3 अक्टूबर का वह काला दिन

कमल नेगी

2 अक्टूबर की सुबह हम लोग  मल्लीताल रामलीला स्टेज पर पहुँचे। वहाँ गाँधी जयन्ती के कार्यक्रम थे। गीत एवं नाटक प्रभाग द्वारा भजनों एवं गीतों से गाँधी जी को श्रद्धांजलि दी जा रही थी। तभी वे छात्र एवं युवा वहाँ पहुँच गये जिन्हें रामपुर के आसपास कहीं रोका गया था। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्हें गाली-गलौज देते हुए बसों से उतारकर एक कमरे में डाल दिया गया। उन लोगों में कुछ महिलाएं भी शामिल थीं। सुबह के अंधेरे में वे किसी तरह बचते-बचाते पैदल चलकर मुख्य सड़क तक आए और वहाँ से गाड़ियों में बैठकर लौटे। परन्तु धीरे-धीरे गढ़वाल से जो खबरें आने लगीं वह दिल दहला देने वाली थीं। शाम तक माहौल काफी गमगीन और उत्तेजक हो गया था। खबरों में यकीन करना भी मुश्किल हो रहा था क्योंकि कई तरह की अफवाहें भी शुरू हो गयी थीं। अब तो शाम के बुलेटिन का इंतजार था।

रोज की तरह नैनीताल समाचार बुलेटिन की टीम तल्लीताल क्रांति चौक पर पहुँची। सभी के चेहरे उदास थे। अन्य दिनों की अपेक्षा एक भारीपन-सा पूरे वातावरण में पसरा था। जैसे ही गिर्दा के जनगीत द्वारा 1 अक्टूबर की रात की पुलिस की गोलीबारी और महिलाओं से बदसलूकी की खबर माहौल में फैली एक क्षण के लिए सारे श्रोता जड़-से हो गए। फिर वातावरण में आक्रोश फैलने लगा। लोग उत्तेजित हो गये। मुझे याद है जब गिर्दा श्रोताओं को अपने गीतों द्वारा खबरें दे रहे थे, तब वे खुद भी अपने को रोने से रोक नहीं पाये थे।

हम सब किंकर्तब्यविमूढ़ से खड़े रह गये थे। समझ ही नहीं पा रहे थे कि क्या करें। अगले दिन डाट में मिलने की बात की और अपने घरों को चल दिये। रात भर बैचेनी रही।

3 अक्टूबर की सुबह होते ही डाट की ओर चले। बाजार में इक्का-दुक्का दुकानें खुली थीं। हमें गुस्सा तो था ही, उन पर गुस्सा उतार दिया और दुकानें बंद करा दीं। डांठ में काफी सरगर्मी थी। छात्र-कर्मचारी एवं जनता के लोग अलग-अलग खड़े होकर बातें कर रहे थे। वातावरण में तनाव साफ दिख रहा था। पंजाब पुलिस की टुकड़ियाँ जगह-जगह तैनात थीं। हम लोग मल्लीताल की ओर जाने लगे तो एस.डी.एम. चन्द्र शेखर भट्ट एवं एस.आई. राजीव कुमार हेलमेटों से लैस, राइफलें लिये तल्लीताल डेयरी के पास मिल गये और हमें वापस लौटने के लिए कहने लगे। हम लोग आगे बढ़ते गये परन्तु इण्डिया होटल के पास सारे रास्ते रोक दिये गये थे। सारे रास्तों में पंजाब पुलिस के जवान तैनात थे। हमें आगे बढ़ने ही नहीं दिया। बाद में पता चला कि मल्लीताल रिक्शा स्टैण्ड पर भी लोगों को तल्लीताल आने से रोक दिया गया है। हम वापस डांठ में पहुँचे तो काफी लोग अलग-अलग झुण्ड में वहाँ जमा हो गये थे। हम बाजार पहुँचे तो हमारी साथी पुष्पा उप्रेती हाथ में एक डण्डा लेकर घूम रही थी। प्रशासन चौकन्ना था। तभी डांठ की ओर से पत्थर आने शुरू हो गये। एस.डी.एम. और एस.आई. बाजार में थे। आक्रोश उन्हीं को लक्षित था। उन्होंने हमें कहा कि हम छात्रों को ऐेसा करने से रोकें पर हम स्वयं आक्रोश में थे। समझाने का सवाल ही नहीं था। पंजाब पुलिस हर तरफ मोर्चा ले चुकी थी। तल्लीताल से नेशनल होटल की हर मंजिल पर टुकड़ियाँ तैनात थीं। पुलिस को देखकर छात्रों का गुस्सा और भड़क गया था। तब कैंट में भवाली रोड से पत्थरबाजी शुरू हो गई। छात्रों ने ओट ले-लेकर पत्थर बरसाने शुरू कर दिये थे। हल्द्वानी रोड में सन्नाटा पसर गया था। तभी छात्रों ने डांठ पर स्थित शराब की दुकान को आग के हवाले कर दिया। काफी देर तक छात्रों और पुलिस में झड़पें होती रही। बाजार में पथराव शुरू होते ही हम अपनी साथी रत्ना चटर्जी के घर चले गये। बाजार एकदम सुनसान हो चुका था। डांठ पर पंजाब पुलिस तैनात थी। पुलिस के बूटों की आवाज से ही पता लग रहा था कि दमन शुरू हो चुका है। रत्ना के घर से बाजार में झांकते तो पुलिस वाले राइफलें तान लते थे। एस.डी.एम. और एस.आई. बार-बार बाहर नहीं झांकने की हिदायत दे रहे थे। साथ ही धमकियां भी दी जा रही थीं। हमें एस.डी.एम. और एस.आई. से सख्त नाराजगी थी क्योंकि हम इन्हें अपनों में ही शुमार कर रहे थे। परन्तु इन लोगों का व्यवहार हिटलरी था। शायद नौकरी की मजबूरी रही हो। तल्लीताल बाजार तो सुनसान हो चुका था परन्तु कैंट की ओर से लगातार पत्थर फेंके जा रहे थे। पुलिस रक्षात्मक रवैया अपना रही थी पर छात्र भी हार मानने को तैयार नहीं थे। डिब्बों को भी बम की तरह फेंका जा रहा था। तभी पुलिस ने सख्त रवैया अपना लिया क्योंकि शराब की दुकान धू-धू कर जल रही थी। जवान होटल से उतर कर हलद्वानी रोड में आ गये। दुकानों के दरवाजों को बटों से तोड़ने लगे और वहाँ से अंदर की ओर जाती गलियों में भी जाने लगे। रत्ना के घर से जब हमने नीचे झांका तो पुलिस वालों ने संगीनें हमारी ओर तान दीं। ऊपर से भी लोग कभी-कभी पत्थर मार रहे थे। अब पुलिस का शिकंजा धीरे-धीरे बढ़ने लगा था। छात्रों की पत्थरबाजी भी धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। पिछाड़ी बाजार में पुलिस पूरी तरह फैल चुकी थी। बीच-बीच में गोलीबारी भी कर रही थी। जब पूरी हल्द्वानी रोड पुलिस ने कवर कर ली तो छात्र कैंट की पहाड़ी की ओर बढ़ गये। वहाँ से भी उनकी पत्थरबाजी चलती रही पर धीरे-धीरे संख्या कम होती गई और वे बिखरने लगे। सभी छात्र कैंट की चढ़ाई की ओर चढ़कर अलग-अलग रास्तों को चले गये। इसी बीच पंजाब पुलिस के जवान इन छात्रों की खोज में मेघदूत होटल की ओर बढ़े। तभी प्रशांत होटल के रिसेप्शन में बैठा प्रताप उठकर जाने लगा तो उसे आंदोलनकारी समझकर पुलिस कर्मी ने उसे मौत के घाट उतार दिया।

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