श्रद्धांजलि-कलावती जोशी: शिक्षण से देश एवंसमाज सेवा तक

प्रेमा पाण्डे

यूँ तो हर व्यक्ति के लिए माता-पिता का सम्बल अनिर्वचनीय होता है पर हमें गढ़ने सँवारने, कठिन परिस्थितियों से जूझने के लिए जिस प्रकार स्वयं पग-पग पर साथ दिया तथा हमें प्रशिक्षित किया वह अविस्मरणीय है।

इनका जन्म दिनांक 14 सितम्बर 1932 को जिला-पिथौरागढ़ के हल्पाटी ग्राम निवासी स्व. श्री बंसीधर पन्त जी एवं श्रीमती विद्यादेवी की प्रथम संतान के रूप में वर्मा (म्यांमार) में हुआ था। छ: भाइयों में सबसे बड़ी इकलौती बहन होने का गौरव प्राप्त माताजी के मन में बाल्यावस्था से ही दायित्वबोध जागृत हो गया था। इनकी शैशवावस्था वर्मा में खेलते-खाते हर्षोल्लास से व्यतीत हो रही थी। नानाजी वहीँ सिंगर कम्पनी में कार्य करते थे। सब कुछ ठीक चल रहा था। किन्तु द्वितीय विश्वयुद्ध के चलते 1940 में जपानी सेना द्वारा वर्मा में बमों की बौछार से वहाँ के निवासियों का जीन दूभर कर दिया था। फलत: नानाजी किसी प्रकार बचते-बचाते सपरिवार अपने पैतृक गाँव हल्पाटी (पिथौरागढ़) आकर रहने लगे। आजीविका हेतु पिथौरागढ़ के सिल्थाम बाजार में किराने की दुकान खोली। इसके साथ ही देश में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में कांग्रेस पार्टी के माध्यम से सक्रिय भागीदारी करने लगे। यहाँ नानाजी के बड़े भाई स्व. श्री प्रयागदत्त पन्त (पिथौरागढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी) जो पहले से ही आन्दोलनों का हिस्सा बन चुके थे। उनके रोल माडल हो गये थे। इन्हीं सबसे देश भक्ति के बीज का आरोपण माताजी के बाल मन में हो गया। एक अवसर पर अंग्रेजों द्वारा कांग्रेस का घर में लगा झंडा हटाये जाने का विरोध करने पर नानाजी को गिरफ्तार कर लिया गया तथा झंडा बचाने में लगी नानीजी को सरकारी कारिन्दों द्वारा बेत मार कर हटाये जाने पर माताजी झंडा लेकर भाग गईं थी इसके लिए ‘बेतों’  की मार भी इन्हें सहनी पड़ी।

अंग्रेजों द्वारा परिवार जनों का उत्पीड़न किये जाने पर अनेक प्रकार की मानसिक प्रताड़नाएँ बचपन में झेलनी पड़ी। नानाजी को व्यापार में सफलता न मिलने पर उन्होंने सिमलगैर मुहल्ले में ‘खादी’ व सिलाई मशीन के पुर्जों का व्यवसाय प्रारम्भ किया लेकिन कुछ समय बाद यह भी बंद करना पड़ा। इसी बीच अर्थाभाव भी झेलना पड़ा। एक छोटा भाई भी दवा के अभाव में संसार छोड़ चल बसा। बाल्यावस्था के खेल कूद के दिन इन्हीं समस्याओं को सर्मिपत हो गये।

स्कूल जाने की अवस्था आने पर इनका दाखिला पिथौरागढ़ के राजकीय कन्या माध्यमिक विद्यालय में करा दिया गया। प्रारम्भिक तथा माध्यमिक शिक्षा इसी विद्यालय से उत्तीर्ण की। उन दिनों स्त्री/बालिका शिक्षा का प्रचार-प्रसार न्यून होने के कारण पिथौरागढ़ में उच्चत्तर शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी। इनकी शिक्षा तथा शिक्षण में उत्कट अभिरुचि को देखकर माताजी के चाचाजी स्व. श्री मथुरादत्त पंत प्रो. संस्कृत, अल्मोड़ा महाविद्यालय ने इन्हें अल्मोड़ा आकर एचटीसी प्रशिक्षण करने की प्रेरणा दी तथा स्वयं अपने परिवार के साथ रखकर अपना सहयोग एवं अशीर्वाद प्रदान किया। अनेक प्रकार की विपरीत परिस्थितियों का सामना कर कष्ट साध्य पैदल यात्राएँ करके इन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया।
(Tribute – Kalavati Joshi)

सन् 1953 में इनकी नियुक्ति सहायक अध्यापिका के पद पर रायकी कन्या माध्यमिक विद्यालय पिथौरागढ़ में हो गई। 1954 में इनका विवाह पिताजी स्व. श्री घनानंद जोशी जी के साथ सम्पन्न हुआ। पिताजी सरस्वती देर्वंसह स्कूल (कालान्तर में इण्टरमीडिएट कालेज) पिथौरागढ़ में अंग्रेजी के अध्यापक थे। अपने क्षेत्र के प्रथम स्नातक (बी.एच.यू.) तथा एल.टी. (आगरा) पिताजी ने अपनी प्रखर बुद्धि एवं लगनशीनता के चलते अंग्रेजी तथा संस्कृत में परास्नातक उपाधि प्राप्त की।

दोनों के समान कार्य क्षेत्र ने मणि कांचन योग बना दिया। पारिवारिक दायित्वों का भली-भाँति निर्वहन करते हुए दोनों ने अपने-अपने विद्यालयों में विशेष ख्याति र्अिजत की। अपनी योग्यता, लगनशीलता, अनुशासन प्रियता एवं शिक्षण कार्य के प्रति असीम निष्ठा के चलते दोनों की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए जिला विद्यालय निरीक्षक पिथौरागढ़ द्वारा वर्ष 1973  में विशिष्ट अध्यापक /अध्यापिका के सम्मान से नवाजा गया। अध्ययन-अध्यापन के साथ विद्यालय के शिक्षणेत्तर कार्यों में उनका योगदान सराहनीय रहा। विद्यालय की आन्तरिक नाश्ते आदि की व्यवस्था हो या टीम दूसरे विद्यालय में ले जानी हो या विद्यालय का कोई  कार्य हो ये अग्रिम पंक्ति में रहती थीं। छात्राओं के एडमीशन से लेकर निर्धन छात्राओं की र्आिथक सहायता करने में इन्हें विशेष अभिरुचि रही। परीक्षाफल सदैव 100 प्रतिशत के निकट रहा। छात्राओं के हितों का ध्यान रखकर स्टाफ की कमी होने पर निम्न वेतनमान में रहते हुए भी अपने  अनुभव एवं स्वाध्याय के आधार पर उच्च कक्षाओं में अध्यापन कार्य किया। कर्म निष्ठा के आधार पर इनकी विशिष्ठता में योग्यता को आधार बनाकर विभाग ने एच.टी.सी से सी.टी. तथा तदुपरान्त स्नातक वेतन क्रम में प्रोन्नति प्रदान की। बी.टी.सी. कक्षाओं में भी अध्यापन किया। यहाँ यह उल्लेख भी समीचीन होगा कि सेवा अवधि में अपने बच्चों (हम लोगों) के साथ पढ़कर व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में यू.पी. बोर्ड से इण्टरमीडिएट तथा कुमाऊँ विश्वविद्यालय से स्नातक एवं परास्नातक (समाजशास्त्र) की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।

सहायक अध्यापिका के रूप में अधिक समय जी.जी.आई.सी. पिथौरागढ़ में रही। प्रोन्नति एवं स्थानान्तरण के फलस्वरूप जी.जी.आई.सी. भवाली, नैनीताल, जी.जी.आई.सी. टनकपुर, जी.जी.एच.एस. गंगोलीहाट (प्रभारी प्रधानाचार्य) जी.जी.आई.सी. टेहरी गढ़वाल (पुरानी टेहरी) जी.जी.आई.सी. ऋषिकेश तथा जी.जी.आई.सी. लक्खीबाग, देहरादून में अपनी सेवाएँ र्अिपत करती रहीं। वर्ष 1993 में जी.जी.आई.सी. लक्खीबाग से सेवानिवृत्त हुईं।

शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों की अनुशंसा से आपको तीन बार पिथौरागढ़ में जिला स्तरीय तथा वर्ष1986 में लखनऊ में राज्य स्तरीय पुरस्कार एवं 2 वर्ष का सेवा-विस्तार प्राप्त हुआ। यह हम सबके लिए अत्यन्त गर्व का विषय है।

इस प्रकार सन् 1953 से 1993 तक 40 वर्षों में आदर्श शिक्षिका, कुशल प्रशासक एवं लोकप्रिय समाज सेविका के रूप में अपनी सेवाएँ अर्पित करते हुए अपने बच्चों तथा विद्यार्थियों के कैरियर एवं व्यक्तित्व निर्माण में विशिष्ट भूमिका अदा की। इनके द्वारा पढ़ाये गये छात्र/छत्राएँ- डाक्टर, वकील, इंजीनियर, शिक्षक, प्रोफेसर एवं सफल व्यवसायियों के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रहे हैं।

माताजी को अपने दो बच्चों की सेवानिवृत्ति का शुभअवसर देखने का भी सौभाग्य एवं गौरव प्राप्त हुआ। हम भाई-बहनों के साथ-साथ हमारे ताऊजी स्व. हीराबल्लभ जोशी जी के 9 बच्चों के शिक्षण एवं विवाह आदि का दायित्व भी पिताजी को सहयोग देकर बखूबी निभाया। पिताजी के विद्यालय में सेवाकाल में दिवंगत चतुर्थश्रेणी कर्मचारी के पुत्र का भी पालन-पोषण कर उसे शिक्षित किया।

इसके साथ ही अपने छोटे भाइयों (मामा लोगों) की शिक्षा-दीक्षा में यथाशक्ति सहयोग देकर उनके बच्चों को जहाँ आवश्यकता पड़ी भरपूर सहायता प्रदान की।
(Tribute – Kalavati Joshi)

शिक्षक की भूमिका सफलतापूर्वक सम्पन्न करते हुए आपने सामाजिक कार्यों से मनोयोग से सरोकार रखा फलत: आपकी कर्मठता, कार्य कुशलता, समाज के प्रति अपने दायित्वों के एहसास एवं राष्ट्रीय कार्यक्रमों में आपकी अभिरुचि को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न संस्थाओं- अध्यापक पर्वतीय विकास परिषद् उ.प्र., बनवासी सेवा आश्रम गोविन्दपुरी, सोनभद्र, शिक्षा और समाज कल्याण मंत्रालय उ.प्र., नेहरू युवक केन्द्र-करनाल, उ.प्र. भारत स्काउट गाइड, दृष्टिकोण एवं कार्यप्रणाली प्रशिक्षण उ.प्र., नैनीताल खेलकूद निदेशालय, उ.प्र. परिवार नियोजन विभाग, उ.प्र. रेड क्रास सोसायटी, वृक्षारोपण कार्यक्रम- वन विभाग, प्रौढ़ शिक्षा विभाग उ.प्र. आदि ने आपकी विशिष्ट सेवाओं के लिए सेवाकाल में ही आपको समय-समय पर सम्मानित किया तथा प्रशस्ति पत्र दिये। इसके साथ ही शिक्षक-कर्मचारी संघों में उच्च पदों पर रहते हुए अपने साथियों के हितों की रक्षा के लिए संघर्ष किये राजकीय सेवा में चार दशक तक अपनी बहुमूल्य सेवाएँ अर्पित करने के पश्चात सेवा निवृत्ति (1993) के उपरान्त देहरादून में स्थाई रूप से रहने लगी।

1994 में पृथक उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन में उत्तराखण्ड महिला मंच के माध्यम से कूद पड़ी तथा जब तक नव राज्य का गठन नहीं हुआ इन्होंने अपना तन-मन-धन आन्दोलन में लगा दिया।

‘कर्म योगी कभी कर्म से च्युत नहीं हो सकते’। अत: इन्होंने उत्तराखण्ड महिला मंच की सक्रिय संस्थापक सदस्य के रूप में महिलाओं की स्थिति सुधारने, अपसंस्कृति के कुप्रभावों को रोकने के लिए जन जागण अभियानों का नेतृत्व किया। अपने आस-पास रहने वाली महिलाओं को साथ लेकर अनेक बार धरना प्रदर्शनों में भागीदारी की। 1994 में नशे का विरोध तथा महिला सशक्तीकरण हेतु आवाज उठाने पर कई बार पुलिस बर्बरता का शिकार होना पड़ा। उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान हुए मुजफ्फरनगर काण्ड, में घटना स्थल पर ही महिलाओं तथा छात्र/छात्राओं पर हुई पुलिस ज्यादतियों के लिए शासन को सीधी चुनौती देने के कारण आपको कई बार जेल यातनाएँ भी सहनी पड़ी।

विश्वप्रसिद्ध उत्तराखण्ड सर्वोदय परिवार, लक्ष्मी आश्रम अल्मोड़ा द्वारा हिमालय बचाओ गोष्ठी में लेखों-भाषणों एवं परिचर्चाओं के माध्यम से माताजी ने सक्रिय भागीदारी करने के साथ-साथ रोजी रोटी की समस्याओं से जुड़ी संघर्षरत महिलाओं की यथासम्भव सहायता की तथा दिशा निर्देश दिये, शराब लाटरी तथा सामाजिक विषमता एवं कुरीतियों से अभिशप्त महिलाओं के समर्थन में जन चेतना जगाने के लिए सर्वथा प्रयत्नशील रहीं। हिमालय अध्ययन केन्द्र, पिथौरागढ़ तथा हैस्को देहरादून द्वारा समय-समय पर जल-जमीन तथा जंगल के रक्षार्थ आयोजित गोष्ठियों में यथा समय सम्मिलित होती रहीं।
(Tribute – Kalavati Joshi)

हारिये न हिम्मत बिसरिये न राम की धारणा मन में लिए सदैव आगे बढ़ने का प्रयास निरन्तर बना रहा….। महिला मंच के माध्यम से जल-जंगल-जमीन बचाओ अभियान में इन्होंने प्रशंसनीय कार्य किया। स्पष्ट एवं मुखर वक्ता होने के कारण यदा कदा प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी उत्पन्न हो जाती थीं किन्तु अपनी वाकपटुता से अनुकूल करने की कला भी उन्हें बखूबी आती थी। उनकी सशक्त वाणी के सभी कायल थे। शारीरिक अक्षमता होने पर भी वे अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करवाने में महारत हासिल प्राप्त थीं। महिला मंच की संस्थापक डॉ. उमा भट्ट एवं श्रीमती कमला पंत तथा अन्य विशिष्ट एवं क्रान्तिकारी आन्दोलनकारियों के साथ बढ़ती आयु में भी कंधा मिलाकर चलना इनकी हार्दिक इच्छा रहती थी। इनके सामाजिक एवं शैक्षणिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान को दृष्टिगत करते हुए 21 जनवरी 2004 को इन्हें ‘गोदरेज फिलिप्स इण्डिया लिमिटेड’ द्वारा रेड एण्ड व्हाइट वीरता पुरस्कार तथा स्वर्ण पदक देकर सम्मानित किया गया। इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की झाँकी प्रस्तुत करती हुई एक डाक्यूमेंट्री फिल्म स्टार टी.वी. नई दिल्ली द्वारा बनाई गई। जिसका प्रसारण उक्त चैनल द्वारा- दिनांक 4-4-2005 को किया गया।

अपने सोचे हुए कार्य को व्यावहारिक रूप देना पत्रजात का रख रखाव, अखबारों से सूचनाएँ एकत्र कर सुरक्षित करना इनके दैनिक कार्यों का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया था। प्रात:काल से ही भगवत भजन के साथ इन कार्यों के प्रति समर्पण देखते ही बनता था। विभिन्न क्षेत्रों में उनके विशिष्ट योगदान को समकालीन व आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बनाने के उद्देश्य से शुभचिन्तकों के सहयोग एवं प्रेरणा से ऐतिहासिक धरोहर के मोती नामक पुस्तक की रचना की। इस समय माताजी की आयु 79 वर्ष की थी लेकिन इन्होंने अपनी कार्य यात्रा  जारी रखी फलस्वरूप 8 मार्च 2013 को भारतीय जनता पार्टी महिला मोर्चा उत्तराखण्ड द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर इन्हें सम्मानित किया गया। 17 मार्च 2013 को कूर्मांचल सांस्कृतिक एवं कल्याण परिषद् कांवली शाखा देहरादून ने सम्मानित किया। इसी क्रम में उल्लेखनीय है कि जून 2015 को भारत विकास परिषद् द्रोण शाखा देहरादून द्वारा माताजी को टिंचरी बाई सम्मान 2015 से अलंकृत किया गया।

83 वर्ष की आयु में दुर्बल शरीर व्याधिग्रस्त हो गया था। उनके पेट एवं हर्निया के दो बड़े आपरेशन हो चुके थे। विगत वर्षों से थायराइड, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप तथा कमजोर किडनी के कारण प्राय: गम्भीर परेशानी हो जाती थी। फिर भी मानसिक रूप से पूर्णत: चैतन्य होने के कारण उनका मन ‘कुछ’ करने के लिए छटपटाता रहता था। दिनांक 21 जुलाई 2015 को वह अपनी शैय्या से गिर पड़ी तथा फिर उठ नहीं सकीं….। 10 दिन तक जीवन के लिए कठिन संघर्ष करती रहीं लेकिन 29 जुलाई को प्रात: उनकी वाणी ने उनका सशक्त आत्मा को दुर्बल शरीर त्याग दिया तथा हम सभी स्वजनों प्रियजनों को अवसाद ग्रस्त करती हुई परम धाम चली गईं…।
(Tribute – Kalavati Joshi)
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