हिंसा व शराब के खिलाफ चुप्पी तोड़ने के लिए संघर्ष
रेखा रौतेला
शराब और उसके खिलाफ होने वाली हिंसा की जड़ें समाज में गहरी और पुरानी हैं। यद्यपि जनजातीय समाज में परम्परा से शराब रही है परन्तु उसके परिणामस्वरूप होने वाली हिंसा सहन करने के लिए महिलाएँ तैयार नहीं हैं। लेकिन राजस्व के मोह में अंधी सरकारों को बढ़ती हिंसा दिखाई नहीं देती और वह विरोध को दबाने के लिए आन्दोलनकारियों पर फर्जी मुकदमे लगाने से भी बाज नहीं आती। इसी प्रकार की एक लम्बी लड़ाई पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी क्षेत्र की महिलाओं ने माटी संगठन तथा उत्तराखण्ड महिला मंच के नेतृत्व में छह साल तक लड़ी और अन्तत: झूठे मुकदमे वापस कराने में सफलता हासिल की।
इसकी शुरूआत 1994 में हुई जब उच्छैती गाँव की एक महिला को शराब के नशे में जिन्दा जला दिया गया था। सबको इस घटना की जानकारी थी, आपस में सब बात करते थे लेकिन एकजुट होकर बात नहीं कर रहे थे। तब ग्राम दरकोट में एक बैठक रखी गई जिसके लिए पोस्टकार्ड लिखकर गाँव-गाँव में सूचना भेजी गई कि प्रत्येक गाँव से कम से कम दो या तीन जन अवश्य आयें। शराब के कारण हो रही हिंसा से लोग इतना अधिक पीड़ित थे कि हर गाँव से लगभग दस लोग आये। बैठक में चर्चा के बाद 3000 लोगों के हस्ताक्षरों से युक्त ज्ञापन उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री को भेजा गया।
1996 में पुन: शराब के खिलाफ आन्दोलन शुरू हुआ। 12 दिन तक भट्टी के आगे धरना दिया गया, जुलूस निकाले गये और शराबियों को रोकने के लिए बिच्छू घास लेकर महिलाएँ खड़ी रहीं। उत्तराखण्ड महिला मंच की अन्य इकाइयों से भी महिलाएँ इसमें शामिल हुईं लेकिन शराब की दुकान बन्द नहीं हुई।
2011 में जब सेरा सुरईधार की शीला लोहनी के पति ने शराब के नशे में उस पर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी, तब शराब के खिलाफ लोगों का गुस्सा एक बार फिर भड़क उठा और शराब की दुकान के आगे आन्दोलन शुरू कर दिया। लेकिन शराब की दुकान बन्द होने के बजाय मकान मालकिन मंजू जोशी ने अपने 25 लाख के व्यक्तिगत सामान के नुकसान की बात करते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करा दी। उसने आरोप लगाया कि वहाँ पर शराब की दुकान नहीं थी, मेरा व्यक्तिगत सामान था, जिसकी तोड़-फोड़ हो गई है और मेरा 25 लाख रुपये का नुकसान हो गया है। पुलिस प्रशासन ने इस पर तत्काल कार्रवाई करते हुए भारतीय दंड संहिता की 147/427/506/435 धाराओं के तहत क्षेत्र पंचायत सदस्य सुरेन्द्र बृजवाल, उत्तराखण्ड महिला मंच की मलिका विर्दी तथा मोहिनी देवी, देवेन्द्र राम तथा भुवन चन्द्र पाण्डे (दोनों उस समय छात्र थे), पाँच जनों पर केस दर्ज कर दिया। सुरेन्द्र बृजवाल की गिरफ्तारी भी हो गई। अगले दिन पिथौरागढ़ जाकर बाकी चार लोगों ने अग्रिम जमानत करवाई तथा सुरेन्द्र को भी जमानत पर छोड़ दिया गया। शराब की दुकान के खिलाफ कार्रवाई होने के बजाय उल्टा आन्दोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज हो गये और हर महीने संगठन की महिलाएँ, किसान सभा व छात्र संघ के नौजवान साथी फर्जी केस में पेशी के लिए कभी पिथौरागढ़, कभी डीडीहाट व कभी कैम्प कोर्ट मुन्स्यारी में हाजिरी लगाते रहे। जबकि महिलाओं की शराब के कारण मौत के मामलों में केस दर्ज होने के बाद एक को आत्महत्या तथा दूसरे को दुर्घटनावश मौत का मामला बनाकर आरोपियों को छोड़ दिया गया।
(Violence and Alcohol)
2013 से अदालत में गवाहियाँ शुरू हुईं जिसका सिलसिला 2016 तक चलता रहा। जिसमें महिला पुलिस पुष्पा सती, होम गार्ड बहादुर सिंह, मनोज जोशी, बसंती जोशी व थाना अध्यक्ष दया शंकर द्वारा झूठी गवाहियाँ दी गईं। गवाही की प्रति माँगने पर उसका प्रिन्ट इतना धुंधला था कि पढ़ा नहीं जा सका। गवाही के नाम पर कभी तो पूरा दिन कोर्ट में बिठाये रखा जाता पर गवाही नहीं होती थी। केस लड़ते-लड़ते तीन साल हो गये थे। इस बीच संसदीय व पंचायत चुनाव भी निकट आ गये। तब संगठन ने चुनाव में इसे मुद्दा बनाने की समझ से अभियान चलाया।
2 अप्रैल 2014 को मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत मदकोट के दौरे पर आये हुए थे। संगठन की ओर से राजनीति से प्रेरित फर्जी मुकदमे को खारिज करने की मांग को लेकर एक ज्ञापन तैयार किया गया व उस पर आम जनता के हस्ताक्षर कराये गये। ज्ञापन को मुख्यमंत्री को सौंपा गया तो उन्होंने फर्जी केस को खारिज करने का आश्वासन दिया। तत्कालीन विधायक श्री हरीश धामी को भी इसी आशय का ज्ञापन दिया गया। उनका कहना था कि इस पूरे फर्जी मामले को खत्म करने के लिए एक बार देहरादून जाने की आवश्यकता पड़ सकती है। हमने उनसे लगातार सम्पर्क बनाये रखा।
2 जून 2014 को मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत चुनाव के सिलसिले में फिर से मुनस्यारी आये। उस दिन भी संगठन के साथियों ने एक और ज्ञापन तैयार कर उन्हें सौंपा। उन्होंने फिर से कहा कि इस फर्जी मुकदमे को खारिज कर दिया जायेगा।
12 जुलाई 2014 को धारचूला-मुनस्यारी विधान सभा क्षेत्र से विधायक सीट के लिए चुनाव लड़ रहे मुख्यमंत्री श्री हरीश रावत के चुनाव प्रचार में आई उनकी पत्नी श्रीमती रेनुका रावत को महिला मंगल दल के साथियों व मंच के साथियों ने इस मामले में ज्ञापन सौंपा। उन्होंने भरी सभा में शराब के इस फर्जी मुकदमे को खारिज करने का आश्वासन दिया।
इस बीच पुणे की कल्पवृक्ष नामक संस्था ने दक्षिण कोरिया में पर्यावरण संरक्षण विषय पर दो दिन के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जिसमें संगठन के दो साथियों को आमंत्रित किया गया था। मुकदमे के कारण पासपोर्ट बनाने में दिक्कत आई जिसके कारण सम्मेलन में नहीं जा सके जबकि यह मुकदमा पूरी तरह फर्जी था। 3 दिसम्बर को मुनस्यारी में शरदोत्सव मनाया गया जिसका उद्घाटन करने मुख्यमंत्री हरीश रावत आये थे। महोत्सव में माटी संगठन का भी स्टॉल लगाया गया था। जब मुख्यमंत्री स्टॉल देखने आये तो महिलाओं ने उनसे इस केस के बारे में बात की और पहले से तैयार ज्ञापन उन्हें सौंपा। महिलाओं ने उन्हें बताया कि हम आपको पाँच बार ज्ञापन दे चुके हैं लेकिन आपकी ओर से हमें केवल कोरा आश्वासन दिया जा रहा है। हर बार की तरह उन्होंने इस बार भी आश्वासन दे दिया कि इस केस को खारिज कर दिया जायेगा। 12 दिसम्बर 2014 को पूर्व विधायक हरीश धामी के द्वारा ग्राम सरमोली में बैठक रखी गई जिसमें उनसे पूछा गया कि इस फर्जी केस को खारिज करने के लिए सिर्फ आश्वासन ही देते रहेंगे या फिर कोई कार्यवाही भी करेंगे। उन्होंने कहा, वे इस पर बात कर रहे हैं। वे मंजू जोशी से भी बात करेंगे ताकि मामला आपस में ही सुलझ जाये और केस खारिज हो सके। राज्य महिला आयोग की सदस्य सुश्री तारा पांगती से भी संगठन के लोग बार-बार मिले। उनका सुझाव था कि संगठन केस लड़ने के लिए सरकारी वकील की मांग करे ताकि खर्चे कम हों। यह भी पता चला कि मुख्यमंत्री ने केस को खारिज करने का आदेश जिलाधिकारी पिथौरागढ़ को दे दिया है पर आगे की कार्यवाही कुछ नहीं हुई। सुना गया कि पिथौरागढ़ के पुलिस अधिकारियों की ओर से केस को सही बताते हुए वापस सरकार को भेज दिया गया है।
8 जून 2015 को सर्वोच्च न्यायालय में वकील सुश्री समोना खन्ना ने संगठन की महिलाओं को सूचना का अधिकार विषय पर जानकारियां दीं। तब चार लोगों की ओर से सन 2009 से 2013 तक की शराब भट्टी तथा इस केस से सम्बन्धित सूचनाएँ मांगी गईं कि मुनस्यारी में शराब की दुकान किसके मकान में है। यह फर्जी केस 2011 में शुरू हुआ था। मकान मालकिन मंजू जोशी का कहना था कि उस दिन उनके मकान में शराब की दुकान नहीं थी, उनका 25 लाख का व्यक्तिगत सामान वहाँ रखा हुआ था। लेकिन सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मिली कि उस मकान में उस दौरान शराब की दुकान चल रही थी। मंजू जोशी के पति उमेश चन्द्र जोशी का नाम स्पष्ट रूप से भवन मालिक के रूप में लिखा हुआ था। अब हमारे पास एक ठोस सबूत था। पुन: आबकारी विभाग मुनस्यारी, पिथौरागढ़ व देहरादून को यह पूछते हुए आवेदन किया गया कि उक्त तारीख में शराब की दुकान का ठेका किस मकान में चल रहा था तो सभी की ओर से यह उत्तर मिला कि जुलूस के दिन शराब का ठेका मंजू जोशी के मकान में था। इससे पूरी तरह साबित हो गया कि मंजू जोशी की ओर से फर्जी मुकदमा दर्ज किया गया है।
(Violence and Alcohol)
राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा सरोजिनी कैन्तुरा जब मुनस्यारी भ्रमण पर आईं तो उनसे मिलकर फर्जी केस को हटवाने की मांग की। उन्होंने मदद का आश्वासन तो दिया पर कोई सहयोग उनसे भी नहीं मिला। संगठन के कामों की व्यस्तता के कारण जब हम लोग दो-तीन तारीखों पर नहीं जा पाये तो हमारे वकील श्री रघुनाथ चौहान ने हर बार अर्जी लगा दी थी। इसके बावजूद एक बार थानाध्यक्ष का फोन आया कि आप लोगों के खिलाफ तारीख पर उपस्थित न होने के कारण गैर जमानती वारंट जारी किया गया है। आप उसे खारिज करा लीजिए।
इस प्रकार बार-बार प्रशासन द्वारा हमें परेशान करने की कोशिश की जा रही थी। तब डीडीहाट जाकर हमने वारंट खारिज करवाये। पुन: 15 जून को वन निगम अध्यक्ष श्री हरीश धामी व मुख्यमंत्री को केस खारिज करने के लिए ज्ञापन दिया जिसके साथ मृतका शीला लोहनी के पिता का पत्र, प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति तथा सूचनाधिकार से मिली जानकारियाँ संलग्न थीं। हमारे वकील का कहना था कि इस केस को खारिज करने का आदेश सरकार से आया हुआ है लेकिन जिलाधिकारी स्तर से कार्रवाई आगे नहीं बढ़़ पा रही है। वहाँ पूछताछ करने पर कह दिया गया कि ऐसा कोई पत्र नहीं आया है। मुनस्यारी अदालत में पेशी लगने पर जज ने कहा कि अगली तारीख तक केस वापसी के लिए सरकार का पत्र पेश करें।
18 जून की सुनवाई में भी जज ने सरकार का केस वापसी का पत्र पेश करने को कहा। 18 जुलाई को डीडीहाट की अदालत में सरकारी वकील राजेन्द्र रावत ने केस वापसी का शासनादेश पत्र कोर्ट में पेश किया गया। पत्र को जिलाधिकारी द्वारा प्रमाणित होने के लिए भेजा गया। आखिर अप्रैल 2011 से चल रहे फर्जी शराब केस को 26 अगस्त 2017 को मुनस्यारी कोर्ट में सरकार द्वारा खारिज किया गया।
इस पूरे घटनाक्रम से पता चलता है कि आखिर सरकार, जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन क्या चाहता है। ये सब निर्दोष आन्दोलनकारियों को एक फर्जी केस में फंसाये रखना चाहते थे जबकि चन्द नेताओं को छोड़कर क्षेत्र की पूरी जनता उनके साथ खड़ी थी। सब इस सच्चाई को जानते थे कि यह केस पूरी तरह फर्जी है, लेकिन संगठनों का मनोबल तोड़ने के लिए और शराब व्यापारियों को लाभ देने तथा उनसे लाभ लेने की मंशा से वे केस को उलझाये रखना चाहते थे। लेकिन इस मुकदमे ने आन्दोलनकारियों के मनोबल को घटाने की जगह उसे बढ़ाया ही। छह साल में जितनी भी पेशियाँ लगीं, महिलाएँ बड़ी संख्या में अदालत परिसर में पहुँची। वे हमेशा नारे लगाते हुए और गीत गाते हुए वहाँ जाती थीं। वे आन्दोलन के उत्साह में रहती थीं जिससे वहाँ उपस्थित आम लोग, कर्मचारी, अधिकारी सभी चकित रहते थे। इस मुकदमे के दौरान आने-जाने तथा अन्य कार्रवाइयों में लगभग 33,000 रुपया खर्च हुआ जिसे पूरी तरह जनता के सहयोग से जुटाया गया। यह एक बड़ी लड़ाई सिद्घ हुई जिसे जीतने पर क्षेत्र में संगठन के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ा। अब सरकार को चाहिए कि वह मंजु जोशी पर फर्जी एफ.आई.आर. लिखाने के लिये मुकदमा चलाये।
सरकार कहती है कि शराब बेचने से राजस्व मिलता है जिसे विकास कार्यों में लगाया जाता है लेकिन जब हमने इस विषय में अध्ययन किया तो सच्चाई कुछ और ही नजर आती है। गाँव में जो व्यक्ति शराब पीता है, उसका एक दिन का हिसाब देखा जाये तो वह महीने में लगभग तीन दिन अपने काम का हर्जा करता है। इस तरह पूरे साल में शराब के कारण एक माह से अधिक समय वह अपने काम पर नहीं जा पाता है। एक महीने में वह कम से कम 2500 रुपये की शराब पीता है तो पूरे साल में 30,000 रुपये की शराब पीता है और बाकायदा घर में पत्नी और बच्चों के साथ मार-पीट करके कलह बढ़ाता है। पर हमारी सरकार इन हकीकतों से आँख मूंदे रहती है। महिला हिंसा की घटनाओं के पीछे शराब एक मुख्य कारण है। बढ़ती हिंसा को खत्म करने के लिए शराब पर नियंत्रण जरूरी है। एक ओर सरकार महिला सुरक्षा की बात करती है, नये-नये कानून हिंसा को रोकने के लिए बनाती है, दूसरी ओर राजस्व के नाम पर, विकास के नाम पर शराब को निरंतर बढ़ावा देती है जो जनता के साथ पूरी तरह धोखाधड़ी है।
(Violence and Alcohol)
उत्तरा के फेसबुक पेज को लाइक करें : Uttara Mahila Patrika