महिला सम्मेलन 2017 और हमारी चुनौतियाँ
चन्द्रकला
यहाँ बिखराव नहीं विविधता नजर आती है, वह न केवल रंगों की है, सुरों की है बल्कि वह अपने-अपने अनुभवों की भी है। महिलाएँ घर-घर में बिखरी हैं, गाँव-गाँव में बिखरी हैं, देश के कोने-कोने में हैं। हम देवी नहीं, हम दासी नहीं, साथी हैं, यह कहने वाली महिलाएँ हर जगह पर मौजूद रहकर जिस प्रकार के सपने बुनती हैं और जो जीवित रहती हैं, उनके योगदान व सहभाग के बिना हर बदलाव अधूरा है।’
ये बातें 27-28 दिसम्बर को नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर में हुए उत्तराखण्ड महिला सम्मेलन के दौरान नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने कहीं। सम्भवत: पहली बार उत्तराखण्ड के विभिन्न हिस्सों (मुनस्यारी, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, गंगोलीहाट, लोहाघाट, चम्पावत, उधमसिंह नगर, रुद्रप्रयाग, कौसानी, गोपेश्वर, कोटद्वार, द्वाराहाट, देहरादून, जौनसार, नैनीताल, रामनगर, बाजपुर, गरुड़, बागेश्वर, अल्मोड़ा) से आयी महिलाओं के लगभग डेढ़ दर्जन महिला संगठनों ने सम्मिलित होकर जहाँ महिलाओं के मुद्दों, महिला हिंसा के साथ ही जल, जंगल, जमीन, खेती व महिलाएँ, शराब व नशा, शिक्षा व स्वास्थ्य, महिलाएँ व राजनीति पर चर्चा के साथ ही पंचेश्वर बाँध तथा गैरसैंण राजधानी के सवाल को प्रमुखता से उठाते हुए महिलाओं की एकजुटता की मिसाल भी पेश की। नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री व समाजसेवी मेधा पाटकर की उपस्थिति ने इस सम्मेलन को अधिक उपयोगी बना दिया।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की शुरूआत प्रसिद्ध गायिका कबूतरी देवी ने शगुन गीत ‘‘शगुन दे माता शगुन भवानी’’ गाकर की। उत्तराखण्ड के संघर्ष की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए ‘गर हो सके तो अब कोई शम्मा जलाइये’ गीत से महिलाओं से संघर्ष के लिए तैयार होने का आह्वान करते हुए कार्यक्रम की औपचारिक शुरूआत हुई। मुख्य अतिथियों के स्वागत के साथ कार्यक्रम का संचालन करते हुए डा़ उमा भट्ट ने महिला सम्मेलन करने के विचार तथा सभी महिलाओं के सम्पर्क के दौरान संज्ञान में आये मुद्दों की पृष्ठभूमि को सबके सामने रखा। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि मेधा पाटकर ने अपने ओजस्वी आह्वान से उपस्थित महिलाओं में ऊर्जा का संचार करते हुए कहा कि उत्तराखण्ड आन्दोलन हो, सिंगूर से लेकर नन्दीग्राम या नर्मदा बचाओ आन्दोलन अथवा देश के अन्य आन्दोलन, सभी में महिलाओं की प्रमुख भूमिका रही है। उन्होंने वर्तमान सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि नोटबन्दी ने महिलाओं की पूँजी को छीन लिया है। पंचेश्वर बाँध, ऑल वेदर रोड और नदियों में किये जाने वाले खनन के द्वारा पहाड़ों को विनाश की ओर धकेलने की तैयारी की जा रही है। अतिथियों में सर्वोदय आन्दोलन में सक्रिय रहीं देवकी कुंजवाल (जैंती), शशिप्रभा रावत (कोटद्वार), शोभा बहन (धरमघर) ने भी अपने अनुभव नयी पीढ़ी के सामने रखे तथा नदी बचाओ आन्दोलन की नेत्री सुशीला भण्डारी ने भी अपनी बात रखी। महिला अधिकारों के लिए संघर्षरत पी़यू़सी़एल की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने कहा कि यह समय है कि हम एक-दूसरे का हाथ थामें। चाहे हम लोग अलग-अलग आन्दोलनों से आये हैं लेकिन हमारी लड़ाई एक है। नारीवादी लेखिका तथा कार्यकर्ता कल्याणी मेनन ने कहा कि यहाँ जो महिलाएँ बैठी हैं, वे अपने 25-30 सालों के संघर्ष के बारे में बात कर रही हैं। उनके संघर्ष पूरे जोश के साथ अब भी चल रहे हैं। हम उनसे प्रेरणा ले रहे हैं और अपने नारीवाद को मजबूत कर रहे हैं। जब तक ये सवाल उठते रहेंगे, लड़ाइयाँ भी चलती रहेंगी। संगतिन संस्था, सीतापुर की ऋचा सिंह ने दो दिवसीय सम्मेलन को महिला समस्याओें का समाधान खोजने के प्रयास के रूप में सम्बोधित किया। उन्होंने उपभोक्तावाद के प्रभाववश हमारी बदलती जीवनशैली के प्रति चिन्ता जाहिर की। जब तक हम अपने जीवन जीने के तरीके नहीं बदलते, हम लाख बातें करते रहें, स्थितियाँ बदलने वाली नहीं हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही लक्ष्मी आश्रम की प्रसिद्घ गाँधीवादी राधा बहन ने महिलाओं को उत्तराखण्ड की प्रमुख समस्याओं से रूबरू कराते हुए कहा कि सरकारों के पास महिलाओं के विकास के लिए कोई नीति नहीं है। अत: हमें एकजुट होकर अपने हकों के लिए आवाज उठानी चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार विकास के नाम पर भागीरथी घाटी को बरबाद कर रही है। चारधामों के लिए जो ऑलवेदर रोड बनाई जा रही है, वह गलत है। इस रास्ते में भैरों घाटी से लेकर हर्सिल तक जो वन हैं, उसके करीब 8 हजार पेड़ काटे जायेंगे, यह उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान देखा। नदी में फेंके जाने वाले मलबे से हमारे घास के मैदान खत्म हो गये हैं। अलकनन्दा में श्रीनगर बाँध का मलबा गिराया गया था तो 2013 की बाढ़ में यहाँ के मकान मलबे से भर गये थे। चार लेन सड़के बनाने पर कितना मलबा गिरेगा, इसका अनुमान भी हम नहीं लगा सकते हैं। किसी भी सरकारी नीति में यह नहीं आता कि महिलाओं के पीठ का बोझा कैसे कम होगा। महाकाली व सरयू का किनारा सबसे उपजाऊ है लेकिन बाँध बनाकर नदियों को सुखाने की तैयारी हो गयी है। राज्य बनने से अब तक यानी सत्रह सालों में 70 हेक्टेयर खेती की जमीन कम हो गयी है। आज हमें यह सोचना होगा कि कैसे हम अपने राज्य को संवार सकते हैं।
(women’s conference & her challenges )
उत्तराखण्ड महिला मंच की कमला पंत ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हम वर्षों से जल, जंगल, जमीन के मुद्दों के लिए लड़ रहे हैं। उत्तराखण्ड बनने से पहले भी महिलाओं की स्थिति जैसी थी, उसमें बदलाव नहीं हुआ है, हमारे मुद्दे यथावत हैं। पहले जो लड़ाई टिहरी बाँध के विरोध में थी, वही आज पंचेश्वर के लिए लड़ी जा रही है। यह सम्मेलन महिलाओं की तमाम समस्याओं के बीच से परिवर्तन का रास्ता खोजने की एक मुहिम है। हम सब महिलाओं को एक नई लड़ाई के लिए खुद को तैयार करना होगा। सत्ता का केन्द्र दिल्ली या देहरादून नहीं बल्कि गाँव होने चाहिए, निर्णय का अधिकार गाँव वालों को मिलना चाहिए। आज उत्तराखण्ड का सवाल हमारे समाने खड़ा है।
भोजनावकाश के बाद सम्मेलन के दूसरे सत्र में उत्तराखण्ड के विभिन्न मुद्दों (जल-जंगल-जमीन, शराब व नशा, स्वास्थ्य व शिक्षा, कृषि व महिला किसान, राजनीति व महिलाएँ, महिला हिंसा) को छह भागों में बाँट कर दो स्तर पर चर्चा आयोजित की गई। सम्मेलन में उपस्थित महिलाओं ने अपनी रुचि के अनुसार सत्रों में हिस्सेदारी की और चर्चा में सक्रिय हिस्सेदारी की। सुशीला भण्डारी ने जहाँ नदी बचाओ आन्दोलन तथा उन पर लगे मुकद्दमों के विषय में सबको अवगत कराया तो अपने-अपने क्षेत्रों में काम कर रही महिलाओं ने विभिन्न मुद्दों पर अपने अनुभव व राय साझा की। जल-जंगल-जमीन तथा कृषि व महिलाएं विषय में हिस्सेदारी करते हुए मेधा पाटकर ने कहा कि जल-जंगल-जमीन का एक दूसरे से अविभाज्य सम्बन्ध है। बाँध से होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती, आने वाली पीढ़ी को इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा। विस्थापित किसानों को कोई हक नहीं दिया जाता। 2018-19 में हमें कर्जमुक्ति का देश बनाने की बात करनी होगी। महिला किसान, उपज का सही मूल्य और भूमि अधिग्रहण आदि मुद्दों पर हमें संघर्ष करना चाहिए। उत्तराखण्ड में बढ़ते शराब व नशे के कारोबार और सरकार की गलत नीतियों पर चर्चा करते हुए महिलाओं ने कहा कि राजस्व के नाम पर सरकार यहाँ के लोगों विशेषकर युवाओं के जीवन से खिलवाड़ कर रही है। इस कारोबार से राजस्व उतना नहीं मिलता जितना कि इनसे होने वाली दुर्घटनाओं में व्यय होता है। उत्तराखण्ड के लिए शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए जनोपयोगी नीति सरकार के पास नहीं है। इस क्षेत्र को निजी कम्पनियों के हाथों को दिया जा रहा है। महिलाओं पर बढ़ती हिंसा पर चर्चा करते हुए महिलाओं ने कई आयामों से महिलाओं की समस्याओं को समझने का प्रयास किया।
सत्रों की समाप्ति के बाद छ: बजे से सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दी गईं। उत्तरकाशी की महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में तांदी नृत्य प्रस्तुत किया। कबूतरी देवी का गायन सुनने के लिए शहर के दूर-दराज से भी लोग पहुँचे थे। हिमांशु जोशी की कहानी ‘गोपुली बूबू’ का मंचन दिव्या पाठक द्वारा किया गया। इस भावपूर्ण प्रस्तुति को देखते हुए वहां मौजूद महिलाएँ भावुक हो गईं। जनगीत व अन्य नाटकों के द्वारा भी उत्तराखण्ड की वर्तमान तस्वीर को साकार करने का प्रयास किया गया।
(women’s conference & her challenges )
सम्मेलन के दूसरे दिन पहले दिन के सत्रों में हुई चर्चा की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। खुले सत्र का संचालन शीला रजवार ने किया। इस सत्र की अध्यक्षता महिला मंच की वरिष्ठ नेत्री उषा भट्ट ने की। उन्होंने कहा कि हमें पुन: अपनी ताकत को एकत्र कर उत्तराखण्ड के बुनियादी मुद्दों के लिए संघर्ष करना होगा। गैरसैंण, मुजफ्फरनगर कांड व नशामुक्त उत्तराखण्ड के मुद्दे को उन्होंने पुरजोर तरीके से उठाया। कार्यक्रम के समापन पर हल्द्वानी महिला मंच की निर्मला सूरी ने सभी अतिथियों, कार्यकर्ताओं व सहयोगियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। दोपहर 2 बजे कार्यक्रम स्थल से तहसील के लिए महिलाओं ने जनगीतों व नारों के साथ रैली निकाली। तहसील पहुँचकर सम्मेलन में सभी महिलाओं की मौजूदगी में हल्द्वानी तहसीलदार के माध्यम से मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन प्रेषित किया गया जिसमें मुख्यत: उत्तराखण्ड में पूर्ण शराब एवं नशाबन्दी, मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा, गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थाई राजधानी घोषित करना, उत्तराखण्ड से पलायन रोकने की ठोस नीति बनाना, चार धाम महामार्ग निर्माण योजना को बंद करने, पंचेश्वर एवं रूपाली गाड़ बांध परियोजना पर रोक लगाने, वन अधिकार कानून 2006 को पुन: लागू करने, प्रतिपूरक वनीकरण कानून 2016 को रद्द करने, सुशीला भण्डारी पर लगाये गये मुकद्दमों को वापस लेने, महिलाओं को किसान का दर्जा एवं जमीन पर मालिकाना हक दिये जाने, जंगली जानवरों द्वारा फसलों को होने वाले नुकसान को रोकने हेतु ठोस कार्यवाही, किसानों के कर्ज माफ किया जाने, उत्तराखण्ड में समान शिक्षा व्यवस्था लागू करने और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण रोके जाने, महिलावाचक गालियों के सार्वजनिक प्रयोग को दंडनीय अपराध मानने, जिला स्तर पर मानसिक विक्षिप्त एवं घर विहीन महिलाओं के लिए आश्रम स्थल, महिला हिंसा से संबंधित विभिन्न लंबित मामलों में शीघ्र न्याय, घरेलू हिंसा के निस्तारण के लिए पृथक ढांचा बनाने, बेमेल विवाह के माध्यम से की जाने वाली लड़कियों की तस्करी रोकने, परिवार नियोजन में पुरुष भागीदारी बढ़ाने, स्कूलों में लड़कियों को सैनेटरी पैड उपलब्ध करवाने आदि से सम्बन्धित मांगें थीं।
2016 के दिसम्बर माह में उत्तराखण्ड महिला मंच के स्थापना सम्मेलन के अवसर पर नैनीताल में एकत्रित महिलाओं ने अपने-अपने संगठनों की ताकत को जोड़कर उत्तराखण्ड स्तर का एक महिला सम्मेलन करने का निर्णय लिया था और साल भर इसकी तैयारी की थी। अलग-अलग जगहों पर बैठकें की गईं तथा सम्पर्क अभियान चलाये गये। इसके आयोजन में जिन संगठनों की प्रमुख रूप से भागीदारी रही, वे हैं उत्तराखण्ड महिला मंच, महिला एकता परिषद द्वाराहाट, लक्ष्मी आश्रम कौसानी, माटी मुनस्यारी, विमर्श नैनीताल, प्रयास भवाली, सरल हलद्वानी, सौहार्द हलद्वानी, सैणियों का संगठन भवाली, अर्पण पिथौरागढ़। सम्मेलन में सभी महिलाओं की भागीदारी बनाने के लिए सभी आयोजक संगठनों ने अपने स्तर पर सम्पर्क किया, चन्दा किया गया, उसी का परिणाम था यह 2017 के दिसम्बर माह में हल्द्वानी में उत्तराखण्ड की महिलाओं की व्यापक भागीदारी से सम्पन्न महिला सम्मेलन, जो एक सुखद एहसास दिला गया। हालांकि संगठनों का आपसी समन्वय भली-भांति न होने के कारण धर्म, जाति, वर्गीय व क्षेत्रीय आधार पर महिलाओं की भागीदारी पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा सका। मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी न होना और उत्तराखण्ड की सभी जनजातियों की महिलाओं का प्रतिनिधत्व न होना भी सम्मेलन की एक कमी कही जा सकती है। कुछ व्यवस्थागत कमियों के अतिरिक्त कुल मिलाकर यह सम्मेलन अपने उद्देश्य में काफी हद तक सफल रहा। पूरी तरह जनता के द्वारा दिये गये आर्थिक सहयोग से यह सम्पन्न हुआ, इससे भी आयोजकों का उत्साह बढ़ा। इस आशा के साथ कि फिर महिलाएं एकजुट होंगी और नयी राह तलाशेंगी… रात नहीं अब सुबह चाहिए, सूरज को झकझोर के आ़…ये सन्नाटा तोड़ के आ़….
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