुई उनमें से भी कितने मामलों पर मुकदमा चला यह स्पष्ट नहीं है। उत्तराखण्ड जनमोर्चा की एक रिपोर्ट के अनुसार न्यायालयों में इस समय केवल 11 मामले चल रहे हैं। ऐसी स्थिति में बकाया मामलों का क्या हुआ ? उच्च न्यायालय ने मुजफ्फरनगर काण्ड के लिए जिम्मेदार उ़प्ऱ सरकार के 13 अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के निर्देश भी दिये। अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने में देरी किये जाने के कारण सी़बी़आई़ की कैम्प अदालत ने 13 अधिकारियों को बरी कर दिया। यह देरी सरकार द्वारा मुकदमा चलाने की अनुमति दिये जाने/ न दिये जाने के विवाद के कारण हुई थी। भले ही केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने जन दबाव के कारण उच्च न्यायालय में रिविजन की याचिका लगाई थी जो खारिज हो गई। 

राज्य बनने के 12 वर्ष बाद भी मुजफ्फर नगर काण्ड (1994) के छिटपुट मुकदमे देहरादून, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद में चल रहे हैं पर लूट, आगजनी, हत्या व बलात्कार के इन मामलों में आज तक किसी को सजा नहीं हुई।

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4 अक्टूबर, 2009 लालकुआं क्षेत्र में हुए प्रीति शर्मा हत्याकांड के विरोध में समूचे क्षेत्र की जनता सड़क पर उतर आयी थी। गैंगरेप व हत्या के इस मामले में पुलिस प्रशासन ने भाष्कर नाम के एक युवक को गिरफ्तार कर, मामले को खत्म करने का प्रयास किया। गैंगरेप बताने वाली पुलिस का उक्त खुलासे पर किसी को भी यकीन नहीं हुआ कि  एक व्यक्ति इस कांड को अंजाम दे सकता है। अत: जनता ने संगठित होकर सी़बी़आई. जांच की मांग की। जनता के दवाब में आकर भाजपा की राज्य सरकार ने मामले की सीबीआई जांच के लिये केंद्र सरकार को संस्तुति के लिये लिखा। परन्तु केन्द्र की कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू़पी़ए़ सरकार ने सीबीआई जांच के आदेश आज तक नहीं दिये हैं। उल्टा पुलिस ने सीबीआई जांच की मांग कर रहे आंदोलनकारियों पर राजद्रोह जैसी संगीन धाराएं लगाकर लालकुआं की बिंदु गुप्ता समेत 5 लोगों को जेल में ठूंस दिया था। न्याय के मंदिर मा़ उच्च न्यायालय ने भी आज तक प्रीति शर्मा के पिता हेमचन्द्र शर्मा की सी़बी़आई. जांच की याचिका को पिछले 4 वर्षों से लम्बित रखा हुआ है। गरीब बेटियों के लिए देश में न्याय का क्या अब यही मतलब है?

प्रीति शर्मा हत्याकांड की सी़बी़आई. जांच की मांग करने वाले लोगों में वर्तमान श्रम मंत्री लालकुआं के विधायक हरीश चन्द्र दुर्गापाल भी थे। लालकुआं की जनता को उम्मीद थी कि वे चुनाव जीतने के बाद प्रीति हत्याकांड की सी़बी़आई जांच के आदेश करवाएंगे। सत्ता सुख में मदहोश विधायक आज अपना कर्तव्य भूल गये हैं। आज यदि महिलाएं समाज में असुरक्षित हैं तो इसका एक कारण सत्ताधीशों का असंवेदनशील तथा स्वार्थी हो जाना भी है।

महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने का स्वांग करने वाली सरकारों की क्या महिमा, प्रीति, वंदना, जैसी बेटियों-महिलाओं के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है। सरकार चाहे किसी भी दल की हो, सभी का चरित्र लगभग एक जैसा ही है।
Questions that are still unanswered

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