संगिनी बैंक : आर्थिक सशक्तीकरण की टूटती डोर
किरन त्रिपाठी
मुंबई के रेडलाइट इलाके कमाठीपुरा की लू भरी संकरी गलियों में ऐसी रिहायशें हैं, जहां देश के विभिन्न भागों से लाई गई अनेक महिलाएं बदहाली का जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। भारत में यौनकर्मियों की बड़ी संख्या को बलपूर्वक, उनका अपहरण करके और हिंसा के जरिए इस पेशे में पहुंचाया जाता है। इनमें से कई तो बाल्यावस्था में ही मानव तस्करी के माध्यम से लायी जाती हैं तो कुछ निम्न परिवारों की लड़कियों और महिलाओं को नौकरी आदि का लालच देकर किसी बहाने बहला-फुसलाकर देह व्यापार के दलदल में धकेल दिया जाता है। कुछ खास उत्पीड़ित जातियों की महिलाओं को भी गुलाम बनाकर इस पेशे के लिए मजबूर किया जाता है। अनेक महिलाओं को सुरक्षित और उचित मजदूरी वाले काम के अभाव में जीवित रहने के लिए इस शोषक व्यवसाय को अपनाने के लिए बाध्य होना पड़ता है। घरेलू हिंसा, अशिक्षा, बेरोजगारी, गरीबी, असुरक्षित प्रवास, बाल विवाह आदि इसके प्रामाणिक कारण हैं। कुछ युवा लड़कियों को उनके अत्यंत निर्धन परिवार वेश्यालय के मालिकों को विक्रय कर देते हैं। अपने परिवारों की र्आिथक सहायता करने की विवशता अथवा यहां से निकल भागने में अक्षम होने के कारण मजबूरन ये महिलाएं इसे अपना भी लेती हैं, पर पुनर्वास की आकांक्षा हमेशा ही अधिकांश के मन-मस्तिष्क में बनी रहती है। एक बार इस पेशे में आने के उपरांत इनके लिए अर्थोपार्जन हेतु कोई अन्य बेहतर व्यावसाय अपनाने के रास्ते लगभग बन्द ही हो जाते हैं। कुछ महिलाएं यहां से किसी प्रकार बाहर निकल भी पाईं तो मजदूरी करने के लिए दूरस्थ स्थानों की ओर पलायन कर जाती हैं, जहां पहचान के संकट का प्रेत इनका पीछा न कर सके। यद्यपि इस मकड़जाल से बचकर निकल पाना इनके लिए अत्यन्त दुष्कर कार्य होता है।
(Sangini Bank)
भारत में ‘सप्रैशन ऑफ इम्मौरल ट्रैफिक इन वुमैन एंड गल्र्स एक्ट 1956’ के द्वारा मानव तस्करी को गैर कानूनी घोषित किया गया। 1986 में इसे संशोधित कर ‘इम्मौरल ट्रैफिक प्रिवेंशन एक्ट’ कर दिया गया, जो देह व्यापार के सम्बन्ध में होने वाली तस्करी से जुड़ा है। विश्व में 80 प्रतिशत से अधिक मानव तस्करी देह व्यापार के लिए होती है। भारत में विक्रय की जाने वाली 60 प्रतिशत लड़कियां वंचित और उपेक्षित वर्ग से आती हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 68 प्रतिशत लड़कियों को रोजगार के प्रलोभन द्वारा और 17 प्रतिशत को विवाह का वादा करके वेश्यालयों तक पहुंचाया जाता है। महिला और बाल विकास मंत्रालय की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में तीस लाख से ज्यादा महिलाएं देह व्यापार में संलग्न हैं, जिनमें लगभग 36 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जो 18 वर्ष की अवस्था से पूर्व ही इससे जुड़ गईं। ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस कार्य में लगभग दो करोड़ यौनकर्मी सम्मिलित हैं। वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय अपराध नियन्त्रण ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि भारत में मानव तस्करी की शिकार लड़कियों में से 42. 67 प्रतिशत सिर्फ पश्चिम बंगाल की हैं। देश में देह व्यापार का सबसे बड़ा केन्द्र मुंबई है। पहले भारत के विभिन्न राज्यों तथा बांग्लादेश, नेपाल और म्यांमार से लड़कियों की तस्करी की जाती थी, उसके बाद फिलीपींस, उजबेकिस्तान और कजाकिस्तान से भी इन्हें देह व्यापार के लिए मुंबई लाया जाने लगा। भारत में मानव तस्करी के लिए कड़े कानून होने के बावजूद उनका सख्ती से पालन नहीं हो पाता। पश्चिम बंगाल के ही सोनागाछी के बाद यौनकर्मियों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या मुम्बई के कमाठीपुरा में मौजूद है।
देह व्यापार से जुड़ी महिलाओं की विभिन्न समस्याओं का निराकरण करने के लिए समय-समय पर विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं, व्यक्तिगत प्रयासों, गैरसरकारी संगठनों आदि के द्वारा पहल की जाती रही है। इन्हीं में से एक है, ‘संगिनी कोऑपरेटिव बैंक’, जिसके बंद होने (2017 में) से कमाठीपुरा की यौनकर्मियों की र्आिथक सुरक्षा को आघात पहुंचा। इन महिलाओं के लिए समाज में पहचान का संकट तो होता ही है, इसके साथ ही उनके पास अपने अस्तित्व को साबित करने के लिए कोई आधिकारिक प्रमाणपत्र भी नहीं होता, जैसा कि सामान्य तौर पर देश के अन्य नागरिकों के लिए व्यवस्था है। संगिनी मुंबई का पहला बैंक था जो यौनर्किमयों की सहायता के लिए र्आिथक बचत के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया।
(Sangini Bank)
एक अनुमान के अनुसार कमाठीपुरा क्षेत्र में रहने वाली पांच हजार यौनकर्मी महिलाओं में से अधिकतर के पास किसी मुख्यधारा के बैंक में धनराशि नहीं थी। बचत न होने के कारण उन्हें बीमारी, पारिवारिक संकट आदि आकस्मिक खर्चों को पूरा करने के लिए स्थानीय साहूकारों से कई बार ऊँची ब्याज पर ऋण लेना पड़ता था और र्आिथक रूप से निराशा की इस स्थिति में ऋण के बोझ तले दबकर ये महिलाएं असुरक्षित कार्यों में संलग्न होने के लिए बाध्य हो जाती थीं। दूसरी ओर, अपनी बचत को चोरी आदि से बचाने के लिए यदि वेश्यालयों की मालकिनों अथवा दलालों के पास रखती थीं तो वे अक्सर इन्हें धोखा देते थे। इनके पास अपना धन सुरक्षित रखने के लिये कोई अन्य साधन नहीं थे। कुछ महिलाओं का कहना था कि बैंक में खाता खोलने के लिए उनसे आधार कार्ड और अन्य कागजात मांगे जाते हैं, लेकिन ये दस्तावेज उनके पास न होने के कारण बैंकों की सेवाएं प्राप्त करने में वे पीछे रह जाती हैं। यौनकर्मी महिलाओं की इसी समस्या को दूर करने के लिए 2007 में अमेरिका के’पॉपुलेशन र्सिवसेज इंटरनेशनल’ (पी़ एस़ आई़) नामक एक वैश्विक स्वास्थ्य संगठन के सहयोग से ‘संगिनी महिला सेवा कोऑपरेटिव सोसायटी लिमिटेड’ बैंक की स्थापना हुई थी। संगिनी को इस संस्था से र्आिथक मदद मिलती थी। इसके अतिरिक्त पी़ एस़ आई़. द्वारा संघमित्रा नाम से एक अन्य संगठन भी प्रारम्भ किया गया था, जो इन महिलाओं के स्वास्थ्य रक्षण तथा उनके बच्चों के पुनर्वास से संबंधित था। लेकिन 2010 में पी़ एस़ आई़ ने दोनों संगठनों को सहयोग करना बंद कर दिया। इसके बावजूद संगिनी ने इण्डिया 800 फाउंडेशन से कुछ वित्तीय सहयोग लेकर कार्य जारी रखा, पर कुछ समय बाद यह भी संगिनी से अलग हो गया। इसके उपरांत बैंक को न्याय इण्डिया फाउंडेशन से वित्तीय सहायता मिली। लेकिन तीन वर्ष बाद ही इस न्यास में भी कोष की कमी हो गई, जिसका प्रभाव बैंक के संचालन पर पड़ा।
(Sangini Bank)
संगिनी बैंक पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट क्षेत्र सोनागाछी में स्थित देश के सबसे पुराने उषा सहकारी बैंक के मॉडल पर बनाया गया था। इसके खुलने के साथ ही कमाठीपुरा की पेशेवर यौनर्किमयों को बैंक से जोड़ने का कार्य आरंभ किया गया। इस संदर्भ में ‘द हिन्दू’ समाचार प़त्र तथा कुछ अन्य रिपोर्टों से पता चलता है कि संस्था ने प्रारंभ में वेश्यालयों की मालकिनों और दलालों द्वारा रुकावटें उत्पन्न करने की आशंका के मद्देनजर पहले वर्ष सिर्फ़ सौ ही खाते खोलने का लक्ष्य रखा, पर बैंक के उद्घाटन के दिन ही सौ से अधिक खाते खोल दिए गए। शुरूआत में ही पांच हजार से ज्यादा बैंक खाते खोले गए, जिनमें से तीन हजार खातों में नियमित रूप से पैसे जमा कराए गए। संगिनी में कार्यरत चार स्वयंसेवकों की टीम द्वारा कमाठीपुरा की चौदह गलियों में पैदल घूमकर लोगों से पैसा जमा करके लाया जाता था। जो लोग कार्यालय में आने में सक्षम नहीं थे, उनकी सहायता के लिए बैंक में उनकी फोटो रखी जाती थी और उनके कमरे पर ही उन्हें पासबुक दे दी जाती थी। इस बैंक की ब्याज दरें सरकारी बैंकों के बराबर ही रखी गई थीं। इस प्रकार यह सहकारी बैंक यौनर्किमयों को बगैर किसी परेशानी के र्बैंंकग सेवाएं प्रदान कर रहा था। बैंक के स्वयंसेवक उनके घरों में जाकर नकद राशि जमा करते थे और बेघर लड़कियां भी इसी बैंक में अपने बचत खाते खोल सकती थीं। जल्दी ही कुछ यौनकर्मी महिलाएं स्वेच्छा से बैंक की एजेंट बन गईं और वेश्यालयों में जाकर धन एकत्र कर रसीद सौंपने का काम करने लगीं। बैंक बन्द करते समय खातों की संख्या बढ़कर पांच हजार हो गई थी। पी.एस.आई. की पूर्व राष्ट्रीय समन्वयक शिल्पा मर्चेंट केअनुसार इस बैंक को खोलने तथा इसमें पैसे जमा करवाने का लाभ यह हुआ कि ‘‘कुछ यौन र्किमयों ने अपने बच्चों की शादियां करवाईं, तो कुछ ने यह कार्य छोड़कर दुकानें खोलीं। बैंक उन्हें आजीविका के साधन उपलब्ध करा रहा था।’’ कई यौनकर्मी महिलाओं का कथन था कि इस बैंक के कारण उन्हें पैसे बचाने में काफी सहायता मिली। बैंक के कुछ संस्थापक सदस्यों से जानकारी मिलती है कि इसमें सिर्फ एक तस्वीर के आधार पर यौनकर्मी महिलाओं के बैंक खाते खोले जाते थे। यौनर्किमयों से पैसे लेकर बैंक में जमा करवाने वाली चांद बी का कहना था कि ‘‘संगिनी बैंक में कुछ महिलाओं ने तो पैंसठ हजार रुपये से लेकर पांच लाख रुपए तक जमा कर लिए थे। यहां दो सौ से दो हजार रुपये रोज कमाने वाली महिलाओं के लिए यह एक बड़ी बचत थी’’। इस बैंक ने उन्हें अपने धन को सुरक्षित रखने की सुविधा प्रदान की थी, पर इसके बन्द होने से उनकी भविष्य सम्बन्धी योजनाओं और र्आिथक सुरक्षा को गहरा झटका लगा। संगिनी के कार्यकर्ताओं के अनुसार देह व्यापार के लिए गुलाम बनाई गई महिलाएँ/ लड़कियां अत्यधिक गरीबी में अपना जीवन बिताती हैं। अक्सर शुरू के कुछ वर्षों में तो उन्हें उनकी कमाई में से एक भी पैसा नहीं दिया जाता था, इसलिए इस बैंक का खुलना एक स्वागतयोग्य कदम था। इलाके के यौनर्किमयों के बीच संगिनी की बढ़ती लोकप्रियता का आकलन संगिनी के ऑफिस में कार्यरत अंजलि देसाई के इस वक्तव्य से किया जा सकता है कि एक दिन में एक लाख रुपए तक भी जमा कराए जाते थे। ये महिलाएं बैंक में सिर्फ खाताधारक ही नहीं थीं, अपितु बैंक ने इन्हें धन का प्रबंधन करना सिखाने का भी प्रयास किया। इसने ग्राहकों या वेश्यावृत्ति कराने वालों आदि के द्वारा उनके पैसे चुरा लिए जाने के संकट से भी इन्हें उबारा। किसी बड़ी धनराशि की निकासी के लिए इनके आने पर संगिनी के लोग इनसे इसका कारण पूछते थे और जरूरी न लगने पर छोटी राशि की निकासी करने के लिए समझाते थे। साथ ही इन्हें बैंक में पैसा जमा करने का महत्व भी समझाया जाता था। यौनकर्मी महिलाओं द्वारा वेश्यालय के मालिकों को धन चुकाने के साथ ही अपने भोजन, बिजली, वस्त्र, साफ-सफाई आदि पर व्यय के बाद बाद शेष राशि बैंक में जमा की जाती थी। कुछ ऐसे उदाहरण भी रहे जब पुलिस द्वारा हिरासत में ली गई कुछ महिलाओं ने संगिनी के पदाधिकारियों को जमानत के लिए फोन किया तो बैंक में उनके खाते से धनराशि लेकर कार्यकर्ता पुलिस स्टेशन भी गए। संगिनी के कारण इन महिलाओं को कई प्रकार से सहायता मिली। सायरा चौधरी नामक संगिनी कार्यकर्ता का कार्य घर-घर जाकर धन राशि को एकत्र करना था। इस कार्य के दौरान एक हल्के लाल रंग के ओवरकोट के उसके पहनावे के कारण स्थानीय लोग उसे संगिनी कार्यकर्ता के रूप में पहचान लेते थे। वह प्रतिदिन पचास-साठ महिलाओं से धन राशि एकत्र कर लेती थी। कुछ दिन तो ऐसे भी थे जब उसके द्वारा एक दिन में ही एक लाख रुपए से अधिक रकम जमा की गई। एक ओर जहाँ ग्राहकों की जमाराशि के आंकड़े बढ़ रहे थे, दूसरी ओर संगिनी के सामने अपने संचालन के लिए पूँजी की कमी का संकट खड़ा हो रहा था। इस कमी के कारण मुंबई में ही स्थित उसकी दो शाखाएं बन्द हो गईं और किराया बचाने के लिए वर्तमान कार्यालय में उन्हें समाहित कर दिया गया। इस छोटी-सी जगह का किराया भी तीस हजार रुपए प्रतिमाह था। संघमित्रा स्वयंसेविका के रूप में कार्य कर रही इन्दिरा वासामणि के अनुसार यह कभी भी बहुत आसान काम नहीं रहा। कुछ वेश्यालयों के मालिकों द्वारा उन्हें झाड़ू से या उनके ऊपर पानी डालकर खदेड़ दिया जाता था। पी. एस.आई. द्वारा वित्तीय सहायता बन्द किए जाने के उपरान्त वेतन मिलना भी असंभव हो गया। बहुत से स्वयंसेवकों ने कार्य छोड़ दिया, पर वह तथा तीन अन्य लोग इसमें कार्य करते रहे। उसके कार्यों में महिलाओं में कंडोम का वितरण करना भी था। नाबालिग /कम उम्र की लड़की को देखते ही स्थानीय पुलिस को सूचित किया जाता था। महिलाओं को पहचान पत्र के रूप में संघमित्रा कार्ड भी बनाकर दिए गए, जिनका प्रयोग करके महिलाएं संगिनी के साथ खाता खोल सकती थीं। बी.ए.आई.एफ. फाउंडेशन के साथ कार्यरत तथा संगिनी के न्यासियों में से एक और इण्डिया 800 फाउंडेशन के अध्यक्ष नारायण हेगड़े का कहना था कि ‘‘अगर दस लाख रुपये भी उन्हें मिल जाते तो वह पुन: बैंक चला सकते थे। बैंक ने खाताधारकों को उनकी जमाराशि पर तीन प्रतिशत ब्याज दिया और पूरा धन राष्ट्रीय़कृत बैकों में जमा कर दिया गया, जिससे पांच प्रतिशत ब्याज प्राप्त हुआ। परंतु बैंक बन्द होते समय चालीस लाख रुपए की देनदारी थी और कहीं से भी सहायता न मिल पाने के कारण बैंक को चलाए रखना संभव नहीं हो सका। इस संदर्भ में उन्होंने जानी-मानी हस्तियों से भी संपर्क करने के प्रयास किए ताकि यथोचित सहयोग प्राप्त कर इसे पुनर्जीवित किया जा सके, लेकिन र्आिथक संसाधन तेजी से कम हो रहे थे। संगिनी के कार्य ने इस इलाके की महिलाओं के लिए एक निर्णायक भूमिका निभाई। इन महिलाओं के लिए यह बैंक आर्थिक सशक्तीकरण का मजबूत आधार बन गया था, जिसके कारण उन्हें समाज में हेय समझे जाने वाले देह व्यापार के अवांछित पेशे से निकल कर अन्य व्यवसाय अपनाने या पुनर्वास हेतु आर्थिक सुरक्षा का आधार मिलने की संभावनाएं उत्पन्न हुईं। साथ ही उनके तथा उनके बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के स्तर की बेहतरी के लिए भी यह एक मिसाल बन सकता था। बैंक के बन्द होने के कारण मजबूरी और विवशता में यौनकर्म से जुड़ी महिलाओं के लिए एक बेहतर पहचान बनाने की आकांक्षा और एक स्वतंत्र/ स्वावलंबी व्यक्ति के रूप में उनके अस्तित्व को मान्यता मिलने के प्रयासों को धक्का लगा। हमारी सामाजिक संरचना तथा सामंती सोच हमारे मानवतावादी दृृष्टिकोण पर भारी पड़ते हैं और हमारे व्यक्तिगत दुराग्रह हमें देह व्यापार में संलग्न महिलाओं को एक व्यक्ति के रूप में मान्यता तथा सम्मान देने के सम्बन्ध में पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होते हैं। इसीलिए माना जा सकता है कि बैंक द्वारा यौनर्किमयों की सहायता के लिए चलाए जाने वाले इस सामाजिक सरोकार में फण्डिंग के लिए प्रयास किए जाने पर वित्तीय सहायता मिलने में समस्याएं आईं। वित्तीय सहायता बन्द होने से एक ओर जहां यौनर्किमयों की बचत योजनाओं को झटका लगा, वहीं दूसरी ओर उनके हित में किए जाने वाले दीर्घकालीन विकास कार्यक्रमों को भी हानि पहुंची। इन महिलाओं को परिस्थितियों के दबाव में मजबूर होकर यौनकर्म अपनाने से बचाने, शोषण, हिंसा और उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने, उनके आर्थिक-सामाजिक संरक्षण एवं सशक्तीकरण तथा उन्हें एवं उनके बच्चों/आश्रितों को सामाजिक सेवाएं और पूर्ण नागरिक अधिकार प्रदान करने के साथ ही उन्हें सुरक्षित एवं सम्मानजनक रोजगार दिलाने के लिए संघर्ष आगे बढ़ाने की जरूरत है। देह व्यापार छोड़कर सम्मानपूर्वक जीवन जीने की आकांक्षा रखने वाली यौनकर्मी महिलाओं का सही तरीके से पुनर्वास सुनिश्चित करने हेतु आर्थिक सहायता, रिहायशी सुविधा, मुफ्त शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के प्रयास किए जाएं ताकि पुन: इस दुश्चक्र में फंसकर उनका जीवन बरबाद न हो। इस संदर्भ में जागरूक नागरिकों, महिला संगठनों आदि को आगे आकर आवश्यक कदम उठाने होंगे। संगिनी कोऑपरेटिव बैंक एक ऐसे समय में बन्द हुआ है, जब केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें तक महिला सशक्तीकरण और ’बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा दे रही हैं, तब समाज में उपेक्षित महिलाओं के इस हिस्से के र्आिथक सशक्तीकरण के लिए किए गए एक महत्वपूर्ण और सफल प्रयोग का बन्द हो जाना वर्तमान में चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं पर सवाल खड़ा करता है। अत: सरकार तथा महिला आयोग को भी संगिनी को एक राष्ट्रीयकृत बैंक के रूप में स्थापित करके अथवा उसे र्आिथक सहयोग द्वारा पुनर्जीवित करने का प्रयास करने के लिए पहल करनी होगी तथा मुख्यधारा के बैंकों में इन महिलाओं के खाते खुलवाने हेतु पहचान का संकट दूर करने के लिए भी आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने होंगे। संगिनी ने र्आिथक सुरक्षा का साधन देकर इन महिलाओं के सशक्तीकरण और विकास की दिशा में पहलकदमी की। यद्यपि इनकी समस्याओं के उन्मूलन के प्रयासों में यह एक छोटी-सी पहल के रूप में था, पर इसने समाज के सामने एक उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत किया। यदि इस प्रकार की गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाय तो कमाठीपुरा ही नहीं, देश के विभिन्न भागों में यौनशोषण का दंश झेल रही आधी आबादी के इस हिस्से को उसका हक दिलाने के संदर्भ में अनेक सकारात्मक परिणाम समाज के सामने आएंगे। इन्हें भी सामान्य नागरिक की भांति जीवनयापन का अधिकार तथा समाज में एक मनुष्य के रूप में मान्यता मिलेगी। जब तक इन्हें उपभोग की वस्तु और हेय समझा जाता रहेगा, तब तक मानवाधिकारों का मूलभूत प्रश्न भी अधूरा रहेगा और स्त्रियों के अधिकारों के लिए किए गए ऐतिहासिक संघर्षों की गाथा में यह प्रश्नचिह्न बना रहेगा।
(Sangini Bank)
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