सत्ता तय करने में महिलाओं की भूमिका
दिशा बिष्ट
पहाड़ की नारी हर क्षेत्र में पुरुषों को टक्कर देती नजर आती हैं। अगर बात लोकतंत्र के महापर्व की हो तो भला वे इसमें कैसे पीछे रह सकती हैं। उत्तराखण्ड विधानसभा चुनाव 2017 के दौरान महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भागीदारी निभायी तथा सभी सीटों पर संख्या में मतदाता के रूप में महिलाएँ पुरुषों को टक्कर देती नजर आयीं। जहाँ विधानसभा चुनाव 2012 में 9 जनपदों में 31 सीटों पर मातृशक्ति ने माननीयों का भाग्य लिखा, वहीं इस बार 2017 के विधानसभा चुनाव में सभी 13 जनपदों में महिलाएँ मतदान प्रतिशत के मुकाबले में पुरुषों से आगे रहीं।
वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के आँकड़ों पर अगर हम गौर करें तो राज्य की 70 सीटों में से 31 सीटों पर मतदान के मामले में महिलाएँ आगे रहीं। वहीं, 2017 में 69 सीटों में से 36 पर महिला मतदाता संख्या के हिसाब से पुरुषों पर भारी पड़ीं। इतना ही नहीं, 2012 में महिला मत प्रतिशत 68.84 फीसदी था, जबकि पुरुष मतदाताओं में से 65.74 फीसदी ने ही मतदान किया।
2017 के आँकड़ों पर गौर करें तो इस बार 69.34 फीसदी महिलाओं ने मतदान में भाग लिया, जबकि पुरुषों का आँकड़ा 62.28 फीसदी ही रहा।
2012 में राज्य के 13 जिलों में से 9 में महिला मत प्रतिशत पुरुषों की तुलना में अधिक रहा था। इस बार 13 जिलों में महिलाओं ने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया। साफ है कि राज्य की सत्ता की बागडोर महिला मतदाताओं के द्वारा ही तय की गयी है। आमतौर पर पर्वतीय सीटों पर पुरुषों के बाहर नौकरी करने को महिला मत प्रतिशत अधिक होने का कारण माना जाता है, लेकिन इस बार मैदानी जिलों में भी महिला मत प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा। समाज में महिलाओं की सामाजिक, राजनीतिक व जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों में बढ़-चढ़कर भागीदारी करना यह साबित करता है कि महिलाएँ अब पुरुषों से एक कदम आगे निकल चुकी हैं। मातृशक्ति की यह पहल समाज के लिए शुभ संकेत है। जब-जब मातृशक्ति ने किसी भी आन्दोलन की बागडोर सम्भाली, निश्चित तौर पर वह आन्दोलन सफल रहे हैं।
शराबबन्दी, बलिप्रथा, बालिका शिक्षा सहित विभिन्न सामाजिक आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भूमिका इस बात को दर्शाती है। जिसका परिणाम यह है कि आज समाज भी उनकी राह पर चल पड़ा है। महिलाएँ समाज से जुड़ी बुराइयों के अंत के लिए किसी भी हद तक जाने से हिचक नहीं रही हैं। जो समाज हित में एक सार्थक पहल है।
(Women’s contribution in politics)
कुमाऊँ में मतदान प्रतिशत
जनपद मतदान पुरुष महिला
पिथौरागढ़ 60.58 56.64 64.52
बागेश्वर 61.23 52.53 70.18
अल्मोड़ा 52.81 45.20 60.69
चम्पावत 61.66 53.37 70.81
नैनीताल 66.77 64.96 68.80
उ.नगर 75.79 74.46 77.30
यह एक अदृश्य क्रांति है जिसका प्रभाव पूरे देश में देखा जा रहा है। महिला मतदाताओं की संख्या में क्रमश: बढ़ोत्तरी हुई है। 1960 में जहाँ 1000 पुरुषों पर 715 महिला मतदाता थीं, वहाँ 2012 में 1000 पुरुषों पर 883 महिला मतदाता थीं। निम्न सीटों पर पुरुष मतदाताओं की अपेक्षा महिला मतदाताओं की भागीदारी अधिक रही-
विधानसभा पुरुष महिला कुल वोट
धारचूला 25663 27129 52792
डीडीहाट 23510 27025 50535
पिथौरागढ़ 30114 34852 64966
गंगोलीहाट 24475 29245 53720
कपकोट 26212 32548 58760
बागेश्वर 28083 37885 65963
द्वाराहाट 18634 27677 46311
सल्ट 18282 25239 43521
रानीखेत 18346 22210 40557
सोमेश्वर 19386 26147 45533
अल्मोड़ा 23678 27327 51005
जागेश्वर 22488 28057 50545
लोहाघाट 25144 32777 57921
चम्पावत 27489 30472 57961
कालाढूंगी 50149 50572 100721
खटीमा 38957 41594 80551
महिलाएँ वोट बैंक के रूप में संगठित हो रही हैं, यह भविष्य की राजनीति के लिए एक शुभ संकेत है। मतदान के माध्यम से महिलाएँ राजनीतिक पटल पर अपनी उपस्थिति सुनिश्चित कर रही हैं। लेकिन यह भी सच है कि चुनाव में उम्मीदवार के रूप में राजनीतिक दल अभी भी महिलाओं पर भरोसा नहीं कर रहे हैं।
(Women’s contribution in politics)
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