जन मुद्दों पर संगठित होती महिलाएँ
चन्द्रकला
उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन के दौरान 19-20 दिसम्बर 1994 को उत्तराखण्ड महिला मंच का गठन हुआ था। आन्दोलन के दौरान मंच ने उत्तराखण्ड के विभिन्न हिस्सों में धरना, प्रदर्शन कर राज्य आन्दोलन की लड़ाई को आगे बढ़ाने वाली महिलाओं को एक बैनर के तले संगठित किया। मंच ने आन्दोलनकारी महिलाओं को उत्तराखण्ड के राजनीतिक-सामाजिक मुददें के इर्द-गिर्द संगठित कर पूरे देश में आन्दोलन की महत्वपूर्ण ताकत बनकर उभारा। उत्तराखण्ड के हक-हकूकों को मुखरता से उठाने, नशामुक्त उत्तराखण्ड, गैरसैंण राजधानी बनाओ, मुजफ्फरनगर के दोषियों को सजा दिलाओ व उत्तराखण्ड को मफियाराज से मुक्ति दिलाओ के नारे के तहत संघर्ष करते हुए मंच ने एक लम्बा सफर तय किया। नशामुक्त उत्तराखण्ड की खातिर मंच ने कई आन्दोलन किये, मुकदद्मे भी झेले। राज्य आन्दोलन के दौरान एक बैनर के तले लड़ने वाली महिलाएँ राज्य गठन के बाद धीरे-धीरे बिखरती चली गईं और मंच में टूटन बढ़ने लगी। चुनाव में कुछ नेतृत्वकारी महिलाओं को राजनीतिक दलों ने अपने हितों के लिए इस्तेमाल करना शुरू किया तो कुछ महिलाओं ने गैरसरकारी संस्थाओं का दामन थाम लिया। किन्तु कुछ महिलाएँ लम्बे समय तक उत्तराखण्ड महिला मंच के बुनियादी मुददें को लेकर अपना वजूद तो बनाए हुए हैं किन्तु नई भर्ती न होने और आपसी तालमेल, वैचारिक एकता की कमी के कारण मंच अपने पहले वाले तेवर में अब नहीं दिख रहा। लेकिन उसके बावजूद आज भी महिला मंच उत्तराखण्ड की महिलाओं की एक मुखर आवाज है।
महिला मंच किसी न किसी रूप में प्रत्येक वर्ष अपना स्थापना दिवस मनाता है। इस वर्ष 20 दिसम्बर को महिला मंच के 22वें स्थापना दिवस के अवसर नैनीताल में एक गोष्ठी आयोजित की गयी, जिसका विषय था ‘‘2017 का विधान सभा चुनाव व हमारे मुद्दे’’। इस कार्यक्रम में देहरादून, उत्तरकाशी, गोपेश्वर, द्वाराहाट, रामनगर, हल्द्घानी, अल्मोड़ा, भवाली, भीमताल,कौसानी आदि क्षेत्रों से आई ग्रामीण व शहरी महिलाओं ने भागीदारी की। कार्यक्रम दो सत्रों में चला, पहले सत्र में महिलाओं ने अपने क्षेत्र की समस्याओं को सबके सामने उजागर किया और दूसरे सत्र में वर्तमान में मौजूद समस्याओं को किस तरह हल किया जाय और इसके लिए किए जाने वाले प्रयासों पर आपस में खुली चर्चा की गई।
कार्यक्रम का आरम्भ ‘‘ये सन्नाटा तोड़ के आ़, सारे बन्धन छोड़ के आ़.’’ गीत से किया गया। लक्ष्मी आश्रम कौसानी से आई बसन्ती बहन, जो लम्बे समय से महिलाओं के साथ मिलकर जंगलों व पानी को बचाने के लिए संघर्ष कर रही हैं, ने उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों की वास्तविक स्थिति को सबके सामने रखते हुए बताया कि किस तरह वह अपने संगठन के माध्यम से गाँव के लोगों को अपने गाँव के संसाधनों को बचाने के लिए संगठित कर रही हैं। उनका मानना है कि ‘‘पानी पर पहला हक गाँव वालों का होना चाहिए, तब सरकार का’’। उनका कहना है कि जब तक जनता एकजुट नहीं होगी, नेता जनता को लूटते रहेंगे, इसलिए हमें अपने हकों को हासिल करने के लिए गाँव स्तर पर हर तबके के संगठन बनाने होंगे और अपने हकों के लिए संघर्ष करना होगा। महिला एकता परिषद द्वाराहाट से आई संगठन की सचिव मधुबाला काण्डपाल व अन्य महिलाओं ने भी अपने कार्यों के बारे में सबको अवगत कराया। यहाँ पर कई महिला संगठन लम्बे समय से जंगली जानवरों द्वारा फसल को चौपट किये जाने और पशुओं को मारने के खिलाफ संगठित होकर अपनी आवाज उठा रही हैं। जंगली जानवरों के आतंक और फसलों के चौपट किए जाने पर अधिकारियों के व्यवहार एवं सरकार की गलत नीतियों के कारण तबाह होती खेती, और उस क्षेत्र की महिलाओं की समस्याओं को एक औरत की पीड़ा के रूप में सबके सामने रखा। उनका कहना था कि सरकार कहती है कि जंगली जानवरों को मारा जा सकता है लेकिन गाँव में ज्यादातर महिलाएँ हैं, उनके पास न तो जानवरों को मारने के हथियार हैं और न हीं व वह शिक्षित हैं। इस मुदद्े को अधिकारियों के समक्ष महिलाएँ कई बार उठा चुकी हैं कि महिलाओं को जंगली जानवरों को मारने का शिक्षण दिया जाना चाहिए या गाँव में इसके लिए शिकारियों को लगाया जाना चाहिए। लेकिन उनकी कोई सुनवाई अब तक नहीं हुई है। अब इस संगठन ने फैसला किया है कि वे इस विधान सभा चुनाव में उसी प्रतिनिधि को वोट देंगी जो उन्हें जंगली जानवरों के आतंक से मुक्ति दिलवाने का लिखित आश्वासन देंगे।
(Women organizing on public issues)
मंच की बसंती पाठक ने उत्तराखण्ड महिला मंच की अवधारणा को उपस्थित महिलाओं के सामने रखा। उनका कहना था कि महिला मंच का गठन ही उत्तराखण्ड की महिलाओं की रोजमर्रा के जीवन से जुड़े मुददें की खातिर ही हुआ था इसलिए आज जरूरत है कि सभी महिलाएँ एकजुट हों और सामूहिक प्रयास से शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी आदि के लिए सरकार को घेरें। महिला एकता केन्द्र की महिलाओं ने महिला हिंसा, पर्यटन के नाम पर उत्तराखण्ड में फैल रही अश्लील संस्कृति व शराब की तस्करी को बढ़ावा देने वाली सरकार की जन विरोधी महिला विरोधी नीतियों को चुनाव का मुदद बनाने की बात कही। वक्ता महिलाओं का यह भी कहना था कि एक ओर सरकार महिला सशक्तीकरण के नाम पर योजनाएँ बना रही हैं और दूसरी ओर महिलाओं के साथ हिंसा निरन्तर बढ़ रही हैं। देहरादून से आई मंच की संस्थापक सदस्या उषा भट्ट ने कहा कि महिला मंच को राजनीति करनी चाहिए लेकिन जन राजनीति जिसमें सरकार की उत्तराखण्ड विरोधी नीतियों की खिलाफत की जाय। उन्होंने बताया कि हमारे क्षेत्र की महिलाएँ लगातार उत्तरकाशी, चमोली और गोपेश्वर में शराब के खिलाफ लड़ती रहीं। इसीका परिणाम हुआ है कि आज यहाँ पर पूर्ण रूप से शराबबन्दी है। उन्होंने उत्तराखण्ड की सभी महिलाओं का आह्वान किया कि हमें शराबबन्दी आन्दोलन, जंगली जानवरों को खत्म करने की सही नीति बनाने व पहाड़ों मे होने वाले, दाल, फल, सब्जियों आदि उत्पादों के भण्डारण व उचित मूल्य दिलवाने के साथ ही मुवाअजा नीति में बदलाव के लिए सरकार व जनप्रतिनिधियों को घेरने तथा अपनी जरूरत के अनुसार समाधान करवाने की बात कही। उन्होंने कहा कि हमें रोजगार के लिए भी लड़ना होगा। उन्होंने जोर देकर यह भी कहा कि मंच को आपसी स्वार्थ से ऊपर उठकर पुन: अपनी पुरानी खोई हुई शक्ति को पाना होगा। उत्तरकाशी से आई पुष्पा चौहान ने बताया कि जब महिलाएँ जनसैलाब में निकलती हैं तब ही कुछ हासिल हो पाता है। प्रधान पद पर रहते हुए उन्होंने इस भ्रष्टाचारी व्यवस्था को करीब से जाना और समझा है। उनका मानना है कि जनसंगठनों के माध्यम से हम कोई भी लड़ाई जीत सकते हैं। महिलाओं के लिए जो कानून बने हैं, उनका वास्तव में क्रियान्वयन नहीं हो पाता। उन्होंने सभी महिलाओं के सामने प्रस्ताव रखा कि अपने संगठनों की पहचान के साथ हम उत्तराखण्ड की महिलाएं अपने मुददें के लिए एकजुट हो सकती हैं। तभी उत्तराखण्ड की जनता के लिए सही नीति बनाने के लिए हम नेताओं और अधिकारियों की जबावदेही सुनिश्चित कर सकते हैं।
गैरसरकारी संगठनों में लम्बे समय से कार्य कर रहीं सुनीता शाही का मानना है कि उत्तराखण्ड में लगातार गिरती स्वास्थ्य सेवाओें के प्रति संवेदनशील बनाने एवं समान शिक्षा को लागू करने की दिशा में कोई सचेत प्रयास न करने के लिए नेताओं को घेरना चाहिए। पहाड़ों मे बढ़ते नशे व भू्रण हत्या, शादी के नाम पर गरीब घरों की लड़कियों की खरीद-फरोख्त तथा बढ़ते पलायन पर भी चिन्ता जताई। विमर्श संस्था की कंचन भण्डारी ने कहा कि घरेलू हिंसा को हल करने के लिए अलग से कानूनी ढांचा बनाया जाना चाहिए ताकि महिलाओं की समस्याओं का समय पर समाधान हो सके। अश्लील संस्कृति की खिलाफत करने व महिला सुरक्षा के नाम पर बनी हैल्प लाइन व्यवस्था को संवेदनशील बनाने के लिए पुलिस-प्रशासन पर दबाव डालने पर जोर दिया गया। ताकि महिलाएं अपने अधिकारों के लिए बने कानूनों का वास्तविक उपयोग कर सकें। देश में चल रही राजनीति से महिलाएं भी प्रभावित होती हैं। कंचन भण्डारी का कहना था कि उत्तराखण्ड में आज पूंजीपतियों की लूट बढ़ती जा रही है। इसके खिलाफ महिलाओं को आवाज उठानी चाहिए और महिलाओं को अपनी राजनीतिक समझदारी बढ़ानी चाहिए ताकि वे अपने अधिकारों का स्वयं उपयोग करना सीखें। नानिसार आन्दोलन के दौरान जेल गई अल्मोड़ा से आई आनन्दी वर्मा और रेखा धस्माना का कहना था कि किसी भी आन्दोलन को जीतने और अपने मुददें में जीत हासिल करने के लिए जरूरी है कि राजनीतिक विकल्प प्रस्तुत कर अपने प्रतिनिधियों को विधानसभा में भेजा जाय। रानीखेत से आई डा. जया पाण्डे ने वर्तमान चुनाव के मद्देनजर संसद व विधानसभाओं में महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत आरक्षण के लम्बे समय से निलम्बित मुद्दे को उठाते हुए मांग की कि आगामी विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दल अपने-अपने दलों की पचास प्रतिशत महिलाओं को टिकट दें। तभी महिलाओं के सम्मान की बात सार्थक होगी।
(Women organizing on public issues)
ग्रामीण क्षेत्रों से आई महिलाओं ने औरत के श्रम का मूल्य तय करने, औरतों के लिए रोजगार की व्यवस्था, औरतों को किसान का दर्जा व जमीन पर मालिकाना हक मिले इसके लिए भी सभी संगठनों से मिलकर संघर्ष करने की अपील की। इसके अतिरिक्त मंच के तीन मुददें नशा मुक्त उत्तराखण्ड, मुजफ्फरनगर के दोषियों को सजा दिलवाने व गैरसैंण को राजधानी घोषित करने के मुदद्े मुय्खता से उठाये गये।
गोष्ठी के अन्त में सभी ने एकमत से निर्णय लिया कि अगले छ: महीनों में सभी महिलाएं व संगठन एकजुट होकर उत्तराखण्ड स्तर का एक सम्मेलन करने की तैयारी करेंगे। इसके लिए पूरे उत्तराखण्ड स्तर पर संघर्षों से जुड़ी महिलाओं से सम्पर्क किया जायेगा। सम्मेलन में आने वाले सभी महिला संगठनों को मिलाकर एक संयुक्त मोर्चा बनाने की दिशा में प्रयास करने का भी फैसला लिया गया। इससे पूर्व गोष्ठी में उभर कर आये महत्वपूर्ण मुददें पर एक पर्चा निकाला जायेगा और चुनाव में वोट मांगने वाले नेताओं व प्रतिनिधियों के सामने अपने तमाम मुददें को रखा जायेगा। जनता के बीच भी अपने मुद्दे पहुँचाने का निर्णय लिया गया। अध्यक्षीय भाषण के बाद ‘‘औरतों ने जब भी अपनी दुनिया को बदलना चाहा, धर्म उनके रास्ते में अड़चनें लगाने लगा’’ गीत से कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन शीला रजवार व माया चिलवाल ने संयुक्त रूप से किया और कार्यक्रम की अध्यक्षता महिला मंच की वरिष्ठ सदस्या कमल नेगी ने की।
इस कार्यक्रम में निम्न संगठन शामिल थे- लक्ष्मी आश्रम कौसानी की बसन्ती बहन, उत्तराकाशी महिला मंगल दल की अध्यक्ष व ग्राम प्रधान, द्वाराहाट से महिला एकता परिषद की सचिव, गोपेश्वर महिला मंच, प्रयास संस्था, सैणियों का संगठन, विमर्श, सरल संस्था ,महिला समाख्या, प्रगतिशील महिला एकता केन्द्र हल्द्वानी, सोहार्द जन सेवा संस्थान तथा उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी अल्मोड़ा की महिला सदस्य थीं। नैनीताल व हल्द्वानी के महिला मंच की साथियों व छात्राओं के सहयोग से यह गोष्ठी सम्पन्न हुई।
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