गढ़वाल की महिलाओं के हिस्से का विश्वयुद्ध
-देवेश जोशी
(लोकगीतों के झरोखे से)
प्रथम विश्वयुद्ध 1914 से 1918 की अवधि में हुआ था। भारतीय भी इस महायुद्ध में ब्रिटेन की ओर से शामिल रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 की अवधि में हुआ और भारत ही एकमात्र ऐसा देश था जिसके सैनिक इस विश्वयुद्ध में दोनों पक्षों की ओर से लड़े, ब्रिटिश सेना की ओर से भी और आज़ाद हिन्द फौज़ की ओर से भी। इन महायुद्धों से जुड़े हमारे सैनिकों और श्रमिकों के अनुभवों को समझने-जानने के लिए हमारे पास बहुत कम लिखित सामग्री है। न तो सैनिकों की डायरियां हैं, न संस्मरण। न ही इतिहास कथाएँ और न गीत-कविताएँ। विश्वयुद्ध के अनुभवों को लेकर रचे गए कुछ लोकप्रिय और करुण लोकगीत उपलब्ध हैं। इन गीतों की जुबानी उस लाम की कथा भी पढ़ी-सुनी जा सकती है जिसे वीर गढ़वाली सैनिकों की पत्नियां, मां, बेटियां अपने ही मुल्क़ में अपने घर-गाँव में लड़ रही थीं और जो इतिहास-ग्रंथों में कहीं उल्लिखित नहीं है। (World War Women’s Garhwal)
इन गीतों में युद्ध के लिए प्रस्थान करते हुए एक सैनिक के मुख से निकला हुआ एक मार्मिक गीत है- सात समोदर पार। जिसमें वह अपनी माँ को सम्बोधित करके कहता है कि हे मांजी, सात भाइयों और सात बहुओं वाले परिवार को छोड़कर मैं सात समुद्र पार युद्ध में लड़ने कैसे जाऊंगा। घर में गाय ब्याई है, भैंस ब्याने वाली है, सुन्दर बैलों की जोड़ी है, हिमालय की चमकती हुई चोटियाँ हैं-
सात समोदर पार च जाण ब्वे जाज मा जौंलू कि ना
जिकुड़ी उदास ब्वे जिकुड़ी उदास
लाम मा जाण जरमन फ्रांस
कनुकैकि जौंलू मि जरमन फ्रांस ब्वे जाज मा जौंलू कि ना।
उन दिनों संचार साधनों के अभाव और विदेशी हुकूमत के कारण युद्ध से लापता या युद्घबंदी सैनिकों की सूचना समय पर उनके परिजनों तक नहीं पहुँच पाती थी। ऐसे कई किस्से प्रचलित थे जिनमें बताया जाता था कि फलाँ गाँव का फलाँ लापता फौजी नौ या बारह साल बाद अचानक घर पहुँच सबको अचम्भित कर गया। 1918 में प्रकाशित अत्यन्त लोकप्रिय लोकगीत ‘रामी बौराणी’ प्रथम विश्वयुद्ध में गये सैनिक की पत्नी की इसी प्रकार की दु:ख भरी गाथा को प्रस्तुत करता है। श्री भजन सिंह ‘सिंह’ द्वारा प्रकाशित ‘वीर वधू’ कविता 1915 के लाम के दौरान राठ क्षेत्र के गोठ गाँव के सैनिक अमरसिंह की वीरांगना पत्नी की सत्यकथा पर आधारित गढ़वाली खण्डकाव्य है। गीत के पहले सर्ग में फ्रांस में हुए युद्घ में अमरसिंह के शहीद होने का वर्णन है और दूसरे सर्ग में उसकी पत्नी देवकी के वीरतापूर्ण कृत्य के बारे में बताया गया है। गाँव के किसी छोर पर मकान में रहने वाली देवकी एक दिन हींग बेचने वाले एक पठान को घर के निचले खण्ड में रातभर के लिए आश्रय देती है। पठान रात में दरवाजा तोड़कर देवकी का शीलभंग करने का प्रयास करता है तो देवकी तकिये के नीचे रखी खुखरी निकालकर पठान पर प्रहार कर अपनी रक्षा करती है। एक अन्य लोकगीत ‘बैठ जा डाकिया’ में सैनिक पत्नी डाकिए से तिबारी में बैठने और पति की चिट्ठी पढ़ कर सुनाने का अनुनय करती है। डाकिया बता रहा है कि सात समुद्र पार युद्घ छिड़ गया है। अॅजुटेंट साहब ने दफ्तर जाकर छुट्टी पर गए सिपाहियों को तुरंत हाजिर होने का कार्ड भेजा है। पलटन की रणभेरी बज गयी है।
बैठिजा डाकिया तिबारी बीच,
हमरू सिपया उ घौर नी च।
प्रथम विश्वयुद्ध में विक्टोरिया क्रास प्राप्त चम्बा के सैनिक गबर सिंह पर नारायण सिंह सजवाण द्वारा रचे गये गीत में उसकी पत्नी शतुरी देवी की धीरता का भी उल्लेख मिलता है।
लड़कों मां देखा गबर सिंह बीर
नारियों मां देखी सतुरी सी धीर
एक अन्य गीत ‘भरती होण’ में सैनिक गुमान सिंह के सेना में भर्ती होने के जुनून को बड़ी खूबसूरती से उकेरा गया है। गीत के अन्त में गुमानसिंह अपनी भावुक होती हुई पत्नी से इस मासूम तर्क के साथ विदा लेता है कि मेरी खुद लगेगी तो तू मेरी पलंग को भेट लेना। वह काळा डांडा जाकर माँ की पकाई रोटी को याद करने की बात करता है।
काखड़ की बोटी,
काळौं डांडा याद कदो ब्वेकि पकाईं रोटी।
खणी जाली गेंठी,
मेरी याद औली प्यारी, मेरू पलंग भेंटी।
महिलाओं के हिस्से के विश्वयुद्घ को समझने के लिए यहाँ तीन लोकगीतों को दिया जा रहा है, ये लोकगीत हैं- गणेसी, मेरो गुमानऽ या और गोदू भुली। इन तीन लोकगीतों में विश्वयुद्ध में लड़ रहे या वीरगति को प्राप्त सैनिक परिवारों की महिलाओं के तीन अलग-अलग दृश्य हैं, व्यथाएँ हैं और तीन अलग-अलग सम्बंध भी हैं। गणेसी में पति-पत्नी का, मेरो गुमानऽ या में सास-बहू का और गोदू भुली में एक धूर्त-लुुटेरे को बड़ा भाई कह कर मदद की अपेक्षा में जान गँवाने वाली एक मासूम बहिन का।
गणेसी
इस गीत में सैनिक और उसकी पत्नी गणेसी का मार्मिक संवाद है। प्रथम विश्वयुद्घ के समय लाम पर जाने के लिए सैनिक को झाँसी छावनी से प्रस्थान करना है। सैनिक पत्नी को गाँव भेजने की तैयारी कर रहा है और पत्नी गणेसी प्रेमातिरेक में कहती है कि मेरे सिपाहीजी आप गाँव चले जाओ, आपके बदले मैं लाम पर चली जाती हूँ। सैनिक समझाता है कि ऐसा सम्भव नहीं है। तुम तो गर्भवती भी हो, तुम्हें होने वाले बच्चे का खयाल रखना है। लड़का होगा तो उसे अंग्रेजी पढ़ाना और लड़की होगी तो कन्यादान कर विवाह करना। विदाई के चरम क्षणों में गणेसी कहती है कि मैं आपकी चिट्ठी की राह देखती रहूंगी और सैनिक कहता है कि मेरी खुद लगने पर तुम मेरे रुमाल को चूम लेना।
बेडू पाक्या भौंर गणेसी बेडू पाक्या भौंर
म्यारा दिल की प्यारी गणेसी जा पियारी घौर।
तैका की कढ़ाई सिपैजी तैका की कढ़ाई
तुम जावा दी घौर सिपैजी मैं जौलु लड़ाई।
गौ़ड़्यों की तूकम गणेसी गौ़ड़्यों की तूकम
त्वै दगड़ी ल्ही जाँदो पियारी मैंकु नी हूकम।
पेई ती सराप सिपैजी पेई ती सराप
घर जाणो मी जांदु तुमरि बोई च खराब।
ज्यूड़ी मार्यो फंद गणेसी ज्यूड़ी मार्यो फंद
जा पियारी घौर गणेसी तू छै आशाबंद।
हाँसुली गढ़ाई गणेसी धागुली गढ़ाई
नोनो होई जालो पियारी अंग्रेजी पढ़ाई।
बाखरी को रान गणेसी बाखरी को रान
नौनी होली मेरी गणेसी दे नीकसू दान।
धारमा कि तोण सिपैजी धार मा कि तोण
जनि शोभा तुमारि सिपैजी तनि मेरि नी होण।
तौली सारी टाँकी सिपैजी तौली सारी टाँकी
भागमा क्या होलो कुज्याणी मलकणी च आँखी।
ताकुला की ताकी गणेसी ताकुला की ताकी
गौरा दैणी होली पियारी तू भरोसो राखी।
झंगोरा को बोट गणेसी झंगोरा को बोट
मैं देर होंणी च पियारी छोड़ मेरो कोट।
शीणाई की भौंण सिपैजी शीणाई की भौंण
चिठि देई देन पौंछ्यांकि मिन ससैंई रौंण।
दूध को उमाळ गणेसी दूध को उमाळ
त्वै खुद लागलि पियारी भेंटी ये रुमाल।
मेरो गुमानऽ या
इस लोकगीत में बारह वर्ष से लापता सैनिक की मां और पत्नी का मार्मिक वार्तालाप है। दो पीढ़ियों और दो रिश्तों के दृष्टिकोण में अंतर भी देखा जा सकता है। चिरआशावादी मां घर के चौक में होती हर आहट पर बहू को बाहर देख आने के लिए कहती है जबकि बहू ने इस लंबे अंतराल में पति-वियोग को अपनी नियति मान लिया है। पति के लौट आने की आशावादिता से उसका मोहभंग हो चुका है और अपनी सास को भी वह इस कटु यथार्थ को स्वीकार कर लेने के लिए समझाने का प्रयास करती है। सास को वह मासूम-सा जवाब भी देती है कि एक क्षण के लिए मान भी लूं कि आपका गुमान सिंह लौट आया है तब भी मुझे बताओ कि मैं उसे कैसे पहचानूंगी जिसे मैंने शादी के बाद ढंग से देखा भी नहीं था। सास अपने कल्पनालोक में घूमते दृश्य को शब्दों में उतारती है कि जो घोड़े पे सवार होगा, जिसके सर पर पगड़ी होगी, जिसने सदरी पहनी होगी वही मेरा गुमानसिंह होगा।
ठम्म बाऽजी चौका की पठाळी र्केऽ होलू मेरो गुमानऽ या।
जादी हे ब्वारि जरा भैनैऽ देख्यादि र्केऽ होलू मेरो गुमानऽ या।
छी भैऽ रौळौं मिन कनुकै पछ्यड़ण अब तुमारू गुमानऽ या
ब्योऽ हुयां बिटि घौर नि बौड़ु जिवोरो तुमारू गुमानऽ या
ब्यालि राति मैं सुपिन्या ह्वाईऽ देखि छौ मैंन गुमानऽ या
चौक तिराळी खड़ू हवेकि मैंतैं ऽ होलू जन वु लगाणूं या।
ठम्म बाऽजी चौका की पठाळी र्केऽ होलू मेरो गुमानऽ या।
मेरो सुख-चैन लूछी ली ग्याई सासु तुमारू गुमानऽ या
मेरी दुन्याऽ खन्द्वार कै ग्याई जिवोरो तुमारू गुमानऽ या
छी भैऽ रौळौं ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़गुमानऽ या॥
मेरि कोखी को बाळु छायो हे ब्वारी मेरो गुमानऽ या
मेरि आँख्यूं को उज्याळु छायो ब्वारी मेरो गुमानऽ या।
ठम्म बाऽजी ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़..़गुमानऽ या॥
मेरि जिकुड़ि मा घौऽ दे ग्याई सासु तुमारू गुमानऽ या
बाळी ज्वनि को तमसू कै ग्याई जिवोरो तुमारू गुमानऽ या
छी भैऽ रौळौं ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़गुमानऽ या॥
जैकि होली हाँ घोड़ी सवारी वीऽ होलू मेरो गुमानऽ या
जैकि होली घुंघर्याळि लटुळी वीऽ होलू मेरो गुमानऽ या।
ठम्म बाऽजी ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़..़गुमानऽ या॥
सात समोदर पार गैऽ छाई हेऽ रौळौं तुमारू गुमानऽ या
बारह बरस ह्वे गैनि नि आई सासु तुमारू गुमानऽ या
छी भैऽ रौळौं ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़गुमानऽ या॥
जैकि होली हाँ पैरींऽ सदरी वीऽ होलू मेरो गुमानऽ या
जैकि होली हाँ ठांटी पगड़ी वीऽ होलू मेरो गुमानऽ या।
ठम्म बाऽजी ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.. गुमानऽ या॥
निन्द-भूूख मेरी हैरीऽ ली ग्याई जिवोरो तुमारू गुमानऽ या
यूं आँख्यूं मा आंसू दे ग्याई सासु तुमारू गुमानऽ या
छी भैऽ रौळौं ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़..़गुमानऽ या॥
जैकि होली हाँ छाळि बाच वीऽ होलू मेरो गुमानऽ या
जैकि होली हाँ छड़छड़ी गात वीऽ होलू मेरो गुमानऽ या।
ठम्म बाऽजी ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.. गुमानऽ या॥
कन्दूड़ी बयाणी छन जिवोरो नि आई तुमारू गुमानऽ या
छोड़ि द्यो अब यीं आस रौळौं नि आणू तुमारू गुमानऽ या
छी भैऽ रौळौं ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़. गुमानऽ या॥
असगुनि बात नि बोल हे ब्वारि ज्यून्दु छ मेरो गुमानऽ या
अज्यूं पैदा नि ह्वाई क्वी जु मारि द्यो मेरा गुमानऽ या।
ठम्म बाऽजी ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़. गुमानऽ या॥
बैर्यूंन मारि यालि सासु जी प्यारू तुमारू गुमानऽ या
सदानि कू मुजि ग्याई रौळौं ये घौर को उज्यालू या
छी भैऽ रौळौं ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़. गुमानऽ या॥
मैंतैं बिश्वास छ बौड़िकी आलू ब्वारि मेरो गुमानऽ या
मेरी त आस अर सांस छ हे ब्वारि मेरो गुमानऽ या।
ठम्म बाऽजी ़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़.़. गुमानऽ या॥
गोदू भली
विश्वयुद्ध के दौरान अपने ही मुल्क में सैनिक पत्नियों द्वारा एक लाम लड़ा जा रहा था। पति के दूर देश में युद्ध के मोर्चे पर होने के कारण सैनिक पत्नियों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था। इस गीत में सैनिक पत्नी गोदू (गोदाम्बरी) अपने छोटे भाई की शादी में जाना चाहती है। ससुराल से अनुमति नहीं मिलती है तो बिना बताए चुपचाप अपने मायके की ओर निकल पड़ती है। रास्ते में नदी पड़ती है जिसे पार करने के लिए किसी तैराक पुरुष के सहारे की जरूरत है। उसे एक ढाकरी मिलता है जो मीठी-मीठी बात करके उसकी सारी कहानी पता कर लेता है। ये भी कि उसका पति सिंगापुर लड़ाई (द्वितीय विश्वयुद्ध) में गया हुआ है और वह ससुराल से भागकर मायके जा रही है। वह नदी पार कराने के एवज में उसके सारे जेवर ले लेता है और भेद खुलने के डर से उसे मार कर वहीं दफना देता है।
गोदू भुली धियांणी भुली मैत लागी सोरास या,
सड़की को ढक्वाळ भैजी, तू पूछी क्या पौंदी या।
बाखरी को स्यो च भैजी, बाखरी को स्यो च या,
मैत लागू भाजी की भैजी, मेरा भुला को ब्यो च या।
गोदू भुली धियांणी भुली को च त्यारू वारिस या,
म्यारा जेठाजी होला भैजी, म्यारा वारिस या।
गैड़ी जाली पणाई भैजी गैड़ी जाली पणाई या,
मेरू वारिस होलू भैजी, सिंगापुर लड़ैई मा या।
सड़की का ढक्वाळ भैजी, मीथैं गाड तरै दे या,
गाड भुली गुलोबंद भुली तब तरौलू गाड या।
सड़की का ढक्वाळ भैजी, मीथैं गाड तरै दे या,
गाड़ भुली नथुली गाड़, तब तरौलू गाड या।
सड़की का ढक्वाळ भैजी सड़की का ढक्वाळ या,
तिल खाड केकू खैणी सड़की का ढिस्वाळ या।