मैं अपनी कमाई और अपनी मेहनत पर जीना पसन्द करती हूँ- सावित्री बिष्ट
आज के दौर में जहाँ महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा चूल्हा-चौकी से लेकर पुरुष-प्रधान समाज की चाहरदीवारी में कैद छटपटा रहा है, वहीं एक छोटा हिस्सा उपभोक्तावाद के शोरगुल और चकाचौंध में कहीं खो सा गया है। ऐसे ही समय में अपनी उम्र के चौथे पड़ाव में पहुँच चुकी सावित्री आज भी युवाओं और महिलाओं को अपने हक के लिए लड़ाई लड़ने की प्रेरणा दे रही हैं। पेश है महिला आंदोलनकारी सावित्री बिष्ट के साथ पूजा भट्ट की हुई लम्बी बातचीत के कुछ अंश-
अपने बचपन के बारे में कुछ बताइये।
मेरी पैदाइश 12 अप्रैल 1942 की है। अल्मोड़ा जिले की रानीखेत तहसील के तल्ला चौकोट क्षेत्र में ग्राम रोटापानी के बंगारी रावत परिवार में मेरा जन्म हुआ था। हम चार भाई-बहन थे। तीन भाइयों की मैं एक ही बहन थी। घर सम्पन्न था। पिताजी होटल चलाते थे इसलिए कभी भी किसी चीज की कमी नहीं रही।
आपने पढ़ाई कहां तक की़…
सात साल की थी, ताऊजी ने तख्ती-दवात देकर स्कूल भेज दिया। मास्टर जी गाँव के एक लड़के से सब्जी मँगाते थे और उसको सबसे ज्यादा नम्बर देते थे। मुझे उनकी यह बात अच्छी नहीं लगी। सो मैंने उनके पूछने पर उल्टे जवाब दे दिये। मास्टर जी ने मुझसे गिनती पूछी। गिनती तो मुझे आती नहीं थी। मेरे 1 के बाद सीधे 15 बोलने पर उन्होंने एक जोरदार थप्पड़ मुझे मार दिया। बस खूब रोई, रोती-रोती घर आई और वहीं पर पढ़ाई को नमस्कार कर दिया। अब कई बार सोचती हूँ कि एकाध जमात पढ़ ली होती तो अच्छा ही होता।
आपका विवाह कब हुआ़….
नौ साल की थी, तब मंगनी हो गयी। 12 साल की होते ही शादी भी हो गयी। उस समय शादी के लिए पैंसे दिये जाते थे। शादी भी उन दिनों अलग ही तरह से होती थी। शादी के दिन खूब बन-ठन कर बारात आई। बाजे-गाजे के साथ नाचते हुए आये लेकिन दूल्हा नहीं आया। उस समय ऐसी भी शादी होती थी। बाराती बारात लेकर ठाठ से आये, घर पर रहे और दूसरे दिन मुझे लेकर चले ससुराल। उस समय फेरे ससुराल में ही होते थे। डोली में गाँव से जाते हुए मुझे निसास लगने लगा। मैंने कहा मेरा दम घुट रहा है तो मुझे छोड़ने आये भाई ने कहा कि तेरा तो बनवास हो गया है रे। इसके बाद मैं और भाई बहुत रोये शाम को बारात पहुँची, मेहमान आये हुए थे। उस समय कुछ अक्कल ही नहीं ठैरी। रात को मेरी सास बोली तुझे नींद क्यों नहीं आ रही है तो मैंने कहा मुझे घर में सोने से पहले दूध देते हैं, यहाँ किसी ने नहीं दिया। मेरी बात सुनकर सब सुन्न हो गये। नाम अक्कल नहीं हुई।
विवाह के बाद आपका जीवन कैसा रहा ……
(Talk with Savitri Bisht)
शादी के बाद ससुराल का जीवन अच्छा रहा। मेरी जेठानी और सब औरतें मुझसे काम करने के लिए नहीं कहते थे। खेत में जब काम पर जाते थे तो वे कहतीं तू तो किनारे बैठकर गीत गा दे……। शादी के दो-चार दिन बाद मेरे आदमी अपने भाइयों के साथ काम के लिए दिल्ली चले गये और एक साल बाद जब सास खतम हो गई तब आये। तब मैंने उनको पहचाना ही नहीं। मायके में किसी बात की कमी नहीं थी। वहाँ के रिवाज के हिसाब से मेरे पति ने सबको एक-एक अठन्नी दी। मुझे भी दी, मैंने फेंक दी, उन्होंने उठाई और जेब में रख दी।
14 साल की हुई तो उनकी नौकरी लग गई। उन्होंने कहा मैं इसे लेने आया हूँ। भिकियासैंण के पास पनपों तक गाड़ी जाती थी। उन्होंने मुझसे कोई बात नहीं की। दोनों चुपचाप रहे। मैं रो रही थी कि पता नहीं कहाँ ले जा रहे हैं।
डेढ़ साल तक गुड़गाँव में रहे। वहाँ मेरा मन नहीं लगा। 1961 में हम अम्बाला आ गये। वहाँ मैंने सिलाई का काम करना सीखा। इसी काम ने मेरे जीवन को आजादी दी। अगले साल हम चंडीगढ़ चले गये और लम्बे समय तक वहाँ रहे। 113 रुपये में सिलाई की मशीन किस्त में ली। उस समय उन्हें 165 रुपये मिलते थे। 4 रुपये में कमरा किराये पर लिया। मैं मकान मालिक के लिए भी रोटी पकाकर देती थी तो वह इनसे चार रुपया लेकर मुझे दे दिया करता था।
सामाजिक कार्यों में आपने कैसे भागीदारी शुरू की ……
(Talk with Savitri Bisht)
चंडीगढ़ में रहते हुए मैं सभी लोगों के दु:ख-सुख में जाती रहती थी। वहाँ अलग-अलग जगहों से आये लोगों ने अपनी-अपनी सभाएँ बना रखी थीं। कुमाऊँ और गढ़वाल सभा भी तैयार की गयी थी। कुमाऊँ सभा के लोग रामलीला करते थे, मैं उधर जाती और सभी कामों में मदद करती थी। बचपन से ही मंच पर चढ़कर बोलने की इच्छा थी। पाकिस्तान के साथ लड़ाई के समय में लोगों के साथ मिलकर बचाव के लिए गड्ढे खोदे। उस समय चंडीगढ़ में 18 सभाएँ थी। मेरा सभी में आना-जाना लगा रहता था। कुमाऊँ और गढ़वाल सभा में सक्रिय भागीदारी रहती थी। हमने एक और सभा तैयार की चौकोट सभा। चौकोट सभा की कार्यकारिणी के लिए मैं अकेली महिला उम्मीदवार थी। चुनाव में मैं निर्विरोध प्रधान बनी। पहली बार माइक से बोलने से पहले तीन दिन तक तैयारी करती रही।
उन्हीं दिनों पंजाब में एक आतंकवादी हमले में कई लोग मारे गये थे। कुमाऊँ और गढ़वाल के भी कई लोग मारे गये थे। उस समय हमने उनके परिवारों को मुआवजा दिलवाने के लिए संघर्ष किया। इसके साथ ही मैं हिमांचल सभा और जाट सभा के साथ भी काम करती रही।
इसी दौरान पति बीमार हो गये। पी.जी.आई. से इलाज चला। मैं उन्हें पीठ में लेकर अस्पताल की सीढ़ियां चढ़ती थी। इलाज में घर का सामान बिक गया, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। घर में रखा 22 तोला सोना बेचना पड़ा। आखिर में वह ठीक हो गये। यही खुशी की बात थी।
उत्तराखण्ड के सामाजिक आंदोलनों से कैसे जुड़ी……
(Talk with Savitri Bisht)
चंडीगढ़ में रहते हुए भी कुमाऊँ और गढ़वाल सभा में भागीदारी करते हुए उत्तराखण्ड की समस्याओं के लिए आंदोलनों में भागीदारी करती रही। उत्तराखण्ड राज्य की माँग को लेकर दिल्ली में रैली का आयोजन किया गया था, उस रैली में हमने खूब मेहनत की और पाँच गाड़ियों में भरकर लोगों को चंड़ीगढ़ से दिल्ली ले गये। मुजफ्फरनगर कांड के समय भी एक गाड़ी में भरकर लोगों को लेकर भागीदारी की। इससे पहले चौकोट सभा की अध्यक्षता छोड़कर रंगमंच में काम करना शुरू कर दिया था। हमने उत्तराखण्ड सांस्कृतिक मंच तैयार किया। मंच में 18 लड़कियाँ और 7 लड़के थे। हम सबने मिलकर उत्तराखण्ड की संस्कृति को लेकर बहुत सी जगहों में कार्यक्रम किये।
इन कामों में आपकी भागीदारी को लेकर परिवार का क्या रवैया था……
समाज सेवा के काम में कभी भी मेरे परिवार ने मुझे मना नहीं किया। पहले पति ने और अब बच्चों ने हमेशा मेरा साथ दिया। मैंने पढ़ाई नहीं की लेकिन मैं हमेशा अपने दम पर खड़ी रही। खुद आत्मनिर्भर रही, इसीलिए सभी ने मेरा साथ दिया। तभी तो कहूँ कि सभी महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होना जरूरी है।
आपके समय में गाँवों में स्वास्थ्य की सुविधाएं कैसी थी……
उस समय गाँव में कुछ भी सुविधा नहीं थी। कहीं पर चोट लग गई तो उस पर मिट्टी लगा देते थे, बस वही दवा हुई। कोई बीमार हो गया तो कुछ जड़ी-बूटी खिला दो। किसी के पेट में दर्द हुआ तो राख मल दो और घुटने में दर्द हुआ तो लोहे की सीक से ताला लगा देते थे। बस हो गयी बीमारी दूर।
उस समय महिलाओं की स्थिति कैसी थी……
(Talk with Savitri Bisht)
उस समय महिलाओं की स्थिति बहुत खराब थी। पेट भर रोटी तक नहीं मिल पाती थी। कपड़े नहीं थे। एक ही कपड़ा होता था, उसी को धोना, उसी को निचोड़ना। बहुओं के साथ बहुत बुरा व्यवहार होता था। आदमी तो बहुत बुरा व्यवहार करते थे। मार-पीट कर घर से निकाल देते थे। महिलाओं की स्थिति पहाड़ हो या तराई सभी जगह एक जैसी ही थी। पहाड़ में हालत ज्यादा खराब थी। तराई में भी मैंने देखा बहुओं को खाने को भी नहीं दिया जाता था। उस समय बहुत कम लोग स्कूल जाते थे। लड़कियाँ तो बहुत ही कम। मेरे साथ की कोई भी लड़की स्कूल नहीं गयी। आज मैं समझती हूँ पढ़ाई कितनी जरूरी है। मैं चाहती हूँ सब पढ़ें। मैंने अपनी बहू को भी पढ़ाया है।
पहले के समाज में और अब क्या अन्तर आया है……
अन्तर तो आया है लेकिन समाज उतना ही बिगड़ भी गया है। आज का समाज बहुत खराब हो गया है। माँ-बाप को चाहिए कि वह अपने बच्चों को समझायें। उनको सही रास्ते पर लायें। उनको अच्छे संस्कार दें। बच्चों को अच्छी शिक्षा दोगे तो ही अच्छा समाज बनेगा। मैं तो कहती हूँ कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून को और सख्त होना चाहिए। जो भी गलती करता है उसे बिल्कुल भी नहीं छोड़ना चाहिए।
हाल में शराब ठेके को लेकर आपने किस तरह संघर्ष किया……
मैं हल्द्वानी में जहाँ रहती हूँ वहीं पास में शराब की दुकान खोल दी गयी थी। उस समय शहर में कई जगहों पर ऐसी दुकानों को हटाने को लेकर लड़ाई चल रही थी। एक दिन मैं उस रास्ते से जा रही थी तो मैंने देखा कि एक गाड़ी में एक आदमी शराब बेच रहा है। मैंने पूछा तो उसने नहीं बताया और गाड़ी लेकर चला गया। बाद में पता चला कि यहाँ पर शराब की दुकान खुलने वाली है। आस-पास की महिलाएँ पहले से ही इसके विरोध में थीं। मैंने सभी को समझाया कि इस लड़ाई में सभी महिलाओं को साथ आना होगा। किसी भी नेता के पीछे जाने की जरूरत नहीं है। हमने लड़ाई लड़ी। रात-दिन धरने पर बैठे। बारिश, गर्मी कुछ नहीं देखी। मुझे देखकर लोग अपने घरों से महिलाओं को भेजने लगे। अब महिलाएँ खुद भी आने लगीं। लोगों ने बहुत सहयोग दिया। कुल 53 दिन तक धरना चला। इलाके के गुण्डा तत्वों से कई बार भिड़ना पड़ा। हमने मजबूती के साथ लड़ाई लड़ी, जनता दरबार में गये, जाम लगाया, भीख मांगकर पैंसा प्रशासन को दिया। आखिर में जीत हमारी हुई।
क्या कभी शराब बंद हो पायेगी……
(Talk with Savitri Bisht)
देखो, बेटा यह हिन्दुस्तान है। यहाँ शराब तो बन्द हो नहीं सकती। हाँ कम जरूर की जा सकती है। बच्चों को नशे से बचाना जरूरी है। जब सब लोग समझदार हो जाऐंगे तो ही शराब पूरी तरह से बन्द हो सकती है।
किसी राजनैतिक दल से क्यों नहीं जुड़े……
देखो, राजनैतिक दलों की कमाई, उनका खर्चा और तरीका मुझे पसन्द नहीं है। मैं इन चीजों से दूर रहना चाहती हूँ। मैं अपनी कमाई और अपनी मेहनत पर जीना पसन्द करती हूँ।
आपके गाँव में क्या कुछ बदला है……
गाँव में कोई बदलाव नहीं आया बाबू। सड़क पहले भी नहीं थी, आज भी नहीं है। इलाज की अच्छी सुविधा भी नहीं है। थोड़ा बहुत अस्पताल खुल गये हैं। पहले पहाड़ बहुत शान्त थे, आज अशान्ति फैल गयी है।
भविष्य में क्या करेंगी……
बाबू हम तो सबके भले-बुरे में लगने वाले ठैरे। जब तक शरीर में ताकत है तब तक तो समाज में जाते रहूंगी। लड़ती रहूंगी।
प्रस्तुति: पूजा भट्ट
(Talk with Savitri Bisht)
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