पहियों पर सवार दो प्रगतिशील परिवर्तन
मधु जोशी
मुम्बई शहर को स्वप्ननगरी यूँ ही नहीं कहा जाता है। फिल्मों की चकाचौंध से दूर, बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों की शह-मात से परे, खेलों की दुनिया और टेलिविजन के रुपहले पर्दे की माया से इतर, नवीनतम उपकरणों व महंगी से महंगी गाड़ियों, विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाओं, गगनचुम्बी इमारतों, सभी सुख-सुविधाओं से युक्त होटलों, बड़े से बड़े ब्राण्डों, नाना प्रकार के खाद्य पदार्थों, विस्मयकारी अपराधों और अकल्पनीय घोटालों की अनवरत रेलमपेल के मध्य, इस शहर में बहुधा कुछ ऐसे बदलाव भी देखने को मिलते हैं जिन पर कोई भी प्रगतिशील महानगर गर्व कर सकता है। 2016 के आरम्भ में इस शहर ने दो ऐसे ही सुधारवादी और प्रोत्साहक कदम उठाने की घोषणा की जिनके परिणाम निश्चित रूप से दूरगामी होंगे।
जनवरी 2016 के दूसरे सप्ताह में खबर आयी कि मुम्बई महानगरीय क्षेत्र में ऑटो-चालकों को दिये जाने वाले 5 प्रतिशत परमिट महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिये गये हैं और इस वर्ष 465 महिलाओं को यह अनुज्ञा-पत्र दिये जायेंगे। लाटरी द्वारा निकाले गये इन नामों में से 161 महिलाओं के नाम ठाणे, 86 कल्याण, 67 नवी मुम्बई, 57 अन्य उपनगरीय क्षेत्रों से थे। उचित दस्तावेज, प्रमाण पत्र और निर्धारित शुल्क जमा करने पर चयनित महिलाओं को उनके अनुज्ञा पत्र फरवरी के अन्त में मिल गये। इस अनूठी पहल का हिस्सा बनने में महिलाओं के बीच कुछ हिचकिचाहट दिखाई दी तो उन्हें प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से महिलाओं को शैक्षणिक अर्हता और ड्राइविंग लाइसेंस से जुड़ी शर्तों में कुछ शिथिलता भी प्रदान की गयी।
30 वर्षीय शोभा हलमुख उन महिलाओं में शामिल हैं जिनका नाम लॉटरी में निकला है। कक्षा बारह तक शिक्षित शोभा दहीसर में अपने माता-पिता के साथ रहती हैं। उन्हें इस बात का अहसास है कि वह ऐसे क्षेत्र में कदम रखने जा रही हैं जहाँ पुरुषों का वर्चस्व है। वह कहती हैं, ‘‘शुरू से ही मैं स्वरोजगार की इच्छुक थी। ऑटो-चालक बनकर मैं स्वयं घूम पाऊंगी और अन्य महिलाओं को भी सुरक्षित महसूस करा पाऊंगी।’’ वह यह भी चाहती हैं कि वह अपने शिष्ट तथा उत्कृष्ट आचरण से ऑटो चालकों की छवि बदल सकें।
55 वर्षीय मंजू जैन अंधेरी में अकेले रहकर सिलाई का काम करती हैं। उनकी बेटी उनसे अलग रहती है। उनका मत है कि 5 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित करके सरकार उनका उत्साहवद्र्धन कर रही है। उनके अनुसार, ‘‘ऑटो चालन शुरू करने में उम्र आड़े नहीं आती है। महिलाओं को इस क्षेत्र में सफल होने के लिए यथोचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये, जिसमें आत्मरक्षा और सुरक्षा से जुडे़ उपाय भी शामिल हों। ऑटो चलाने से मुझे रोजगार मिलेगा और यह मेरे लिए नियमित आमदनी का जरिया भी बनेगा।’’
42 वर्षीय अनामिका भालेराव दो वर्ष से ऑटो चला रही हैं और दो बच्चों की माँ हैं। उन्हें महिला-कोटे से ठाणे में ऑटो चलाने का परमिट मिला है। 22 वर्षीय कविता बनसोड़े के लिए यह सपना पूरा होने जैसा है क्योंकि ऑटो-चालन से होने वाली आय से वह अपने पाँच वर्षीय मानसिक रूप से अक्षम पुत्र का उचित इलाज करा पायेंगी।
(two progressive changes on wheels)
सरकार की मंशा है कि चयनित ऑटो चालक गुलाबी अथवा हल्के नारंगी रंग के विशेष ऑटो चलायें जो कि विशेष तौर पर महिला यात्रियों के लिए सुलभ हों। इससे न सिर्फ महिला चालकों को रोजगार उपलब्ध होगा, वरन महिला यात्रियों के लिए भी यह वाहन अत्यन्त सुविधाजनक रहेंगे।
सरकारी महकमे से आये इस समाचार के लगभग एक सप्ताह के बाद एक अन्य प्रगतिशील कदम की खबर आयी। मुम्बई में कार्यरत एक ट्रैवल एजेन्सी ने घोषणा की है कि वह ‘‘WINGS RAINBOW’’ ‘‘विंग्स रेनबो’’ नाम से रेडियो कैब सर्विस आरम्भ करने जा रही है जिसके चालक सिर्फ LG BT (समलैंगिक, उभर्यंलगी तथा विपरीर्तंलगी) समुदाय से चुने जायेंगे। इस कार्यक्रम के तहत पाँच सदस्यों का चयन करके उन्हें छ: माह का प्रशिक्षण दिया जायेगा। इसके अलावा उन्हें अपने सामाजिक आचरण को कार-चालन के अनुरूप बनाने के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा और इसके उपरान्त उन्हें ड्राइविंग लायसेंस प्राप्त करने में सहायता दी जायेगीर्। विंग्स ट्रैवल्स और हमसफर ट्रस्ट द्वारा संचालित इस अभियान द्वारा प्रशिक्षित पाँचों चालक सम्भवत: 2017 तक काम करने लगेंगे।
हमसफर ट्रस्ट के पल्लव पाटणकर के अनुसार, ‘‘LGBT निर्णय (भारतीय उच्चतम न्यायालय द्वारा NALSA समुदाय के पक्ष में दिये गये ऐतिहासिक निर्णय) के उपरान्त, अनेक व्यापारिक घरानों ने लैंगिक रूप से अल्पसंख्यक वर्ग को रोजगार मुहैया कराने में रुचि दिखायी। पाँच चालकों के इस जत्थे में हिजड़ा समुदाय से दो लोग शामिल हैं और हमें आशा है कि भविष्य में और लोग इस मुहिम में शामिल होने आगे आयेंगे।’’
विंग्स रेनबो के संचालक अरुण खराट के अनुसार पाँच चालकों के साथ मुम्बई में आरम्भ हो रहे इस उपक्रम को कुछ समय बाद पन्द्रह सौ LGBT चालकों के साथ सम्पूर्ण देश में विस्तारित करने की योजना है। चयनित चालकों में से तीन शिल्पा, संजीवनी और अंकित ने इस योजना के प्रति प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि अब उन्हें नाच-गाकर, शादी-विवाह व अन्य जलसों में भीख माँगकर तथा वेश्यावृत्ति करके जीवन यापन करने को मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
अतीत में अपने मार्ग में आयी अनेक बाधाओं को याद करते हुए संजीवनी कहती हैं, ‘‘अब लोगों को पता चल जायेगा कि हम कितनी सक्षम हैं। अब मुझे स्नातक होने के बावजूद, अपनी लैंगिक अभिरुचि के कारण नौकरी से वंचित नहीं होना पड़ेगा।’’ स्थायी तथा सम्मानित नौकरी के विचार मात्र से प्रफुल्लित शिल्पा को भी पूर्ण विश्वास है कि ‘‘हम पूरी तरह से इस नयी कार्य संस्कृति को अपनाकर अपने जीवन स्तर को सुधार पायेंगी।’’
चाहे वह ऑटो चालन के 5 प्रतिशत परमिट महिलाओं के लिए आरक्षित करने का निर्णय हो अथवा LGBT समाज के चालकों के लिए विशेष टैक्सी र्सिवस आरम्भ करने की घोषणा, दोनों ही पहल समाज के हाशिये में जीवन गुजार रहे व्यक्तियों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए उठाये गये महत्वपूर्ण कदम हैं। ऐसे प्रगतिशील कदमों की प्रशंसा करना तो आवश्यक है ही, उससे भी अधिक वांछनीय है ऐसे कार्यों का अनुसरण करना ताकि यह एक ही शहर अथवा राज्य तक सीमित नहीं रह जायें।
(द टाइम्स ऑफ इंडिया, मुम्बई में 14 जनवरी 2016 को प्रकाशित सोमित सेन तथा मनोज बडगेरी के लेख, 21 जनवरी 2016 को प्रकाशित महुआ दास के लेख तथा 21 जनवरी 2016 को द हिन्दू में प्रकाशित समाचार पर साभार आधारित।)
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